मंगलवार, 27 सितंबर 2016

‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा ‘संकल्पना’ लोकार्पित












‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा ‘संकल्पना’ लोकार्पित
साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ के तत्वावधान में शनिवार दि.18 जून 2016 आंध्र-प्रदेश हिन्दी अकादमी, नामपल्ली के सभाकक्ष में स्व.चंद्रमौलेश्वर प्रसाद द्वारा रचित पुस्तक ‘वृद्धावस्था विमर्श’ तथा ऋषभदेव शर्मा व गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा संपादित पुस्तक ‘संकल्पना’ का लोकार्पण किया गया | 
      इस अवसर पर विनय वर्मा, डॉ.बुधप्रसाद सागर, लक्ष्मण शिवहरे, संपत देवी मुरारका, विनीता शर्मा, डॉ.किरण सिंह ऊंटवाल, डॉ.सीमा मिश्र, डॉ.बी सत्यनारायण सहित विविध विश्वविद्यालयों और साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े लोग उपस्थि थे | प्रो.ऋषभदेव शर्मा ने सभी का आभार जताया |
प्रस्तुति : संपत देवी मुरारका (विश्व वात्सल्य मंच)
email: murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136

'वृद्धावस्था विमर्श' तथा 'संकल्पना' लोकार्पित - समाचार कतरन, डेली हिन्दी मिलाप


प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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'भारतीय भाषाएँ व प्रवासी साहित्य' पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न - समाचार कतरन, डेली हिन्दी मिलाप


प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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‘देश-विदेश में हिंदी’ विषय पर मुंबई में वैश्विक संगोष्ठी आयोजित ।


​दक्षिणअफ्रीका हिंदी शिक्षा संघ की अध्यक्ष प्रो. उषा शुक्ल को वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान ।

‘देश-विदेश में हिंदी’ विषय पर 
मुंबई में वैश्विक संगोष्ठी आयोजित ।

'भारत में हो रही हिंदी की कमजोर स्थिति अन्य देशो में भी हिंदी की स्थिति को कमजोर कर रही है।'यह बात दक्षिण अफ्रीका ‘हिंदी शिक्षा संघ’ की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर उषा शुक्ला ने ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ तथा ‘मुंबई रेल विकास कॉर्पोरेशन’ द्वारा चर्चगेट स्टेशन भवन स्थित सभागार में आयोजित ‘वैश्विक हिंदी संगोष्ठी’ में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए ‘देश-विदेश में हिंदी’ विषय पर अपने वक्तव्य में कहीं। उन्होंने कहा अब वहाँ भी स्थितियाँ बदल रही हैं । ज्यादातर लोग भारतवंशी अब वहाँ घरों में अंग्रेजी बोलते हैं। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में हिंदी के प्रसार के लिए विशेष उपाय करने की बात कही।
इस अवसर पर मुंबई रेल विकास कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक प्रभात सहाय ने विदेशों में अपने हिंदी के अनुभव बताए कहा कि विदेशों में लोग हिंदी को सम्मान देते हैं। उन्होंने देश में  विशेषकर कार्यालयीन हिंदी को सरल व सहज बनाने पर जोर दिया। उनका कहना था कि ऐसी हिंदी लिखी जानी चाहिए कि उसका अंग्रेजी अनुवाद करवाने की आवश्यकता न पड़े। उन्होंने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाए जाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
साहित्यकार माणिक मुंडे ने विश्व की अनेक भाषाओं के लुप्त होने और भारतीय भाषाओं पर मंडराते खतरे को देखते हुए उसके लिए राजाश्रय को आवश्यक बताने के साथ-साथ भारतीय भाषाओं के विकास के लिए योजनाबद्ध उपाय करने पर भी जोर दिया। ‘अभियान’ के अध्यक्ष अमरजीत मिश्र ने संविधान की अष्टम अनुसूची को लेकर मचे बवाल के संदर्भ में कहा कि यह उचित होगा कि अष्टम अनुसूची को ही संविधान से हटा दिया जाए। उन्होंने हिंदी का प्रयोग व प्रसार बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया। 



संगोष्ठी को संबोधित करते मुं.रे.कॉ.लि. के अध्यक्ष श्री प्रभात सहाय तथा वै.हिं.स. के निदेशक डॉ.एम.एल.गुप्ता 'आदित्य'
          
दिल्ली से प्रकाशित ‘प्रवासी संसार’ के संपादक राकेश पांडेय ने कहा कि जिस प्रकार हिंदी की तमाम बोलियों और उप बोलियों को अष्टम अनुसूची में जुड़वाने की होड़ लगी हैइससे न केवल हिंदी की बल्कि हिंदी की बोलियों की स्थिति भी कमजोर हो रही है। हिंदी से अलग भाषा बनने के बाद भी न तो कोई मैथिली को अधिक पढ़ रहा है और न ही अब हिंदी में मैथिली साहित्य को पढ़ाया जा रहा है। जिस प्रकार हिंदी की अन्य बोलियां भी अष्टम अनुसूची में जुड़ने के लिए जोर लगा रही हैइससे हिंदी और इसकी बोलियों दोनों को ही भारी नुकसान होगा । उन्होंने उन तकनीकी कारणों की जानकारी भी दी जिनके कारण हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बना पाना कठिन हो रहा है। उनका कहना था कि अब तक के अनुभवों का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में यह बात सामने आती है कि जब भारत के ज्यादातर नेता व राजनयिक स्वयं संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में नहीं बोलते तो दुनिया ऐसी भाषा के लिए एक और भाषा जुड़वा कर आर्थिक बोझ क्यों वहन करना चाहेगी। पहले हमें हिंदी को सही मायने में भारत की राष्ट्रभाषा बनाना होगा।
मुंबई से प्रकाशित कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक बिजय जैन ने हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाए जाने के लिए संयुक्त प्रयास किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने इसके लिए विश्व हिंदी दिवस पर मुंबई से दिल्ली तक हिंदी रेल यात्रा का आयोजन कर जनजागरण  की बात कही। बैंक ऑफ बडोदा के उप महाप्रबंधक जवाहर कर्णावट ने विभिन्न देशों में हिंदी के प्रसार की स्थिति की जानकारी दी और भारत में हिंदी के प्रयोग व प्रसार के लिए उपलब्ध भाषा प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर जोर दिया। के.सी. कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ शीतला प्रसाद दुबे ने हिंदी के प्रसार के लिए शिक्षासाहित्यसिनेमा और राजभाषा आदि सभी क्षेत्रों के बीच समन्वय स्थापित कर संयुक्त प्रयास किए जाने पर जोर दिया।
इस अवसर पर संगोष्ठी का संचालन करते हुए  वैश्विक हिंदीसम्मेलन के निदेशक डॉ एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने कहा कि जब तक हिंदी को शिक्षारोजगारव्यापार और व्यवहार की भाषा नहीं बनाया जाता तब तक हिंदी का विकास और प्रसार संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि अष्टम अनुसूची में शामिल होकर हिंदी की बोलियां हिंदी को तो समाप्त करेंगी ही लेकिन स्वयं भी बच न सकेंगी। डॉ.गुप्ता ने कहा कि भारतीय भाषाओं में भी कंप्यूटर पर कार्य करने की सभी सुविधाएं उपलब्ध हेने पर भी जानकारी के अभाव में ज्यादातर लोग रोमन में लिखते है। इसलिए आवश्यक है कि  स्कूल व कॉलेज स्तर पर सभी विद्यार्थियों को कंप्यूटर व मोबाइल आदि उपकरणों पर हिंदी में देवनागरी लिपि में कार्य करने संबंधी प्रौद्योगिकी की जानकारी दी जाए और भाषा शिक्षण में भाषा प्रौद्योगिकी का समावेश किया जाए।
राजभाषा अधिकारी उदय कुमार सिंह ने हिंदी व भारतीय भाषाओं के प्रसार कार्यक्रम में वैश्विक हिंदी सम्मेलन के प्रयासों की सराहना करते हुए इसके लिए आजीवन हरसंभव सहयोग देने की बात कही।
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संगोष्ठी में दीप प्रज्वलित करती ​दक्षिण अफ्रीका हिंदी शिक्षा संघ की अध्यक्ष प्रो. उषा शुक्ल व संगोष्ठी के प्रतिभागी।

संगोष्ठी में निम्न बिंदुओं पर आम सहमति बनी :-
1.      हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट हो कर सरकार से मांग की जाए।
2.      हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए सभी स्तरों पर सरकार द्वारा प्रयास किए जाएँ।
3.      अष्टम अनुसूची में हिंदी क्षेत्र की बोलियों का समावेश करने से हिंदी को भारी नुकसान होगा और बोलियाँ भी हिंदी से कट करकमजोर       होंगी। इसलिए ऐसा करना भारतीय भाषाओं व बोलियों के हित में नहीं है।
4.      बोलियों के साहित्य का भी संरक्षण व विकास होना चाहिए इसके लिए राज्य सरकारों व स्थानीय भाषा अकादमियों को काम करना     चाहिए।
5.      विद्यार्थियों को कंप्यूटर व मोबाइल आदि उपकरणों पर हिंदी में देवनागरी लिपि में कार्य करने संबंधी प्रौद्योगिकी की जानकारी दी जाए और भाषा शिक्षण में  भाषा प्रौद्योगिकी का समावेश किया जाना चाहिए।
6.      जब तक हिंदी को शिक्षा, व रोजगार तथा व्यापार व व्यवहार की भाषा नहीं बनाया जाता तब तक हिंदी का समुचित विकास और प्रसार संभव नहीं। इस दिशा में कारगर उपाय किए जाने चाहिए। हिंदी माध्यम से शिक्षा पानेवालों को स्तरीय शिक्षा के साथ-साथ रोजगार में भी वरीयता दी जानी चाहिए।
7.      हिंदी के प्रसार के लिए शिक्षासाहित्यसिनेमा और राजभाषा आदि सभी क्षेत्रों के भाषा प्रेमियों को परस्पर समन्वय व सहयोग के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए।
इस अवसर पर ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ द्वारा दक्षिण अफ्रीका ‘हिंदी शिक्षा संघ’ की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर उषा शुक्ला को दक्षिण अफ्रीका सहित विश्व स्तर पर  हिंदी के प्रसार के लिए ‘वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’ तथा मुंबई रेल विकास कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक प्रभात सहाय को हिंदी के प्रयोग व प्रसार की उनकी अभिरुचि व प्रयासों के लिए ‘राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान’ प्रदान किया गया।
संगोष्ठी में विशेष उपस्थितों में रोशनी खूबचंदानी, गजानन महातपुरकर, कलीमुल्लाह खान, मेघराज पाहवा, रामप्रीत यादव, विद्या देशमुख, सुषमा तैलंग, अतुन चटोपाध्याय थे। स्वागत संबोधन मुंबई रेल विकास निगम के निदेशक (परियोजना) आर.एस. खुराना ने त था स्वागत मुख्य राजभाषा अधिकारी व मुख्य कार्मिक अधिकारी अल्का अरोड़ा मिश्रा ने किया। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में शिक्षासाहित्य,राजभाषा क्षेत्र व हिंदी सेवी संस्थाओं के लोग उपस्थित थे।

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in
 वैश्विक हिंदी सम्मेलन की वैबसाइट -www.vhindi.in
'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' फेसबुक समूह का पता-https://www.facebook.com/groups/mumbaihindisammelan/
संपर्क - vaishwikhindisammelan@gmail.com

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आकाशवाणी-धारवाड पर पसारि‍त हिंदी माध्‍यम से वि‍ज्ञान, तकनीकी का अध्‍ययन और रोजगार के अवसर, राहुल खटे



महोदय,
आकाशवाणी-धारवाड पर पसारि‍त हिंदी माध्‍यम से वि‍ज्ञान, तकनीकी का
अध्‍ययन और रोजगार के अवसर ' वि‍षयपर लघुवार्ता सुनने के लि‍ए इस लि‍ंक
पर क्‍लि‍क करें:
 https://soundcloud.com/rahul- khate/science-courses-and- books-in-hindi-navaras- programme
--
"हिंदी में काम करना आसान है, शुरू तो कीजिए/Working in Hindi is easy,
Make a beginning"
राहुल खटे
उप प्रबंधक (राजभाषा)
स्‍टेट बैंक ऑफ मैसूर, हुब्‍बल्‍ली
09483081656
वेबसाईट: http://www.rahulkhate.online/
फेसबूक: https://www.facebook.com/ rkhate1
ट्वीटर: https://twitter.com/KhateRahul



-- 
भवदीय,
प्रवीण कुमार जैन (एमकॉम, एफसीएस, एलएलबी)
कम्पनी सचिववाशीनवी मुम्बई – ४००७०३.

Regards,
Praveen Kumar Jain (M.Com, FCS, LLB), 
Company Secretary, Vashi, Navi Mumbai  400703.

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अष्टम अनुसूची की मलाई के लिए भाषा - बोलियों का महाभारत । भारत की राजभाषा होने के नाते हिंदी को संविधान की आठवीं अनुसूची से निकाल लिया जाए - डॉ.परमानंद पांचाल.


हैदराबाद में  विश्व वात्सल्य मंच की वैश्विक हिंदी सम्मेलन के साथ हिंदी  संगोष्ठी 
 
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अष्टम अनुसूची की मलाई के लिए भाषा - बोलियों का महाभारत ।

भारत की राजभाषा होने के नाते हिंदी को संविधान की आठवीं अनुसूची से निकाल लिया जाए 

                                                                                                             -डॉ. परमानंद पांचाल    

             
हिन्दी भारत के व्यापक क्षेत्र की भाषा हैजिसका स्थान एक क्षेत्रीय भाषा से ऊपर उठकर पूरा देश है। हिन्दी समस्त भारत में किसी न किसी रूप में बोली और समझी जाती है। जब  भारत में दो विभिन्न प्रान्तोंसमुदायों और भाषाओं के लोग आपस में अपनी बात करते हैं तो स्वभाविक ही है कि वे हिन्दी का ही सहारा लेते हैं। आप भारत के किसी भी नगर में जाएं वहां आप हिन्दी में अपनी बात कह सकते हैं। सभी तीर्थों मेलों और धर्म स्थलों पर परस्पर बोल चाल का माध्यम किसी न किसी न किसी रूप में हिन्दी ही होती है। इस प्रकार हिन्दी निश्चय हीदेश में परस्पर सम्पर्क और एकता की भाषा है। यह देश की सामासिक संस्कृति की भाषा है। इसी में देश की आत्मा निवास करती है। राष्ट्र की अस्मिता की पहचान भी इस से है। बहुत पहले 1782 मेंहैनरी काल ब्रुक ने कहा था, ‘जिस भाषा का व्यवहार भारत के प्रत्येक प्रांत के लोग करते हैं। जो पढ़े- लिखे तथा अनपढ़ दोनों की साधारण बोलचाल की भाषा है और जिसे प्रत्येक गांव में थोड़े बहुत पढ़े लिखे लोग समझते हैंउसी का नाम हिन्दी है। 
श्री नरमदेश्वर चतुर्वेदी ने अपने ग्रन्थ हिन्दी का भविष्य’ में हिन्दी की व्याख्या करते हुए ठीक ही लिखा है, ‘हिन्दी वास्तव में किसी एक ही भाषा अथवा बोली का नाम नहीं है अपितु एक सामाजिक भाषा परम्परा की संज्ञा हैजिसका आकार-प्रकार विभिन्न उपभाषाओं और बोलियों के ताने-बाने द्वारा निर्मित हुआ है।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत के अग्रिम नेताओं ने विशेष रूप सेमहात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा’ के रूप में इसकी पहचान की और इसे अपने आन्दोलन का अंग बनाया। इस प्रकार हिन्दी एक क्षेत्रीय भाषा के रूप में सीमित न होकर समस्त राष्ट्र के परस्पर संवाद की भाषा है। भारत के संविधान के अनुछेद 351 में भी हिंदी को भारतीय भाषाओँ के शब्दों से समृद्ध कर इसे भारत की सामासिक संस्कृति की प्रतिनिधि भाषा के रूप में विकसित करने का निर्देश इस बात का द्योतक है कि हिंदी भारत की प्रतिनिधि भाषा के रूप में अपना कार्य करेगी| संविधान के अनुच्छेद 343 में हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया हैजबकि अंग्रेजी की स्थिति अस्थायी हैजिसका स्थान कालांतर में हिन्दी को लेना है।  संविधान की आठवीं अनुसूचीमें भारत की प्रमुख भाषाओं को भी शामिल किया गया है। संविधान के लागू होने के समय इसकी संख्या 14 थीजो अब बढ़कर 22 हो गई है। आगे भी इन्हें बढ़ाए जाने की मांग की जा रही है। कहना न होगा कि स्वतंत्रता संग्राम के समय राष्ट्रीय एकता की जो प्रबल भावना देशवासियों में विद्यमान थीवह आजादी के पश्चात धीरे-धीरे कम होती चली गईऔर क्षेत्रीय आकांक्षाएं ओर राजनीतिक स्वार्थ पनपने लगे। फलस्वरूप एकता के स्थान पर पृथकता की भावना बलवती होती गई। इसका प्रभाव भाषा पर भी पड़ा। हिन्दी जो देश की एकता की प्रतीक हैउसकी उपभाषाओं और बोलियों को भी हिन्दी से पृथक कर आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की आवाज उठने लगी। हिन्दी अपने एक हजार वर्ष के इतिहास में जिन विविध भाषा रूपों के मेल-जोल से एक मानक भाषा के रूप में विकसित हुई थीउसमें बिखराव आरंभ हो गया।
हिन्दी के सामने इसके बिखराव की समस्या आज के संकुचित राजनैतिक स्वार्थों के कारण उत्पन्न हो रही है। मैथिली को पहले ही8वीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया है| अब भोजपुरी तथा राजस्थानी को शामिल किए जाने के लिए आवाजें उठ रही है। साहित्य अकादमी ने तो राजस्थानी को अपनी भाषाओं की सूची में पहले ही शामिल कर लिया हैजबकि राजस्थानी नाम की कोई एक मानक भाषा है ही नहीं। बिहार में श्री उमेश राय ने मैथिली और भोजपुरी के साथ-साथ बिहार की बज्जिकाअंगिकाऔर मघई को भी संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है। आश्चर्य की बात तो यह कि अब ब्रजभाषा को भी हिन्दी से अलग 8वीं अनुसूची में रखने की बात की जाने लगी है । केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में लोक सभा में कहा हॆ कि न  सिर्फ गढवाली या कुमायूंनी को ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए बल्कि अन्य भाषाओं पर भी विचार किया जाएगा जिन को लेकर मांगें उठती रही हॆं .
यदि उत्तर-प्रदेश के विभाजन की मांग जैसा कि कुछ लोग कर रहे हैं स्वीकार कर ली जाती है तो वहां अवधीबुंदेलीभोजपरी को भी संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग का उठना स्वभाविक है। छत्तीसगढ़ी के लिए भी ऐसी ही मांग की जा रही है। आज जो मांग इन बोलियों के लिए हो रही हैयह कहना कठिन नहीं कि कल ऐसी ही मांग कन्नौजीब्रजपहाड़ीगढ़वालीकुमा़ऊॅनी, ब्रज तथा हरियाणी के लिए भी होगी। अब आप ही सोचिए कि हिंदी किस क्षेत्र की भाषा रह जाएगीयह तो इन सभी उपभाषाओं तथा बोलियों का एक समष्टि रूप हैं। भारत की जनगणना 2001 के अनुसार हिन्दी के अन्तर्गत 49 भाषा-बोलियां आती हैं। ऐसी मांगों से तो हिन्दी का समस्त साहित्य ही खंडित होकर रह जाएगा। हिन्दी में न विद्यापति रहेगा न सूरन तुलसी ना जायसीन मीरा और न चन्द्रबरदायी ही बच पाएगा। हिन्दी का विभाजन गिलक्राईस्ट के प्रयत्नों से ब्रिटिश काल में पहले ही हिन्दी और उर्दू के रूप में हो गया था। अब क्षेत्र के नाम पर भी उसके विभाजन का खतरा मंडराता नजर आ रहा है।
मैं बोलियों के विरूद्ध बिल्कुल नहीं हूं। बोलियों में ही भारतीय संस्कृति की जड़ें हैं। इन्हें लुप्त होने से बचाया जाए। हिन्दी की बोलियों का विकास अवश्य होना चाहिए किन्तु भाषा के विघटन के रूप में न होकर भाषा के सम्वर्द्धन के रूप में होना चाहिए।
संविधान की 8वीं अनुसूची में हिन्दी की उपभाषाओं और बोलियों को शामिल करने का पहला परिणाम यह होगा कि जनगणना के समय इन भाषाओं को बोलने वालों की गणना हिन्दी से अलग हो जाएगीऔर हिन्दी बोलने वालों की संख्या घटती चल जाएगी। आज जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में हिन्दी बोलने वालों का स्थान दूसरा है। यूनेस्को के प्रतिनिधि श्री अशर डिलियन ने भी इसकी पुष्टि की है। यदि श्री नौटियाल की माने तो यह स्थान पहला हो जाता है और इसी आधार पर हम संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार करने की मांग कर रहे हैं किन्तु यदि हम हिन्दी के कद को इसी प्रकार छोटा करने में लगे रहेतो जरा सोचिए हम किस मुंह से हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने का दवा कर सकेंगे।
इन बोलियों को 8वीं अनुसूची में शामिल किए जाने का दूसरा परिणाम यह होगा कि संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में भी इन बोलियों को माध्यम बनाने की अनुमति मिल जाएगी। जितनी अधिक भाषाएं परीक्षा का माध्यम होंगी उतनी ही अधिक समस्या आयोग के सामने उपस्थित होगी। 50-60 भाषाओं को आयोग की परीक्षाओं का माध्यम बनाने से ऐसी भाषाओं के छोटे क्षेत्रों के परीक्षकों को ही उतर-पुस्तिकाएं जांचने का काम दिया जाएगाजो उच्चस्तर पर अखिल भारतीय मान-दण्ड को स्थापित कर भी पाएंगे,इसमें संदेह है। फल स्वरूप अखिल भारतीय सेवाओं में प्रतिभावान लोक सेवक नहीं आ पाएंगे और प्रशासन का स्तर गिर जाएगा।
मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि भारत की राजभाषा और देश की राष्ट्रभाषा होने के  नातेहिन्दी को 8वीं अनुसूची से निकाल लिया जाए और उसे सही अर्थों में भारत की राजभाषा के रूप में विकसित होने का अवसर दिया जाए। जहां तक संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के माध्यम का प्रश्न हैफिलहाल हिन्दी और अंग्रेजी के अतिरिक्तदेश की उन क्षेत्रीय भाषओं को परीक्षा का माध्यम बनाया जाएजो प्रशासनिक स्तर पर किसी राज्य की राजभाषा के रूप में व्यवहार में आ रही हैं और भारत की अन्य भाषाओं को 8वीं अनुसूची में शामिल कर लोगों की भावनाओं का समुचित सम्मान किया जाए।

डा० परमानन्द पांचाल
महामंत्री नागरी लिपि परिषद
संपर्क: 232-A, पाकेट-1, मयूर विहार, फेज़-1 नई दिल्ली 110091
फोन: 9818894001 
 18 सितंबर को हैदराबाद में  विश्व वात्सल्य मंच की वैश्विक हिंदी सम्मेलन के साथ हिंदी  संगोष्ठी 

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वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in

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