‘इंडिया नहीं मैं भारत हूँ’ विषय पर आयोजितवैश्विक ई-कवि सम्मेलन में, गूंजे 'भारत-गौरव' के गीत।‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ तथा ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ द्वारा ‘इंडिया नहीं मैं भारत हूँ’ विषय पर आयोजित ई-कवि सम्मेलन में ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री साहित्यकार डॉ. रविंद्र शुक्ल ने संविधान से इंडिया नाम हटाने और हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे कार्य की जानकारी देते हुए देशवासियों का आह्वान किया कि सभी भारतवासी राष्ट्र-प्रेम के महायज्ञ में अपनी आहुति दें। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से देशवासियों का आह्वान किया - ‘फिर से खोल चाणक्य शिखा, दुष्टों का वंश विनाश करें, अपनी संकल्प-साधना से भारत में नव विश्वास भरें। तब भारत फिर से जागेगा, घनघोर कुहासा भागेगा’।
जाने-माने गीतकार एवं कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने सम्मेलन के अध्यक्ष पद से अपनी कविता ‘तीन रंग का ध्वज फहराता, भारत लेकिन है सतरंगा’ से समां बांधा। वरिष्ठ साहित्यकार एवं विदेश मंत्रालय की पत्रिका ‘गगनांचल’ के संपादक डॉ. आशिष कंधवे की कविता - 'मैं सब कुछ सह लेता हूँ, बस कोई मुझसे यह न कहे कि "क्या फर्क पड़ता है" में व्यक्त पीड़ा से उत्पन्न आक्रोश ने प्रभावित किया। गाजियाबाद से उपस्थित कवयित्री शैलजा सिंह के व्यंग्य गीत – ‘भारत बनाम इंडिया’ प्रस्तुत करते हुए गाया - ‘बदल गया सामाजिक परिवेश, इंडिया बन गया, भारत देश’,इस गीत ने श्रोताओं को खूब लुभाया। ऑस्ट्रेलिया के इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन के विभागाध्यक्ष व कवि डॉ.सुभाष शर्मा ने कहा – ‘भारत नहीं भूमि का टुकड़ा, जो चाहो वह नाम रखो, नहीं इंडिया है, यह भारत, भारत ही बस नाम लिखो।‘ इंग्लैंड के डॉक्टर व कवि डॉ. कृष्ण कन्हैया ने अपनी कविता के रंग बिखेरते हुए कहा- ‘शुन्य का ज्ञान, हमने ही दिया,नीलकण्ठ बन विष को पिया। बस देशद्रोहियों से आहत हूँ, इंडिया नहीं, मैं भारत हूँ’।
मुंबई के ब्रांडिंग व मार्केटिंग के वरिष्ठ अधिकारी व कवि आलोक अविरल ने अपने विद्रोही तेवर में कहा – ‘आवश्यक है आज स्वर बदलना, आवाज़ लगा कर प्रहर बदलना। देश के नाम से ‘इंडिया’ हटाते हैं, भारत के नाम का ध्वज फहराते हैं’। दिल्ली की युवा कवयित्री कोमल वर्मा ने अपनी कविता में कहा- ‘देश प्रथम, भारत मेरा अभिमान है, जो भी हो सत्य मार्ग पर स्वीकार्य करें, साथ तेरे-मेरे श्रीराम है।’कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के निदेशक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ ने कवियों का काव्यमय परिचय दिया और अपनी ओजस्वी कविता में कहा – ‘भारत से भाग्य विधाता है, इंडिया न हमारी माता है। जब भी आता भारत का नाम, सीना सबका तन जाता है। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला की, भव्य एक इमारत हूँ, मुझको इंडिया मत कहना, मैं भारत हूँ। ’
प्रारंभ में ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ के अध्यक्ष तथा ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन के संरक्षक’ सुंदर बोथरा ने अतिथियों व कवियों का स्वागत किया और ‘जनता की आवाज फाउंडेशन’ तथा ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के उद्देश्यों का संक्षिप्त परिचय दिया। धन्यवाद ज्ञापन जनता की आवाज फाउंडेशन के महासचिव कृष्ण कुमार नरेडा ने प्रस्तुत किया। उपाध्यक्ष कानबिहारी अग्रवाल ने सभी को भारत अपनाने व इंडिया हटाने के लिए सक्रिय प्रयासों के लिए प्रेरित किया।
कार्यक्रम में अमेरिका से डॉ. मृदुल कीर्ति तथा कवि डॉ. अशोक सिंह, सूरत से इन्द्र चंद बैद तथा कोटा से शंकर आशकंदानी, दिलीप कांठेड , सीए सुराणा, कलकत्ता आदि अनेक भारत-प्रेमी उपस्थित थे।वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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प्रस्तुत
कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
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