कादम्बिनी क्लब की
मासिक गोष्ठी संपन्न
कादम्बिनी क्लब
हैदराबाद के तत्त्वावधान में रविवार दि. 18 अगस्त को क्लब की 252 वीं मासिक गोष्ठी हिंदी प्रचार सभा परिसर में आयोजित की गई |
क्लब संयोजिका डॉ.अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी
संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर मदनदेवी
पोकरणा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की | श्रीमती वी.वरलक्ष्मी, श्रीनिवास सावरीकर,
लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, डॉ.अहिल्या मिश्र, जुगल बंग जुगल (विशेष काव्य पाठ
प्रस्तोता) मंचासीन हुए | संपत देवी मुरारका द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई
| डॉ.अहिल्या मिश्र ने क्लब का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि क्लब गुणवत्ता की
ओर – ध्यान देते हुए धीरे-धीरे लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है |
प्रथम सत्र में जुगल बंग जुगल अपनी चुनिन्दा
रचनाओं का पाठ किया, जिसमें कविता-मुक्तक-हायकू शामिल थे | इस पर अपने विचार रखते
हुए डॉ.सीता मिश्र ने कहा कि जुगल जी मन से लिखते हैं, देश में चल रहा तनाव,
महंगाई, मजहब के झगड़े आदि से कवि व्यथित है | वह अनेकता में एकता देखना चाहता है |
रचना में नकारात्मक भाव ज्यादा है | सरल भाषा का प्रयोग है | श्री विजय विशाल ने
कहा कि कवि को मैं साधुवाद देता हूँ | मात्राओं, व्याकरण की ओर ध्यान देना आवश्यक
है | हायकू सुन्दर बन पड़े हैं | श्री सावरीकर ने कहा कि कवि का स्वभाव कविता में
प्रतिबिंबित होता है | कवि देश को सुन्दर, संपन्न, शान्तिप्रिय देखना चाहता है |
श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने प्रमुख वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए कहा कि
कविता अपने आप में टेढ़ी चीज है | आज कविता लिखने के बाद उसे हम दुबारा देखते नहीं जोकि आवश्यक है | रेशिओ ओर प्रपोर्शन
सही हो तो वह चीज सुडौल सुन्दर लगती है, वही कविता में भी होना चाहिए | कविता क्या
है ? क-कल्पना, वि-विचार, ता-तालमेल ! मुक्तक छंद सबसे मुश्किल छंद है | कवि को
छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना होगा | मात्राएँ, वाक्य-विन्यास पर अभ्यास की
आवश्यकता पर बल दिया | डॉ.अहिल्या मिश्र ने कहा बहुत से लोगों को हम मंच पर सुनते
हैं पर लिखित रूप में किसी के सामने कुछ रखते हैं तो कई कमियों का आकलन होता है |
कवि का नीजत्व है देश, समाज, पुरखें आदि | भाषा बोलचाल की, हिंदी-उर्दू मिश्रित है
| अभी कसावट की आवश्यकता है |
डॉ.मदनदेवी पोकरणा ने अध्यक्षीय बात में कहा
कि सरल भाषा है, भाव समझ में आते हैं, देश के प्रति चिंता मुक्तकों में साफ झलकती
है | सुलझे हुए कवि की संभावनाएं नजर आती है | ‘राष्ट्रीय चेतना के स्वर’ विषय पर मदनदेवी
ने कहा कि भारत भूमि मात्र एक राष्ट्र नहीं, एक विचार= जीने की राह-अनेक
राज्यों-भाषाओं-आचार-विचारों-सिद्धांतों का समूह है | राष्ट्रधर्म से बड़ा कोई धर्म
नहीं और राष्ट्रहित सर्वोपरि है | अपने व्यक्तिगत, राजनैतिक, आर्थिक, पारिवारिक
हितों के लिए देश के साथ धोखा नहीं करूँगा की भावना ही शरीर एवं संसार का व्यवहार
सही करायेगी |
तत्पश्चात श्री भंवरलाल उपाध्याय के संचालन
में तथा सावरीकर की अध्यक्षता, विजयविशाल, पवित्रा अग्रवाल के आतिथ्य में कविगोष्ठी
संपन्न हुई | इसमें संपत देवी मुरारका, दीपशिखा पाठक, आशीष कुमार नैथानी, गुनेश्वर
राव, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, मीना मूथा, सुनीता गुप्ता, डॉ.अहिल्या मिश्र,
वि.वरलक्ष्मी, पवित्रा अग्रवाल, डॉ.सीता मिश्र, डॉ.मदनदेवी पोकरणा, दर्शनसिंह,
विजयविशाल, सत्यनारायण काकडा, जुगल बंग जुगल आदि ने काव्यपाठ किया | श्री सावरीकर ने
अध्यक्षीय काव्यपाठ किया | नरहरिदयाल दादू, भूपेन्द्र मिश्र भी इस अवसर पर उपस्थित
थे | मीना मूथा के आभार के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ |
डॉ.अहिल्या मिश्र
क्लब संयोजिका
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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