प्रो. दिलीप सिंह की पुस्तक “कविता पाठ
विमर्श” लोकार्पित
साहित्य संस्कृति मंच के तत्त्वावधान में, दि. 26 जुलाई 2014
को शाम 5.30 बजे दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित सभागार में प्रो.दिलीप सिंह की
समीक्षा कृति “कविता पाठ विमर्श”,
उच्च शिक्षा शोध संस्थान द्वारा
प्रकाशित अर्धवार्षिक पत्रिका “बहुब्रीहि” तथा दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की हिन्दी-तेलुगु द्विभाषी
पत्रिका “स्रवंति” का लोकार्पण संपन्न हुआ |
समारोह की अध्यक्षता भास्वर भारत के
संपादक डॉ.राधेश्याम
शुक्ल ने की | लोकार्पण
कर्त्ता डॉ.एम
वेंकटेश्वर (भारतीय
एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष),
डॉ.सत्यकाम (इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त
विश्वविद्यालय, दिल्ली), डॉ.एच बालसुब्रह्मन्यम (केन्द्रीय हिंदी
निदेशालय, दिल्ली), प्रो.दिलीप सिंह और डॉ.ऋषभदेव शर्मा (समारोह के निर्देशक) मंचासीन हुए |
समारोह का शुभारंभ अतिथियों के कर-कमलों से दीप
प्रज्ज्वलन से हुआ | कार्यक्रम
में प्रो.दिलीप
सिंह की समीक्षा कृत्ति ‘कविता पाठ विमर्श’
का लोकार्पण डॉ.एम.वेंकटेश्वर तथा अतिथियों के हाथों
संपन्न हुआ | उच्च
शिक्षा और शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित भाषा विज्ञान,
हिंदी भाषा और साहित्य पर नई सोच की
अर्धवार्षिक पत्रिका ‘बाहुब्रीहि’ के ताजा अंक का
लोकार्पण डॉ.सत्यकाम
ने किया | साथ
ही दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की हिन्दी-तेलुगु द्विभाषी मासिक पत्रिका ‘स्रवंति’ के जुलाई अंक का
लोकार्पण डॉ.एच. बालसुब्रह्मन्यम ने
किया |
लोकार्पण व्यक्तव्य में प्रो.एम. वेंकटेश्वर ने कहा कि
‘कविता पाठ विमर्श’ के माध्यम से प्रो.दिलीप सिंह ने
साहित्य की शैली वैज्ञानिक समीक्षा के सर्वथा अछूते आयामों को उद्घाटित किया है | उन्होंने बताया कि इस
पुस्तक में हैदराबाद के हिन्दी और उर्दू के पुराने और नए 15 कवियों
के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है जो अपने आप में
अनूठा है |
डॉ.सत्यकाम ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि ‘बाहुब्रीहि’ को हिन्दी और
भारतीयता के समन्वयात्मक चरित्र की जोरदार अभिव्यक्ति मानते हुए कहा कि इसके
द्वारा सिनेमा और मीडिया जैसे शब्द-प्रयोग के साहित्य से इतर क्षेत्रों पर
भी सार्थक विमर्श सामने आया है |
डॉ.एच.
बालसुब्रह्मन्यम ने कहा कि ‘स्रवंति’ अपने स्थायी स्तंभों
और दोनों भाषाओं के सृजन और समीक्षा की प्रस्तुति के कारण समसामयिक साहित्यिक
पत्रिका ,पत्रकारिता
में विशेष पहचान बना चुकी है |
लोकार्पण समारोह के निर्देशक डॉ.ऋषभदेव शर्मा ने इस
आयोजन को ‘कविता
पाठ विमर्श’ के
बहाने हैदराबाद
के हिन्दी-उर्दू साहित्य के समय परिदृश्य पर सार्थक और सटीक चर्चा बताया जिसमें मखदूम मोईनुद्दीन से
लेकर शशिनारायण स्वाधीन तक की कविताएँ को मूल्यांकन किया गया |
के हिन्दी-उर्दू साहित्य के समय परिदृश्य पर सार्थक और सटीक चर्चा बताया जिसमें मखदूम मोईनुद्दीन से
लेकर शशिनारायण स्वाधीन तक की कविताएँ को मूल्यांकन किया गया |
डॉ.दिलीप सिंह ने भावुकतापूर्ण उद्गार
व्यक्त करते हुए कहा कि हैदराबाद की हिन्दी कविताई और उर्दू शायरी में एक ख़ास तरह
का सहज सलोनापन है जो विभिन्न भाषा-समुदायों के दैनंदिन व्यवहार की मिश्रित
भाषा की सर्जनात्मक के कारण अपनी और आकर्षित करता है |
डॉ.राधेश्याम शुक्ल ने अपने अध्यक्षीय
व्यक्तव्य में कहा कि लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से नए हिन्दी आन्दोलन की दिशा
प्रशस्त करने के लिए भाषा-वैज्ञानिक प्रो.दिलीप सिंह और दक्षिण भारत हिन्दी
प्रचार सभा को साधुवाद देता हूँ |
कार्यक्रम की संयोजिका डॉ.गुर्रमाकोंडा नीरजा
ने अतिथि-अभ्यागतों
का स्वागत-सत्कार
किया तथा अंत में डॉ.ए.वी.एस. नारायण राजू के
धन्यवाद से कार्यक्रम का समापन हुआ |
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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