हिंदी के विश्वदूत - इन्द्रदेव भोला इन्द्रनाथ
यदि मॉरीशस को हिंदी और हिन्दुस्तानियों का द्वीप कहा जाए तो शायद अनुचित न होगा। माना जाता है कि नागरिकों के रूप में मॉरीशस में भारतीयों का आगमन 1834 के करीब हुआ था लेकिन इसके पूर्व भी फ्रांसिसी काल में वहाँ पर कुछ भारतीयों को कारीगर के रूप में ले जाया गया था और व्यापारियों, नाविकों व सिपाहियों के रूप में भारतीयों का आगमन हो चुका था। जब भी और जैसे भी जो भी भारत से गया हिंदी और भारत की संस्कृति को साथ लेता गया । यूं तो वहाँ अनेक भारतीय भाषाएँ बोली जाती हैं लेकिन हिंदी ही उनमें प्रमुख है जो साहित्य - संस्कृति और धार्मिक आयोजनों के साथ आगे बढ़ती रही है।
हिंदी की इस उर्वरा भूमि में हिंदी के अनेक सुगंधित पुष्प खिले जिन्होंने मॉरीशस सहित विश्व में हिंदी की सुगंध को फैलाया है। वे न केवल हिंदी के प्रचार-प्रसार में लगे हैं बल्कि हिंदीभाषियों की नई पीढ़ियाँ तैयार करने में जी – जान से जुटे हैं। बाल - मन को बचपन से ही हिंदी से सुगंधित करने के लिए उन्होंने बाल-निबंध, बाल-नाटकों की रचना के साथ-साथ बाल-जगत पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारंभ किया। साथ ही लोक-जीवन को भारतीय संस्कृति के कलेवर में समेटने के लिए उन्होंने लोककथाओं को भावी पीढ़ियों के लिए संकलित किया है। इन्द्रदेव भोला गद्य और पद्य दोनों विधाओं में समाधिकार से स्तरीय रचना करने वाले सशक्त साहित्यकार हैं।
9 दिसंबर 1961 को स्वर्गीय डॉ.मुनीश्वरलाल चिंतामणी जी ने मॉरीशस के लेखकों के एक संघ की स्थापना करने के लिए पोर्ट-लुईस (मॉरीशस की राजधानी) के नेओ कॉलेज में आमंत्रित लेखकों को संबोधित करते हुए कहा था कि संघ का मुख्य उद्देश्य व्यवस्थित रूप से मॉरीशस में साहित्य- सृजन करना है और निकट भविष्य में अनेक लेखक, कवि, कहानीकार, उपन्यासकार तथा अनेक साहित्यकार पैदा करना है जो देश के दीप-स्तंभ बनेंगे। इसी हिंदी लेखक संघ के तृतीय स्तंभ श्री इनद्रदेव भोला मुलत
: कवि हृदय हैं। जीवन जिजीविषा से संपूर्ण कवि हृदय ही उन्हें एक साथ कथाकार, निबन्धकार, संपादक और शोधकर्ता बनाए हुए है जिसके चलते इन्होंने मॉरिशस के साथ-साथ विश्व के हिंदी और हिन्दुस्तानी समाज को महत्वपूर्ण कृतियाँ भेंट की हैं।
इन्द्रदेव भोला ने अपने शोधकार्य, संपादन, एवं लेखन द्वारा मॉरीशस में मॉरीशस तथा विश्व के हिंदी सेवियों का विलक्षण अविस्मरणीय इतिहास रच रहे हैं। उनकी कर्मठता की गूंज अपनी रचनाओं में गुंजित कर रहे हैं। विदेशों में हिंदी तथा विश्व में हिंदी एवं आर्य समाज उनकी ऐसी महत्वपूर्ण शोधपरक पुस्तकें हैं जिनमें विश्व में हिंदी के विकास का
इतिहास दर्ज है तो ‘गागर में सागर’ काव्य-संग्रह में 2244 हाइकू के मोती हैं और प्रतिध्वनियाँ कविता पुस्तक में 2244 कविताएं हैं। ‘हाइकू’ से वे अपने विचार और संवेदना को एक व्यंग्य विस्फोट के साथ उद्भाषित करते हैं। हाइकू में ‘पिन पॉइंट’ करते हुए दुनिया की सच्चाई को निर्मम होकर प्रकट करते हैं।
लोककथाओं में जीवन और जगत की प्राणवान शक्ति होती है।लोककथाएँ अपने समय और समाज की सच्चाइयों की कोख में जन्म लेती है। वे समाज के मानस की वास्तविक सहचर होती है।इसे ध्यान में रखते हुए ‘मॉरिशस की लोककथाओं और लोक संस्कृति की रक्षा और संवर्धन के निमित्त ‘मॉरिशस की लोककथाएं’पुस्तक की रचना की जो बहुत चर्चित रही। इसके साथ-साथ धर्मवीर धूरा और डॉ. मुनीश्वरलाल चिंतामणि के अभिनूतन मेंउनके कृतित्व और व्यक्तित्व को संजोते हुए स्मृतिग्रन्थों का संपादन किया।
इस तरह एक ओर कविता, कहानी, नाटक के द्वारा इन्द्रदेवजी ने मॉरिशस के साहित्य भंडार को समृद्ध किया है तो दूसरी ओर ‘बालसखा’ पत्रिका प्रकाशित करके बालमानस की हिन्दुस्तानी और मानवीय संवेदनाओं से रचने का प्रयास किया है । तीसरी ओर उन्होंने अपने देश के अंग्रेजों पर स्मृतिग्रन्थ संयोजित करके अपने समय के इतिहास को संजोने का महान कार्य भी किया है।
इस तरह इन्द्रदेव भोला इन्द्रनाथजी मॉरिशस के बहुआयामी साहित्यकार हैं और कवि, कथाकार, निबंधकार, नाटककार, इतिहासकार तथा संपादक के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, भोजपुरी तथा क्रियोल भाषाओं में भी लेखन करते हैं। हिंदी, अंग्रेजी, क्रियोल तथा भोजपुरी में लिखे इनके कई नाटक इनके ही निर्देशन में मंचित हुए हैं। सन् 2012 में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित क्रियोल में इन्हें राष्ट्रीय एकता मंत्रालय द्वारा इन्हें सर्वश्रेष्ठ नाटककार के रूप में सम्मान प्रदान किया गया। इन्द्रदेव भोला काफी वर्षों तक हिंदी लेखक संघ के महामंत्री रहे और अब उसके अध्यक्ष हैं। आर्यसभा द्वारा निरीक्षक और परीक्षक नियुक्त हैं। शिक्षा केंद्र विद्या भवन के संस्थापक व संचालक हैं जहाँ पिछले 44 वर्षों से हिंदी की नि:शुल्क पढ़ाई होती है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी इन्द्रदेव भोला ’प्रकाश’ शीर्षक से पाक्षिक साहित्यिक-सांस्कृतिक रेडियो कार्यक्रम भी प्रस्तुत करते रहे हैं। सरकारी स्कूल में हिंदी अध्यपक व उप प्रधानाध्यापक रहे हैं। पिछले पचास वर्षों से हिंदी सेवा व सृजनात्मक लेखन के लिए मॉरिशस सरकार तथा साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित होते रहे हैंजिनमें प्रमुख हैं –‘सनातन धर्म टेम्पल्स फेडरेशन’, ‘आर्य सभा’, ‘हिंदी प्रचारिणी सभा, ‘हिंदी सेवा संस्थान’, ‘हिंदी संगठन’, ‘हिंदी लेखक संघ’ ।
विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा हिंदी विश्व भाषा सम्मान, हिंदी साहित्य अकादमी ने ‘हिंदी सेवा निभूति’, ब्रह्मकुमारी संस्था द्वारा ‘आदर्श अध्यापक’ और 2014 में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भारत तथा अभ्युदय संस्था वर्धा, ने इन्हें पी.एच.डी., सारस्वत विद्या वाचस्पति, तथा ‘हिंदी सरस्वति सम्मान’ से विभूषित किया है।इसके साथडसाथ ग्राम परिषद द्वारा विशिष्ट सम्मान भी प्राप्त हो चुका है। दरअसल ऐसे सतत् संघर्षशील हिंदी कार्यकर्ता के माध्यम से ये सम्मान भी सम्मानित हुए हैं। हिंदी भाषा व साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए संघर्षरत ऐसे संघर्षशील व्यक्ति को ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ द्वारा ‘ हिंदी का विश्वदूत’ घोषित किए जाने से हम सभी स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं कि हम सब के बीच सभी स्वार्थों और जीवन –सुख से परे जाकर इन्द्रदेवजी हिंदी के सच्चे सेवक के रूप में निस्पृह भाव से जुटे हुए हैं।
- प्रो. पुष्पिता अवस्थी, नीदरलैंड
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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