बुधवार, 30 दिसंबर 2015

केन्द्रीय सूचना आयोग के द्वारा राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों प्रवीण कुमार


30 मई 2015 को 3:46 pm को, प्रवीण कुमार Praveen <cs.praveenjain@gmail.com> ने लिखा:
महोदय,
कृपया ध्यान दें कि केन्द्रीय सूचना आयोग के द्वारा राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों के निरंतर और जानबूझ कर किए जा रहे उल्लंघन के सम्बन्ध में पिछले तीन वर्षों में यह मेरा 15वां ईमेल/अनुस्मारक है. केन्द्रीय सूचना आयोग को मैंने सबसे पहला ईमेल 2 नवम्बर 2012 को लिखा था उसके बाद मैं निम्नलिखित ईमेल/ईमेल अनुस्मारक राजभाषा विभाग एवं केन्द्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों को लिख चुका हूँ:

         i.            नवम्बर 2012
       ii.            23 नवम्बर 2012
      iii.            15 दिसंबर 2012 
     iv.            27 फरवरी 2013
       v.            15 मार्च 2013 
     vi.            19 मार्च 2013
    vii.            22 मार्च 2013
  viii.            26 मार्च 2013 
     ix.            19 अप्रैल 2013
       x.            10 मई 2013 
     xi.            23 मई 2013
    xii.            17 अगस्त 2013
  xiii.            21 सितम्बर 2013
  xiv.            14 दिसंबर 2014
   
4 सितम्बर 2013 को एक आर टी आई आवेदन लगाया थाआयोग ने इसमें माँगी गई जानकारी नहीं दी थी. बाकी किसी भी ईमेल अथवा मेरे ईमेल शिकायत को राजभाषा विभाग द्वारा अग्रेषित करने के बाद भी आयोग के आयुक्तों/सचिवों अथवा अधिकारियों ने हमारी शिकायतों पर अब तक कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की है और न ही एक बार भी कोई जवाब दिया. हमारे मित्र तुषार कोठारी एवं अन्य लोग केन्द्रीय सूचना आयोग को राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों के उल्लंघनों के बारे सैकड़ों ईमेल लिख चुके हैं.
केन्द्रीय सूचना आयोग के अधिकारियों/आयुक्तों/सचिवों की कार्यप्रणाली का सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि आयोग ने आम जनता से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय पर तीन साल बाद निरंतर लिखने के बाद राजभाषा कानून के उल्लंघन को रोकने के लिए कदम उठाना तो दूर की बात है, आज तक एक भी ईमेल का उत्तर नहीं दिया.  वस्तुतः केन्द्रीय सूचना आयोग अपने कार्यालय में हिन्दी का प्रयोग जानबूझ कर रोक रहा है ताकि आम जनता को सूचनाओं और अपीलों के नाम पर उलझाए रखा जा सके.

हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा सिर्फ अंग्रेजी” में करनाएक सोची समझी चाल है:

केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा सिर्फ अंग्रेजी में करनाएक सोची समझी चाल है ताकि आम जनता को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा सके. अंग्रेजी में निपटारा होने से शिकायतकर्ता और अपीलकर्ता दूसरों का मुंह ताकते रहते हैं. आयोग के हाथ में अंग्रेजी’ शोषण करने का सबसे बड़ा और आसान हथियार है. क्या आयोग के आयुक्त किसी ऐसी अपील का निपटारा कर सकते हैं जो चीनी भाषा मंदारिन” में लगाई गई होफिर आयोग हिन्दी में लगाई गई द्वितीय अपीलों और शिकायतों का निपटारा सिर्फ अंग्रेजी” में किसलिए कर रहा हैयह हिन्दी में द्वितीय अपीलों और शिकायतों को दर्ज करवाने वालों के खिलाफ षड्यंत्र हैअन्याय हैइस पर तुरंत रोक लगायी जानी चाहिए.

आपसे विनम्र अनुरोध है कि मेरी पिछली सभी शिकायतों शीघ्र निपटारा करने के लिए कदम उठाएंमेरे पास सभी ईमेल की सुपुर्दगी की सूचना (डिलीवरी रिपोर्ट) है इसलिए यह ना कहें कि कोई भी ईमेल प्राप्त नहीं हुआमेरी शिकायतों पर राजभाषा विभाग द्वारा लिखे गए पत्रों की प्रतियाँ भी मेरे पास उपलब्ध हैंअब आपसे हाथ जोड़कर विनम्र निवेदन है कि मुझे अविलम्ब उत्तर भिजवाने की कृपा करें. 

भवदीय 
प्रवीण जैन 
पता: ए -103, आदीश्वर सोसाइटी,
श्री दिगंबर जैन मंदिर के पीछे,
सेक्टर-9वाशीनवी मुंबई - 400 703


14 दिसंबर 2014 को 10:09 am कोप्रवीण कुमार Praveen <cs.praveenjain@gmail.comने लिखा:

विषय: भारत स्वतंत्र है परन्तु केन्द्रीय सूचना आयोग आज भी अंग्रेजों के लिए काम कर रहा है!   
महोदय,

सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के अधीन गठित केन्द्रीय सूचना आयोग अपनी स्थापना के नौ वर्षों बाद भी  राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमावली का निरन्तर उल्लंघन कर रहा है. ना तो प्रेस-विज्ञप्तिनियम और निर्देश हिन्दी में जारी हो रहे हैं और ना ही आयोग ने आज तक अपनी दो वेबसाइट http://cic.gov.in/ एवं rti.gov.in द्विभाषी रूप में बनाई हैं.

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (जो प्रधानमंत्री जी के अधीन आता है) ने आरटीआई ऑनलाइन http://rtionline.gov.in/ 
वेबसाइट  तैयार करवाई है,  इस पर भारत के नागरिक भारत की राजभाषा हिन्दी में यूनिकोड फॉण्ट में आवेदन नहीं लगा सकते क्योंकि सिस्टम में हिंदी के अक्षरों को प्रतिबंधित किया गया है.  इस तरह कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने भारत के सत्तानवे प्रतिशत नागरिकों को हिन्दी में ऑनलाइन आवेदन लगाने से रोक रखा है. क्या यही लोकतंत्र है

राजभाषा अधिनियम की धारा ३ (३) के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण दस्तावेज भी केवल अंग्रेजी में जारी कर रहा है और संसाधनों के अभाव की दुहाई दे रहा हैजनता की भाषा में काम करने में भी यही रोना.  अखबारों में बार-२ पढ़ने को मिलता है कि आयोग सूचना कानून के  आरटीआई आवेदनों के सम्बन्ध में  हिन्दी में लगाई गई शिकायतों एवं  प्रथम अपील के विरुद्ध लगाई जाने वाली द्वितीय अपीलों का निबटारा केवल अंग्रेजी में करता है. 
क्या आयोग में बैठे आयुक्तगणों में से किसी को भी हिन्दी का ज्ञान नहीं हैजो वे अपना शत-प्रतिशत काम केवल अंग्रेजी में निबटा रहे हैंऐसा कब तक चलेगाकेन्द्रीय सूचना आयोग संविधान द्वारा आम जनता को दिए गए अधिकारों का निरंतर उल्लंघन कर रहा है और आम जनता पर जबरन अंग्रेजी थोप रहा है और कोई इनके विरुद्ध हल्ला नहीं बोलता. 

यदि केन्द्रीय सूचना आयोग ही राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियमावली  का इस तरह उल्लंघन करेगा तो सूचना कानून के तहत द्वितीय अपील लगाने वाले अंग्रेजी ना जानने वाले भारत के प्रताड़ित नागरिक किस की शरण लेंगेक्या आरटीआई आवेदनों के सम्बन्ध में  हिन्दी में लगाई गई शिकायतों  एवं  प्रथम अपील के विरुद्ध लगाई जाने वाली द्वितीय अपीलों के निर्णय अंग्रेजी में भेजे जाते रहेंगे ताकि आम नागरिक को और प्रताड़ित किया जा सके. आयोग स्वयं जानते बूझते हुए राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है.

केन्द्रीय सूचना आयोग के आयुक्तों से आप पूछिए कि क्या वे ऐसी भाषा में लिखी अपीलों का निर्णय कर सकते हैं जो भाषा उनको ना आती हो (जैसे जर्मन-फ्रेंच). यदि नहींतो फिर भारत के आम एवं गरीब नागरिकों द्वारा अपनी भाषा में लगाई जाने वाली अपीलों का निपटारा आयोग अंग्रेजी में किसलिए कर रहा हैयदि आयुक्त हिंदी में लिखी अपील समझ सकता हैपढ़ लेता है तो वह उसका निर्णय/आदेश हिन्दी में क्यों नहीं लिखताद्वितीय अपील के विरुद्ध अंतिम विकल्प के रूप में केवल 'उच्च न्यायालयका सहारा होता है तो क्या हिन्दी में द्वितीय अपील लगाने वाले आवेदकों को हिन्दी में उत्तर पाने के लिए हर बार उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा?

आपसे अनुरोध है कि केन्द्रीय सूचना आयोग में उन्हीं व्यक्तियों को आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाए जो हिन्दी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं का अच्छा ज्ञान रखते हों ताकि आम आदमी की अपीलों का निपटारा आमभाषा में हो सकेअंग्रेजी थोपकर उनका शोषण ना किया जा सके.

महोदयआपसे एक और अनुरोध है कि आप सीधे केन्द्रीय सूचना आयोग पर कार्यवाही करें. शीघ्र कार्यवाही की अपेक्षा के साथ

भवदीय 
प्रवीण जैन 
पता: ए -103, आदीश्वर सोसाइटी,
श्री दिगंबर जैन मंदिर के पीछे,
सेक्टर-9वाशीनवी मुंबई - 400 703


प्रतिलिपि:
  1. केन्द्रीय गृह मंत्री 
  2. केन्द्रीय सूचना आयोग के आयुक्तगण
  3. केन्द्रीय सूचना आयोग के सचिव
  4. राजभाषा विभाग के सचिव
  5. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

​ भारतीय भाषा मंच शुभारम्भ एवं संगोष्ठी




भारतीय भाषा मंच शुभारम्भ एवं संगोष्ठी
 
 
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत २०७२ तदनुसार २० दिसम्बर २०१५
स्थान. आजाद भवन : भारतीय सांस्कृतिक संबन्ध परिषद्, नई दिल्ली
 
भारतीय भाषाओं की चिंताजनक स्थिति, दशा एवं दिशा पर देश भर में गंभीर चिंतन एवं चर्चा के बाद विभिन्न भाषाओं के विद्वानों, बुद्धिजीवियों की ओर से यह सुझाव आया इस क्षेत्र में व्यापक सुधारों को वास्तविक रूप प्रदान करने के समन्वित प्रयास के रूप मे भारतीय भाषा मंच का गठन किया 
इसी क्रम में दिनांक २०-१२-२०१५ को आज़ाद भवन प्रेक्षागृह, नई दिल्ली में १५ राज्यों से आये १७ भाषाओँ के प्रतिनिधियों द्वारा भारतीय भाषा मंच का औपचारिक गठन हुआ।
इस मंच के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं--- 
१.भारतीय भाषाओं की वर्तमान स्थिति तथा उसमें सुधार के उपाय ।
२.भारतीय भाषाओं को संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, अपेक्षित स्थान पर प्रतिष्ठापित कराना तथा रोजगार से जोड़ना ।
३.केंद्र में हिंदी और राज्यों में उनकी राजभाषाओं के प्रयोग को बढ़ाने के लिए अभियान चलाना एवं जन-जागरण करना।
४.भारतीय भाषाओं के लिए काम करने वाले सभी व्यक्तियों, भाषा-प्रेमियों और संस्थाओं को एक मंच पर लाना तथा उनके मध्य सौहार्द एवं समन्यव स्थापित करना ।
५.केंद्र और राज्यों की राजभाषा नीति और नियमों के अनुसार सरकारी काम-काज में हिंदी और प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग किये जाने के लिए सरकारों से आग्रह करना व आवश्यकता पड़ने पर दबाब बनाना, राजभाषा अधिनियमों और नियमों को कड़ाई से लागू कराना ।
6.प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चशिक्षा में चिकित्सा और तकनीकी सहित सभी स्तरों पर शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएँ हों, ---इस दिशा में प्रयास करना ।
७.छोटी-बड़ी सभी प्रतियोगी और भर्ती परीक्षाओं का माध्यम हिंदी और भारतीय भाषाओं को बनवाना एवं अंग्रेजी के अनिवार्य प्रश्न पत्र को हटवाना ।
८.विधि, न्याय और प्रशासन, सूचना प्रोद्योगिकी ( ई.गवर्नेंस) डिजिटल इंडिया और ऑनलाइन सेवा आदि उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ाना/बढ़वाना।
९.उच्चतम न्यायालय में हिन्दी और उच्च न्यायालयों में राज्य की राजभाषाओं के प्रयोग की अनुमति दिए जाने हेतु प्रयास करना ।
१०.भारतीय भाषाओं से संबंधित उन सभी बिन्दुओं पर विचार जो भारतीय भाषाओं के सम्वर्धन के लिए आवश्यक हैं। 
इस मंच के राष्ट्रीय संयोजक श्री वृषभ जैन ने भारतीय भाषाओं की स्थिति एवं मंच की संकल्पना का परिचय देते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं पर काम करने वाली देश में अनेक संस्थाएँ हैं, अब एक और नर्इ संस्था के रूप में एक नए भारतीय भाषा मंच की जरूरत क्यों?........ इस प्रश्न के उत्तर में यह बात उभरी कि हमारी सभी भारतीय भाषाएँ हमारी पहचान हैं और वह पहचान निरन्तर तिरोहित होती जा रही है। उनका स्थान दोयम से, तीसरे और चौथे पर पहुँचता जा रहा है। यह न भाषाओं के हित में है और न भाषा-प्रयोक्ताओं के। उनका निरन्तर क्षरण हो रहा है, प्रतिदिन हमारे शब्द कम होते जा रहे हैं। हमारी भारतीय भाषाओं को लेकर कुछ-कुछ आन्दोलन पहले भी हुए, परन्तु वे कुछ-कुछ भाषाओं के संदर्भ में ही हुए तथा भाषाओं के कुछ-कुछ पक्षों को लेकर हुए, पर ऐसा कोर्इ मंच नहीं बना, जो समस्त भारतीय भाषाओं के सभी पक्षों की चिन्ता करता हो। सभी भारतीय भाषाएँ हमारी राष्ट्रीय भाषाएँ हैं, अखण्ड भारत की एक संस्कृति की भाषाएँ हैं। इन सब को समृद्ध करने के लिए सरकारी और सामाजिक दोनो स्तरों पर हमें काम करने की आवश्यकता है। यह मंच उस रूप में आगे बढ़ने के लिए संकल्पित है। यह मंच पूरी तरह स्वायत्त रहेगा और इसमें निरन्तर इस बात पर ध्यान रखा जाएगा कि कोर्इ भी राजनीति प्रवेश न करे।
तत्पश्चात श्री चंद्रभूषण शर्मा : निदेशक राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान ने त्रिभाषा सूत्र, विद्यालयी शिक्षा में भाषाओँ के महत्व, संस्कृत की स्थिति एवं उपादेयता आदि विषयों पर विस्तृत प्रकाश डाला; उसके बाद तमिलनाडु से पधारे श्रीमान पेरूमल जी ने भाषाओ के समेकन पर प्रकाश डाला तथा समझाया कि भारतीय भाषाओँ में परस्पर विरोध नहीं, वरन एकत्व का भाव है।
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति श्रीमान् कुठियाला जी ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार विदेशों में मातृभाषा पर ही जोर दिए जाने से वे देश उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो पाए, वहीं हमारे देश में अपनी भाषा के प्रति पूर्वाग्रह ने विकास को अवरुद्ध कर दिया। 
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सदस्य सचिव श्रीमती पंकज मित्तल ने बताया कि किस प्रकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भारतीय भाषाओं के विकास के लिए नवीन पहल की है।
वहीं केरल से पधारे श्री विनोद जी ने सभी लोगों से भाषायी आन्दोलन खड़ा करने की अपील की।
इसके बाद कार्यक्रम में पधारे सभी भाषाओं के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने विचार भी रखे और अब भारत के विभिन्न राज्यों में मंच की विभिन्न इकाइयाँ गठित जाएँगी। 
अंत में भारतीय भाषा मंच के संरक्षक एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अतुल कोठारी जी ने इस बात को समझाया कि
देश को बदलना है, तो शिक्षा को बदलना होगा ।
और यदि शिक्षा को बदलना है, तो भाषा को बदलना होगा। 
उन्होंने कहा कि चर्चा समस्या की नहीं, बलि्क समाधान की होनी चाहिए, जिसकी शुरुआत स्वयं से करनी होगी, प्रयास व्यक्तिगत रूप से होते हुए व्यापक सामाजिक जन-जागरण का होना चाहिए।
अंग्रेजी के मिथक को तोड़ने के लिए वैकल्पिक तैयारी करनी होगी यथा स्वदेशी पुस्तकों का लेखनए कानूनी संघर्ष प्रशासनिक क्षेत्र में निजी व सामूहिक प्रयास स्वदेशी भाषाओँ का प्रोत्साहन आदि।
अंत में अतुल जी ने सभी से यह संकल्प लेने को कहा कि सभी अपने-अपने स्तर पर प्रयास करते हुए इस आन्दोलन को सार्थक बनायें। लोग कहते हैं कि पुस्तकें नहीं हैं, भाषाओं पर काम करने वाले लोग नहीं हैं, सब ओर अंधकार हैं, आदि आदि, पर मुझे लगता है कि जब हम काम करने लगेंगे, तो भाषाओं के दीप जलने लगेंगे, और तब अन्धकार अपने आप दूर भगेगा और सब ओर प्रकाश दिखने लगेगा।
जय हिन्द

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

'शब्दनगरी' हिन्दी की पहली ब्लॉगिंग एवं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट - अमितेश मिश्र



'शब्दनगरी' हिन्दी की पहली ब्लॉगिंग एवं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट 
जो पूर्णतः हिन्दी में है।

आदरणीय गुप्ता जी,
आशा करता हूँ आप सकुशल होंगे। 

जैसे की हमारी दिल्ली मे 'भारतीय भाषा मंच' के दौरान मुलाक़ात हुई थी, मैं आपको शब्दनगरी के संक्षिप्त विवरण के साथ यह ईमेल लिख रहा हूँ। आप शब्दनगरी से संबन्धित किसी भी असुविधा या प्रश्न के लिए मुझे सीधे संपर्क कर सकते हैं। 

(www.shabdanagari.in) हिन्दी की ऐसी पहली ब्लॉगिंग एवं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट है जो की पूर्णतः हिन्दी मे है। उल्लेखनीय है कि भारत में आज भी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है,फिर भी अगर इंटरनेट की बात की जाये तो मात्र कुछ गिनी- चुनी वेबसाइटें ही हैं जिनके माध्यम से कोई अपनी मन की बात साझा कर सकता है। साथ ही अधिकांश लोग अच्छी अंग्रेज़ी न होते हुए भी किसी न किसी रूप मे अंग्रेज़ी मंच का ही उपयोग करने को विवश हैं। 

ऐसी और भी कई समस्याओं को समझते हुए ही हमने एक ऐसा सर्वकालिक एवं सहज हिन्दी- मंच बनाया है, जहाँ पर कोई भी हिन्दी भाषा में अपनी बात विभिन्न आयामों अथवा वेबसाइटों अथवा ब्लॉगों द्वारा लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है । साथ ही अपने विचारों से समाज के सभी वर्गों को जोड़ सकता हैं।

यदि कोई किसी खास प्रश्न या विषय पर चर्चा करना चाहता है अथवा उस पर लोगों की राय जानना चाहता है, तो ये भी हमारे विशिष्ट माध्यम 'प्रश्नोत्तर' द्वारा आसानी के साथ कर सकता है। वास्तव में, इस मंच के द्वारा हमारा एकमात्र उद्देश्य है - एक स्थिर और सशक्त मंच का निर्माण, जहाँ पर लोग तनाव मुक्त होकर अपने विचारों को प्रस्तुत कर सकें। शब्दनगरी का निर्माण आई आई टी कानपुर में स्थित ट्राइडेंट एनालिटिकल सोलूशन्स (TAS) द्वारा किया गया है । 

मुझसे संपर्क करने के लिए अपना फोन नंबर व ईमेल इत्यादि नीचे हस्ताक्षर में लिख रहा हूँ। किसी भी प्रश्न अथवा सुझाव के लिए निःसंकोच संपर्क करें। 

धन्यवाद,
अमितेश
सभी भारतीय - भाषा प्रेमी मित्रों से अनुरोध है कि वे हिन्दी की ऐसी पहली ब्लॉगिंग एवं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट से जुड़ें और जोड़ें 
 तथा स्वदेशी, स्वभाषा और स्वाभिमान का मार्ग प्रशस्त करें।
किसी भी कठिनाई या प्रश्न के समाधान के लिए शब्दनगरी के निदेशक श्री अमितेश मिश्र  से संपर्क के 
लिए फोन नंबर व ई मेल पता नीचे दिया गया है।
अमितेश मिश्र
ईमेल: amitesh.m@gmail.com
फोन: 9795771110 

​प्राप्त पत्र-पत्रिकाएँ

 

​​
        
डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in

प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

इण्डिया नहीं है भारत की गौरव-गाथा के लिए कार्य करें : आचार्य विद्यासागर


20 दिसंबर 2015.                                                                                                     
रहली (ज़िला-सागर मध्यप्रदेश) में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतिम दिवस पर गजरथ यात्रा के बाद चारों दिशाओं से भक्तिवश पधारे लगभग एक लाख जैन-अजैन श्रद्धालुओं को उदबोधन देते हुए योगीश्वर कन्नडभाषी संत दिगंबर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने धर्म-देशना की अपेक्षा राष्ट्र और समाज में आए भटकाव  का स्मरण  कराते  हुए कहा कि आज जवान पीढ़ी का  ख़ून सोया हुआ है। कविता ऐसी लिखो कि रक्त में संचार आ जाय। उसका इरादा 'इण्डियानहीं 'भारतके लिये बदल जाय। वह पहले  भारत को याद रखें। भारत  याद   रहेगा,तो धर्म-परम्परा याद रहेगी। पूर्वजों ने भारत के भविष्य के लिये क्या सोचा होगा?

उनकी भावना भावी पीढ़ी को लाभान्वित करने  की  रही थी। वे भारत का गौरव,   धरोहर और परम्परा को अक्षुण्ण चाहते थे। धर्म की परम्परा  बहुत बड़ी  मानी जाती है। इसे  बच्चों  को समझाना है। आज  ज़िंदगी जा रही है। साधना करो। साधना  अभिशाप को भगवान बना  देती है। जो  हमारी धरोहर है। जिसे हम गिरने  नहीं देंगे।

महाराणा  प्रताप ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। उनके और उन जैसों के स्वाभिमान के बल पर हम आज जीवित हैं। भारत  को स्वतन्त्र  हुए सत्तर वर्ष  हो  गए हैं। स्वतन्त्र  का अर्थ होता है-'स्व  और तन्त्र'।  तन्त्र आत्मा का होना चाहिए। आज हमहमारा राष्ट्र एक-एक पाई  के लिए परतंत्र हो चुका है। हम हाथ किसी के आगे नहीं पसारें।   महाराणा प्रताप को देखोउन जैसा स्वाभिमान  चाहिए। उनसे है भारत की गौरवगाथा। आज हमारे भारत की पूछ  नहीं हो  रही है ?  मैं अपना ख़ज़ाना  आप लोगों  के सामने रख  रहा हूं। आप  लोगों में मुस्कान देख रहा हूँ। मैं भी  मुस्करा रहा हूं। हमें बता दोभारत का नाम 'इण्डियाकिसने रखाभारत का नाम 'इण्डियाक्यों रखा गयाभारत 'इण्डियाक्यों बन गया?  क्या भारत का अनुवाद  'इण्डियाहैइण्डियन का अर्थ क्या हैहै कोई व्यक्ति जो इस बारे में बता सके?  हम भारतीय हैं,ऐसा हम स्वाभिमान के साथ कहते नहीं हैं। अपितु गौरव के साथ कहते  हैं, 'व्ही आर इण्डियन'।  कहना चाहिए-'व्ही आर भारतीय'।  भारत का कोई अनुवाद नहीं होता। प्राचीन समय में 'इण्डिया'  नहीं कहा जाता था।  भारत को भारत के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। युग के आदि में ऋषभनाथ के ज्येष्ठ पुत्र 'भरत'  के नाम पर भारत नाम पड़ा है। उन्होंने भारत की भूमि को संरक्षित किया है। यह ही आर्यावर्त 'भारतमाना गया है। जिसे'इण्डियाकहा जा रहा है। आप हैरान हो जावेंगेपाठ्य-पुस्तकों के कोर्स में 'इण्डियनका जो अर्थ   लिखा गया है,वह क्यों पढ़ाया जा रहा है?  इसका किसी के पास क्या कोई जवाब हैकेवल इतना लिखा गया है कि  अंग्रेज़ों ने ढाई सौ वर्ष तक हम पर अपना राज्य कियाइसलिए हमारे देश 'भारतके लोगों का नाम 'इण्डियनका  पड़ गया है।

इससे भी अधिक विचार यह करना है कि है कि चीन हमसे  भी ज़्यादा परतन्त्र  रहा है। उसे हमसे दो या तीन साल बाद स्वतन्त्रता मिली है। उससे पहले स्वतन्त्रता हमें मिली है। चीन को जिस दिन स्वतन्त्रता मिली थीतब उनके सर्वेसर्वा नेता ने कहा था कि हमें स्वतन्त्रता की प्रतीक्षा थी। अब हम स्वतन्त्र हो गए हैं। अब हमें सर्वप्रथम अपनी भाषा चीनी को सम्हालना है।परतन्त्र अवस्था में हम अपनी भाषा चीनी को क़ायम रख नहीं सके थे। साथियों ने सलाह दी थी कि चार-पाँच  साल बाद अपनी भाषा को अपना लेंगे। किन्तु मुखिया ने किसी की सलाह को नहीं मानते हुए चीना भाषा को देश की भाषा घोषित किया। नेता ने कहा चीन स्वतन्त्र हो गया है और अपनी भाषा चीनी को छोड़ नहीं सकते हैं। आज की रात से  चीन में की भाषा चीनी प्रारम्भ होगी और उसी रात से वहाँ  चीन की भाषा चीनी प्रारंभ हो गयी। भारत में कोई ऐसा व्यक्ति है जो चीन के समान हमारे देश की भाषा तत्काल प्रारम्भ कर दे

कोई भी कठिनाई आ जाय देश के गौरव और स्वाभिमान को छोड़ नहीं सकते हैं। सत्तर वर्ष अपने देश को स्वतन्त्र  हुए हो गए हैं। हमारी भाषाऐं बहुत पीछे हो गयी हैं। अंग्रेजी भाषा को  शिक्षा  का माध्यम  बनाने की ग़लती  की गयी। मैं भाषा सीखने के लिए अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा  को सीखने का विरोध नहीं करता हूँ। किंतु देश  की   भाषा के ऊपर कोई अन्य भाषा नहीं हो सकती है। अंग्रेजी भारत की भाषा कभी नहीं थी और न कभी होनी चाहिए। अंग्रेजी अन्य विदेशी भाषाओं के समान ज्ञान प्राप्त करने का साधन मात्र है। विदेशी भाषा अंग्रेजी में हम अपना सब कुछ काम करने लग गएयह ग़लत है। हमें दादी के साथ दादी की भाषा जो यहाँ बुन्देलखण्डी हैउसी में बात करना चाहिए। जो यहाँ सभी को समझ में आ जाती है। मैं कहता हूँ ऐसा ही अनुष्ठान करें। 

लीक से हट कर प्रवचन:
प्रस्तुति: 
निर्मलकुमार पाटोदी
विद्या-निलय४५शांति निकेतन
इन्दौर- ४५२०१०
मो. ०७८६९९-१७०७० मेल: nirmal.patodi@gmail.com