बुधवार, 27 अप्रैल 2022

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] ​हिंदी विश्व-भाषा और भारत विश्व-गुरु कैसे बने? - डॉ. वेदप्रताप वैदिक। झिलमिल में - 'अंतिम क्षितिज का प्रदेश' - डॉ. सुलभा कोरे

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हिंदी विश्व-भाषा और भारत विश्व-गुरु कैसे बने?

-  डॉ. वेदप्रताप वैदिक

दैनिक भास्कर : 

विश्व हिंदी दिवस और प्रवासी भारतीय दिवस, ये दोनों इतने महत्वपूर्ण दिवस हैं कि इन्हें भारत की जनता और सरकारें यदि पूरे मनोयोग से मनाएं तो अगले कुछ ही वर्षों में भारत सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से विश्व की महाशक्ति बन सकता है। जो लोग भारत को विश्व गुरु बना हुआ देखना चाहते हैं, उनकी जिम्मेदारी तो और भी ज्यादा है। विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को था और प्रवासी भारतीय दिवस 9 जनवरी को। ये दोनों दिवस साथ-साथ आते हैं लेकिन इस वर्ष इन दिवसों पर भारत में धूम मचना तो दूर, पत्ता भी नहीं खड़का। कोरोना की महामारी में सावधानी जरुरी है लेकिन इसी दौरान ‘झूम’ पर झूम-झूमकर रैलियां हुईं, संगोष्ठियां हुईं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुए लेकिन इन दोनों महत्वपूर्ण दिवसों को हमारे प्रचारतंत्र, नेताओं और समाजसेवियों ने याद तक नहीं किया।

विश्व हिंदी-दिवस पहली बार 1975 की 10 जनवरी को नागपुर में आयोजित हुआ था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था। कई देशों के हिंदीप्रेमी उसमें शामिल हुए थे। अब तक लगभग दर्जन भर विभिन्न देशों में ये सम्मेलन हो चुके हैं लेकिन इसकी ठोस उपलब्धियां क्या हैं? हिंदी के बैलगांड़ी आज भी वहीं खड़ी है, जहां वह अब से 46 साल पहले खड़ी थी। क्या हिंदी किसी विश्व-मंच पर आज तक प्रतिष्ठित हुई? क्या संयुक्तराष्ट्र संघ की छह आधिकारिक भाषाओं में वह आज तक शामिल हो पाई? भारत तो 54 देशों के राष्ट्रकुल का सबसे बड़ा देश है। क्या कभी राष्ट्रकुल में हिंदी की प्रतिष्ठा हुई? जिन राष्ट्रों में हमारे भारतीय लोग बहुसंख्यक हैं, क्या वहां हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला? क्या वहां छात्रों को अनिवार्य रुप से हिंदी पढ़ाई जाती है? क्या कोई भी विषय की पढ़ाई का माध्यम वहां हिंदी है?

मान लें कि मैंने ऊपर जो काम बताए हैं, वे काम सरकारों के हैं लेकिन क्या जनता ने भी हिंदी को विश्व-भाषा का दर्जा दिलाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए? हम भारतीय लोग और खास तौर से हम हिंदीभाषी लोग ही अपने महत्वपूर्ण अधिकारिक काम हिंदी में नहीं करते तो विदेशों में रहनेवाले भारतीयों को दोष क्यों दें? हिंदीभाषी लोग अपने हस्ताक्षर तक हिंदी में नहीं करते। वे अपने खातों और कानूनी दस्तावेजों पर अंग्रेजी में दस्तखत करते हैं जबकि स्वभाषा में हस्ताक्षर करने को कोई ताकत नहीं रोक सकती। विदेशों में रहनेवाले भारतीय नागरिक यदि अपने हस्ताक्षर हिंदी में करने लगे तो उनकी अलग पहचान बनेगी और वे जानेंगे कि भारत की भाषा हिंदी है, जो विश्व-भाषा बनने के योग्य है। पिछले 50-55 साल में मैं लगभग 80 देशों में गया हूं। मेरे किसी भी पारपत्र (पासपोर्ट) पर दस्तखत अंग्रेजी में नहीं हैं। किसी भी विदेशी बैंक ने मेरे हिंदी हस्ताक्षरवाले चेक को अस्वीकार नहीं किया है।

यह संतोष का विषय हो सकता है कि आजकल दुनिया के दर्जनों विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाने लगी है लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर विदेशी लोगों को उनकी सरकारों द्वारा हिंदी इसलिए पढ़ाई जाती है कि उन्हें या तो भारत के साथ कूटनीति या जासूसी के काम में लगाना होता है। हमारे कुछ भारतीय हिंदीप्रेमी मित्रों के प्रयत्नों से कुछ देशों में हिंदी पाठशालाएं खोली गई हैं, यह सराहनीय कदम है।

यदि हिंदी को विश्व-भाषा बनना है तो उसे अभी कई सीढ़ियां चढ़नी होंगी लेकिन सबसे पहले उसे संयुक्तराष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा बनना होगा। इस समय छह आधिकारिक भाषाएं हैं- अंग्रेजी, फ्रांसीसी, चीनी, रूसी, हिस्पानी और अरबी ! इनमें से एक भी भाषा ऐसी नहीं है, जिसके बोलनेवालों की संख्या दुनिया के हिंदीभाषियों से ज्यादा है। अंग्रेजी दुनिया के बस चार-पांच देशों की ही भाषा है। इसे अंग्रेजों के पूर्व गुलाम देशों के दो से पांच प्रतिशत लोग इस्तेमाल करते हैं। जहां तक चीनी भाषा का सवाल है, उसके आधिकारिक मंडारिन भाषाभाषियों की संख्या भी हिंदीभाषियों से कम है। यह तथ्य मुझे चीन के शहरों और गांवों में दर्जनों बार घूमने से मालूम पड़ा है। हिंदी को इन सभी भाषाओं के पहले संयुक्तराष्ट्र की भाषा होना चाहिए था लेकिन जिस भाषा को हमने भारत में ही नौकरानी बना रखा है, वह विश्व मंच पर महारानियों के साथ कैसे बैठ सकती है? बस, यहां संतोष की बात यही है कि अटलजी और मोदीजी, दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्होंने अपने भाषण वहां हिंदी में दिए। 1999 में भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर मैंने संयुक्तराष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देना चाहा तो मालूम पड़ा कि उस समय उसके अनुवाद की ही कोई व्यवस्था नहीं थी।

संस्कृत की पुत्री होने और दर्जनों एशियाई भाषाओं का संगम होने के कारण हिंदी का शब्द भंडार दुनिया की किसी भी भाषा से बहुत बड़ा है। यदि वह संयुक्तराष्ट्र की भाषा बन जाए तो वह विश्व की सभी भाषाओं को कृतार्थ कर सकती है। इससे भारत में चल रही अंग्रेजी की गुलामी भी घटेगी और हमारी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और व्यापार में भी चार चांद लग जाएंगे।

इस समय विदेशों में प्रवासी भारतीयों की संख्या लगभग सवा तीन करोड़ है। दुनिया के ज्यादातर देशों की आबादी भी इतनी नहीं है। अब से 50-55 साल पहले मैं जब न्यूयार्क में पढ़ता था तो किसी से हिंदी में बात करने के लिए मैं तरस जाता था लेकिन अब हाल यह है कि जब भी मैं दुबई जाता हूं तो लगता है कि छोटे-मोटे भारत में ही आ गया हूं। आज दुनिया के सभी प्रमुख देशों में प्रवासी भारतीय प्रभावशाली पदों पर हैं और कुछ देशों में तो वे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री और सांसद हैं। उनमें जातीय, धार्मिक और भाषिक कट्टरता भी बहुत कम है। वे औसतन विदेशियों से अधिक संपन्न भी हैं। उन्होंने इस साल भारत को साढ़े छह लाख करोड़ रु. भेजे हैं। अपनी मातृभूमि को दुनिया में सबसे ज्यादा पैसा भेजनेवाले भारतीय ही हैं। उनके चारित्रिक और पारिवारिक आचरण का उन देशों में गहरा प्रभाव है। यदि इन प्रवासियों को प्रेरित किया जाए तो वे न केवल हिंदी को विश्व भाषा बनाने में जबरदस्त योगदान करेंगे बल्कि भारतीय संस्कृति को वे विश्व-संस्कृति के तौर पर स्वीकृत भी करवा सकते हैं। जो लोग भारत को विश्व-गुरु बना देखना चाहते हैं, इस मामले में उनकी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा है।
(लेखक, भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष हैं)

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'अंतिम  क्षितिज का प्रदेशइस किताब के बारे में सिक्किम के तत्कालीन गवर्नर श्री श्रीनिवास पाटील कहते हैं कि हिंदी में सिक्किम पर इस तरह से  साहित्यिक रूप से लिखी गई यह पहली किताब होगी जोकि सिक्किम की जीवनदायिनी नदीतीस्ता की तरह अपने भाषाई प्रवाह के साथ पाठकों को अपने साथ लेकर चलती हैयह दस्तावेजीकरण हैसिक्किम की स्थितिइतिहासभूगोलधार्मिकता तथा सिक्किम के जीवन संस्कृति  परंपरा का.

 

प्रकृति के बेहद करीब सिक्किम हर बार नए क्षितिज के साथ यहां प्रस्तुत हुआ हैअपनी भाषायी सुंदरता तथा अनुभव में सिक्किम को लपेटकर 'अंतिम क्षितिज का प्रदेशआपको भी अपनी खूबसूरत वादियों में विचरण करने के लिए आमंत्रित करेगा तथा एक नई आत्मानुभूति से आपका साक्षरता करवाएगा इसका मुझे विश्वास हैश्री पाटील द्वारा कही गई इस बात को आप इस किताब को पढ़ने के बाद अनुभव करेंगेयह यात्रा आपको निश्चित रूप से पसंद आएगी


सुलभा कोरे

लेखिका



         वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

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[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग लड़ रहा एक भारत भाषा सेनानी : हरपाल सिंह राणा। होली के रंग – फ़िल्मों के संग - 'हिंदी से प्यार है' समूह। 18 खंडों में प्रकाशित इंद्रा स्वप्न रचनावली

 

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जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग लड़ रहा 

एक भारत भाषा सेनानी : हरपाल सिंह राणा।

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श्री हरपाल सिंह राणा 
हर साल 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस तो मनाते हैं लेकिन बिना स्वभाषा के स्व तंत्र कैसे हो सकता है और बिना स्व तंत्र के देश सही अर्थों में स्वतंत्र कैसे हो सकता है ? भारत की भाषा हिंदी, जिसे सभी स्वतंत्रता सेनानियों ने राष्ट्रभाषा कहा, जो भारत संघ की राजभाषा बनी, उस हिंदी को उसका सही स्थान तो उभी तक नहीं मिल सका। हिंदी को उसका सही स्थान दिलवाने की लड़ाई बहुत कम व्यक्तियों ने लड़ी है। उन्हीं चंद सिपाहियों में एक नाम है है कादीपुर, दिल्ली के हरपाल सिंह राणा,  जो पिछले 30 वर्षों से देश में  हिंदी को उसका कानूनी दर्जा और सही स्थान दिलवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जो जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग लड़ रहे हैं।

 

 हरपाल सिंह राणा बताते हैं कि बहुत कम व्यक्तियों को ही मालूम है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में सिर्फ जिला न्यायालय में ही नहीं बल्कि उच्चतम न्यायालय में भी अब हिंदी में न केवल मुकदमा दायर किया जा सकता है, बहस की जा सकती है बल्कि उसका आदेश भी हिंदी में ही प्राप्त किया जा सकता है। हिंदी में मुकदमा दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय में न्यायालय की हिंदी समिति वादी की मदद भी करती है। यह सब मुमकिन हो पाया है हरपाल सिंह राणा के अथक परिश्रम की वजह से दरअसल सविधान के अनुच्छेद 348 के तहत उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की भाषा अंग्रेजी है । उच्चतम न्यायालय की नियमावली 2013 भी अंग्रेजी में बनी हुई है और उसके तहत उच्चतम न्यायालय के सभी प्रकार के कार्य अंग्रेजी में ही किए जाते हैं । लेकिन सविधान की 350, 351 धाराओं सहित ऐसे अनेकों प्रावधान है जिनके तहत हिंदी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और देश का नागरिक अपनी  मातृभाषा में प्रतिवेदन दे सकता है और आवेदन कर सकता है और उसका जवाब उसी भाषा में देना अनिवार्य है।

 

 वर्ष  में 2017 में हरपाल सिंह राणा ने उच्चतम न्यायालय की अंग्रेजी में बनी नियमावली को हिंदी में  बनवाने के लिए बिना वकील के स्वयं मुकदमा दाखिल किया और  स्वयं उच्चतम न्यायालय में हिंदी में वार्तालाप (बहस) कीइसमें हरपाल सिंह राणा की मुख्य मांग को तो नहीं माना गया लेकिन कुछ ऐतिहासिक फैसले हुएउच्चतम न्यायालय ने भी संविधान और हिंदी भाषा का सम्मान करते हुए स्वतंत्रता के  बाद ऐतिहासिक पहल करते हुए इसी मुकदमे मैं पहली बार उच्चतम न्यायालय ने अपना आदेश हिंदी में जारी किया और कहा कि उच्चतम न्यायालय में हिंदी में मुकदमे दाखिल किए जा सकते हैंमुकदमा दाखिल करने वाले व्यक्तियों की मदद उच्चतम न्यायालय की हिंदी समिति करेगी। 

 

हरपाल सिंह राणा बताते हैं कि इससे पहले वर्ष 2016 में ने आजादी के बाद पहली बार उन्होंने  जिला न्यायालय रोहिणी, दिल्ली में हिंदी में मुकदमा दाखिल किया  था। ये उन्हीं के भागीरथ प्रयासों का परिणाम है कि आज  दिल्ली के सभी जिला न्यायालयों में हिंदी न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई और सभी जिला न्यायालय में हिंदी विभाग स्थापित किए गए । उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में भी 1972 से विचाराधीन हिंदी भाषा को लागू कराने के लिए हिंदी में मुकदमे में हिस्सा लियाहिंदी में बहस की और उच्च न्यायालय, पटना ने 30 अप्रैल 2019 को हिंदी लागू करने के लिए बिहार सरकार से अधिसूचना जारी करने के लिए कहा।

 

हरपाल सिंह राणा पिछले लगभग 30 वर्षों से हिंदी को उसका सम्मान और न्यायोचित स्थान दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके लिए भारतीय भाषा आंदोलन  द्वारा संघ लोक सेवा आयोग पर भी लगातार 14 वर्षों तक विश्व कs सबसे लंबे धरने में सहभागी रहे हैं, जिसमें देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयीपूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह सहित अनेकों महत्वपूर्ण व्यक्ति हिस्सा ले चुके हैं। इसके अलावा भारत सरकार और राज्य सरकारों मैं भी हिंदी भाषा लागू करवाने के लिए अनेकों महत्वपूर्ण आदेश पारित करवाए।  राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालयों सहित अनेकों विभागोंमंत्रालयों द्वारा कार्यालयों में अंग्रेजी में कार्य करने और अंग्रेजी में पत्र भेजने के खिलाफ की गई कार्रवाई में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय सहित अनेकों कार्यालय खेद  जता चुके हैं और आगे से हिंदी में लिखे पत्रों का जवाब हिंदी में देने का लिखित में आश्वासन दे चुके हैं। 

 

वे कहते हैं कि आज अंग्रेजी का विरोध करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हिंदी को और राज्यों में राज्यों की भाषाओं और मातृभाषा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है क्योंकि मातृभाषा के बगैर व्यक्ति गूंगा है और बगैर भाषा के स्वतंत्रता के आजादी अधूरी है। नई शिक्षा नीति में भी  मातृ भाषाओं  पर जोर दिया गया है लेकिन इसके लिए भी भी जनजागरण, एक लंबे संघर्ष और जन-आंदोलन की आवश्यकता है।  उनके प्रयास अभी भी जारी हैं। संघ की राजभाषा तथा जन-भाषाओं के लिए किसी भी हद तक तन, मन और धन से जिस प्रकार वे लगे हैं, ऐसा दूसरा उदाहरण कम ही दिखता है।

 

भारतीय भाषाओं के ऐसे सजग प्रहरी, भारत-भाषा प्रहरी ही नही भारत –भाषा सेनानी श्री हरपाल सिंह राणा को वैश्विक हिंदी सम्मेलन की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। आने वाले समय में जब भारत-भाषा सेनानियों का इतिहास लिखा जाएगा तो उनमें हरपाल सिंह राणा का नाम भी प्रमुखता से लिखा जाएगा।


                                          - डॉ. मोतीलाल गुप्ता 'आदित्य'

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होली के रंग – फ़िल्मों के संग   'हिंदी से प्यार हैसमूह की प्रस्तुति

होली के रंगों से सजा – फ़िल्मों पर केंद्रित कार्यक्रम, कुछ बातें – कुछ गीत – कुछ हल्का फ़ुल्का मनोरंजन
रविवार, 20 मार्च 2022    
शाम   7.00 बजे  (भारतीय समय)   दोपहर 1.30 बजे लंदन  सुबह   9.30 बजे न्यूयॉर्क  

डॉक्टर हरीश नवल (दिल्ली) – वरिष्ठ साहित्यकार, तेजेंद्र शर्मा (लंदन) – वरिष्ठ साहित्यकार, अविनाश त्रिपाठी (जयपुर-मुंबई) –
फ़िल्म गीतकार, लेखक डॉक्टर सागर (दिल्ली) - फ़िल्म गीतकार, साहिर लुधियानवी पर Phd की उपाधि प्राप्त
डॉक्टर इंद्रजीत सिंह (मॉस्को-रूस) – गीतकार शैलेंद्र पर ३ पुस्तकों के लेखक, प्रीति गोविन्दराज - अमेरिका - होली के गीत
रचना राठौर पंजाबी - भारत - होली पर माहिया
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साहित्य का खजाना छोड़ कर अनंत में विलीन हो गई थीं -  स्व. डॉ. श्रीमती इन्द्रा स्वप्न।
18 खंडों में प्रकाशित इंद्रा स्वप्न रचनावली का भाग - 1

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गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] अनुच्छेद 370 की तरह 348 को भी हटाया जा सकता है - न्यायमूर्ति राजन कोचर। भाषा सेनानी, वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान से विभूषित

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जनभाषा में न्याय पर आयोजित संगोष्ठी में  पोडियम पर श्री नवीन कौशिक - अधिवक्ता, चंडीगढ़ उच्च न्यायालय, मंच पर - डॉ एम एल गुप्ता 'आदित्य' निदेशक - वैश्विक हिंदी सम्मेलन, श्री इंद्रदेव प्रसाद - अधिवक्ता- पटना उच्च न्यायालय, श्री संतोष आग्रे - अधिवक्ता मुंबई उच्च न्यायालय, अध्यक्षता कर रहे  न्यायमूर्ति श्री राजन कोचर, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मुंबई उच्च न्यायालय, श्री प्रदीप कुमार वरिष्ठ अधिवक्ता - इलाहाबाद उच्च न्यायालय,  श्री हरपाल सिंह राणा - भारत भाषा सेनानी तथा मुख्य अतिथि श्री विनोद जी चौरड़िया।
WhatsApp Image 2022-04-11 at 10.41.23 - Copy.jpeg न्यायमूति कोचर जी - Copy.jpeg
ऊपर - डॉ एम एल गुप्ता 'आदित्य' निदेशक - वैश्विक हिंदी सम्मेलन, श्री बृजमोहन अग्रवाल - समाज सेवी श्री कान बिहारी अग्रवाल - उपाध्यक्ष जनता की आवाज फाउंडेशन,  न्यायमूर्ति श्री राजन कोचर, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मुंबई उच्च न्यायालय, श्री सुंदरलाल बोथरा, अध्यक्ष - जनता की आवाज फाउंडेशन, श्री रितेश पोरवाल - कोषाध्यक्ष जनता की आवाज फाउंडेशन, श्री पंकज बोथरा - समाजसेवी।  
नीचे की पंक्ति में श्री इंद्रदेव प्रसाद - अधिवक्ता पटना उच्च न्यायालय, - श्री संतोष आग्रे - अधिवक्ता मुंबई उच्च न्यायालय,  श्री उमाकांत बाजपेयी - निदेशक आशीर्वाद , श्री मधुकांत - वरिष्ठ साहित्यकार, श्री प्रदीप कुमार वरिष्ठ अधिवक्ता - इलाहाबाद उच्च न्यायालय,  श्री हरपाल सिंह राणा - भारत भाषा सेनानी, श्री नवीन कौशिक - अधिवक्ता चंडीगढ़ उच्च न्यायालय। दाएं चित्र में मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मु. न्यायमूर्ति श्री राजन कोचर जी।
वक्तागण
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        श्री नवीन कौशिक,       श्री इंद्रदेव प्रसाद         श्री प्रदीप कुमार      डॉ. एम एल गुप्ता 'आदित्य' श्री हरपाल सिंह राणा     श्री संतोष आग्रे
अनुच्छेद 370 की तरह 348 को भी हटाया जा सकता है - न्यायमूर्ति कोचर।

मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री राजन कोचर ने कहा कि जिस प्रकार भारत सरकार ने इच्छाशक्ति दिखाते हुए अनुच्छेद 370 को हटाया उसी प्रकार सरकार चाहे तो उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में जनभाषा में न्याय के लिए अनुच्छेद 348 को भी हटा सकती है या संशोधित कर सकती है। न्यायाधीशों को तो संविधान के अनुसार ही चलना है। उन्होंने ये विचार 'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' तथा 'जनता की आवाज़ फाउंडेशन' द्वारा 'जनभाषा में न्याय' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में अध्यक्ष पद से बोलते हुए रखे। 

'जनभाषा में न्याय' विषय पर संगोष्ठी में इलाहाबाद, चंडीगढ़ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता नवीन कौशिक ने बताया कि  उन्होंने अनेक विधायकों के हस्ताक्षर करवाकर हरियाणा सरकार द्वारा उच्च न्यायालय की भाषा हिंदी करने के लिए राष्ट्रपति को प्रस्ताव भिजवाया है।  पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद ने बताया कि पटना उच्च न्यायालय में हिंदी में न्याय को लेकर आने वाली बाधाओं को उन्होंने किस प्रकार संघर्षपूर्ण ढंग से पार किया और वे उच्च न्यायालय मैं याचिकाएं लगाना और बहस केवल हिंदी में ही करते हैं।  दिल्ली के भाषासेवी चौधरी हरपाल सिंह राणा ने विभिन्न अदालतों में हिंदी के प्रयोग को लेकर किए गए प्रयासों और संघर्ष की जानकारी प्रस्तुत की।

मुंबई उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संतोष आग्रे ने क्षोभ व्यक्त किया कि अभी तक महाराष्ट्र शासन द्वारा मुंबई उच्च न्यायालय में मराठी का प्रावधान करने के लिए भारत सरकार को कोई प्रस्ताव तक नहीं भेजा है। उन्होंने जन भाषा में न्याय के लिए संघर्षरत  देश के सभी लोगों को एकजुट होने की बात कही। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने विभिन्न स्तरों पर जनभाषा में न्याय में आने वाली बाधाओं का जिक्र करते हुए उस संबंध में संगठित प्रयास करने की बात कही।  

संगोष्ठी का संचालन व विषय प्रवर्तन करते हुए वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक - डॉ मोतीलाल गुप्ता 'आदित्य' ने बताया कि किस प्रकार संविधान का अनुच्छेद 348 भाषा के मामले में संविधान के अनुच्छेद 343, 345, 350 और 351 को गौण बनाते हुए न्यायपालिका को भारत संघ, जनतंत्र और देश की जनता से भी ऊपर अलग सत्ता
 बना रहा है।


इसके पूर्व जनता की आवाज फाउंडेशन के अध्यक्ष सुंदरलाल बोथरा ने दोनों संस्थाओं के अभियान की जानकारी देते हुए जनभाषा में न्याय तथा  भारतवासियों को शीघ्रातिशीघ्र इंडिया शब्द को संविधान से हटवाने और भारत शब्द अपनाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। सत्र मैं सुश्री आरोही तैलंग ने जनभाषा में न्याय पर गीत रखा। कार्यक्रम में विनोद चौरड़िया मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के निवर्तमान कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे सम्माननीय अतिथि थे। कानबिहारी अग्रवाल ने अतिथि परिचय दिया और  रितेश पोरवाल ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

         वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

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