सोमवार, 27 जुलाई 2015

लीना मेहेंदळे,


शुक्रवार को मैं और श्री अरुण उपाध्याय दोनों ही श्री कोसला वेपा से मिलने उनके घर गये थे। वे दोनों ही भारतीय खगोलशास्त्र एवं पंचांग शास्त्र में पारंगत हैं। श्री उपाध्यायने एक संदर्भमें बताया कि पुराण-वर्णनोंसे ज्ञात होता है कि स्वायंभुव मनु तथा वैवस्वत मनु के बीच ४३ युग बीते हैं जबकि वैवस्वत मनु एवं कलियुग तक २८ बीत चुके हैं और उनतीसवाँ अभी चल रहा है। मुझे हठात् ध्यान आया कि पंढरपुर के श्री विठ्ठलकी आरती जो तमाम महाराष्ट्रीयोंको कंठस्थ है उसमें पहली ही पंक्ति है कि यह विठ्ठल पिछले अठ्ठाईस युगोंसे ईंट पर खडा है (और प्रतीक्षामें है कि कब भक्त पुंडलीक की मातृ-पितृ-सेवा समाप्त हो और उसे आशीर्वाद देकर मैं संतोष पाऊँ)। हमारी श्रुति-स्मृति-आधारित संस्कृतिमें लोककथाओं और लोककलाओंने ज्ञान-संदर्भ जीवित रखनेका एक महत्वपूर्ण सदियोंसे किया है। तो शायद कोई पंडित इन दो बातोंकी अच्छी तरह से विवेचना कर सके।

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