हिंदी साहित्य संगम: आज आर्यसमाज के प्रसिद्ध नेता, संसद में हिन्दी के ओजस्वी वक्ता, हिंदी एवं संस्कृत के प्रकांड विद्वान पूर्व सांसद स्वर्गीय श्री प्रकाशवीर शास्त्री जी का जन्मदिन है। उनका जन्म 30 दिसंबर, 1923 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद (अब जे पी नगर) के रेहरा नामक गांव में हुआ था। आगरा विश्वविद्यालय से एम ए करने के बाद वे गुरुकुल वृन्दावन के उप कुलपति नियुक्त किये गये। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय बनारस से शास्त्री की डिग्री हासिल की। तब से ही वह अपने नाम के आगे शास्त्री लगाने लगे। वैसे वह त्यागी परिवार से थे। देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद के देहांत के बाद 1958 में गुड़गांव से उप चुनाव में जीत हासिल कर उन्होंने संसद के निचली सदन (लोक सभा) में निर्दलीय सदस्य के रूप में प्रवेश किया। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। 1962 में तृतीय लोक सभा के सदस्य बिजनौर, 1967 में हापुड़ गाज़ियाबाद संसदीय सीट से संसद में पहुंचे। 1974 में उत्तर प्रदेश से जनसंघ के समर्थन से शास्त्री जी राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
संसद में धाराप्रवाह हिंदी में जब वह सरकार की आलोचना करते थे तो विरोधी दल के साथ साथ सरकारी बेंच के सदस्य भी उनकी वाणी सुनने के लिए उत्सुक रहते थे। उन दिनों संसद में मंजे हुए वक्ताओं में शास्त्री जी की गिनती की जाती थी। हिन्दी के क्षेत्र में शास्त्री जी द्वारा किये गये प्रयासों को लोग आज भी याद करते हैं। आकाशवाणी से उन दिनों अंग्रेजी के समाचार पहले प्रसारित होते थे और हिन्दी के बाद में। शास्त्री जी ने संसद में इस पर मांग की कि हिन्दी राष्ट्रभाषा है तो उसका प्रसारण पहले होना चाहिये, अंग्रेजी का बाद में। सरकार ने उनके इस सुझाव को मान लिया। इसी प्रकार भारत सरकार की राष्ट्रीय मुद्रा में रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर तब केवल अंग्रेजी भाषा में ही होते थे परंतु शास्त्री जी के सुझाव के बाद यह दोनों भाषाओं अंग्रेजी तथा हिन्दी में होने लगे।
हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय मंच पर उभारने का प्रथम श्रेय प्रकाशवीर शास्त्री को जाता है। वह एक बार अन्तर्सन्सदीय सम्मेलन (Inter Parliamentary Union) में भाग लेने स्पेन की राजधानी मे Medrid गये। इस सम्मेलन का समस्त कार्य अंग्रेजी या फ्रांसीसी भाषा में ही होता था। परंतु सदस्यों को छूट थी कि अगर वे इसके अतिरिक्त अपना भाषण किसी अन्य भाषा में देना चाहें तो भाषण की पांच प्रतियां अंग्रेजी या फ्रांसीसी भाषा में टाईप करा कर अग्रिम दे दें तो वे अपनी भाषा में बोल सकते हैं। शास्त्री जी ने इस सुविधा का लाभ उठा कर इस अन्तर्राष्ट्रीय मंच से पहली बार राष्ट्रभाषा हिन्दी में अपना भाषण दिया।
23 नवम्बर, 1977 को जयपुर से एक विवाह समारोह में शामिल होने के बाद वापिस दिल्ली आते हुए श्री प्रकाशवीर शास्त्री जी का हरियाणा में रेवाड़ी के पास देहांत हो गया। इस प्रकार इस दुर्घटना में देश ने एक अच्छे वक्ता को खो दिया, जिसकी कमी संसद व संसद से बाहर आज भी खलती है।
नकुल त्यागी,हिंदी साहित्य संगम, आवास विकास, बुद्धि विहार मुरादाबाद------------------------------------------------------------ ------------------------------ ---------------------
नव-वर्ष पर विचार
अपनी भाषा में शुभकामना या बधाई अर्थात अपना सम्मान।
जिसे शुभकामनाएँ या बधाई दे रहे हैं, उसकी भाषा में संदेश अर्थात उसका सम्मान।
मातृ-भाषा में शुभकामना या बधाई अर्थात मातृभाषा का सम्मान।
अपने देश की भाषा में शुभकामना या बधाई अर्थात अपने देश का सम्मान।
अपनों को विदेशी भाषा में शुभकामना या बधाई,
अपना, अपनों का, अपनी भाषाओं और अपने देश का अपमान।
जय भारत
भारतीय भाषाओं में नववर्ष की शुभकामनाएँ।
नववर्ष की शुभकामना, শুভ নব বর্ষ
સાલ મુબારક. ಹೊಸ ವರ್ಷದ ಶುಭಾಶಯ
പുതുവത്സരാശംസകൾ, नवीन वर्षाच्या शुभेच्छा,
नयाँ बर्षको शुभकामना, ନବବର୍ଷର ଶୁଭେଚ୍ଛା
ਨਵਾ ਸਾਲ ਮੁਬਾਰਕ, புத்தாண்டு வாழ்த்துக்கள்
نئون سال مبارڪ, نیا سال مبارک ہو
నూతన సంవత్సర శుభాకాంక్షలు
वैश्विक हिंदी सम्मेलन की वैबसाइट -www.vhindi.in
'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' फेसबुक समूह का पता-https://www.facebook.com/
संपर्क - vaishwikhindisammelan@gmail.
प्रस्तुत
कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें