हिंदी के विश्वदूत- प्रो. शिवकुमार सिंह
हिंदी को जब विश्वभाषा बनाने की बात आती है तो उसमें एक मुख्य बिंदु यह भी होता है कि कितने देशों में हिंदी भाषा बोली या समझी जाती है ? किन-किन देशों में हिंदी पढ़ी या पढ़ाई जाती है ? वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा के प्रसार के लिए सबसे महत्वपूर्ण है विदेशों में हिंदी भाषा का शिक्षण । इस बात को हम आज भी बड़े गर्व के साथ कहते और बताते है कि दुनिया के कितने देशों और विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। इस नजरिए से यदि देखें तो हम पाएँगे कि विश्वस्तर पर हिंदी के प्रसार में एक प्रमुख भूमिका उन लोगों की भी है जो अपने देश से दूर विदेशों में जाकर हिंदी के विश्वदूत बनकर हिंदी शिक्षण के कार्य में लगे हैं।
प्रो. शिवकुमार सिंह ऐसे ही हिंदी शिक्षकों में से हैं जो दक्षिण-पश्चिम यूरोप के देश पुर्तगाल लिस्बन विश्वविद्यालय (Universidade de Lisboa - University of Lisbon) में कला संकाय (Faculdade de Letras - Faculty of Arts and Humanities) में हिंदी शिक्षण के कार्य में लगे हैं।
लिस्बन शहर के बारे में वे बताते हैं-‘ पुर्तगाल में¬ मूलतः भारत से संबंधित गुजराती और पंजाबी समुदाय के बहुत लोग हैं। गुजराती समाज में¬ ज्यादातर वे लोग हैं जो सालों पहले भारत से मोजाम्बिक गए और अन्य अफ्राकी देशों में व्यापार आदि के लिए आकर बस गए थे। जब 1974 में मोजाम्बिक पुर्तगाल की दासता से आजाद हुआ तो वहाँ गृहयुद्ध जैसे हालात हैदा हो गए जिसके कारण बहुत से गुजराती मूल के लोगों ने पुर्तगाल का रुख किया और यहाँ बस गए लेकिन आज भी उन्होंने अपनी संस्कृति और अपनी पहचान को बचाकर रखा हुआ है । भारतीय मूल के लोग हिंदी फिल्मों के माध्यम से भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए हैं।‘ वे कहते हैं, ‘ यूं तो लिस्बन जो कि पुर्तगाल की राजधानी है, यूरोप के अन्य देशों की राजङानियों की तुलना में छोटा शहर है लेकिन यहाँ भिन्न संस्कृतियों का समागम नजर आता है । गिरिजाघरों के अतिरिक्त यहाँ 4-5 हिंदू मंदिर,2-3 मस्जिद¬ और 2 गुरुद्वारे भी हैं।‘
प्रो. शिवकुमार सिंह ऐसे ही हिंदी शिक्षकों में से हैं जो दक्षिण-पश्चिम यूरोप के देश पुर्तगाल लिस्बन विश्वविद्यालय (Universidade de Lisboa - University of Lisbon) में कला संकाय (Faculdade de Letras - Faculty of Arts and Humanities) में हिंदी शिक्षण के कार्य में लगे हैं।
लिस्बन शहर के बारे में वे बताते हैं-‘ पुर्तगाल में¬ मूलतः भारत से संबंधित गुजराती और पंजाबी समुदाय के बहुत लोग हैं। गुजराती समाज में¬ ज्यादातर वे लोग हैं जो सालों पहले भारत से मोजाम्बिक गए और अन्य अफ्राकी देशों में व्यापार आदि के लिए आकर बस गए थे। जब 1974 में मोजाम्बिक पुर्तगाल की दासता से आजाद हुआ तो वहाँ गृहयुद्ध जैसे हालात हैदा हो गए जिसके कारण बहुत से गुजराती मूल के लोगों ने पुर्तगाल का रुख किया और यहाँ बस गए लेकिन आज भी उन्होंने अपनी संस्कृति और अपनी पहचान को बचाकर रखा हुआ है । भारतीय मूल के लोग हिंदी फिल्मों के माध्यम से भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए हैं।‘ वे कहते हैं, ‘ यूं तो लिस्बन जो कि पुर्तगाल की राजधानी है, यूरोप के अन्य देशों की राजङानियों की तुलना में छोटा शहर है लेकिन यहाँ भिन्न संस्कृतियों का समागम नजर आता है । गिरिजाघरों के अतिरिक्त यहाँ 4-5 हिंदू मंदिर,2-3 मस्जिद¬ और 2 गुरुद्वारे भी हैं।‘
पुर्तगाल में विश्वविद्यालय स्तर पर हिंदी व भारतीय संस्कृति की शिक्षा की शुरुवात का आधिकारिक श्रेय आदरणीय प्रो. जुज़े लैइत द वासको सेलुश (उकाया, 07-07-1858 -लिस्बन, 17-05-1941) जो कि लिस्बन विश्वविद्यालय के कला-संकाय में¬ प्रोफेसर भी रहे; वे न केवल पुर्तगाल में¬ बल्कि पूरे यूरोप में¬ पूर्व (एशिया) की भाषा और संस्कृति के बारे में¬ शोध करने वाले गिन-ेचुने विद्वानों में से एक थे। उनकी मृत्यु के बाद लगभग 8 हजार किताबें लिस्बन विश्वविद्यालय के कला-संकाय के पुस्तकालय को भेंट कर दी गयीं, जिनमें¬ हजारों किताबें¬ संस्कृत और भारतीय अध्ययन से संबंधित हैं।
लिस्बन विश्वविद्यालय में हिंदी का कोई अलग से विभाग न होने के कारण भाषा-विज्ञान विभाग (Departamento de Linguística Geral e Românica - Department of General and Romance Linguistics ) के अन्तर्गत हिंदी शिक्षण के कार्य होता है। इस विभाग का हिंदी शिक्षण का एक उपकेंद्र भारतीय अध्ययन केंद्र (Centro de Estudos Indianos - Centre for Indian Studies) भी है।
लिस्बन विश्वविद्यालय में हिंदी का कोई अलग से विभाग न होने के कारण भाषा-विज्ञान विभाग (Departamento de Linguística Geral e Românica - Department of General and Romance Linguistics ) के अन्तर्गत हिंदी शिक्षण के कार्य होता है। इस विभाग का हिंदी शिक्षण का एक उपकेंद्र भारतीय अध्ययन केंद्र (Centro de Estudos Indianos - Centre for Indian Studies) भी है।
हिंदी के छात्र "कफ़न" का मंचन करते हुए लिस्बन के राधा-कृष्ण मंदिर में हिंदी के विद्यार्थी
जब भाषा बहती है तो अपने साथ अपनी संस्कृति के रूप में अपनी मिट्टी की महक भी साथ लेकर जाती है। इसलिए जहाँ भारत की भाषा हिंदी पढ़ाई जाती है तो भारत की संस्कृति उससे अछूती नहीं रहती। प्रो. शिवकुमार सिंह बताते हैं कि पुर्तगाल के विद्यार्थी बड़े ही मनोयोग से हिंदी भाषा सीखते हैं। विद्यार्थी कक्षा में हिंदी सीखने के साथ-साथ भाषा से जुड़ी अन्य गतिविधियों में भी रुचिपूर्वक भाग लेते हैं। वे कहते हैं – ‘विश्व हिंदी दिवस पर 2010, 2011, 2012, 2013, 2014, और 2015 में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। इस अवसर पर भारतीय भाषाओँ और संस्कृति से सम्बंधित संगोष्ठी, हिंदी के पुर्तगाली छात्रों द्वारा हिंदी में साहित्यिक नाटक और हिंदी फिल्म - सप्ताह का आयोजन भी नियमित रूप से किए जाते हैं।’
भारत के कुछ भूभाग पुर्तगाल का उपनिवेश रहा है। 1961 तक गोवा, दमण, दीव और दादरा नगर हवेली क्षेत्र पुर्तगाल के अधीन था । भारत के 500 साल का साझा इतिहास है इसके चलते भारत से, गोवा से जुड़ी याद¬ आज भी पुर्तगालियों के मन में बसी हैं। प्रो. शिवकुमार सिंह के अनुसार बहुत से पुर्तगाली लोग जो भारतीय मूल के हैं अपने बच्चों को गुजराती, कोंकणी, हिंदी सिखाने की कोशिश करते हैं। । बहुत से पुर्तगाली युवा लोग इसलिए भारतीय भाषाएँ सीखना चाहते हैं क्योंकि अभी भी उनके बहुत सारे रिश्तेदार भारत में¬ हैं और साल - दो साल में उनका भारत जाना होता है । बहुत लोग अभी भी शादी वगैरह के लिए भारतीय लड़कियाँ ही चाहते हैं। यहाँ की युवा पीढ़ी भारत के बारे में ज्यादा नही तो कुछ न कुछ जानकारी अवश्य रखती है।
पुर्तगाली शिक्षकों को हिंदी भाषा पढ़ाने का प्रमुख उद्देश्य क्या है ? इस बारे में पूछने पर प्रो. शिवकुमार सिंह बताते हैं, ‘ पुर्गगाल के वे विद्यार्थी जो भारत के बारे में जानन चाहते हैं और भारोपीय विषयों में शोध करना चाहते हैं उन्हें विदेशी भाषा के रूप में हिंदी भाषा और संस्कृति का ज्ञान देना और उनको भारोपीय विषयों में शोध के लिए तैयार करना हमारा प्रमुख उद्देश्य है।
प्रो. शिवकुमार सिंह के विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के आलेख :
1. सिंह, शिव कुमार. (2014). "पुर्तगाली और हिंदी भाषा का तुलनात्मक अध्ययन". विश्व हिंदी पत्रिका. विश्व हिन्दी सचिवालय (मॉरीशस )
http://vishwahindi.com/hi/downloads/vhp_2014/chapters/27%20-%20Shiv%20Kumar%20Singh.pdf
http://vishwahindi.com/hi/downloads/vhp_2014/chapters/27%20-%20Shiv%20Kumar%20Singh.pdf
2. सिंह, शिव कुमार. (2012). "विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण की चुनौतियाँ". संगोष्ठी समग्र में. हिंदी विभाग, विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली
3. “विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी-शिक्षण में भारतीय संस्कृति का महत्व” (प्रकाशनार्थ)
4. A identidade multicultural da Índia (भारत की बहु साँस्कृतिक पहचान - पुर्तगाली में ) http://www.buala.org/pt/vou-la-visitar/a-identidade-multicultural-da-india
4. A identidade multicultural da Índia (भारत की बहु साँस्कृतिक पहचान - पुर्तगाली में ) http://www.buala.org/pt/vou-la-visitar/a-identidade-multicultural-da-india
लिस्बन विश्वविद्यालय में हिंदी शिक्षण के साथ ही प्रो. शिव कुमार सिंह, लिस्बन स्थित राधा कृष्णा मंदिर और पुर्तगाली योग संस्थान में भी हिंदी पढ़ा रहे हैं । भविष्य में हिंदी शिक्षण व अनुवाद की सुविधा की दृष्टि से सुविधा प्रो. शिव कुमार सिंह हिंदी-पुर्तगाली शब्दकोश की योजना पर कार्य कर रहे हैं । इस प्रकार प्रो. शिव कुमार सिंह हिंदी के विश्वदूत बनकर पुर्तगाल में हिंदी और भारतीयता की पताका फहरा रहे हैं । आशा है कि उनके प्रयासों से हिंदी को विश्वभाषा बनाने के प्रयासों और भारतीय संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।
- डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
प्रो. शिवकुमार सिंह के संपर्क सूत्र-
देश : पुर्तगाल (दक्षिण-पश्चिम यूरोप)
पता :
Faculdade de Letras da Universidade de Lisboa (FLUL), DLGR,
Alameda da Universidade, 1600-214 Lisboa
पता :
Faculdade de Letras da Universidade de Lisboa (FLUL), DLGR,
Alameda da Universidade, 1600-214 Lisboa
ब्लॉग / वैबसाइट : http://www.fl.ul.pt/ensino/outros-cursos/1706-outros-cursos-curso-de-lingua-e-cultura-hindi-
फोन / फैक्स : +351 217920052 / +351 217960063
ई-मेल : shiv4singh@gmail.com , secretaria.dlgr@fl.ul.pt
ई-मेल : shiv4singh@gmail.com , secretaria.dlgr@fl.ul.pt
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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