बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

कादम्बिनी क्लब की 234 वीं गोष्ठी संपन्न

कादम्बिनी क्लब की 234 वीं गोष्ठी संपन्न

कादम्बिनी क्लब की 234 वीं गोष्ठी संपन्न

कादम्बिनी क्लब हैदराबाद 234 वीं मासिक गोष्ठी हिन्दी प्रचार सभा परिसर में स्थित शिक्षक-प्रशिक्षण महाविधालय में रविवार 19  फरवरी 2012 के दिन 11.30 बजे से संपन्न हुई इसकी अध्यक्षता प्रो. ऋषभदेव शर्मा (विभागाध्यक्ष, उच्च शिक्षा शोध संस्थान द.भा.हि.प्रचार सभा खैरताबाद) ने की | डॉ. देवेन्द्र शर्मा, डॉ. अमरनाथ मिश्र एवं डॉ. अहिल्या मिश्र (क्लब संयोजिका) मंचासीन हुए | श्रीमती ज्योति नारायण के सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ | डॉ. अहिल्या मिश्र सभी का स्वागत करते हुए कहा कि क्लब अपने विभिन्न कार्यक्रमों में एक नया अध्याय जोड़ने जा रहा है | अब क्लब में नई पीढ़ी के साहित्यकार के साथ परि-पक्व साहित्यकार एवं सृजनकारों की रचनाओं का पाठ रखकर सभी रचनाकारों को रचना के सभी बारीकियों से आमने-सामने होने का सुअवसर मिले और अपनी रचना की कमियों को स्वयं सुधारने का प्रयास कर सकें |
क्लब की ओर से डॉ. अमरनाथ मिश्र को एक परिपक्व रचनाकार के रूप में आमंत्रित कर उनकी चुनी हुई चार हिन्दी एवं एक मैथिली रचनाओं का पाठ करने आमंत्रित किया | उनके काव्य पाठ के पश्चात इसपर चर्चा परिचर्चा रखी गई | नीम के पत्ते, राजनीति से, हारा हुआ इन्सान एवं खून चढ़ेगा तथा मैथिली कविता ‘दालान’ पर कई लोगों ने विचार रखे | डॉ. अहिल्या मिश्र ने कहा कि ‘दालान’ कविता बिहार के गाँव का सम्पूर्ण परिवेश का सजीव चित्रण किया गया है | भगवानदास जोपट ने कहा कि नीम की सहमी डाल पर्यावरण की उपयोगिता और मनुष्य पर उपकार करता है | वहीं भारतीय राजनीति पर गहरा व्यंग करता है | हारा हुआ इन्सान आदमी की विवशता पर व्यंग है | खून चढ़ेगा में इन्सानी खून की निजारत पर तीखा व्यंग है | विनीता शर्मा जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मिश्र जी की कविताएँ उत्तम शब्द चयन एवं भावों की गंभीरता लिए हुई हैं | एस. नारायण राव कहा कि उनकी कविता पर बोलना सूर्य को टार्च लाईट दिखाना है | भँवरलाल उपाध्याय ने कहा कि बहुत ही सुन्दर मिथकों का प्रयोग किया गया है | ज्योति नारायण ने भी अपनी बात रखी | डॉ. देवेन्द्र शर्मा जी ने कहा संदेशमयी कविताएँ है | प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए कहा कि डॉ. अमरनाथ मिश्र की कविताओं में लोक संस्कृति की ताजगी है | इसकी अनुभूति अधिकतर रचनाओं में होती है | रिश्तों की छीजन उनकी मैथिली रचना में दिखाई देती है | इनकी हर रचना में रिफ्लेक्शन है | अंत में हर कविता का पंच है | जैसे मनुष्य दुनियाँ के हर जीव का खून पचा सकता है, तीखा व्यंग है | रचनाओं के माध्यम से समझा जा सकता है | मिश्र जी की रचनाओं में सृजनात्मक शक्ति है | परिपक्व रचनाएँ हैं | कविता में एक से अधिक संस्तर होते हैं | प्रथम भाग का संचालन करते हुए डॉ. अहिल्या मिश्र ने कहा कि अमरनाथ जी की रचनाओं ने हलचल मचा दी | इसमें शैली और मिथक का निर्वाह हुआ है |
कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्य गोष्ठो का आयोजन हुआ | इसमें संचालक भँवरलाल उपाध्याय के साथ सर्व श्री डॉ. देवेन्द्र शर्मा, डॉ. अहिल्या मिश्र, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, विनीता शर्मा, डॉ. रमा द्विवेदी, संपत देवी मुरारका, डॉ. अमरनाथ मिश्र, विनय कुमार झा, डॉ. सीता मिश्र, ज्योति नारायण, भगवानदास जोपट, भावना पुरोहित, एस. नारायण राव, लीला बजाज, उमा सोनी, सत्यनारायण काकडा, गौतम दीवाना, विनय कुमार लाल, निवेदिता झा आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया | डॉ. रमा द्विवेदी ने इस माह में आने वाले जन्म दिवस एवं विवाह दिवस पर उन्हें बधाई दी | डॉ. सीता मिश्र के धन्यवाद से कार्यक्रम संपन्न हुआ |
डॉ. अहिल्या मिश्र
संयोजिका कादम्बिनी क्लब
संपत देवी मुरारका
संरक्षक कादम्बिनी क्लब
हैदराबाद

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

कादम्बिनी क्लब की साहित्यिक यात्रा संपन्न


  1. कादम्बिनी क्लब की साहित्यिक यात्रा संपन्न











कादम्बिनी क्लब की साहित्यिक यात्रा संपन्न
कादम्बिनी क्लब हैदराबाद, की तीन दिवसीय 12-14 फरवरी 2012 तक साहित्यिक यात्रा संपन्न हुई |

यहाँ जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यात्रा के अंतर्गत कादम्बिनी क्लब, अहिन्दी भाषी लेखक संघ-दिल्ली, हिन्दी अकादमी दिल्ली एवं गंगा साहित्य सभा-जलगांव (महाराष्ट्र) के संयुक्त तत्वावधान में नांदेड़ एजुकेशनल सोसायटी द्वारा संचालित साइंस कॉलेज, नांदेड़ के पूरणमल लाहोटी सभागार में कवि सम्मेलन का आयोजन संपन्न हुआ | इस अवसर पर उद्घाटन कर्ता माननीय सत्यव्रत चतुर्वेदी, ( सांसद एवं उपाध्यक्ष राजभाषा समिति, भारत सरकार ), अध्यक्ष मा. डॉ. सरजेराव तिम्से ( कुलपति, स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय, नांदेड़ ), विशेष अतिथि सरदार हरविन्दर सिंह हंसपाल ( पूर्व सांसद एवं सदस्य, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, भारत सरकार ), मा. डॉ. जी.एम. कलमसे, डॉ. वेंकटेश काब्दे, ज्ञानी अमरजीत सिंह, डॉ. अहिल्या मिश्र आदि मंचासीन हुए | कार्यक्रम संयोजक सुरजीत सिंह जोबन थे |

डॉ. अहिल्या मिश्र ने द्वितीय सत्र की अध्यक्षता की, जिसमें ‘अहिन्दी भाषी प्रदेश में हिन्दी लेखन’ विषय पर कई पत्र प्रस्तुत किये गए | डॉ. मिश्र ने आंध्र प्रदेश में हिन्दी लेखन पर सारगर्भित एवं तत्वपरक आलेख प्रस्तुत किया | प्रो.एच.एस.बेदी (अमृतसर) ने बीज व्याख्यान दिया | विनोद बब्बर (नई दिल्ली) मुख्य वक्ता थे | इस दौरान कई स्थानीय वक्ताओं ने भी प्रपत्र प्रस्तुत किए |

यात्रा के अंतर्गत संपन्न कवि सम्मेलन में कवि सुरेश जैन, कवयित्री डॉ. अहिल्या मिश्र, श्रीमती विनीता शर्मा, श्रीमती ज्योति नारायण, श्रीमती एलिजाबेथ कुरियन मोना, श्रीमती संपत देवी मुरारका, श्रीमती उमा सोनी, गौतम दीवाना, सूरज प्रसाद सोनी, के साथ अरुणा शुक्ला (नांदेड़), जुगल किशोर शुक्ला, ज्योति अर्चना, सुनील जाधव (नांदेड़), डॉ.एच.एस.बेदी (अमृतसर), प्रताप सिंह सोढ़ी (जालंधर), महेंद्र शर्मा (हरियाणा), रामकुमार निजात एवं डॉ. रामनिवास मानव (हरियाणा), मुनीष गोयल, किशोर व श्रीवास्तव (दिल्ली), सुरिंदर कौर ‘चिंगारी’ कवितापुरी (चंडीगढ़), डॉ. ज्वाला प्रसाद (मेरठ), खलील मंसूरी (उज्जेन), कृष्ण नारायण पांडेय (लखनऊ), अतुल त्रिपाठी, डॉ. संगमलाल भँवर, राकेश नागोरी (अहमदाबाद), रमेश कटारिया (ग्वालियर), हितेष कुमार हितैषी (खामगांव), ओमप्रकाश ध्यारण ‘दर्द’ (झांसी), डॉ.एम.के. मजूमदार (बालाघाट), डॉ. ज्योति गजभिये (मुंबई), कीर्ति वर्धन (मेरठ), महेंद्र कम्बोज (सहारनपुर), डॉ. रीता गौतम (मुंबई), डॉ. राचन ‘भारती’ (नासिक), प्रीति कांबले (बालाघाट), सुनील पारिक (कर्नाटक), कमल किशोर शर्मा, प्रियंका सोनी ‘प्रीत’(जलगांव), सुनील पांडे, परिमल लालवाणी, एकबाल असर (सभी जलगांव), ए.के.राज, किशोर (उत्तराखंड), सागर सूद (पटियाला) व मनोहर देहलवी (दिल्ली) के साथ स्थानीय 20 कवियों ने रचनाओं का पाठ किया |

स्थानीय संयोजक अरुणा शुक्ल के साथ महेंद्र शर्मा एवं प्रियंका सोनी ‘प्रीत’ ने काव्य संध्या का संचालन किया | राष्ट्रीय संयोजक सुरजीत सिंह जोबन के धन्यवाद से कार्यक्रम संपन्न हुए | इस अवसर पर दो पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया | ’खुशबू बनकर जिऊँगा’ सुरजीत सिंह जोबन की पुस्तक एवं नरेश मेहता के उपन्यासों में व्यक्त अवधान डॉ. अरुणा शुक्ला की पुस्तक ज्ञानी अमरजीत सिंह (नांदेड़ गुरुद्वारा के गुरु शिरोमणि) द्वारा लोकार्पण संपन्न हुआ | डॉ. जोगेश कौर (शिमला), डॉ. हरिसिंह सुमन ‘विष्ट’ (नई दिल्ली) एवं डॉ. हरिसिंह पाल (हिन्दी अकादमी दिल्ली) ने तृतीय सत्र में अतिथि एवं अध्यक्षता की | स्थानीय महा विद्यालय की ओर से सत्र का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापित किया गया |

गोदावरी नदी के पावन तीर पर गुरु गोविन्द सिंह के अंतिम कर्म-स्थली नांदेड़ में संपन्न इस त्रिदिवसीय संगोष्ठी में देश भर से पधारे लगभग 150 प्रतिभागियों के साथ स्थानीय साहित्यकार, बुद्धिजीवी एवं चिंतकों की भी अच्छी उपस्थिति रही | कार्यक्रम पूर्ण गरिमा एवं भव्यता के साथ संपन्न हुआ |


 संपत देवी मुरारका

हैदराबाद 












शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

पेनांग द्वीप की ओर










पेनांग द्वीप की ओर

क्रूज यात्रा के क्रम में तीसरा पड़ाव बनने वाला था और जलयान उसी यात्रा की ओर अग्रसर था प्रातः नींद खुल गई और मैं चुपके से अपना केबिन छोड़ कर डेक पर निकल आई एक अद्भुत और आह्लादकारी दृश्य मेरी दृष्टि के चारों ओर पसरा हुआ मिला ऐसा दृश्य कि मैं भाव-विमुग्ध अवस्था में पूरे दृश्य को अपनी दृष्टि से आचमन कर जाना चाहती थी समुद्र का अनंत विस्तार दुर्दम स्वर में हर-हर निनाद करता दूर-दूर  तक पसरा हुआ था रात की काली चादर पर अब धीरे-धीरे उषा सुंदरी सुनहरी किरणों का जाल बुनने में जुट गई थी और इसी लहरों के आलोड़न से गर्जन करते असीम विस्तार में मेरा जलयान तैरता चला जा रहा था जलयान का इस तरह तैरते जाना आभास यही दे रहा था जैसे कोई दुर्द्धष पक्षी अपने पंख खोले नीले आकाश में अबाध उड़ता चला जा रहा है, और छोर नाप लेने के एक दुर्दम्य संकल्प के साथ 

समुद्र की छाती पर पंख फैलाती प्रभात की सुषमा का शनैः-शनैः  विस्तारित होते जाना मुझे एक अलौकिकता की धारा में बहाये ले जा रहा था मैं सोच रही थी कि प्रकृति-माता  सौन्दर्य-सुषमा  की कितनी मनोरम दृश्यावलियों का सृजन निरंतर और क्षण-क्षण  किये जाती है और हम है कि आँख-मूंदे  अपने ही मन की अँधेरी गुफाओं में भटकते रहते हैं प्रभात की लालिमा से उर्जस्वित   होते आकाश और उसकी उजास भरी छाया को समुद्र की नीलिमा के साथ अठखेलियाँ करते मैं अपलक निहारे जा रही थी मेरा मन इस सुंदर वातावरण का अवलोकन करता स्वच्छ प्राणवायु से प्रफुल्लित हो रहा था भोर  की इस संवेदना ने मुझे विमोहित सा कर लिया था और जीवन अपनी पीठिका पर एक नये विन्यास की रचना का रचनाकार बन गया था इस नव-स्फूर्ति  की आत्म-चेतना  मेरे रोम-रोम  में रक्त-प्रवाह के साथ घुलमिल गई थी और जलयान अपने गंतव्य पथ पर निरंतर बढ़ता चला जा रहा था वह गंतव्य था मलेशिया का पेनांग द्वीप जो मलेशिया का एक प्रमुख पर्यटन-स्थल  माना जाता है और जिसके स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद चखने मलेशिया तथा सिंगापुर से तो भारी संख्या में पर्यटक आते ही हैं, दुनिया के कोने-कोने  से पर्यटक इन स्वादिष्ट व्यंजनों की खुशबु पाने को लालायित रहते हैं पेनांग में छुट्टियाँ मनाना आस-पास  के लोगों के लिए बड़ा सुखकर अनुभव होता है अतः उन दिनों में पेनांग की गहमा-गहमी  देखने लायक होती है वैसे यहाँ यह बता देना भी उचित होगा कि जिसे हम मलेशिया के नाम से जानते हैं वस्तुतः वह कई द्वीपों का एक सुंदर गुलदस्ता है और पेनांग उस गुलदस्ते का सबसे सुंदर फूल है कहना न होगा कि हमारी इस यात्रा का तीसरा पड़ाव पेनांग को ही बनाना था |

पेनांग पहुँचते-पहुँचते आखिरकार सुबह का सूरज दोपहरी तक पहुँच गया मैं अपनी घड़ी देखी तो एक बज रहे थे २७- ६- ०८ को शुक्रवार का दिन था जब हमारे जलयान ने प्राकृतिक सुषमा से भरपूर इस द्वीप के समुद्र तट से कुछ दुरी पर अपना लंगर डाला | अब लगभग हर यात्री के मन में द्वीप के सुन्दर और रमणीय स्थलों का अवलोकन करने की जिज्ञासा हिलौरे मारने लगी थी सबने झटपट नाश्ता किया और अपने-अपने कार्ड की इंट्री कराने में जुट गये इतने ही कई छोटे-छोटे जलयान हमारे क्रूज के नजदीक आते दिखाई दिये हमें इन्हीं पर बैठकर द्वीप के मुख्य बंदरगाह तानजुंग मरीन जेट्टी तक  पहुंचना था पेनांग भ्रमण का हमारा कार्यक्रम भी समया-वाधित था |यहाँ हमारे क्रूज को सिर्फ ३-४ घंटे ही रुकना था और इसी समयावधि में हमें पेनांग के सभी दर्शनीय स्थलों का अवलोकन भी कर लेना था इस समयावधि के बाद आगे की यात्रा प्रारंभ होनी थी |

सारा खाना पूरी करने के बाद हमारा यात्री दल तट पर खड़ी बसों में सवार हो गया प्रत्येक बस में एक गाइड की भी व्यवस्था की गई थी मेरी बस में जो गाइड था वह आन था बस खुली नहीं की आन ने पेनांग द्वीप की जानकारियाँ हमें देनी शुरू कर दी उसने बताया कि पेनांग मलेशिया के सभी द्वीपों में सर्वाधिक सुन्दर द्वीप माना जाता है इसकी राजधानी जॉर्ज टाऊन है जिसे आगामी ७ जुलाई को निकटवर्ती मलक्का   के साथ वर्ल्ड हेरिटेज साईट के तौर पर मान्यता मिलाने को थी मलय भाषा में पेनांग को जम्बाटन पुलाव पेनांग और पुलाव मुटियार कहा जाता है इसका असली नाम नेगेरी पुलाव पेनांग है इसका मतलब है पुंगी फल के वृक्षों से आच्छादित द्वीप इसके अलावा पेनांग की पहचान पूर्व के द्वारपूर्व देशियमोती तथा मंदिरों के द्वीप के रूप होती है स्थानीय मलय लोग इसे पुलाव का प्रथम द्वीप भी मानते हैं ऐतिहासिकता इस रूप में भी व्याख्यायित होती है कि १५ वीं शताब्दी में चीन के मींग साम्राज्य के एक राजा जब अपनी समुद्री-यात्रा के दौरान इस द्वीप के दक्षिणी-तट पर उतरे थेतो इसे उन्होंने 'विनलेंग ज्यू कहकर पुकारा था वैसे पेनांग के संस्थापक फ्रांसिस लाइट का पदार्पण जब पहली बार जब इस द्वीप में ११ अगस्त १७८६ में हुआ था, तब उन्होंने इसका नाम पेनांग से बदलकर 'प्रिंस आफ वेल्सकर दिया था |

पेनांग भौगोलिक  रूप से दो भागो में विभाजित है इसका विस्तार २९३ वर्ग किलोमीटर भूमि में प्रसारित  है उत्तर-पश्चिम मलेशियन पेनिनसुला समुद्री तट से स्ट्रेट्स आफ मलक्का तट तक एक भाग है और दूसरा भाग वेलेस्सली प्रोविंस ( सेवरेंग पेराई ) कहलाता है इस दुसरे भाग का भी क्षेत्रफ़ल ७६० वर्ग किलोमीटर का है इसका सबसे कम चौडाई वाला भाग ४ किलोमीटर का है इसके उत्तर-पुर्व की ओर केदाह तथा दक्षिण की ओर पेराक है एशिया के अन्य शहरों की तरह यहाँ के नए मकान भी काँच और कंकरीट से बने है पुराने मकान सागौन की लकड़ी और टाइल्स से बने मिलते है लकड़ी पर नक्काशियाँ की गई मिलती हैजिनमें चीनी कला की झलक मिलती है जिसे कुंगसी कहा जाता है यहाँ चीनी दुकानदार तो है हीभारतीय व्यंजनों के भी कई रेस्तराँहै तथा यहाँ तीन पहियों वाले रिक्शे भी चलते हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में त्रिशास कहा जाता है राजधानी जॉर्ज टाऊन का नामकरण ब्रिटिश शासक जॉर्ज तृतीय के मरणोपरांत उनके ही नाम पर किया गया था मलय भाषी इसे टेंजांग भी कहते हैं जो चीन के एक शहर के नाम पर है पेनांग में अंग्रेजीहोकियनतमिलमलय और चीनी भाषा बोली जाती है |
पेनांग का मौसम मलेशिया के अन्य द्वीपों की अपेक्षा सामान्य रहता है यहाँ की जलवायु पर समुद्र का प्रभाव पड़ता है और वर्षा भी अधिक मात्रा में होती है वातावरण स्वच्छ तो रहता ही है जलवायु भी स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है यही कारण है कि द्वीप पर सैलानियों का आगमन बारहों मास हमेशा जारी रहता है दिन का तापमान २७ से ३० तथा रात का २२ से २४ सेंटीग्रेड के बीच बना रहता है औसत वार्षिक वर्षा २६७० मि.मी.होती है वैसे झुलसाने वाली गर्मी भले न हो लेकिन वातावरण में उमस हमेशा रहती है अप्रेल से सितंबर तक उत्तर-पश्चिमी मानसूनी हवाओं के कारण यहाँ बरसात होती है गाइड ऑन के अनुसार १९६९ तक इस द्वीप कि यात्रा निः शुल्क होती थीलेकिन उसके बाद इसे विश्व-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर सरकार भारी मात्रा में राजस्व बटोरने लगी औधोगिक रूप से इस द्वीप को विकसित करने के लिए १९७० से १९९० के बीच यहाँ एशिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रानिक केन्द्र कि स्थापना कि गई जो द्वीप के दक्षिणी ओर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के नजदीक है पेनांग द्वीप से मुख्य भूमि को मिलाने वाला १३.५ कि.मी. लम्बाई का पेनांग ब्रिज सन् १९८५ में निर्मित हुआ था अपनी लम्बाई के कारण इस ब्रिज कि गणना पुरे विश्व में सातवें नंबर पर की जाती है |
 हम अपने गाइड ऑन की बातें बड़े ध्यान से सुनते जा रहे थे और तीब्रगामी बस की खिड़की से हरीतिमा ओढे पर्वतीय-विस्तार को विमुग्ध-भाव से निहारते भी जा रहे थे इस पहाड़ी विस्तार के साथ ही ढलानों और घाटियों की शोभा जो हर तरफ हरीतिमा से ढकी दिखाई देती थी निहारना भी अत्यंत मनभावन लगता था पूरा द्वीप इसी तरह की दृश्यावलियों का खजाना है यूँ पहाड़ी श्रृंखलाओं के बीच ही समतल मैदान भी दिखाई देते थे जिनमें धान के खेत दूर-दूर तक लहलहाते दृष्टि-पथ को बाँध लेते थे पूरा द्वीप नारियल के अलावा अन्य फलदार वृक्षों की सुषमा से आच्छादित दिखाई देता था बस काफी तेज रफ्तार से भागी जा रही थी और कुछ ही देर बाद हम उस क्षेत्र में आग गये जहाँ से पश्चिमी-क्षेत्र की सर्वाधिक ऊँची श्रृंखलायें हमें स्पष्ट दिखाई देने लगी इस पर्वत श्रृंखलाओं की ऊँचाई गाइड के अनुसार समुद्रतल से ८३० मीटर है 

 
पेनांग लगभग १५ लाख ३५ हजार की जनसंख्या वाला राज्य है यहाँ की समस्त ऐतिहासिक कलाकृतियाँ जॉर्ज टाऊन में संग्रहित है द्वीप की सांस्कृतिक कलाकृतियों को पुरे दक्षिण-पूर्व एशिया में अद्वितीय माना जाता है एक खूबी यह भी है कि मुख्य शहर में १०० साल पुराने घर और दुकानें हमें पुरानी दुकानों का रंग उतरा हुआ समझ में आ रहा था और दीवारें नंगी नजर आ रही थी बस में बैठे-बैठे ही हमने यहाँ की सबसे पुरानी मस्जिद का अवलोकन किया गाइड ऑन ने बताया कि यह द्वीप उच्चकोटि की फिल्मों के निर्माण का एक नव स्थापित केन्द्र के रूप में जाना जाता है यहाँ निर्मित कुछ फिल्में काफी चर्चित हुई हैजिनमें अन्ना एण्ड दी-किंग और 'इन्डोचेनाकाफी प्रसिद्द हुई है इसके अलावा यह द्वीप कई मुख्य फसलों का प्रमुख निर्यात का केंद्र भी माना जाता है रबड़पॉम आयलकोकोधानकई प्रकार के फल और नारियल तथा शब्जियों का व्यवसाय यहाँ बहुतायत होता है मलेशिया की आर्थिक समृद्धि में इनका महत्वपूर्ण स्थान है जॉर्ज टाऊन के बंदरगाह से भारी मात्रा में इन वस्तुओं का निर्यात होता है |
 पेनांग में वैसे तो कई सम्प्रदाय के लोग रहते हैंलेकिन मुस्लिम आबादी सर्वाधिक होने के नाते घोषित रूप से एक इस्लामिक राज्य माना जाता है बावजूद इसके धार्मिक सदभावना यहाँ की संस्कृति में रची बसी है यहाँ सभी संप्रदायों के पूजा स्थल है और सबको अपनी धार्मिक परंपरा के अनुसार पूजा पाठ करने तथा उत्सव-त्योंहार मनाने की छूट  है इस्लाम का प्रधान यांग डीपरत्वान एगोंग है तथा यहाँ सबसे छोटी आबादी यहूदियों की है जेविश स्ट्रीट पर इनकी घनी आबादी है अपनी इस यात्रा में मैंने जितना संभव हो सका लगभग सभी संप्रदायों के महत्त्वपूर्ण तथा प्रसिद्ध पूजा स्थलों का दर्शन करने के अलावा अन्य स्थापित्यों को भी देखने का प्रयास किया |

यात्रा की शुरुआत हमने पेनांग के वनस्पति-उद्यान से की उद्यान पेनांग पर्वत-श्रृंखलाओं की तलहटी में स्थित है उद्यान में प्रवेश के साथ हमारे यात्री दल का स्वागत यहाँ के मेकाकू जाति के बंदरों ने एक विचित्र किस्म के अभिवादन के साथ किया ३० हेक्टेयर के क्षेत्रफ़ल में फैले इस उद्यान में जैविक और वानस्पतिक विविधता का स्पष्ट अवलोकन किया जा सकता है सुन्दर छायादार वृक्षों के बीच से पर्वतीय उपत्यका का दृश्यावलोकन अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है रंग-बिरंगे फूल न सिर्फ अपनी शोभा का विस्तार करते हैंअपितु अपनी मादक सुगंधियों से थके तन-मन को तरोताजा भी कर देते हैं उद्यान के मध्य एक १०० मीटर ऊँचा झरना है जिसके कारण इस उद्यान को झरने का उद्यान भी कहा जाता है पर्यटकों के लिए अब यह क्षेत्र निषिद्ध कर दिया गया है फिर भी दूर से अवलोकन कर इससे स्त्रवित होने वाली दुग्ध-धवल जलराशि के कल-कल निनाद का आनन्द लिया जा सकता है उद्यान की सुषमा से मैं इतनी विमुग्ध हो गई कि घूमते-घूमते बहुत दूर निकल आई सभी साथी पीछे छूट गये थे अतः जी घबड़ाने लगालेकिन पूछते-पूछते आखिर मैं अपनी बस तक पहुँच ही गई इस उद्यान के बारे में यह भी बताया गया कि साल में एक बार एक सप्ताह के लिए सरकार यहाँ एक प्रसिद्द वानस्पतिक मेले का आयोजन करती है |

हमारी बस आगे बढ़ी और हमने बस में बैठे-बैठे पेनांग के सुन्दर बागोंचीनी मंदिरोंमुसलमानों के मकबरों तथा ईसाइयों के आलिशान गिरजाघरों के दर्शन किये इन दर्शनीय स्थलों के सारे विवरण हमारा गाइड ऑन हमें परोसता चल रहा था इसी क्रम में उसने यहाँ के सर्वाधिक प्रसिद्द बौद्ध मंदिर के बारे में बताया इस बौद्ध मंदिर को केक लोक सी बौद्ध मंदिर के नाम से पुकारा जाता है पुरे दक्षिण-पूर्व एशिया में पेनांग के इस बौद्ध मंदिर को  सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है मंदिर जॉर्ज टाऊन के शहरी इलाके से बाहर वर्मा लेन  के आधे मार्ग पर वेट छायामंगाकालारम ( थाई बौद्ध मंदिर ) स्थित है मंदिर का परिसर बहुत विस्तारित है थाईलैंड के लोगों से अच्छा सम्बन्ध कायम करने के लिए मंदिर कि भूमि क्वीन विक्टोरिया ने प्रदान कि थी मंदिर कि भव्यता ने मेरे ही साथ यात्रीदल के सभी सदस्यों को मंत्रमुग्ध कर दिया मंदिर में बौद्ध-प्रतिमा कि स्थापना शयनमुद्रा में कि गई है और मूर्ति पर सोने का पत्तर चढ़ाया गया है अपनी इस मुद्रा में बुद्ध उत्तराभिमुख दाहिनी करवट लेटे हुए हैं भगवान बुद्ध का सिर उनकी हथेली पर स्थित है उनकी यह मुद्रा उनके महापरिनिर्वान का बोध कराती है गौरतलब है कि उनका महानिर्वाण उत्तर प्रदेश ( भारत ) के एक स्थान कुशीनगर में घटित हुआ था मंदिर में प्रतिमा की स्थापना सन् १८४५ ई. में हुई थी मूर्ति की कुल लम्बाई ३३ मीटर है सर्वाधिक स्थापित लम्बी प्रतिमाओं में इस मूर्ति की गणना चौदहवें स्थान पर की जाती  है |कुछ लोग इसे तीसरा- चौथा स्थान भी देते हैं प्रतिमा का दर्शन करते ही मुझे पल भर में बेंकाक  ( थाईलैंड )के वेट पो मंदिर में प्रतिष्ठित बुद्ध- प्रतिमा की याद आ गई उस प्रतिमा की लम्बाई ४६ मीटर की थी और उसकी मान्यता लम्बी प्रतिमाओं में नौवाँ माना जाता है इसी मंदिर में बाईं तरफ प्रार्थना हॉल में भगवान बुद्ध की एक अन्य भव्य प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में प्रतिष्ठित है जिस पर्वत पर यह बौद्ध मंदिर स्थित है बताया जाता है की यह प्राचीन काल से क्रेन और ही सी पर्वत के नाम से प्रसिद्द है मान्यता यह है कि इस पर्वत पर कि गई तपस्या मोक्षदायिनी होती है थोड़ा आगे जाने पर पर्वत पर ही एक अन्य पगोड़ा ( मंदिर ) है इस मंदिर से इटाम शहर का दृश्यावलोकन बहुत स्पष्ट होता है और एसा प्रतीत होता है कि यह मंदिर इतनी ऊँचाई पर खड़ाशहर को एकटक निहार रहा है इस पगोड़ा का निर्माण एक थाई राजा रामा छठे ने कराया और मंदिर १८९३ से १९३० तक बन कर पूरी तरह तैयार हो गया मंदिर के बाहर चीनी शैली में निर्मित एक अष्टभुज चबूतरा है इसका मध्य भाग थाई शैली में एक के ऊपर एक मंजिल बनाकर अति आकर्षक बनाया गया है इसका मुकुट वर्मा शैली में निर्मित है इस शैली में महायाना और थेरावाडा बौद्धावलम्बियों का भी सम्मिश्रण है इस मिश्र शैलियों के कारण मंदिर अत्यन्त आकर्षक और भव्य दिखाई देता है मंदिर में बौद्धग्रंथो का एक संग्रहालय भी है जिसमें मांचू राजा कोंग हसी ने बौद्ध सूत्रों को संग्रहित करने वाली ७० हजार पुस्तकें भेंट की है |

पगोड़ा के ऊपरी हिस्से में पहाड़ी की ओर ३०.२ मीटर ऊँची काँसे से निर्मित अवलोकतेश्वरी (कृपालु-भगवती ) की प्रतिमा स्थापित है जो बिल्कुल नया स्थापत्य है इस प्रतिमा को स्थानीय भाषा में क्वान यीन भी कहते हैं प्रतिमा-दर्शन २००२ के बाद दर्शनार्थियों के लिए सार्वजनिक कर दिया गया है दर्शनार्थियों को निकट से प्रतिमा-दर्शन के लिए काँच से निर्मित एक लिफ्ट के जरिये ऊपर जाना होता है प्रतिमा की भव्यता अभिभूत तो करती हैएकदम सजीव और  जागृत भी प्रतीत होती है यह हमारी पेनांग यात्रा का अंतिम पड़ाव था इस द्वीप ने मुझे अपने सौम्य-सुषमा से काफी प्रभावित किया समय बहुत संक्षिप्त था, इस कारण भ्रमण मनचाहा नहीं हो सका मैंने मन ही मन संकल्प लिया कि अवसर मिलने  पर एक बार फिर इस द्वीप के पर्यटन का मनचाहा आनंद उठाऊँगी 
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण 
मीडिया प्रभारी  
हैदराबाद 

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

‘लंकावी द्वीप की यात्रा’


‘लंकावी द्वीप की यात्रा’




‘लंकावी द्वीप की यात्रा’
हमारी सिंगापुर की यात्रा पूरी हो चुकी थी | अब हमें इसी जलयान से मलेशिया की ओर प्रयाण करना था | जलयान क्या था एक सुविधा संपन्न पाँच सितारा होटेल था, जिसमें यात्रियों के लिए सभी आधुनिक सुविधायें उपलब्ध थीं | सुस्वादु शाका-हारी भोजन तो उपलब्ध था ही, इसके अलावा धार्मिक रूचि के लोगों के लिए कथा -वार्ता के आयोजन भी नियमित तौर पर जलयान के विशाल डेक पर होते रहते थे | चूंकि मैं स्वयं एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला हूँ, इसलिए मेरा समय इन्हीं कथा- वार्ताओं के संसर्ग में व्यतीत हो रहा था | इसी क्रम में जलयान अथाह समुद्र की उत्ताल तरंगों पर आकाश में उड़ते पंक्षी की तरह अपने गंतव्य-पथ पर आगे बढ़ा जा रहा था |

इसी यात्रा में हमारा पहला पड़ाव लंकावी द्वीप पर होना था | मंगलवार 24 जून 2008  को जलयान इस द्वीप तक पहुँच भी गया | दिन के 10 बजे होंगे जब समुद्र तट के किनारे जलयान ने लंगर डाला | सभी यात्रियों ने जलयान पर उपलब्ध हल्का-फुल्का नाश्ता किया और फिर अपने केबिन के असेस कार्ड की इंट्री कराने के लिए निकल पड़े | लगभग सभी यात्रियों के मन में उस द्वीप की सुन्दरता का अवलोकन करने की बेचैनी और बेताबी थी, जिसके बारे में उन्होंने काफी चर्चायें सुन रखी थी | यह अजीब संयोग था कि इधर हम लोग उतर कर तट पर पहुँचे उधर बरखा रानी ने रिमझिम फुहारों से हमारा स्वागत किया | हमारे साथ गाइड के रूप में मि. जैनल थे जो इस द्वीप के बारे में विविध तथ्यों से हमें अवगत कराते चल रहे थे |

अंडमान समुद्र के दक्षिण और स्ट्रेट्स ऑफ मलक्का के उत्तर तथा मलेशिया और थाईलैण्ड की सीमा के बीच यह लंकावी द्वीप स्थित है | इस द्वीप के उत्तर में कुछ ही कि.मी. की दूरी पर थाई द्वीप कोटा रूटवा स्थित है | वैसे कुल मिलाकर द्वीपों की संख्या 104 है जिनमें दो पुलाव दयांग बंटिंग और पुलाव बेरस बसा काफी बड़े द्वीप हैं और सब छोटे-छोटे | इसमें एक मलेशिया का स्वच्छ जल का जलाशय भी है | सभी द्वीपों का क्षेत्रफल करीब 538 वर्ग कि. मी. है | मुख्य द्वीप के मध्य-पूर्वी क्षेत्र में गुनांग राया सबसे ऊँचा है जिसकी ऊँचाई समुद्र-तल से 890  मी. मापी जाती है | यहाँ के समुद्र तट को ईगल स्क्वायर कहा जाता है और यहाँ एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ की यात्रा के लिए केबल कार की भी व्यवस्था है | यह कार गुनांग मेट सिन सांग से चलती है | समुद्र तल से 705  मी. की ऊँचाई पर इस केबल कार से यात्रा करना यात्रियों के लिए एक रोमांचक अनुभव होता है |

यह स्थान वास्तव में बहुत सुन्दर है | यहाँ मलेशिया के चौथे प्रधानमंत्री महाथीर मुहम्मद के 2500  कीमती उपहार परडाना की गैलरियों में सुरक्षित रखे गये हैं | मि. जैनल ने बताया कि लंकावी के कई अर्थ होते हैं | लेंग+कावी दो अक्षरों से बने इस शब्द का अर्थ है, संगमरमर की चील | इसमे लेंग का अर्थ चील और कावी का अर्थ संगमरमर है | वैसे संगमरमर मलेशिया में बहुतायत पाया जाता है | मूल शब्द हेलेंग कावी था जो लोक भाषा में लेंकावी हो गया | इसे लोक प्रचलन के अनुसार चील का द्वीप भी कहा जाता है | इसका कारण है कि इस द्वीप के आकाश में असंख्य चीलें मंडलाती रहती है | क्वा नगर के ईगल स्क्वायर में चील को प्रतीक-चिह्न के रूप में निर्मित किया गया है | कावी का एक अर्थ ब्राउन अर्थात भूरा भी बताया जाता है जो चीलों का विशेष रंग होता है | मलेशिया के अन्य द्वीपों की अपेक्षा यहाँ का मौसम स्थिर माना जाता है | यहाँ कभी-कभी ही वर्षा होती है और बादल आकाश में छाये दिखाई देते हैं | इस वजह यहाँ साल के बारहों महीने दुनिया भर से सैलानी आते रहते हैं | वातावरण हमेशा स्वच्छ रहता है और जलवायु स्वास्थ्य-वर्धक मानी जाती है | यहाँ छ: महीने की शीत-ऋतु होती है और छ: महीने का ग्रीष्म-काल होता है | यहाँ दिन का अधिकतम तापमान हमेशा 30 से 35 सेंटीग्रेड के बीच बना रहता है और रात का तापमान 28 से 29 सेंटीग्रेड के बीच होता है | यहाँ के वातावरण में उमस बहुत होती है | बारिश अधिकतर सितम्बर-अक्टूबर में होती है क्योंकि उसी समय मानसूनी हवायें बहती हैं | समतुल्य तापमान के कारण यात्रियों के लिए भ्रमण करना अधिक सुगम होता है | वैसे अप्रैल से अगस्त के मध्य का समय बारिश कम होने के कारण बेहतर माना जाता है |

पर्यटन स्थल के रूप में सन 1987 तक लंकावी दुनिया के लिए अज्ञात था, लेकिन इसकी विशेषताओं का संज्ञान लेते हुए मलेशिया सरकार ने पर्यटक-केन्द्र के रूप में बड़ी तेजी से इसका विकास किया और यह सन 1990 तक बनकर तैयार भी हो गया | इअसके लिए सरकार की ओर से ड्यूटी-फ्री दूकानों, अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा तथा फेरी बोटों का निर्माण कराया गया | इसके चलते आज लंकावी पिनांग द्वीप से भी ज्यादा आकर्षक हो गया है | हमने लंकावी द्वीप की यात्रा-क्रम में महसुरी का मकबरा देखा, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने अपनी मृत्यु के पहले यहाँ के लोगों को शाप दिया था कि उन पर सात पीढ़ियों तक दुर्भाग्य की छाया रहेगी | कहा जाता है कि इस महिला पर यहाँ के लोगों ने चरित्रहीन होने का आरोप लगाया था | लंकावी केदाह के राजा के अधिकार में थी | 1821 में सियाम ने इसे आक्रमण कर अपने अधीन कर लिया, सन 1909 के एक समझौते के तहत यह ब्रिटिश अधिकार में आ गई जिसे द्वितीय महायुद्ध के दौरान जापानियों ने अपने अधिकार में ले लिया | यहाँ थाई भाषा और संस्कृति का प्रभाव अधिक है और रहन-सहन तथा खान-पान भी थाईयों जैसा ही है |

इस द्वीप की प्राकृतिक शोभा से लगभग हर पर्यटक चमत्कृत रह जाता है | यहाँ ‘सेवन वेल्स’ से जाने जाने वाले सात झरने हैं जिनकी यात्रा हमें फेरी बोट से करनी पड़ी थी | झरनों का जल कितना पारदर्शी और शीतल था, उसका वर्णन कर पाना कठिन है | इनकी फुहारों का आनंद शरीर और आत्मा दोनों को विमल कर देता है | यहाँ आल फ्रेस्को डायनिंग, अवाना पोर्टो मलय के वाटर पर बोर्ड वॉक भी कर सकते हैं | हमने भी पैदल चलकर अपने को आह्लादित किया | इतना कुछ का आनंद उठाने के बाद हमारी बस लंकावी की सड़कों पर दौड़ने लगी | सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे धानों के खेत मन को विभोर किये दे रहे थे | इसी क्रम में हमने यहाँ के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का भी अवलोकन किया |

लंकावी की जनसंख्या अस्सी हजार के करीब है | इसमे पाँच प्रतिशत के करीब चीनी और भारतीय मूल के लोग हैं और बाकी मलेशियन हैं | हमारा यात्री दल अटमालम होते हुए क्वा पहुँचा | क्वा क मुकाबले अटमालम बड़ा नगर है और उसकी आबादी दस हजार के लगभग है | वहीं क्वा की आबादी पाँच हजार से अधिक नहीं है | यह नगर धान के मीलों, रबड़ की फैक्ट्री, फलों के बागान तथा लोकल कौंसिल की वजह से ज्यादा प्रसिद्ध हैं |

इस क्रम में हम यहाँ के सर्वाधिक सुन्दर और प्रसिद्ध स्थान ईगल स्क्वायर देखने पहुँचे | यहाँ पहूँचते ही हमें यह आभास हुआ कि सचमुच लंकावी दक्षिण-पूर्व एशिया का सबसे खूबसूरत स्थान है | शांत समुद्र के साथ ही दुधिया रंगत की रेती पर सूर्य-रश्मियों की चमकीली आभा सब कुछ मन को मोह लेने वाली ही प्रतीत होती थी | सुविस्तृत समुद्र को स्पर्शित कर तट तक आने वाली मनोरम वायु सांसो को एक अभिनव सुगंध से परिपूरित कर रही थी | ऐसे में मन का प्रफ्फुलित हो जाना सहज-स्वाभाविक है | हमने ईगल स्क्वायर के उस प्रतीक-चिह्न को भी देखा जो मलय सभ्यता को कई सदियों से सार्थक बनाता आया है | यह ईगल स्क्वायर चारों ओर से तालाबों, पुलों, सुन्दर चबूतरों और हरी-भरी मखमली घासों से घिरा है | इस स्थान पर खड़े होकर समुद्र को निहारना बहुत अच्छा लगता है | विशालाकार भूरी पथरीली चट्टानों पर एक भूरे रंग की विशालाकार चील, अपना पंख खोल उड़ने-उड़ने की मुद्रा में प्रतिष्ठित है | इसे ही ईगल स्क्वायर कहा जाता है | भूरी चील की कुल ऊँचाई बारह मीटर है और ऐसा ही प्रतीत होता है कि यह जलयान से उतर कर तट पर आने वाले यात्रियों का शुभ स्वागतम करती है | लंकावी द्वीप की शोभा और यहाँ की स्वास्थ्यप्रद जलवायु तथा नैसर्गिक वातावरण दुनिया भर के सैलानियों को आकर्षित करता है | लोग अक्सर इस द्वीप पर छुट्टियाँ मनाने आते हैं | वैसे लंकावी का मुख्य नगर क्वा है जिसको एक परिष्कृत शापिंग सेंटर भी कहा जाता है | क्वा पिनांग द्वीप से आने वाले सैलानियों का प्रवेश द्वार भी है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी यह है कि यहाँ जलयानों के लिए कोई व्यवस्थित तट नहीं हैं | हमने अपनी लंकावी यात्रा को यादगार बनाने के लिए यहाँ के शापिंग मॉल से कुछ दुर्लभ वस्तुओं की खरीदारी की और फिर वापस जलयान पर आ गए क्योंकि हमें आगे बढ़ना था |
संपत देवी मुरारका
हैदराबाद