“कादम्बिनी क्लब की 250 वीं गोष्ठी संपन्न”
कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार दि.16 जून को हिंदी प्रचार सभा परिसर में क्लब की 25o वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन संपन्न हुआ | कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. शुभदा वांजपे (चेअरमन-बोर्ड ऑफ स्टडीज उ.वि.वि.है.) ने की |
क्लब संयोजिका अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर प्रो. अश्विनी कुमार शुक्ला (पं. जवाहरलाल नेहरू महा विद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष बुंदेलखंड-बांदा) मुख्य अतिथि, डॉ. सीता मिश्रा विशेष अतिथि, प्रो. शुभदा वांजपे अध्यक्ष एवं प्रमुख वक्ता तथा डॉ. अहिल्या मिश्र (क्लब संयोजिका) मंचासीन हुए | प्रथम सत्र का संचालन करते हुए मीना मूथा ने कहा कि क्लब 2 जून 2013को अपने 20 वें वर्ष की यात्रा में प्रवेश कर चुका है तथा यह गोष्ठी इस वर्ष की आरंभिक गोष्ठी है | सहसंयोजक ज्योति नारायण ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की | डॉ. मिश्र ने मंचासीन अतिथियों का परिचय एवं क्लब की संक्षिप्त जानकारी देते हुए विभिन्न गतिविधियों पर प्रकाश डाला |
प्रो. शुभदा वांजपे ने ‘अकविता-रचनात्मक दृष्टि’ विषय पर प्रपत्र प्रस्तुति में कहा कि नई कविता के बाद 1964 में एक नया ट्रेंड आया जिसे अकविता कहा गया | यह विशिष्ट राजनीतिक और समसामयिक परिवेश में प्रेरित रही | कभी उसे Non Poetry और Anty Poetry भी कहा गया | अकविता में युगीन परिवेश और मानसिकता को उभारकर लाया गया | अकवितावादी एवं आलोचक श्याम परिमार की दृष्टि में ‘अकविता’ कविता विरोधी शब्द नहीं रहा है | मोना गुलाटी, सौमित्र मोहन, लुकमान अली के काव्यांश प्रस्तुतीकरण में शुभादाजी ने आगे कहा कि समग्रत: अब कविता किसी भी विषय पर लिखी जा सकती है | आज अकविता की प्रवृत्तियाँ जिनमें निषेध, विडंबना,कुंठा आदि का वर्णन है और उसी रूप में वह अपने आप को नया साबित करती है | डॉ. सीता मिश्र ने कहा कि शुभदा ने सन 64 के बाद का कर आए अद्वितीय परिवर्तन को बहुत अच्छी तरह समझाया है | प्रो. शुक्ला ने नई कविता पर विचार रखते हुए कहा कि जीवन की उलझनों को सुलझाने का सूत्र कविता देती है | पं. भवानीप्रसाद मिश्र, मुक्तिबोध, महादेवी वर्मा की पंक्तियों को सुनाकर शुक्ला जी ने छायावाद-प्रगतिवाद एवं 1935 से हिंदी साहित्य के इतिहास पर प्रकाश डाला | कविता जीवन है और जीवन कविता है, जीवन में संकट आते हैं जिसमें कविता ऐसी डगर बताती है जहां आदमी फिर आशावादी बनता है |
तत्पश्चात क्लब की ओर से प्रो. शुक्ला का अंगवस्त्र एवं पुष्पक भेंट कर सम्मान किया गया | श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल की अध्यक्षता तथा भंवरलाल उपाध्याय के सुन्दर संचालन में कविगोष्ठी संपन्न हुई | इसमें शिव कुमार तिवारी, संपत देवी मुरारका, ब्रजमोहन चौहान, ज्योति नारायण, पुरुषोत्तम कडेल, पवित्रा अग्रवाल, शुषमा बैद, डॉ. अहिल्या मिश्र, मीना मूथा, सरिता गर्ग, दिलीप सिंह, दर्शन सिंह, सरिता सुराणा जैन, एल.रंजना, डॉ. मदन देवी पोकरणा, मदनलाल मरलेचा, डॉ.सीता मिश्रा, वी. वरलक्ष्मी, जुगल बंग जुगल, गोविन्द मिश्र, प्रो. शुक्ला ने काव्यपाठ किया | श्री अग्रवाल ने अध्यक्षीय पाठ किया | आकाश शुक्ला, आकांक्षा शुक्ला, रेखा शुक्ला, एस. सुजाता,निर्मल बैद, अजीत गुप्ता, भूपेन्द्र मिश्र भी इस अवसर पर उपस्थित थे | सरिता सुराणा जैन के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ |
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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