गुरुवार, 31 अगस्त 2017

नये क्षितिज पुस्तक की समीक्षा

नये क्षितिज पुस्तक की समीक्षा

"नये क्षितिज" डॉ. सतीशचंद्र शर्मा 'सुधांशु' द्वारा संपादित नवगीतों का अद्भुत संग्रह है । इसके अतिथि संपादक शिवानंद सिंह 'सहयोगी' गीत का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ ही मानते हैं । "मनुष्य पहले-पहल जो बोला वह गद्य और रोया वह पद्य" । अपनी अभिव्यक्ति को उसने श्लोक, ऋचा, मंत्र, गीत, दोहा, कहानी, दैनिकी उपन्यास आदि में लिखना प्रारंभ किया और लिखने की विधाओं का जन्म हुआ जो निरंतर चल रहा है और बदलते समय समाज के साथ इन विधाओं में गीत कर्णप्रिय और मधुर विधा है । हृदय में छिपी भाव अभिव्यक्ति गुनगुनाहट के रुप में प्रस्तुत होती गीत का जन्म होता है । गीत और नवगीत में अधिक फरक नहीं, एक सूक्ष्म सा फरक मात्र है । 'नवगीत' हिंदी कविता की एक महत्वपूर्ण विधा है । वर्तमान विसंगतियां के बीच मानवीय अनुभूतियों के प्रकाश में सौंदर्य बोध खोजा है । "नये क्षितिज" में डॉ सतीशचंद्र शर्मा 'सुधांशु' नवगीतों को प्रस्तुत करते कहते हैं - आजकल कम से कम शब्दों में छोटे-छोटे छंदों में नवगीतों ने पाठकों, आलोचकों का आदर प्राप्त किया है । इस अंक में देश के लगभग सभी महत्वपूर्ण नवगीतकारों को स्थान देने का प्रयास किया गया है ।
           सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की रचना  'मानव जहां बैल घोड़ा है' से लेकर रमेश चंद्र शर्मा 'विकट' की बदायूं के शब्द शिल्पी नवगीतों की विस्तृत श्रंखला 150 (एक सौ पचास) पृष्ठों में कतिपय गद्य रचनाओं द्वारा दिग्दर्शित 'नये क्षितिज' में आलेखित है । दिन ये बरसात के, अधर में संवेदनाएं, आखर-आखर अलसाये, धधकी आग तबाही, इस सभा में चुप रहो, क्या करें, सजा है कबूल, कहो कबीर, निचुडता मन, जो भी है --गीतकार मानते हैं की देशव्यापी अंधेरे के लिए मौजूदा विसंगतियां और अंतर्विरोध जिम्मेदार है। संग्रह के अनेक गीत दैनिक जीवन की खटपट को रुपायित करते हैं । चांद सरीखा मैं अपने को घटते देख रहा हूं, प्रश्न-प्रश्न से उलझ रहे -- उत्तर मुंह लटकाए, खुशी बांझ सी, मुन्नी गुड़िया हुई लापता, परिजन हुये अभागे, पर हिम्मत नहीं हारे हैं, तोडेंगे-तोडेंगे चक्रव्यूह तोडेंगे -- का बुलंद स्वर, नवगीतकारों के मानस का दर्पण है । 
         जनगीतकारों के साक्षात्कार के अंतर्गत नचिकेता से डॉ.नितिन सेठी ने विस्तृत विवेचन किया है । 'नवांकुर नीड़' में नवोदित गीतकारों को विस्तृत आकाश में विचरने की प्रेरणा दे कर उनका मनोबल बढ़ाया है । 'शोध पत्र' नये क्षितिज के सहयोगी, सम्मानार्थ प्रविष्टियां आमंत्रण, समाचार संभाग कुल मिलाकर नये क्षितिज को गरिमा प्रदान करते हैं । विकसित पुष्पवन का शैल, गगनयुक्त रंगीला मुखपृष्ठ, जनवरी-जून 2017 संयुक्तांक आकर्षक लग रहा है । मात्र सौ (100) रुपए में इतना साहित्य, नई विधा विचार पाठक को पढ़ते जाने की प्रेरणा देते हैं ।  के.बी. (श्रीमती कटोरी देवी बाबूराम शर्मा) हिंदी साहित्य समिति नाम से पंजीकृत 'नये क्षितिज' का भविष्य नि:संदेह उज्जवल चिरंजीवी रहे इसी शुभ भावना के साथ ----

प्रस्तुति : संपत देवी मुरारका (विश्व वात्सल्य मंच)
email: murarkasampatdevii@gmail.com
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[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] अजित कुमारजी को विनम्र श्रद्धांजलि ।



​स्व. अजित कुमार जी

नहीं रहे हिंदी कवि अजित कुमार.... 

हिंदी के प्रसिद्ध कवि अजित कुमार का फोर्टिस अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह 86 वर्ष के थे. स्वास्थ्य समस्याओं के चलते वह कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती थे. अजित कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक जमींदार परिवार में हुआ था. उनकी मां सुमित्रा कुमारी सिन्हाबहन कीर्ति चौधरी और पत्नी स्नेहमयी चौधरी भी प्रसिद्ध कवयित्री थीं.

साहित्य और काव्य-प्रेम अजित जी को विरासत में मिला था. काव्य प्रतिभा और सुलझे विचारों की बदौलत उन्होंने हिंदी साहित्य जगत में अपना ऊंचा मुकाम हासिल किया. उन्होंने कुछ समय कानपुर के किसी कॉलेज में पढ़ाया और फिर लंबे समय तक दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में अध्यापन कार्य करते सेवानिवृत्त हुए.

उनके कई कविता-संग्रह प्रकाशित हुए- 'अकेले कंठ की पुकार', 'अंकित होने दो', 'ये फूल नहीं', 'घरौंदाइत्यादि. स्वभाव से मधुर और लोकप्रिय व्यक्तित्व अजित कुमार का हरिवंश राय बच्चन से निकट संबंध रहा. बच्चन जी के विदेश मंत्रालय में नियुक्त रहने के दौरान दोनों ने साथ में कई परियोजनाओं पर काम किया था. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 'बच्चन रचनावलीके संपादक रहे अजित ने अभी हाल ही में उस रचनावली में दसवें और ग्यारहवें खंडों का विस्तार किया. साहित्य के क्षेत्र में यह उनका अंतिम बड़ा योगदान है.


कवि का पार्थिव शरीर उनके निवास स्थानदिल्ली के प्रीतमपुरा स्थित मकान 166, वैशाली पर अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया. कवि की अंतिम इच्छा के अनुसार उनका पार्थिव शरीर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सुपुर्द किया जाएगा.
नकी स्मृति में प्रीतमपुरा के वैशाली मुहल्ला स्थित कम्युनिटी हॉल में शोकसभा 23 जुलाई को शाम से बजे तक आयोजित की गई 

न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस से साभार
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अकेले कंठ की पुकार,
 अंकित होने दो,  ये फूल नहीं,
 
​रौंदा​, हिरनी के लिए
, घोंघेऊसर 

अजित कुमारजी की प्रतिनिधि कविताएँ ।​






अजित कुमारजी को विनम्र श्रद्धांजलि 



​अजित कुमार जी एक महान कवि ही नहीं एक अत्यंत मिलनसार, विनम्र  और सहृदय व्यक्ति और एक अच्छे शिक्षक भी थे। अजित कुमार जी को पहली बार तब देखा था, जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में एम.ए. में पढ़ रहा था। वैसे तो नौकरी के चलते सांध्य कक्षाओं में दाखिला लिया हुआ था, लेकिन जब कभी वक्त मिलता तो सुबह की कक्षाओं में भी जा बैठता था। वहीं उनसे पढ़ने का सौभाग्य मिला।  बतौर शिक्षक उन्होंने काफी प्रभावित किया । फिर में मुंबई चला आया और विश्वविद्यालय की यादे भी धूंधली होती गईं।  



दिल्ली में उनका निवास पीतम पुरा में हमारे घर के निकट था।
मेरे छोटे भाई
​ अशोक का उनके यहाँ काफी आना -जाना था। 
वे उसकी पत्नी कोअपनी बेटी की तरह मानते थे। जब उसने मुझे अजित कुमार जी के बारे में बताया तो उनसे मिलने की इच्छा हुई।
 ​
करीब तीन साल पहले 
​मैं उनके साथ ​
अजित कुमार जी के घर गया था। आत्मीयता के साथ उन्होंने काफी लंबी चर्चा 
​हुई​
 थी।

  उनका आत्मीय व्यवहार आज भी मैं भुला नहीं सका । मैंने उन्हें 'वैश्विक हिंदी सम्मेलन - 2014' में पधारने का अनुरोध भी किया था । उन्होंने कहा था कि स्वास्थ्य की परेशानियों के कारण उनका आना संभव न हो सकेगा। 
बच्चे शायद विदेश में हैं
​,​
 पति - पत्नी अकेले थे।  वृद्धावस्था की स्वास्थ्य की परेशानियाँ
 थीं
​। '
वैश्विक हिंदी सम्मेलन
​'​
 के गूगल समूह से जुड़े थे
​। ​
 कभी कभार उनकी टिप्पणियाँ भी प्नाप्त होती थीं
​,​
 जि
​​
नसे मार्गदर्शन मिलता था। वह आलोक दीप अचानक बुझ गया । 
​उनकी स्मृतियाँ ही रह गई हैं। ​
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे
​ ।​


डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'
-- 
वैश्विक हिंदी सम्मेलन की वैबसाइट -www.vhindi.in
'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' फेसबुक समूह का पता-https://www.facebook.com/groups/mumbaihindisammelan/
संपर्क - vaishwikhindisammelan@gmail.com
​ 
प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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बुधवार, 30 अगस्त 2017

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] सोशल मीडिया और हिंदी : डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'', झिलमिल में गणेश चतुर्थी का सही इतिहास




भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग की पत्रिका 'राजभाषा भारती' में प्रकाशित लेख ।



झिमि
गणोशोत्सव पर विशेष 
गणेश चतुर्थी का इतिहास जानने के लिए 
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वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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सोमवार, 28 अगस्त 2017

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] गणेश एन. देवी का भाषा सर्वेक्षण और भोजपुरी की राजनीति।, डॉ. माधुरी रामधारी बनूं विश्व हिंदी सचिवाल


 गणेश एनदेवी का भाषा सर्वेक्षण और भोजपुरी की राजनीति

डॉ. अमरनाथ शर्मा

            प्रोगणेश एन. देवी ने एन.डी.टी.वी. के एक कार्यक्रम में रवीश कुमार के साथ बातचीत करते हुए जबसे कहा है कि भोजपुरी, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई भाषा है. तब से भोजपुरी को संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने की मांग करने वालों के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं. सोशल मीडिया पर प्रो. देवी का उक्त उद्धरण बार बार उछाला जा रहा हैजबकि प्रोगणेश एन.देवी ने आठवीं अनुसूची का जिक्र तक नहीं कियाभोजपुरी के संबंध में उनकी उक्त अवधारणा का आधार क्या है ? क्यों अंग्रेजी सबसे तेजी से बढ़ती हुई भाषा नहीं है जबकि भारत जैसे देश में यह विदेशी भाषा प्राथमिक कक्षाओं से ही अनिवार्य हो चुकी है ?  इस अंग्रेजी के बगैर इस देश में आज कोई नौकरी नहीं मिल सकती. इस बारे में गणेश एनदेवी मौन हैं. मुझे लगता है कि एक भोजपुरी भाषी रवीश कुमार से संवाद करते हुए सहज ही उनकी जबान से यह वाक्य निकल गयावर्ना दुनिया में बहुत सी भाषाएं हैं जो भोजपुरी की तुलना में अधिक तेजी से विकास कर रही हैंखुद खड़ी बोली हिन्दी जिस रफ्तार से विकसित और प्रतिष्ठित हुई हैवह एक मिशाल हैजबकि भोजपुरी और खड़ी बोली हिन्दी की उम्र लगभग समान ही है.

            बहरहालगणेश एनदेवी के नेतृत्व में किया गया भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण पीपल्स लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया )आजाद भारत की एक बड़ी उपलब्धि हैइसके पहले ब्रिटिश काल में एक अंग्रेज आई.सी.एस. जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने भारतीय भाषाओं का सर्वेक्षण किया था. 30 वर्ष तक लगातार सर्वेक्षण करने के बाद सन् 1928 में उनका कार्य लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया नाम से 11खण्डों में प्रकाशित हुआ थाभाषा के अध्येताओं के लिए स्रोत के रूप में आज तक ग्रियर्सन का ही शोध-कार्य उपलब्ध थाआज फिर से प्रोगणेश एन. देवी ने प्रमाणित कर दिया कि शोध के क्षेत्र में सांस्थानिक प्रयासों की तुलना में वैयक्तिक प्रयास कहीं अधिक सफल और प्रामाणिक सिद्ध हुए हैं. 90 खंडों में प्रकाशित होने वाले अपने सर्वेक्षण में गणेश एन. देवी और उनकी टीम ने 780 भाषाओं का सर्वेक्षण किया है और उनके इस कार्य में 10 वर्ष का समय लगा है.
            रवीश कुमार ने विगत अगस्त को अपने कार्यक्रम का आरंभ करते हुए कहा जब भी हम सुनते हैं कि भाषाएं मर रही हैं तो आम समाज में इन खबरों को लेकर किसी को अफसोस करते हुए नहीं देखा गयालोगों को लड़ते हुए जरूर देखा कि हमारी भाषा आठवीं अनुसूची मे नहीं आई और उनकी भाषा क्यों आ गई.
            रवीश कुमार से बातचीत करने के दौरान भी और अपने सर्वेक्षण में भी गणेश एनदेवी की मुख्य चिन्ता यह है कि भारत भाषाओं का कब्रिस्तान बनता जा रहा है.”  पिछले 50 वर्षों में भारत की 250 भाषाएं मर चुकी हैं और अगले 50 वर्षों में भारत की लगभग 400 भाषाओं के विलुप्त हो जाने का खतरा हैयह कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक भाषा के मर जाने का मतलब होता है एक पूरी जाति का मर जाना.

            भोजपुरी को संविधान का आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करने वालों को गणेश एनदेवी की मुख्य चिन्ता से कोई लेना देना नहीं है. आखिर जो भाषाएं मरने के कगार पर खड़ी हैं उन्हें कैसे बचाया जाए ? किन्तु भोजपुरी की राजनीति करने वालों को तो हर हाल में अपना ही स्वार्थ दिखाई देता हैगणेश एन. देवी ने भोजपुरी को तेजी से विकसित होने वाली भाषा कहामानो उसेआठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रस्तावित कर दिया. आठवीं अनुसूची में शामिल होना तो आरक्षण की तरह हैजो जातियां आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सबसे ज्यादा पिछड़ी हैं उन्हें आरक्षण का लाभ देकर उन्हें मुख्य धारा में लाना सरकार का उद्देशय होता है.  इस तरह जो भाषाएं मरने के कगार पर खड़ी हैंआरक्षण का लाभ तो उन्हें मिलनी चाहिएसबसे तेजी से विकसित होने वाली भाषा को आरक्षण की क्या जरूरत ?
            भोजपुरी की राजनीति करके अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने वाले लोग किस तरह देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं इसका उदाहरण जन भोजपुरी मंच नामक संगठन का निम्न आह्वान है भोजपुरी के लड़ाई खाली भोजपुरी के लड़ाई ना हवेइ सगरी भारतीय भसवन के सम्मान के लड़ाई ह. “.   जय भोजपुरी बोली ले जाजय भोजपुरी के मतलब ह सगरी भारतीय भासन के जय.”

वास्तव में भोजपुरी को संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने की मांग अर्थ है हिन्दी परिवार से बँटवारा करके अपना अलग घर बसा लेने की मांगयह भला सभी भारतीय भाषाओं के सम्मान की लड़ाई कैसे है ? इतना ही नहींएक ओर भोजपुरी की लड़ाई को सारी भारतीय भाषाओं का सम्मान कहना तो वहीं दूसरी ओर यह कहनाकि  भोजपुरी दुनिया की सबसे मीठी भाषा है. जिसका विकल्प कोई भाषा नहीं हो सकती.”  इस तरह का कथन दूसरी भाषाओं की उपेक्षा और उनका अपमान है हर व्यक्ति को अपनी भाषा सबसे अधिक प्रियमीठी और सरल लगती हैमुझे खुद बांग्ला का माधुर्य मुग्ध कर देता है.

    डॉअमरनाथ
संयोजकहिन्दी बचाओ मंच एवं पूर्व प्रोफेसरकलकत्ता विश्वविद्यालय
           e-mail : amarnath.cu@gmail.com, M: 9433009898   

                                                                                      
  

विश्व हिंदी समाचार से साभार
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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