भारत-इजराइल संबंधों में गर्म-जोशी की आहट!
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजरायल यात्रा, भारत-इजराइल संबंधों में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। वो भी अब जब इजराइल में नेतान्याहू के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हो चुका है। इस दौरे से जहाँ द्विपक्षीय रिश्ते को एक नए आयाम मिलेंगे, वहीं यह यात्रा हमारे बीच के गहरे और मजबूत सहयोग संबंधों के सभी पहलुओं को अपने में समेटे हुए होगी। पिछले महीने भारत में इजराइल के राजदूत डेनियल कारमोन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजरायल यात्रा को लेकर कहा कि उनकी यह यात्रा ऐतिहासिक और यादगार होगी।
ऐसे में अब यह यात्रा भारत-इजरायल संबंधों में सामरिक दृष्टिकोण से बहुत खास हो गया है कि किन-किन मुद्दों पे दोनों देशों के बीच आपसी सहमती के बाद समझौता होता है? यह यात्रा इसलिए भी खास है क्यूंकि जब हम पीछे की ओर पीछे मुड़कर देखें तोविगत कुछ वर्षों में हमने भारत से इजरायल की यात्रा करने वालों की अधिक संख्या नहीं देखी है, सिर्फ साल2012 में तत्कालिन विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा को छोड़कर। अगर हम एक दशक और उससे अधिक पीछे मुड़कर देखें तो हमने ऐसी अधिक यात्राएं नहीं की हैं। इस बाबत पिछले साल न्यूयार्क में हुई दोनों देशों के मंत्रियों की मुलाकात के दौरान बातचीत हुई थी। यहां तक कि भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की यात्रा के लिए जनवरी 2015 की तारीख भी तय हो गई थी, लेकिन इजराइल में चुनाव प्रस्तावित होने की वजह से इस यात्रा को उस समय के लिए रद्द करना पड़ा था।
बात प्रधानमंत्री के दौरे की हो तो यह मसला और भी खास हो जाता है क्यूंकि सामान्य तौर पर हम अपने अधिकतर रिश्तों में रक्षा मसलों को ही प्रमुखता देते आए हैं। रक्षा संबंधित मसला महत्वपूर्ण जरूर है, लेकिन यह आपसी रिश्ते का एक हिस्सा है ना की भावनात्मक रिश्ते का। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते एक साल में अपने रिकॉर्ड तोड़ विदेशी दौरों भावनात्मक रिश्ते में “मेक इन इंडिया” के सहारे मजबूती पे जोर दिया है जिससे एक साल के अंतर्गत “ब्रांड इंडिया” में चमक आई है। इस भावनात्मक रिश्ते का ही परिणाम था कि जहां पूरी दुनिया 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में सेलिब्रेट करने पे आम सहमत होकर, पहली बार सेलिब्रेट किया। वहीं इजरायल की टीम भी इस अवसर में अपनी भागीदारी देकर गर्व महसूस कर रहा है। एक और भावनात्मक रिश्ता है, जो कि प्राचीन परंपराओं और धर्मों का दुनिया भर में पड़ने वाले बड़े प्रभाव की वजह से है। अगर हम हितों पर नजर डालें तो हम मूल्यों और चुनौतियों को लेकर उत्साहित होते हैं और उसे साझा करते हैं। इतना ही नहीं, हम इस बाबत एक-दूसरे का आदर भी करते हैं। हालांकि, यह काफी नहीं है। हम अभी भी मुख्य रूप से सिर्फ पश्चिमी देशों के साथ काम कर रहे हैं। अभी एक इजरायली उद्यमी या उच्च तकनीकी का अन्वेषक यूएस, कनाडा और आस्ट्रेलिया के बारे में सोचता है, न कि भारत के बारे में। इसमें बदलाव आना चाहिए।
माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के दौरान एक समझौते पर हस्ताक्षर होगा और साथ में हरिद्वार को यरुशलम की तरह विकसीत करने को लेकर सहमती बने और एक-दुसरे की सभ्यता-संस्कृति के आदान-प्रदान के समझौता होगा। उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी हाई टेक्नॉलजी के प्लांट्स, यूनिवर्सिटी आदि का दौरा करेंगे जो कि नौकरशाही के लिए एक संकेत होगा और दोनों देशों के लोगों के संबंधों में सकारात्मक बदलाव आएगा। इससे भारत और इजरायल के ऐसे लोग जो कि इस संशय में हैं कि क्या दोनों देश एक साथ काम करेंगे, दो नेताओं की राजनीतिक इच्छाशक्ति को देखेंगे।
भारत-इजराइल के पिछले एक साल के अंतर्गत द्विपक्षीय रिश्ते का ही परिणाम है कि नेगेव मरुस्थल स्थित बेन गुरियन यूनिवर्सिटी के प्रयोगशाला के प्रोफेसर आमिर सागी के द्वारा इजाद किया हुआ प्रौद्योगिकी जो मीठे पानी की झींगा मछली के उत्पादन में इजाफा करता है। जिसे मैरिन प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डिवेलपमेंट अथॉरिटी (एमपीईडीए) प्रोफेसर सागी के साथ मिलकर इस प्रौद्योगिकी को भारत में झींगा का उत्पादन करने वाले राज्यों के मछली उत्पादकों के बीच लाने की तैयारी कर रही है। जिससे भारत के केरल स्थित मीठे पानी की झीलों में झींगा मछली का उत्पादन करने वाले किसानों की आमदनी में इजाफा होगा। यही तक नहीं, इजरायली विशेषज्ञों ने फसलों की पैदावार उन्नत करने और सिंचाई के लिए जल संरक्षण संबंधित अपने तकनीकी अनुभव को भारतीय किसानों के साथ साझा करने का एक प्रस्ताव भी दिया है। यह संकेत भारत-इजराइल के बीच जानकारियों और तकनीकियों को परस्पर साझा करने की ओर इशारा मात्र नहीं है. यह एक दोनों देशों के बीच परस्पर आपसी सहयोग और भाईचारे के तरफ भविष्य की ओर बढ़ते कदम-ताल के शुभ संकेत है जिसे प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के आगामी इजराइल दौरे से रफ्तार मिलेगा। यह रफ्तार को कायम रखने में सबसे अहम् भूमिका अदा करेगा मोदी सरकार का महत्वाकांक्षी अभियान “मेक इन इंडिया” और “डिजिटल इंडिया”।
- प्रस्तुत कर्त्तासंपत देवी मुरारकाअध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंचलेखिका यात्रा विवरणमीडिया प्रभारीहैदराबाद
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