बुधवार, 27 जनवरी 2016

हिन्दी टाइपिंग नहीं आती तो नहीं बढ़ेगा वेतन, हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला


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Posted by: Hariraam <hariraama@gmail.com>
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

हिन्दी टाइपिंग नहीं आती तो नहीं बढ़ेगा वेतन, हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला


हिन्दी टाइपिंग नहीं आती तो नहीं बढ़ेगा वेतन, हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

  • योगेश सोनी
  • Nov 25, 2015, 06:05 AM IST
हिन्दी टाइपिंग नहीं आती तो नहीं बढ़ेगा वेतन, हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला


​ मैं तो अभी भी हिंदी सीख रहा हूँ - जापान के हिंदी विद्वान प्रो. तोशियो तनाका।




मैं तो अभी भी हिंदी सीख रहा हूँ - जापान के हिंदी विद्वान प्रो. तोशियो तनाका।
('हिंदुस्तानी प्रचार सभा द्वारा हिंदी के विदेशों से पधारे विद्वानों के साथ संवाद का कार्यक्रम)
 c76b1ea0-4deb-4d99-94cb-a4412a048344 मुंबई में पधारे कई विदेशी विद्वानों के साथ चर्चा के लिए 'हिंदुस्तानी प्रचार सभा द्वारा एक कार्यक्रम  आयोजित  किया गया जिसमें मुंबई के कई हिंदी सेवी, हिंदी के साहित्यकार, पत्रकार हिंदी-प्रेमी और विदेशों से  आकर हिंदी  सीख रहे  विद्यार्थी भी सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में अध्यक्ष पद से बोलते हुए जापान के हिंदी  विद्वान प्रो. तोशियो तनाका  ने सभा के  विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा, ' भाषा सीखना एक सतत्  प्रक्रिया है, और मैं तो अभी भी हिंदी सीख रहा  हूँ ।'  उन्होंने विद्यार्थियों और उपस्थित विद्वानों के प्रश्नों के  उत्तर देते हुए विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।  श्री  लंका के प्रो. प्रो. उपल रंजीत ने अपने वक्तव्य  की रोचक शुरुवात यह कह कर की, ' मैं रावण के देश से आया हूँ, पर किसी  का  हरण करने के लिए नहीं।' उन्होंने  भारत में हिंदी अध्ययन और श्री लंका में हिंदी शिक्षण के अपने अनुभवों की जानकारी  दी।  कनैडा से पधारे प्रो,  शरण घई ने कनैडा में हिंदी शिक्षण और पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की प्रतिकूल स्थितियों और  अनुभवों  से  अवगत करवाया। जापान से पधारे विद्वान हिदेआँकि इशिदा तथा जर्मनी से पधारे विद्वान प्रो.विपुल गोस्वामी   ने भी  अपने अनुभव बांटे ।

 कार्यक्रम में विशेष रूप से दिल्ली से पधारे साहित्यकार सुरेश ऋतुपर्ण तथा वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव ने  जापानी हिंदी विद्वान प्रो. तोशियो तनाका के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को उजागर किया। देहरादून से  पधारे कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने कविता के माध्यम से अपने उद्गार व्यक्त किए । इसके पूर्व हिंदुस्तानी प्रचार  सभा के ट्रस्टी फिरोज पैच ने अतिथियों का स्वागत किया और सभा कि विशेष कार्य अधिकारी डॉ. सुशीला  गुप्ता ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार नंद किशोर नौटियाल, वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ. एम.एल.गुप्ता 'आदित्य', साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव आदि उपस्थित थे।246c9d67-e707-41d4-abf6-6cfab939d1ed

कार्यक्रम का संचालन रईस अंसारी ने किया और आभार ज्ञापन राकेश त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में 'हिंदुस्तानी प्रचार सभा की हिंदी शिक्षिका सरोजनी जैन तथा अनुसंधान अधिकारी डॉ रीता कुमार ने सहभागिता की। कार्यक्रम के आयोजन में  प्रज्ञा गान्ला, रोहिणी जाधव, अपर्णा नवघणे का विशेष  योगदान रहा।
विदेशों में हिंदी के दूत बनकर हिंदी का प्रसार कर रहे विद्वानों के साथ संवाद का यह कार्यक्रम न केवल रोचक था बल्कि ज्ञानवर्धक भी था।
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प्राप्त पत्रिकाएँ

   

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in
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भारतीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 'भारतीय-भाषा मंच' का गठन'




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आइए अपनी भाषाओं को व्यवहार, व्यापार और सरकार की भाषाएँ बनाने का प्रयास करें।
जय हिंद की भाषा !
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वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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सोमवार, 18 जनवरी 2016

भोपाल ने दिखाया- भाषा को कैसे 'सेलिब्रेट' किया जाता है! बालेन्दु शर्मा दाधीच



भोपाल ने दिखाया- भाषा को कैसे 'सेलिब्रेट' किया जाता है!

बालेन्दु शर्मा दाधीच
19 सितंबर 2015    नई दिल्ली

अनेक विद्वानों ने अनेक कोणों से दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन की आलोचना की है। नकारात्मकता का यह उद्घोष भी कहीं न कहीं हिंदी भाषा-संसार की सकारात्मकता और जीवंतता की ओर संकेत करता है। मैं ऐसे विद्वानों से क्षमायाचना सहित अपनी मतभिन्नता दर्ज करना चाहूँगा। मैंने बहुत अधिक विश्व हिंदी सम्मेलन तो प्रत्यक्ष नहीं देखे, किंतु पिछले तीन सम्मेलनों (न्यूयॉर्क, जोहानीसबर्ग और भोपाल) के अपने अनुभव के आधार पर मैं भोपाल के आयोजन को बेहद उत्कृष्ट मानता हूँ। ऐसा नहीं कि इस बार के सम्मेलन में कोई कमियाँ नहीं रहीं। वे अवश्य थीं, जैसी कि हर बार होती हैं। लेकिन सम्मेलन की विशेषताओं और सफलताओं के सामने मुझे उनकी कोई विशेष अहमियत प्रतीत नहीं होती। भोपाल ने अद्वितीय आयोजन करके दिखाया है। मेरी स्मृति में इतना भव्य, व्यापक और सुप्रबंधित कोई अन्य आयोजन नहीं दिखता, सिवाय माइक्रोसॉफ्ट के सिएटल (अमेरिका) स्थित मुख्यालय में आयोजित एमवीपी समिट के, जिसमें भाग लेने का मौका मुझे कोई आठ साल पहले मिला था। लेकिन वह दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी थी जो तकनीकी लिहाज से सर्व-सक्षम थी।
भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन ने हमें सिखाया है कि अपनी भाषा का उत्सव कैसे मनाया जाता है। अंग्रेजी में जिसे अपनी भाषा को 'सेलिब्रेट' करना कहते हैं। हमारे किसी राज्य या शहर ने पहले कभी किसी भारतीय भाषा को इस अंदाज में सेलिब्रेट किया हो, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है। आजादी के बाद से हिंदी परस्पर विरोधाभासी भावनाओं के बीच पिसती रही है। एक वर्ग उसकी उपेक्षा से चिंतित है और दूसरा उसे थोपे जाने से। कोई 'पिछड़ेपन' के इस प्रतीक से मुक्ति के लिए छटपटा रहा है। अफ़सरशाही, मीडिया और पश्चिमपरस्तों ने कुछ ऐसा माहौल बना दिया है कि हिंदी-भाषी व्यक्ति सार्वजनिक रूप से हिंदी का अख़बार पढ़ते हुए, स्कूलों में अपने बच्चों से हिंदी में बात करते हुए और दफ़्तरों में हिंदी बोलते हुए संकोच का अनुभव करने लगा है। और ऐसे माहौल में हम अपनी भाषा के गौरव को महसूस करने की बात करते हैं! भोपाल ने हिंदी के गौरव की लंबी-चौड़ी बातें नहीं कीं। उसने प्रत्यक्ष दिखाया है कि किसी भाषा के प्रति गौरव महसूस करना वास्तव में क्या होता है।

भोपाल ने ऐसा माहौल रच दिया था कि हिंदी के प्रति गौरव का भाव स्वतः आता था। शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसे वहाँ अंग्रेज़ी बोलने की आवश्यकता महसूस हो रही हो और हिंदी के प्रति हीनता का भाव प्रतीत हुआ हो। क्या आज हिंदी को सबसे बड़ी आवश्यकता इसी आत्म गौरव को जगाने की नहीं है? क्या हिंदी भाषियों को हिंदी की हीनता के भाव से मुक्ति दिलाना हमारा पहला लक्ष्य नहीं है? यदि हाँ, तो भोपाल को बधाई दीजिए कि उसने यह लक्ष्य हासिल करके दिखा दिया।

दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान भोपाल मध्य प्रदेश की नहीं बल्कि हिंदी की राजधानी प्रतीत हो रहा था। अगर आप भाषा और साहित्य के लिए समाज में किसी गौरवशाली स्थान की कल्पना करते हैं तो आपको भोपाल जाना चाहिए था। भोपाल में यह सपना जीवंत हो गया था। हवाई अड्डे से आयोजन स्थल तक मार्ग में जगह-जगह विद्वानों का स्वागत करते अनगिनत बैनर और पोस्टर, चौराहों पर तुलसीदास से लेकर प्रेमचंद और माखन लाल चतुर्वेदी से लेकर अज्ञेय तक हिंदी के महान रचनाकारों के विशाल चित्र, और अखबारों में हिंदी पर केंद्रित बड़े-बड़े परिशिष्ट एक आश्चर्यजनक, अविश्वसनीय किंतु आह्लादित कर देने वाला अनुभव था। दुकानों के नामपट्ट हिंदी में बदल दिए गए थे, रास्तों के नाम हिंदी में थे। जिधर देखिए, हिंदी उत्सव मनाती दिख रही थी। समापन समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ़ से कही गई इस बात में अतिशयोक्ति नहीं थी कि आज पूरा भोपाल हिंदीमय है। यहाँ के ताल-तलैया, शिखर-शिखरिया सब हिंदीमय हैँ।
इसे आप भले ही भव्यता और आडंबर कह लें, लेकिन भोपाल ने ऐसा माहौल रच दिया था कि हिंदी के प्रति गौरव का भाव स्वतः आता था। शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसे वहाँ अंग्रेज़ी बोलने की आवश्यकता महसूस हो रही हो और हिंदी के प्रति हीनता का भाव प्रतीत हुआ हो। क्या आज हिंदी को सबसे बड़ी आवश्यकता इसी आत्म गौरव को जगाने की नहीं है? क्या हिंदी भाषियों को हिंदी की हीनता के भाव से मुक्ति दिलाना हमारा पहला लक्ष्य नहीं है? यदि हाँ, तो भोपाल को बधाई दीजिए कि उसने यह लक्ष्य हासिल करके दिखा दिया। इस शहर ने इन आयोजनों को भारत में ही स्थायी रूप से आयोजित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है। अगर सभी राजधानियाँ हिंदी को इसी तरह का गौरव और सम्मान दे सकें तो क्या बात हो!
विश्व हिंदी सम्मेलन को केंद्र और राज्य सरकारों से जैसी अहमियत इस बार मिली, वैसी इंदिरा गांधी के दौर के बाद कभी नहीं मिली। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन का उद्घाटन किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनके सहयोगी मंत्री जनरल. डॉ. विजय कुमार सिंह कई सप्ताह से तैयारियों में जुटे थे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद राज्य स्तर पर सारे इंतजाम की देखरेख कर रहे थे। सुषमा स्वराज ने इस सिलसिले में भोपाल के कई दौरे किए और सम्मेलन शुरू होने से कुछ दिन पहले से वहाँ मौजूद थीं। मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री और पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री की प्रत्यक्ष भूमिका रही। राज्यसभा सदस्य अनिल माधव दवे, मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव और लोकसभा सदस्य आलोक संजर दिन-रात प्रबंधन के काम में जुटे रहे। उसके बाद भोपाल के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों- माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय और अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने जमीनी स्तर पर हुई तैयारियों, योजनाओं, ढाँचागत विकास और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय (वर्धा) और केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा) ने सम्मेलन की विषय-वस्तु के साथ-साथ प्रदर्शनियों और प्रकाशनों के जरिए अहम योगदान दिया। चारों संस्थानों के प्रमुख- बीके कुठियाला, मोहन लाल छीपा, गिरीश्वर मिश्र और कमल किशोर गोयनका शुरूआती तैयारी के समय से ही जुड़े रहे और सम्मेलन के समापन तक दौड़-धूप करते दिखाई दिए।
दिल्ली में विदेश विभाग ने एक अलग प्रकोष्ठ स्थापित किया था। सम्मेलन में भागीदारी करने से पहले लगता था कि इतने सारे पक्ष मिलकर विश्व हिंदी सम्मेलन का क्या हाल करेंगे? सबकी अपनी-अपनी प्राथमिकताएँ, अपना-अपना सोच, अपने-अपने तौर-तरीके और अपना-अपना अहं। लेकिन सम्मेलन में जाने पर अहसास हुआ कि इतने सारे लोगों को सम्मेलन की व्यवस्था से जोड़ना कितना उपयोगी रहा।
अगर केंद्र और राज्य सरकार के बीच यह उत्कृष्ट तालमेल न होता, यदि जमीनी स्तर पर सैंकड़ों छात्रों और दर्जनों शिक्षकों को न लगाया जाता, यदि मध्य प्रदेश सरकार और भोपाल नगर निगम ने इसे प्रतिष्ठा और गौरव का प्रश्न न बनाया होता तो चार-पाँच हजार लोगों की भागीदारी वाला यह आयोजन इस किस्म की उत्कृष्टता की छाप नहीं छोड़ सकता था। किसी बड़े आयोजन का प्रबंधन कैसे किया जाना चाहिए, इसे भोपाल ने बखूबी सिखाया है। इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद कहीं कोई अफरा-तफरी नहीं, कहीं कोई कुव्यवस्था नहीं, कहीं किसी चीज़ की कमी नहीं। हजारों लोगों का भोजन इतनी सुगमता से हो जाता था कि आश्चर्य होता था। न पानी की कमी, न जन-सुविधाओं की। सभी प्रतिनिधियों के पंजीकरण के लिए कई केबिन लगे थे जहाँ कंप्यूटर से आपका नाम खोजकर तुरंत प्रतिभागी कार्ड हाथ में थमाने के लिए बेताब स्वयंसेवक मौजूद थे। कोई मदद चाहिए तो आपके सहयोग के लिए तत्पर। कहीं इधर-उधर होने या बहाना बना देने की प्रवृत्ति नहीं दिखी। मैंने इसे प्रत्यक्ष आजमाया था।
हिंदी के जिन विद्वानों और विशेषज्ञों को सम्मेलन में भाग लेने का मौका मिला, उनके लिए यह अविस्मरणीय अनुभव था। मध्य प्रदेश सरकार को ऐसे जुटी थी जैसे हर मंत्री और अधिकारी के घर का अपना आयोजन हो। मुख्यमंत्री और उनके सहयोगियों के बीच इस आयोजन को लेकर भावुकता दिखाई देती थी। अब भले ही आप इसे व्यापम से जोड़ लें या फिर बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से लेकिन भोपाल के आयोजन में कुछ बात थी! अन्यथा हमने कब ऐसा देखा था कि किसी आयोजन में रवानगी से पहले ही टिकट के साथ-साथ आधिकारिक रूप से यह सूचना दी जाए कि भोपाल में आपके साथ फलाँ छात्र को सहायक के रूप में नियुक्त किया गया है और फलाँ वाहन चालक एक वाहन लेकर हमेशा आपके साथ रहेगा। हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि धन खर्च कर कोई भी सरकार ऐसा कर सकती है। लेकिन यदि दिल्ली से रवानगी के पहले खुद विदेश मंत्री के कार्यालय से फोन कर आपसे पूछा जाए कि क्या आपको टिकट और अन्य चीजें मिल गई हैं और क्या भोपाल में आपके लिए नियुक्त सहायक ने आपसे फोन पर बात कर ली है तो? दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुँचकर चेक-इन कराने लगते हैं तो एअर इंडिया के अधिकारी बताते हैं कि आपका तो पहले ही 'वेब चेकिन' किया जा चुका है। आपको इस काम में समय लगाने की जरूरत नहीं है, बोर्डिंग पास लीजिए और सुरक्षा जाँच के लिए बढ़िए। उत्कृष्ट प्रबंधन और मेहमाननवाजी की इससे बेहतर मिसाल कहाँ मिलेगी, वह भी किसी हिंदी आयोजन के संदर्भ में, कृपया बताएँ। इसकी तुलना न्यूयॉर्क से कीजिए जब भारत से गए प्रतिनिधि घंटों तक पंक्तिबद्ध खड़े होकर यह स्पष्ट होने का इंतजार करते रहे थे कि उन्हें रहना कहाँ है। और सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन में रूसी विद्वान वारान्निकोव तथा कमलेश्वर जी को कैसे अपमान का अहसास हुआ था, याद है आपको! भोपाल में ऐसी कोई घटना नहीं हुई। हिंदी और उसके साधकों को वहाँ यदि कुछ मिला तो वह था- स्नेह और सम्मान।

मुझे लगता है कि दोनों सरकारों के उस संकल्प और उन सैंकड़ों अधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं की मेहनत के साथ हम बड़ी नाइंसाफी कर रहे हैं अगर हम कतिपय छोटी चूकों और लापरवाहियों को बहुत बड़े आकार में पेश कर सम्मेलन को नाकाम सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि एक लेखक और पत्रकार के रूप में घटनाक्रम की निष्पक्ष तसवीर पेश करना हमारा कर्तव्य है।

भोपाल में हवाई अड्डे से आयोजन स्थल तक पहुंचने के मार्ग में आप चारों ओर हिंदी का जो सम्मान देखते हैं, वह आपको सम्मेलन की शुरूआत से पहले ही भावुक कर देता है। मुझे लगता है कि दोनों सरकारों के उस संकल्प और उन सैंकड़ों अधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं की मेहनत के साथ हम बड़ी नाइंसाफी कर रहे हैं अगर हम कतिपय छोटी चूकों और लापरवाहियों को बहुत बड़े आकार में पेश कर सम्मेलन को नाकाम सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि एक लेखक और पत्रकार के रूप में घटनाक्रम की निष्पक्ष तसवीर पेश करना हमारा कर्तव्य है।
अब बात प्रधानमंत्री के भाषण की। कुछ विद्वानों ने लिखा कि उन्होंने यह कहा कि दुनिया में सिर्फ तीन भाषाएँ बच जाएंगी। क्षमा करें, मैं वहाँ मौजूद था और प्रधानमंत्री का भाषण तो रिकॉर्ड होकर विश्व हिंदी सम्मेलन की वेबसाइट पर उपलब्ध है, जरा उसे देख तो लीजिए। श्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आज के तकनीकी दौर में, आगे चलकर जिन तीन भाषाओं का दबदबा रहने वाला है, वे हैं- अंग्रेजी, मंदारिन और हिंदी। यह वही बात है जो तकनीकी विश्व में एरिक श्मिट (गूगल के चेयरमैन) समेत बहुत से दिग्गज कह रहे हैं। हिंदी भाषा पर मोदी जी का अधिकार है, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन वे भाषा को एक विश्लेषक की दृष्टि से भी देखते हैं और उसके बारे में उनकी एक अलग मौलिक दृष्टि है, इसका अनुमान सम्मेलन से पहले मुझे नहीं था। भाषा पर उनका भाषण न सिर्फ रुचिकर था बल्कि जमीन से जुड़ा हुआ था। उन्होंने कहा कि गुजरात में जब कोई झगड़ता है तो हिंदी में बोलने लगता है। यह एक तथ्य है, जिसका जिक्र उन्होंने विनोदपूर्ण ढंग से किया था। आशय यह था कि जैसे कोई हिंदी भाषी व्यक्ति खास परिस्थितियों में अंग्रेज़ी बोलना अधिक प्रतिष्ठा का विषय समझता है उसी तरह कुछ अन्य भारतीय भाषाएँ बोलने वाले लोग हिंदी में बोलना प्रतिष्ठा का प्रश्न समझते हैं। झगड़ा होगा तो वे हिंदी में बोलने लगेंगे ताकि बात में ज़्यादा वज़न आए। मैं एक राजस्थानी होने के नाते इस तरह का अनुभव स्वयं अनेक बार कर चुका हूँ। दिल्ली में एक आयोजन में जब यह कहा जा रहा था कि हिंदी पच्चीसेक साल में खत्म हो जाएगी, तब मैंने असहमति दर्ज करते हुए कहा था कि आज अगर एक धारा हिंदी से अंग्रेजी की ओर बह रही है तो दूसरी धारा भारतीय भाषाओं से हिंदी की तरफ भी बह रही है। अगर हिंदी कुछ लोगों को खो रही है तो बहुत से नए लोगों को जोड़ भी रही है। हिंदी की बोलियाँ बोलने वाले इसका एक उदाहरण हैं। मैं जब अपने गांव जाता हूँ तो राजस्थानी में बोलता हूँ लेकिन वहाँ के बच्चे मुझे हिंदी में जवाब देते हैं। कारण? उन्हें लगता है कि दिल्ली से आए व्यक्ति के साथ राजस्थानी की बजाए हिंदी में बात करेंगे तो ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। मोदी जी ने क्या गलत कहा?
जो अहम बात प्रधानमंत्री ने कही और जिसकी उपेक्षा कर दी गई, वह यह थी कि हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं को एक-दूसरे के करीब लाने के लिए आवश्यक है कि तमिल, तेलुगू आदि भाषा-भाषियों को यह अहसास कराया जाए कि हिंदी उनके लिए अंग्रेज़ी जैसी चुनौती नहीं है। परस्पर साहचर्य और मेल-मिलाप का एक अच्छा सुझाव भी उन्होंने दिया और वह यह कि हिंदी अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करे तथा अन्य भारतीय भाषाएँ हिंदी के शब्द ग्रहण करें। जैसे हिंदी तमिल के और तमिल हिंदी के। कितना अच्छा सुझाव है यह? यदि हम ऐसा करेंगे तो क्या दोनों भाषाओँ के समृद्ध नहीं करेंगे? दोनों भाषाओं को एक-दूसरे के करीब लाने का कितना सुगम मार्ग हो सकता है यह?
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के बारे में जो टिप्पणी इस सम्मेलन में की, वैसी पिछले कई दशकों में नहीं सुनी गई। क्या हम हिंदी वालों को इस टिप्पणी के लिए उनका अभिनंदन नहीं करना चाहिए? माना कि लक्ष्य बहुत दूर है और आम तौर पर सरकारी तंत्र खुद ही हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के मार्ग में आ जाता है, लेकिन यह कम साहसिक नहीं है कि देश का गृह मंत्री तमाम विवादों के बावजूद सार्वजनिक मंच से हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात करता है। हमें उनके बयान को ताकत देनी चाहिए या आलोचनाओं से उन्हें हतोत्साहित करना चाहिए?
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हिंदी के प्रति जिस किस्म की भावुकता दिखाई और एक आदर्श मेजबान की जैसी भूमिका दुनिया भर से जुटे हिंदी विद्वानों और हिंदी प्रेमियों के प्रति दिखाई वह भी अद्वितीय थी। उन्होंने खुद सम्मेलन के दौरान सत्रों की अध्यक्षता की और वहाँ पारित किए गए अनेक प्रस्तावों पर कम से कम मध्य प्रदेश में तुरंत प्रभाव से अमल करने की घोषणा भी समापन समारोह में ही कर दी। उदाहरण के तौर पर यह कि मध्य प्रदेश में सभी उत्पादों पर हिंदी में भी विवरण अंकित होगा। ऊंची अदालतों में हिंदी का प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश सरकार हाईकोर्ट से चर्चा करेगी। श्री चौहान की वह भावनात्मकता मध्य प्रदेश में हिंदी के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त करती है जो उन्होंने अपने समापन भाषण में दिखाई। लंबे-चौड़े वायदे और घोषणाएँ कोई भी कर सकता है लेकिन वैसी भावुकता जबरदस्ती पैदा नहीं की जा सकती। वह हृदय के भीतर से निकलती है।
केंद्र और राज्य सरकारों ने सम्मेलन के सत्रों को कितना महत्व दिया होगा, वह श्री चौहान, दो राज्यपालों और केंद्र सरकार के मंत्रियों की निरंतर मौजूदगी से स्पष्ट है जिन्होंने हिंदी से जुड़े कुछ सत्रों की खुद अध्यक्षता की और कुछ में दर्शक के रूप में बैठे। सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 'सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी' विषय पर उस सत्र की अध्यक्षता की, जिसमें मैंने भागीदारी की थी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने एक अन्य सत्र की अध्यक्षता की। गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरी नारायण त्रिपाठी ने दो अन्य सत्रों की अध्यक्षता की। विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह अनेक सत्रों में दिखाई देते रहे। मॉरीशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी दुखन लक्ष्मण भी ‘गिरमिटिया देशों में हिंदी’ संबंधी सत्र में निरंतर मंच पर उपस्थित रहीं। उनके भावपूर्ण भाषण के अंत में श्रोताओं ने खड़े होकर अभिनंदन किया। विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस के कार्यकारी महासचिव गंगाधर सिंह सुखलाल ‘गुलशन’ ने प्रभावी उपस्थिति दर्ज की। हिंदी के सम्मेलनों को सरकारों की तरफ़ से इतनी अहमियत दिया जाना हमारे लिए एक नया अनुभव था। लेकिन पता चला कि सुषमा जी और शिवराज सिंह जी चाहते हैं कि सम्मेलन की चर्चाएँ महज रस्म-अदायगी बनकर न रह जाएँ। मंत्री मुद्दों को समझें और जब मंत्री खुद जमीनी मुद्दों से वाकिफ़ होंगे तो सरकार के स्तर पर सम्मेलन के मंतव्यों को गंभीरता से लेना सुनिश्चित होगा। कोई ठोस नतीजा सामने आएगा।

(भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन पर लेखों की श्रृंखला की यह पहली कड़ी है- संपादक)
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
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मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

संपतदेवी मुरारका को “श्रीराजकुमार चोपड़ा मौलिक कृति भागीरथ सम्मान” प्रदत्त





संपतदेवी मुरारका को श्रीराजकुमार चोपड़ा मौलिक कृति भागीरथ सम्मान प्रदत्त
तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी एवं द्वारकादास गोवर्धनदास वैष्णव कॉलेज, चेन्नै के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में दि.9-10 जनवरी 2016 को अरुम्बाक्कम स्थित डी.जी. वैष्णव कॉलेज के सभागार में विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित द्विदिवसीय, चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन एवं सम्मान समारोह में हैदराबाद की लेखिका संपतदेवी मुरारका को श्रीराजकुमार चोपड़ा भागीरथ सम्मान प्रदान किया गया |
     आज यहाँ जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार उद्घाटन और समापन के मुख्य अतिथि रहे क्रमश: डॉ.बालमुकुंद पांडे (राष्ट्रीय संगठन सचिव, नई दिल्ली) और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, महामहिम श्री केशरीनाथ त्रिपाठी | सम्मान समारोह के अवसर पर लेखिका संपतदेवी मुरारका को उनकी मौलिक कृति के लिए श्रीराजकुमार चोपड़ा भागीरथ सम्मान के रूप में पांच हजार एक सौ, शाल, प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिह्न मुख्य अतिथि महामहिम श्री केशरी नाथ त्रिपाठी के करकमलों द्वारा प्रदान किया गया |
     कार्यक्रम का संचालन कमश: मंजू रुस्तगी और श्रावणी भट्टाचार्य ने किया | रविता भाटिया के आभार प्रदर्शन के साथ द्विदिवसीय कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |
प्रस्तुति: संपत देवी मुरारका (विश्व वात्सल्य मंच)
संपतदेवी मुरारका
अध्यक्ष, विश्व वात्सल्य मंच
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद



रविवार, 17 जनवरी 2016

श्रीलाल शुक्ल पर संगोष्ठी आयोजित


प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
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मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

"सार्थक" पत्रिका का नवम्बर-दिसम्बर 2015 अंक प्रकाशित हो चुका हैI कविता वाचकनवी


"सार्थक" पत्रिका का नवम्बर-दिसम्बर 2015 अंक प्रकाशित हो चुका हैI यह पत्रिका आपको हमारी वेबसाइट पर http://www.bookcuriosity.com/saarthak.php नि:शुल्क उपलब्ध है I इसके साथ ही यह बताते हुए अत्यन्त खुशी हो रही है कि “सार्थक” के पहले अंक (नवम्बर 2015) को लगभग पाँच हजार पाठकों ने पढ़ा | “सार्थक” परिवार और Bookcuriosity.com पाठकों से मिले समर्थन से काफी उत्साहित हैं | कई दिक्कतों को झेलते हुए जब पहला अंक प्रकाशित हुआ, तब इसकी कल्पना भी न थी कि पूरी दुनिया से आप सब का ऐसा सहयोग मिलेगा | पहले अंक का अनुभव काफी ‍‍‍उत्साहवर्धक रहा | कई ‌पा‍ठकों के ईमेल एवं दूरभाष पर मिली प्रतिक्रियाओं ने हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ा दी है | 

“सार्थक” वेब पत्रिका का मूल उद्देश्य विश्वभर में फैले हिन्दी भाषा एवं साहित्य से प्रेम करनेवाले लोगों के मध्य एक सम्पर्क सूत्र स्थापित करना हैं | यह सम्पर्क जितना प्रगाढ़ होगा, हिंदी का विकास भी उतनी ही तीव्र गति से होगा | देश विदेश में फैले हिंदी के पाठकों, लेखकों एवं शुभेच्छुओं का सहयोग “सार्थक” का मार्ग प्रशस्त करेगा | पाठकों से अनुरोध है कि वे यह भी बताएँ कि इसे कैसे और बेहतर बनाया जा सकता है | 

“सार्थक” के जनवरी, फरवरी और मार्च 2016 का सम्पादन अमेरिका में रह रहीं भारतीय मूल की, लेखिका डॉ कविता वाचक्नवी करेंगी | जनवरी अंक “विश्व हिन्दी”, फरवरी अंक “निराला” जी एवं मार्च अंक “स्त्री लेखन” पर केन्द्रित होगा | इन तीनो अंकों हेतु आप अपनी रचनाएँ यूनिकोड (12 font size, word format में शुद्ध टंकित) कर कर डॉ. कविता वाचक्नवी के ईमेल-kvachaknavee@hotmail.com या saarthak.editor@gmail.com पर यथाशीघ्र भेजें | रचना के साथ अपना एक चित्र एवं 4-5 पंक्ति मे परिचय भी संलग्न करें। 

आनेवाला कल हिन्दी को विश्व में उसकी असली पहचान दिलाए, यही हम सबकी सोच है | आइए हम सब मिलकर हिन्दी को नई उँचाईयों तक पहुँचाएँ |
पत्रिका को नीचे दिए गये लिंक पर पढ़ सकते हैं  -


- सार्थक परिवार 
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 सादर शुभेच्छु
(डॉ.) कविता वाचक्नवी
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हैदराबाद

प्रेमचंद अग्रवाल, अंबाला, हरियाणा द्वारा राष्ट्रहित और राष्ट्र की भाषाओं के हित में उठाए गए प्रश्न !


प्रेमचंद अग्रवाल, अंबाला, हरियाणा द्वारा 
राष्ट्रहित और राष्ट्र की भाषाओं के हित में उठाए गए प्रश्न !
---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: "Prem Aggarwal" <94.pre...@gmail.com>
दिनांक: 11-12-2015 10:45 PM
विषय: फिल्मों की कास्टिंग का सम्बन्धित भाषा में लिखे जाने बारे
प्रति: <chairper...@nic.in>
Cc: <ceo....@nic.in>

अध्यक्ष,
फिल्म सैंसर बोर्ड,
नमस्कार ,
आजकल लगभग सभी हिन्दी फिल्मों में फिल्म का नाम व कास्टिंग हिन्दी में न होकर अंग्रेजी (रोमन) लिपी में की जाती है! हम यह नहीं कहते कि वह कास्टिंग अंग्रेजी में क्यों करते हैं! हमारा कहना है कि वे हिंदी में क्यों नहीं करते!
इसी प्रकार अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों के लिए भी कास्टिंग सम्बन्धित भाषा में होनी चाहिए साथ में कोई चाहे तो अंग्रेजी में भी करे,  ऐसा हमारा आग्रह है!
क्यों कि आप इस फिल्म क्षेत्र की आधिकारिक संस्था है इस लिए आप से निवेदन है कि आप संबधित लोगों (फिल्म प्रडयूसर्ज व निर्देशक इत्यादि) को इस विषय मे आवश्यक निर्देश जारी करें कि हिन्दी फिल्मों की कास्टिंग हिन्दी में और अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों की कास्टिंग सम्बन्धित भाषा में करें! यदि इसके साथ साथ अंग्रेजी में भी करता है तो करे! जब तक ऐसा न हो फिल्म को प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए!
धन्यवाद
प्रेम चन्द अग्रवाल
हिन्दी प्रचार - प्रसार समिति
अम्बाला शहर
09467909649
**************************************************************************************

Fwd: 
---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: "Prem Aggarwal" <94.pre...@gmail.com>
दिनांक: 09-12-2015 1:39 PM
विषय: केन्द्रीय सरकार की योजनाओं के नामकरण अंग्रेजी आधारित होना
प्रति: <cont...@rss.org>

आपकी जानकारी के लिये! हमारी सरकारी योजनाओं के नाम व देश में उत्पादित वस्तुओं के नामकरण अंग्रेजी भाषा में अथवा अंग्रेजी भाषा आधारित होते जा रहे हैं जो कि कोई गर्व का विषय नहीं!
परम् आदरणीय भैया जी जोशी,
नमस्कार,
श्री मान् जी बड़े पीड़ित मन से लिखना पड़ रहा है कि अपने को राष्ट्रवादी विचारधारा का मानने वालों की सरकार के कार्य कलापों में बहुत कुछ अंग्रेजी आधारित ही हो रहा है! केन्द्र सरकार की योजनाओं के नामकरण अंग्रेजी भाषा को आधार बना कर किये जा रहे हैं! इसका सबसे नया उदाहरण है रेल यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा के लिये "R-MITRA" यानी रेलवे मोबाइल इंस्टैंट ट्रैकिंग रिस्पॉन्स एंड असिस्टेंट एप का लॉंन्च किया जाना! कांग्रेस सरकारों के कार्य काल में भी कम से कम नामों के हिन्दीकरण के प्रति सतर्कता बर्ती जाती थी! आपसे निवेदन है कि सरकार की जानकारी में ये बातें लाई जाएं! कहीं विकास की चकाचौंध में हम अपनी पहचान ही न खो बैठे!
भवदीय 
प्रेम चन्द अग्रवाल 
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Common Law Admission Test में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करने बारे (show original)Jan 6
देश में 16 Law Universities हैं जिनमें दाखिले के लिए CLAT की परीक्षा पास करनी पड़ती है जिसमें अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता है! उन 16 में से एक यूनिवर्सिटी (पटियाला) को हमने इमेल भेजकर मिलने का समय मांगा था लेकिन यूनिवर्सिटी ने कोई जवाब नहीं दिया! आपकी जानकारी के लिए हम इमेल की कापी नीचे दे रहे हैं! कृपया देखिए कि कैसे CLAT से अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया जा सकता है!
देश में 16 Law Universities हैं जिनमें दाखिले के लिए CLAT की परीक्षा पास करनी पड़ती है जिसमें अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता है! उन 16 में से एक यूनिवर्सिटी (पटियाला) को हमने इमेल भेजकर मिलने का समय मांगा था लेकिन यूनिवर्सिटी ने कोई जवाब नहीं दिया! आपकी जानकारी के लिए हम इमेल की कापी नीचे दे रहे हैं! कृपया देखिए कि कैसे CLAT से अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया जा सकता है!
प्रेम चन्द अग्रवाल 

The Vice Chancellor,
Rajiv Gandhi National University of Law, Punjab
Patiala,
Sir,
With due respect, we submit that we are working for the development of the Indian languages in every sphere of national life.  Education, specially the professional courses, is the most important part of it.
Sir,  to get admission in your university the students have to pass CLAT (Common Law Admission Test). In this test the medium is English only. To make the situation worse, the students are also required to answer questions meant to assess their knowledge of English language, whereas there is no test of the knowledge of any Indian language. We are of the opinion that many deserving students are being denied admission in NLUs, because they studied in the media of Indian languages according to the arrangement provided by the government.
Sir, we want to bring it to your kind notice that lawyers are allowed to do legal practice up to the level of district courts in all states in the respective Indian languages. They are allowed to do legal practice in Hindi up to the level of High Courts in the states of Rajasthan, UP, MP and Bihar.
In many states LLB education also is provided in Indian language. Even in the Central University BHU, LLB education is optionally provided in an Indian language Hindi.
On the other hand in none of the Engineering Colleges in this country is the Engineering education provided in any Indian language. Still most of the admission tests for entry into Engineering education is conducted optionally in Indian languages. Way back in 1988, the question paper on English language, was abolished in the admission test for the IITs (JEE). Since 1990 they have been providing question papers in Hindi as well. They had also allowed the students to write answers in various Indian languages since the same year 1990. It is another matter that when the pattern of JEE became multiple choice objective type then the  significance of allowing the students to write answers in various Indian languages vanished.
Many of the prestigious competitive examinations like Civil Services exam (for selection of IAS etc.), JEE (mains) for most of the Engineering colleges, JEE (Advanced) for IITs, AIPMT etc. are conducted in Indian languages. Then why  CLAT should be conducted in English medium alone ?
We request you to use your powers and influence so that
(i)  CLAT is conducted in the medium of Indian languages as well
and
(ii) either the test of English language is abolished from CLAT or it is made optional providing test on Indian languages in the option.
Kindly spare some time, any time convenient to you, for us to put our point of view in this regard.
Thanking you,
Yours Sincerely
Prem Chand Aggarwal 09467909649
Shyam Rudra Pathak
09818216384
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त्योहारों की बधाई अंग्रेजी में या रोमन में देने वासों तो भेजें यह संदेश।


वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in
प्रेमचंद अग्रवाल, अंबाला, हरियाणा द्वारा 
राष्ट्रहित और राष्ट्र की भाषाओं के हित में उठाए गए प्रश्न !
---------- अग्रेषित संदेश ----------

प्रेषक: "Prem Aggarwal" <94.pre...@gmail.com>
दिनांक: 11-12-2015 10:45 PM
विषय: फिल्मों की कास्टिंग का सम्बन्धित भाषा में लिखे जाने बारे
प्रति: <chairper...@nic.in>
Cc: <ceo....@nic.in>

अध्यक्ष,
फिल्म सैंसर बोर्ड,
नमस्कार ,
आजकल लगभग सभी हिन्दी फिल्मों में फिल्म का नाम व कास्टिंग हिन्दी में न होकर अंग्रेजी (रोमन) लिपी में की जाती है! हम यह नहीं कहते कि वह कास्टिंग अंग्रेजी में क्यों करते हैं! हमारा कहना है कि वे हिंदी में क्यों नहीं करते!
इसी प्रकार अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों के लिए भी कास्टिंग सम्बन्धित भाषा में होनी चाहिए साथ में कोई चाहे तो अंग्रेजी में भी करे,  ऐसा हमारा आग्रह है!
क्यों कि आप इस फिल्म क्षेत्र की आधिकारिक संस्था है इस लिए आप से निवेदन है कि आप संबधित लोगों (फिल्म प्रडयूसर्ज व निर्देशक इत्यादि) को इस विषय मे आवश्यक निर्देश जारी करें कि हिन्दी फिल्मों की कास्टिंग हिन्दी में और अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों की कास्टिंग सम्बन्धित भाषा में करें! यदि इसके साथ साथ अंग्रेजी में भी करता है तो करे! जब तक ऐसा न हो फिल्म को प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए!
धन्यवाद
प्रेम चन्द अग्रवाल
हिन्दी प्रचार - प्रसार समिति
अम्बाला शहर
09467909649
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Fwd: 
---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: "Prem Aggarwal" <94.pre...@gmail.com>
दिनांक: 09-12-2015 1:39 PM
विषय: केन्द्रीय सरकार की योजनाओं के नामकरण अंग्रेजी आधारित होना
प्रति: <cont...@rss.org>

आपकी जानकारी के लिये! हमारी सरकारी योजनाओं के नाम व देश में उत्पादित वस्तुओं के नामकरण अंग्रेजी भाषा में अथवा अंग्रेजी भाषा आधारित होते जा रहे हैं जो कि कोई गर्व का विषय नहीं!
परम् आदरणीय भैया जी जोशी,
नमस्कार,
श्री मान् जी बड़े पीड़ित मन से लिखना पड़ रहा है कि अपने को राष्ट्रवादी विचारधारा का मानने वालों की सरकार के कार्य कलापों में बहुत कुछ अंग्रेजी आधारित ही हो रहा है! केन्द्र सरकार की योजनाओं के नामकरण अंग्रेजी भाषा को आधार बना कर किये जा रहे हैं! इसका सबसे नया उदाहरण है रेल यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा के लिये "R-MITRA" यानी रेलवे मोबाइल इंस्टैंट ट्रैकिंग रिस्पॉन्स एंड असिस्टेंट एप का लॉंन्च किया जाना! कांग्रेस सरकारों के कार्य काल में भी कम से कम नामों के हिन्दीकरण के प्रति सतर्कता बर्ती जाती थी! आपसे निवेदन है कि सरकार की जानकारी में ये बातें लाई जाएं! कहीं विकास की चकाचौंध में हम अपनी पहचान ही न खो बैठे!
भवदीय 
प्रेम चन्द अग्रवाल 
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Common Law Admission Test में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करने बारे (show original)Jan 6
देश में 16 Law Universities हैं जिनमें दाखिले के लिए CLAT की परीक्षा पास करनी पड़ती है जिसमें अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता है! उन 16 में से एक यूनिवर्सिटी (पटियाला) को हमने इमेल भेजकर मिलने का समय मांगा था लेकिन यूनिवर्सिटी ने कोई जवाब नहीं दिया! आपकी जानकारी के लिए हम इमेल की कापी नीचे दे रहे हैं! कृपया देखिए कि कैसे CLAT से अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया जा सकता है!
देश में 16 Law Universities हैं जिनमें दाखिले के लिए CLAT की परीक्षा पास करनी पड़ती है जिसमें अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता है! उन 16 में से एक यूनिवर्सिटी (पटियाला) को हमने इमेल भेजकर मिलने का समय मांगा था लेकिन यूनिवर्सिटी ने कोई जवाब नहीं दिया! आपकी जानकारी के लिए हम इमेल की कापी नीचे दे रहे हैं! कृपया देखिए कि कैसे CLAT से अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया जा सकता है!
प्रेम चन्द अग्रवाल 

The Vice Chancellor,
Rajiv Gandhi National University of Law, Punjab
Patiala,
Sir,
With due respect, we submit that we are working for the development of the Indian languages in every sphere of national life.  Education, specially the professional courses, is the most important part of it.
Sir,  to get admission in your university the students have to pass CLAT (Common Law Admission Test). In this test the medium is English only. To make the situation worse, the students are also required to answer questions meant to assess their knowledge of English language, whereas there is no test of the knowledge of any Indian language. We are of the opinion that many deserving students are being denied admission in NLUs, because they studied in the media of Indian languages according to the arrangement provided by the government.
Sir, we want to bring it to your kind notice that lawyers are allowed to do legal practice up to the level of district courts in all states in the respective Indian languages. They are allowed to do legal practice in Hindi up to the level of High Courts in the states of Rajasthan, UP, MP and Bihar.
In many states LLB education also is provided in Indian language. Even in the Central University BHU, LLB education is optionally provided in an Indian language Hindi.
On the other hand in none of the Engineering Colleges in this country is the Engineering education provided in any Indian language. Still most of the admission tests for entry into Engineering education is conducted optionally in Indian languages. Way back in 1988, the question paper on English language, was abolished in the admission test for the IITs (JEE). Since 1990 they have been providing question papers in Hindi as well. They had also allowed the students to write answers in various Indian languages since the same year 1990. It is another matter that when the pattern of JEE became multiple choice objective type then the  significance of allowing the students to write answers in various Indian languages vanished.
Many of the prestigious competitive examinations like Civil Services exam (for selection of IAS etc.), JEE (mains) for most of the Engineering colleges, JEE (Advanced) for IITs, AIPMT etc. are conducted in Indian languages. Then why  CLAT should be conducted in English medium alone ?
We request you to use your powers and influence so that
(i)  CLAT is conducted in the medium of Indian languages as well
and
(ii) either the test of English language is abolished from CLAT or it is made optional providing test on Indian languages in the option.
Kindly spare some time, any time convenient to you, for us to put our point of view in this regard.
Thanking you,
Yours Sincerely
Prem Chand Aggarwal 09467909649
Shyam Rudra Pathak
09818216384
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त्योहारों की बधाई अंग्रेजी में या रोमन में देने वासों तो भेजें यह संदेश।


वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद