बुधवार, 26 जुलाई 2017

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] सभी भाषाएँ हमारी हैं।- कर्नाटका रक्षण वैदिके को लिखा गया पत्र, झिलमिल में- हिंदुस्तानी भाषा अकादमी





प्रेम चन्द अग्रवाल यूको बैंक से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवा निवृत्त हैं, जहाँ ये राजभाषा अधिकारी के रूप में हिंदी कार्यान्वयन से जुड़े रहे। ये अम्बाला शहर व अम्बाला छावनी क्षेत्र के सभा महाविद्यालयों और 30-35 उच्च विद्यालयों में हिन्दी सम्बन्धी कार्य करते रहे हैं। इन्होंने हर विषय के प्रोफेसर को हिन्दी के पक्ष में खड़ा करने में सफलता पाई है। ये जिस भी सामाजिक धार्मिक संस्था के साथ जुड़ते हैं वहां सुनिश्चित करते हैं कि सारी कार्यवाही हिन्दी में ही हो।  उच्च न्यायालयों व उच्चतम न्यायालय में भारतीय भाषाओं के प्रयोग के लिए प्रारंभ आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। भाषाई सौहार्द और समन्वय के लिए  उनके द्वारा  कर्नाटका रक्षण वैदिके को लिखा गया पत्र नीचे दिया गया है। 

आदरणीय श्री टी. ए. नारायण गौड़ा जी,
प्रधान, कर्नाटका रक्षण वैदिके
नमस्कार।
हमारे लिए यह प्रसन्नता का विषय है कि आप कन्नड़ भाषा को लेकर चिन्तित है और उसको बचाने के लिए प्रयत्नशील हैं। हम स्वयं भी भारतीय भाषाओं के प्रचार प्रसार के कार्य में लगे हैं। आजकल हमारा विशेष ध्यान सभी उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय से अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने और कम से कम एक भारतीय भाषा का विकल्प उपलब्ध करवाने बारे है।
अभी तक देश के 24 उच्च न्यायालयों में से केवल 4 उच्च न्यायालयों (बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उतर प्रदेश) में ही अंग्रेजी के इलावा हिन्दी में कार्यवाही करने का विकल्प उपलब्ध है। हमारी मांग है कि अन्य उच्च न्यायालयों में भी भारतीय भाषाओं, जैसे गुजरात उच्च न्यायालय में गुजराती, कर्नाटक उच्च न्यायालय में कन्नड इत्यादि में विकल्प उपलब्ध हो।
लेकिन हमें ऐसा लग रहा है आपका विरोध हिन्दी से है न कि अंग्रेजी। पिछले 70 सालों से कर्नाटक उच्च न्यायालय में अंग्रेजी के अलावा आप कन्नड भाषा में कार्य नहीं कर सकते। लेकिन आपको अंग्रेजी का थोपना नजर नहीं आता। कर्नाटक उच्च न्यायालय में कन्नड़ में कार्यवाही के लिए क्या प्रयत्न किए।
साहब यह केवल राजनीति है, भाषा प्रेम नहीं। आपको अपनी भाषा दुश्मन नजर आती है और विदेशी भाषा अपनी। कहीं पर यदि अंग्रेजी और कन्नड़ के साथ हिन्दी भी (ध्यान दीजिए केवल हिन्दी नहीं) लिख दी जाती है तो कन्नड़ खतरे में, लेकिन यदि केवल अंग्रेजी का प्रयोग हो रहा हो तो कन्नड़ दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करती है।
जितना खतरा भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से है, किसी भारतीय भाषा से नहीं। सभी भारतीय भाषाएं अपनी हैं और सभी में देश की संस्कृति और इतिहास भरा पड़ा है। यदि कोई भी भाषा खतरे में पडती है तो भारतीय संस्कृति का उतना हिस्सा खतरे में आ जाता है।
हमारा उद्देश्य:
1. भारतीय न्यायालयों में भारतीय भाषाओं में कार्यवाही करने की सुविधा उपलब्ध हो।
2. शिक्षा का माध्यम दसवीं कक्षा तक अनिवार्यता (सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों में) मातृभाषा में हो।
3. सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म हो।
हमारा किसी भारतीय भाषा से द्वेष या प्रतियोगिता नहीं है, कारण सभी भाषाएँ हमारी हैं। कोई माँ कोई मौसी,  हमें तो सभी बहनें प्यारी हैं।
भवदीय
प्रेम चन्द अग्रवाल
9467909649/8708033161
  ई मेल पता -  94.prem.rajat@gmail.com




    

​ संलग्न - गर्भनाल अंक - 128

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई


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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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बुधवार, 19 जुलाई 2017

38 भाषाओं को संवैधानिक दर्जा देने की मांग, प्रवीण कुमार जैन


http://thewirehindi.com/13678/kiren-rijiju-lok-sabha-indian-languages/

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भवदीय,
प्रवीण कुमार जैन (एमकॉम, एफसीएस, एलएलबी)
कम्पनी सचिववाशीनवी मुम्बई – ४००७०३.

Regards,
Praveen Kumar Jain (M.Com, FCS, LLB), 
Company Secretary, Vashi, Navi Mumbai  400703.

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गूगल मैप में देवनागरी में स्थानों के नाम



गूगल मैप में पाकिस्तान के स्थानों के नाम देवनागरी और उर्दू लिपि में हैं,
किन्तु भारत के स्थानों के नाम अंग्रेजी(बेसिक लेटिन लिपि) और देवनागरी में हैं,
क्या यह दुःख की बात नहीं।

यदि गूगल मैप में हिंदी भाषा चयन करके लॉग-इन करने पर समग्र विश्व के स्थानों के नाम देवनागरी
में हों तो किसी स्थान के नाम का उच्चारण गलत नहीं होगा, क्योंकि देवनागरी में जैसा लिखा जाता है, हूबहू वैसा ही उच्चारण होता है।

गूगल मैप स्थानों के नामों की वर्तनी सुधार के लिए उपयोक्ताओं को आमंत्रित करता है। नीचे "सुझाव भेजें" पर क्लिक करके सही जानकारी भरकर सबमिट करने पर 24 घंटे में वर्तनी सुधार कर दिया जाता है।

यदि सभी खाली समय में कुछ कुछ स्थानों का देवनागरी लिप्यन्तरण सबमिट करें तो विश्वभर के स्थानों के नाम देवनागरी में कर देना आसान होगा।

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हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.in>

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[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] तत्काल कार्रवाई करें: वस्तु एवं सेवा कर सम्बन्धी वेबसाइट,ऑनलाइन सेवाएँ , प्ररूप(फॉर्म), मैनुअल, विवरणी


सेवा में,
सचिव 
राजभाषा विभाग,
गृह मंत्रालय, भारत सरकार 
नई दिल्ली 

विषय: वस्तु एवं सेवा कर सम्बन्धी वेबसाइट, ऑनलाइन सेवाएँ , प्ररूप(फॉर्म), मैनुअल,  विवरणी (रिटर्न), ऑनलाइन पंजीयन आदि केवल अंग्रेजी में होने और राजभाषा की अनदेखी करने की शिकायत 

महोदय,

आज देश में आर्थिक एकीकरण के लिए वस्तु एवं सेवा कर ("वसेक") लागू कर दिया गया है पर इस कर की पूरी व्यवस्था केवल अंग्रेजी में शुरू की गई है ताकि सीए की सेवा लिए बिना कोई भी व्यापारी इस कानून का पालन न कर सके और वह पूरी तरह सीए पर निर्भर रहे, साथ ही राजभाषा की पूर्णतः अनदेखी की गई है. लोक शिकायत के मुख्य बिंदु: 
  1. वस्तु एवं सेवा कर से संबंधित वेबसाइट www.gst.gov.in केवल अंग्रेजी में बनाई गई है.
  2. वसेक के अधिनियम केवल अंग्रेजी में ही अधिसूचित किए गए हैं.
  3. वेबसाइट प्रयोग के सभी मैनुअल और प्ररूप(फॉर्म) में तैयार करके जारी किए गए हैं और वेबसाइट पर अपलोड किए गए हैं.
  4. वस्तु एवं सेवा कर से संबंधित सभी प्रकार के ऑनलाइन रिटर्न केवल अंग्रेजी में तैयार किए गए हैं और उन्हें अंग्रेजी में भरना अनिवार्य है.
  5. वसेक में पंजीयन की ऑनलाइन सुविधा केवल अंग्रेजी में प्रदान की गई है और उसमें नाम पता इत्यादि केवल अंग्रेजी में भरना ही अनिवार्य है कोई भी व्यक्ति उसमें हिंदी में विवरण नहीं भर सकता है, जबकि सभी फॉर्म द्विभाषी(डिगलॉट) रूप में बनाना अनिवार्य है.
  6. वसेक से संबंधित पंजीयन के प्रमाण पत्र केवल अंग्रेजी में जारी किए जा रहे हैं, उनमें जानबूझकर राजभाषा की अनदेखी की गई है. 
  7. वसेक से संबंधित एसएमएस, ईमेल केवल अंग्रेजी में ही भेजे जा रहे हैं जिन्हें आम व्यापारी न तो पढ़ सकते हैं न समझ सकते हैं.
  8. वसेक परिषद की बैठकों में सारी कार्यवाही केवल अंग्रेजी में की गई और इन बैठकों में प्रयोग किए गए बैनर एवं मेज नामपट्ट केवल अंग्रेजी में तैयार किए गए. (अनुलग्नक देखें)
  9. केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड की हिंदी वेबसाइट पर वसेक से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, अंग्रेजी वेबसाइट पर सभी प्रकार की जानकारी अंग्रेजी में डाली गई है, एक दो दस्तावेज हिंदी में हैं पर उनका नाम आदि केवल अंग्रेजी में लिखा होने से उन लोगों के किसी काम के नहीं हैं जो अंग्रेजी पढ़ना भी नहीं जानते हैं.
  10. केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड अब तक हिंदी में इस कर का नाम भी तय नहीं कर पाया है, पूरा देश वस्तु एवं सेवा कर लिख रहा है लेकिन बोर्ड कभी अपने विज्ञापनों में माल एवं सेवा कर लिखता है तो कभी वस्तु एवं सेवा कर. हाँ अंग्रेजी में एक ही नाम है गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) 
  11. वस्तु एवं सेवा कर का हिंदी में संक्षेप वसेक होता है पर चूँकि हिंदी हेय, त्याज्य है इसलिए बोर्ड विज्ञापनों में रोमन में ही GST अथवा देवनागरी में जीएसटी लिख रहा है. 

वसेक छोटे बड़े सभी व्यापारियों, सभी विनिर्माताओं अर्थात लगभग सभी नागरिकों पर लागू है फिर भी इस व्यवस्था में जानबूझकर भारतीय भाषाओं की अनदेखी की गई है और आम जनता एवं आम व्यापारी पर अंग्रेजी थोपी गई हैं इससे एक बड़ी समस्या की आशंका बनी हुई है कि कर अधिकारीअंग्रेजी में नोटिस जारी कर व्यापारियों को डर दिखा सकते हैं. अंग्रेजी डराने धमकाने का पुराना हथियार
है.

चूंकि पूरी व्यवस्था अंग्रेजी में है इसलिए आम व्यापारियों और आम जनता में वसेक के प्रति बहुत ही अधिक डर का माहौल है. वसेक की पूरी व्यवस्था में राजभाषा अधिनियम, नियम, राजभाषा के संबंध में राष्ट्रपति जी के आदेश एवं राजभाषा विभाग द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निर्देशों का खुला उल्लंघन किया गया है.

मुझे तो आश्चर्य की राजभाषा विभाग के अधिकारी स्वतः संज्ञान लेकर इतने बड़े उल्लंघन पर कोई कार्रवाई भी नहीं करते हैं? 

आप से विनम्र प्रार्थना करता हूं कि केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के उच्चाधिकारियों से सचिव स्तर की  बैठक तुरंत आयोजित करें और वसेक संबंधित सभी प्रकार के आवेदन, प्रमाण-पत्र, ईमेल,फॉर्म, रिटर्न, वेबसाइट, ऑनलाइन सेवाएं एवं प्रेस विज्ञप्तियां इत्यादि राजभाषा अधिनियम के अनुसार बनवाने के निर्देश जारी करें. साथ है सभी भारतीय भाषाओं में भी ये सुविधाएँ शुरू करवाई जाएं.

इस संबंध में की गई कार्यवाही से मुझे अवगत कराएं और मेरे पत्र का उत्तर शीघ्र दें.

भवदीय,
प्रवीण जैन 
आदीश्वर सोसाइटी, 
जैन मंदिर के पीछे,
सेक्टर - 9 ए, वाशी, नवी मुंबई - 400 703
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मंगलवार, 18 जुलाई 2017

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] भारत-भाषा प्रहरी - डॉ. महेशचंद्र गुप्त झिलमिल -गर्भनाल अंक - १२८




 यूं तो हिंदी  के माध्यम से आजीविका पानेवालों और हिंदी केविद्वानों की इतनी लंबी फेहरिस्त है   कि एक बहुत ही मोटी टेलीफोन निदेशिका तैयार हो सकती हैलेकिन पूर्ण निष्ठा  समर्पण भाव से  हिंदी के प्रचार – प्रसार के लिए संघर्षरत हिंदी-सेवियों की गिनती करनी हो तो हाथों की उंगलियाँ पर गिना जा सकते हैं। जबमैं राजभाषा विभाग की सेवा में आया तब से एक नाम कई बार सुनने को मिलता रहा वह नाम था – ‘डॉमहेशचंद्र गुप्त’  उन दिनों केन्द्रीय सचिवालय हिंदीपरिषद नामक संस्था  काफी सक्रिय थी। मुंबई में इसकी शाखा थी जिससे मैं भी जुड़ गया था। इसमें  केंद्रीय कार्यालयों के अधिकारा / कर्मचारा स्वयंसेवकों के रूपमें परस्पर सहयोग  समन्वय से केंद्रीय कार्यालयों में सरकारी कामकाज हिंदी में करवाने के प्रयास करते थे। इसके द्वारा कार्य हेतु तैयार करवाया गया सहायक-साहित्य कार्यालयों में काफी उपयोग में लाया जाता था।  इस कार्य के पीछे भी  डॉमहेशचंद्र गुप्त’ का महत्वपूर्ण भूमिका थी

  उनसे मेरी पहली मुलाकात तब हुई जब वे रेलवे बोर्ड में निदेशक (राजभाषाथे। मुंबई में मध्य रेल तथा पश्चिम रेल मुख्यालयों की क्षेत्रीय राजभाषा कार्यान्वयनसमिति की अनेक बैठकों में रेलवे बोर्ड की और से उनका आना होता था और गृह मंत्रालयराजभाषा विभाग के क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय की ओर से मेरा जानाहोता था।  संघ की राजभाषा नीति का उनका विषद् ज्ञान तथा हिंदी के प्रति उनका दृढ़ दृष्टिकोण  प्रभावित करता था  जहाँ प्रायअधिकारियों की औपचारिकताओंकी पूर्ति की दृष्टि दिखाई देती है वहीं उनकी  राजभाषा के लिए समुचित निर्णय करवाने तथा जवाबदेही तय करवाने का उनका रुख प्रभावित करता था। जब मेरेकिसी सुझाव को वरिष्ठ अधिकारी गोलमोल करने का प्रयास करते तो वे  उसे निर्णय में परिवर्तित  करवाने में दृढ़ता से सामने आते  तब मुझे लगा कि कोई तोहै   जो एक प्रहरी की भांति संघ की राजभाषा के लिए सजगतापूर्वक एक वीर की भांति डटा है हालांकि तब तक उनसे कोई सीधा संबंध  था लेकिन राजभाषा हिंदी के प्रति लगाव के चलते कई बैठकों और कार्यक्रमों में उनसे मिलना हुआ  तब तक भी मुझे उनके बारे में बहुत अधिक जानकारी  थी  बाद में उनके संबंध में जो जानकारी मुझे मिली उससे मेरी क्षद्धा उनके प्रति और अधिक बढ़ गई। 



       डॉमहेशचंद्र गुप्त का जन्म देवबंद (जिला सहारनपुर), उत्तर प्रदेश में हुआ था  वे इंजीनियरी के विद्यार्थी थे।   रुड़की विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरीमें प्रथम श्रेणी में डिप्लोमा प्राप्त करके सन् 1961 में उन्होंने सिविल इंजीनियरी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग में सिविलइंजीनियर नियुक्त हुए। केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग में सिविल इंजीनियर रहते हुए उहोंने अनेक भवनों आदि के अभिकल्पन किए और नेपालभूटान में अनेकनिर्माण कार्यपहाड़ी सडकों और जलापूर्ति आदि के कार्य कराए  नेपाल में होते हुए निर्माण कार्यों के ठेकेदारों से हिंदी में पत्र व्यवहार का सूत्रपात कर दियाजिससे1970 से 1972 के दौरान ठेकेदारों को बहुत सुविधा हुई 

      सन् 1963 से ही केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् के सदस्य बनते ही उन्होंने भाषा की दृष्टि से कठिन माने जाने वाले कठिन मोर्चों पर कार्य करना प्रारंभकर दिया। उन्होंने भवनों के संरचनात्मक आरेख हिंदी में बनवाने का दुष्कर कार्य आरंभ करा दिया  तत्पश्चात केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् में ही अवैतनिककार्यालय मंत्रीसाहित्य-संस्कृति मंत्रीप्रतियोगिता मंत्री आदि रहे  सन् 1964-65 में डॉमहेश चन्द्र गुप्त ने  मुंबई में हिंदी परिषद् की अनेक शाखाएँ विभिन्नकेन्द्रीय कार्यालयों में स्थापित कराई |

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केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग में कार्यपालक इंजीनियर (हिंदीका दायित्व संभालते हुए पूरे विभाग में हिंदी प्रयोग का और तकनीकी कार्य हिंदी में कराने काअभियान चलाया  विभाग का लगभग संपूर्ण तकनीकी साहित्य हिंदी में अनुवाद कराकर सुलभ करा दिया  इस बीच केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् के अवैतनिकसंगठन मंत्री और राष्ट्रीय महामंत्री के दायित्व भी संभाले रहे 

   भले ही इजीनियरी के क्षेत्र में कार्यरत थेलेकिन उनकी आत्मा तो संघ की गाजभाषा को उसका सही सम्मान  संथान दिलवाने के लिए लालायित थी। इसीकेचलते उन्होंने  केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग जैसे विभाग को छोड़कर  सन् 1985 में भारत सरकार के गृह मंत्रालयराजभाषा विभाग में निदेशक (अनुसन्धानकापद भार संभाला और इंजीनियरी सेवा को तिलांजलि दे दी  इसी दौरान भारत सरकार की सोलह ऐसी सूचनात्मक फ़िल्में बनवाईंजिनसे देश में और प्रदेशों में हिंदीके प्रयोग और प्रसार का  दिग्दर्शन हुआजिनमें से हिंद की वाणीदेश की वाणीएकता की वाणीसंघ की भाषाअरुणांजलिमेघांजलिपूर्वांजलिउत्कलांजलि,मणिपुर गाथा आदि मुख्य हैं  तब से अब तक  फिर दोबारा ऐसा कार्य नहीं हो सका।

     राजभाषा विभाग में रहते हपए उन्होंने  अनेक केन्द्रीय कार्यालयों का और बैंकों आदि का हिंदी प्रयोग और प्रसार के लिए निरीक्षण किए और सैंकड़ोंकार्यशालाओं में निःशुल्क व्याख्यान देकर हजारों अधिकारियों का मार्गदर्शन किया  साथ-साथ राजभाषा भारती पत्रिका का 7 वर्ष तक सम्पादन भी किया 
      सन् 1993 में रेल मंत्रालय में संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से निदेशक (राजभाषाका दायित्व संभाला और रेल राजभाषा पत्रिका के संपादन के साथ-साथ भारतीय रेलों के सैंकड़ों कार्यालयों के निरीक्षण किए और सैंकड़ों बैठकों में शामिल होकर हिंदी का प्रसार किया  तकनीकी कार्य हिंदी में करवाए और हिंदीपुस्तकालयों का विस्तार किया 

     डॉमहेशचंद्र गुप्त सेवानिवृत्ति की आयु आने पर सरकारी सेवा से निवृत्त हुए लेकिन हिंदी की सेवा से उन्हें कौन निवृत्त कर सकता था  इसलिए वे हिंदी केअथक प्रहरी की तरह हिंदी प्रसार के कार्यों में लगे रहे।     सेवानिवृत्ति के बाद वे केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद्हिंदी व्यवहार संगठनभारतीय भाषा सम्मेलन,हिंदी साहित्य सम्मेलन और नागरी लिपि परिषद् आदि में उन्होंने सेवाभाव से हिंदी के प्रसार के लिए संपूर्ण समय समर्पित कर दिया  उन्होंने भारत सरकार केमंत्रालयोंकार्यालयों और अधिकारियों को सैंकड़ों पत्र हिंदी प्रयोग अभियान को बढ़ाने के लिए लिखे  सन् 1997 में सांस्कृतिक गौरव संस्थान की स्थापना कराई जोभारत के नागरिकों के कर्तव्यों के पालन हेतु सक्रिय है   उसके माध्यम से भी वे हिंदी  अन्ट भारतीय भाषाओं के प्रयोग  प्रसार के कार्य को करते रहे।

  ​
      डॉमहेशचंद्र गुप्त मंत्रालयों की हिंदी सलाहकार समितियों में केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद् के प्रतिनिधि के रूप में विशेषतः गृह मंत्रालयमानव संसाधनविकास मंत्रालयविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालययोजना मंत्रालयखाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालयशहरी विकास एवं आवास मंत्रालय आदि में हिंदी प्रयोग-प्रसार के लिए पूरे तन-मन से भरपूर प्रयत्न किए  भगवान की कृपा से अभी-भी हिंदी और भारतीय संस्कृति की सेवा में अखिल भारतीय संस्थान सांस्कृतिक गौरवसंस्थान के माध्यम से लगे हुए हैं  हाल ही में जब संविधान की अष्टम अनुसूची में हिंदी की बोलियों के नाम पर हिंदी को विघटित  करने के के मुद्दे पर  केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने हिंदी बचाओ मंच के प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित क्या तो भी महेशचंद्र गुप्त हिंदी के एक सजग प्रहरी की तरह वहाँ पहुंचे और हिंदी कोबोलियों में विघटित करने के दूरगामी दुष्प्रभावों के प्रति सरकार को सचेत किया।

सेवा निवृत्ति के इतने लंबे अर्से बाद भी वे पहले की भांति या यूँ कहें कि और भी अधिक सक्रियता से भारत भाषा प्रहरी की तरह  दिन-रात हींदी की सेवा में लगेहुए हैं  वैश्विक हिंदी सम्मेलन भारत-भाषा प्रहरी डॉमहेशचंद्र गुप्त को हिंदी के प्रचार-प्रसार के प्रति उनके अमूल्य योगदान  के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है। हमेंआशा है कि आनेवाली पीढ़ियां भी उनके व्यक्तितत्व और उनके कार्य से प्रेरणा ले सकेंगी।
 



  
डॉ. महेशचंद्र गुप्त
{Fellow of the institution of Engineers (India), Ph.
घर का पता – मकान नं-195, सेक्टर-23, गुरुग्राम-122017
मोबाइल नं. – 9289686427
दूरभाष – 0124-2460195
-मेल – sgsgurgaon15@gmail.com           
   झिलमिल                  


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