नव वर्ष पर साहित्य-सरिता की शुभारंभ
'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' पिछले आठ वर्षों से हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार के लिए निरंतर कार्यरत है। भाषा और साहित्य के बीच एक सेतु स्थापित करने के उद्देश्य से 'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' के इस मंच पर नव वर्ष - 2021 से 'साहित्य-सरिता' का शुभारंभ किया जा रहा है। 'साहित्य - सरिता' के अंतर्गत देश-विदेश के चुनिंदा साहित्यकारों की किसी एक छोटी रचना की प्रस्तुति के साथ-साथ लेखक कवि आदि का चित्र तथा संक्षिप्त परिचय भी प्रस्तुत किया जाएगा। इस कड़ी के प्रथम पुष्प के रूप में वरिष्ठ कवि गुरुवर सुधाकर मिश्र जी की कविता व संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।------------------------------------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ---------------------------- डॉ. सुधाकर मिश्रडॉ. सुधाकर मिश्र हिंदी के एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार हैं। अब तक आप की बारह काव्य कृतियां और दो आलोचना ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैैं। उत्कृष्ट साहित्य-सृजन के लिए आपको राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। भाव एवं विचार, यथार्थ तथा कल्पना के स्पृहणीय मिश्रण के कारण आप की रचनाएं बहुत आकर्षक हो गई हैं। समाज तथा संस्कृति के गरिमामय चित्रण ने उन्हें हर दृष्टि से उपादेय बना दिया है। छंदबद्धता के कारण इनकी रचनाओं में प्रवाह तथा हृदयस्पर्शिता आ गयी है। मानव प्रेम तथा राष्ट्रीयता ने इनकी कविताओं को पाठकों को प्रभावित करने में सक्षम बना दिया है।कविता
अपने परिश्रम की कमाई पर गर्व कर लेना
बाप दादा की कमाई पर गर्व मत करना।
गर्व उस हाथ पर करना जो दिया करता है
कभी फैले हुए हाथों पर गर्व मत करना।।
लगाये बाग के फूलों पर गर्व करना,पर
उगाये राह के शूलों पर गर्व मत करना।
कड़े संघर्ष के घावों पर गर्व कर लेना
फूल को रौंदते पांवों पर गर्व मत करना।
गर्व करना किसी गिरते को बचा लेने पर
किसी बचे को गिराने पर गर्व मत करना।
गर्व करना सदा आशीष की दिलेरी पर
दिये शापों की कुबेरी पर गर्व मत करना।
गर्व करना तो पक्षियों को बसेरा देकर
बसे पक्षी को उड़ाने पर गर्व मत करना।
गर्व करना किसी भूखे को खिला कर रोटी
रोटियां छीन कर भूखों की गर्व मत करना।
-- डॉ सुधाकर मिश्र-----------------------------------------------
अपनी भाषाओं को अपनाएँ,
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
वैश्विक हिंदी सम्मेलन
नव वर्ष !
तुमको आना था, तो आ गए,
इसमें क्या है हर्ष !
पिछले वर्ष आए थे,
तब क्या किया?
जो अब करोगे,
क्या पाया हमने,
पाकर तुम्हारा स्पर्श !
तुमको आना था, तो आ गए !
क्या है इसमें हर्ष !
नव वर्ष
पहले जब तुम आए थे !
तब भी मनाया था जश्न,
कितनी ही पाली थी उम्मीदें,
प्रकट किया था हर्ष,
तब कितना गम दिया,
अब क्या दोगे ?
तब भी था संघर्ष,
अब भी है संघर्ष !
नव वर्ष
तुमको आना था, तो आ गए !
क्या है इसमें हर्ष !
नव वर्ष
तुम तो हो ही नहीं,
तुम कभी थे भी नहीं,
काल-चक्र की कल्पना से जन्मे हो,
मात्र हमारी संवेदना के सपने हो
जब तुम हो ही नहीं,
तो किसीका क्या करोगे,
तुमसे नहीं, खुद से ही होगा
अपना उत्कर्ष या अपकर्ष
नव वर्ष
तुमको आना था, तो आ गए,
क्या है इसमें हर्ष !
नव वर्ष
सबका अवसान, अनिश्चित दिन ,
पर तुम्हारा तो निश्चित है दिन,
हर कल, कल हो जाएगा,
जाओगे तुम हर दिन, गिन-गिन
हर शख्स समय का मीत है,
जैसे ही आया इक्कीस
बीस को सबने भुला दिया,
कल तक जो बीस के संग थे,
जाते ही धत्ता बता दिया,
मतलब की ये दुनिया.
कभी अर्श, तो कभी है फर्श,
नव वर्ष
तुमको आना था, तुम आ ही गए ,
आशा है इस बार, बरसाओगे हर्ष !
डॉ. एम. एल. गुप्ता 'आदित्य'
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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मीडिया प्रभारी
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