एक सकारात्मक प्रयास
-संपत देवी मुरारका
आजकल हिंदी को लेकर चर्चा गोष्ठियों में विलाप
ही विलाप सुनने को मिलता है | हर वक्ता यही रोना रोता है कि राष्ट्रीय स्तर
पर हिंदी को विश्व-भाषा बनाने के प्रयास को एक सुखद सपना ही तो कहा जा सकता है | मतलब यह है कि
हिंदी को सिर्फ साहित्य-लेखन की भाषा तक ही सिमित माना जा रहा है और
यह धारणा मजबूती से जड़ पकड़ रही है कि वह आधुनिक संदर्भों से अछूती रहने के कारण
अन्य भाषाओं के मुकाबले कमजोर पड़ रही इ | इस मनोदशा से ग्रस्त लोगों की धारणाओं का
निवारण विद्वान अध्येता करूणा शंकर उपाध्याय की पुस्तक ‘हिंदी का विश्व संदर्भ’
करती है |
करूणा शंकर उपाध्याय ने अपनी इस पुस्तक में
हिंदी के प्रति एक सकारात्मक अवधारणा प्रस्तुत की है | उनके अनुसार हिंदी का बहुत
तेजी से बहुक्षेत्रीय और बहुमुखी विकास हो रहा है | उन्होंने विश्व स्तर पर
प्रसारित हो रही हिंदी को आंकड़ों के आधार पर प्रस्तुत कर यह बताया है कि दुनिया के
कितने देशों में हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है | इन उपलब्धियों के हासिल करने में
उन्होंने प्रवासी भारतीयों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित किया है | आज
उद्योग जगत में भी हिंदी तेजी से विकसित हो रही है और वह इंटरनेट के लिए भी अछूती
नहीं रह गई है | सब मिलाकर पुस्तक पठनीय भी है और उपयोगी भी |
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व
वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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