वैश्विक हिंदी सम्मेलन : हिंदी की विश्वदूत - स्नेह ठाकुर
रोजगार और विभिन्न व्यावसायिक कारणों से भारत से जा कर विदेशों में विशेषकर यूरोप और अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में बसने वालों की अच्छी खासी काफी संख्या है। पिछले कुछ वर्षों में तो इसमें काफी तेजी आई है। पर इनमें ऐसे कितने लोग हैं जो यहाँ से जाते समय अपनी भाषा और संस्कृति साथ लेकर जाते हैं और कितने ऐसे हैं जो उनके रंग में रंगने और अपनी भाषा और संस्कृति और पहचान को तिलांजलि दे कर विदेशी बनने जाते हैं। कुछ अपनी जड़ों से कटने के बावजूद भी भावनात्मक स्तर पर न केवल उनसे जुड़े रहते हैं बल्कि उन्हें सशक्त करने के लिए भी प्रयासरत रहते हैं। जहाँ एक तबका देश में रहकर भी विदेशी सा दिखने को प्रयासरत है तो एक वह वर्ग भी है जो विदेश में रहकर भी भारतीयता से सराबोर है और अपनी भाषा- संस्कृति के ध्वजाधारी बनकर भारतीयता का मान बढ़ा रहे । विदेशों में ऐसे ही लोगों में एक नाम है- स्नेह ठाकुर जो न केवल भारतीय भाषा संस्कृति से भावनात्मक रूप से बल्कि रचनात्मक रूप से भी जुड़ी हैं। कनाडा में बसी स्नेह ठाकुर ने भारत की भाषा हिंदी के प्रसार अभियान को आगे बढ़ाने की दृष्टि से 2003 में 'सद्भावना हिन्दी साहित्यिक संस्था' की स्थापना की और हिंदी की विश्वदूत बनकर हिंदी के ध्वज को थाम लिया। 'सद्भावना हिन्दी साहित्यिक संस्था' के माध्यम से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा वे अनवरत हिन्दी के प्रचार-प्रसार व उन्नयन के कार्य में लगी हैं। स्नेह ठाकुर की लेखन, पठन, नाट्य-मंचन, चित्रपट, चित्रकला एवं भ्रमण. नाट्य लेखन-मंचन, चलचित्र अभिनय आदि शिक्षा व कला के विभिन्न क्षेत्रों में अभिरुचि रुचि के चलते वे अन सभी के माध्यम से हिंदी के प्रसार में लगी हैं। 'सद्भावना हिन्दी साहित्यिक संस्था' के माध्यम से संस्था के अन्तर्गत इन्होंने चार काव्य-संकलनों का संकलन, सम्पादन व प्रकाशन किया है। इसके अतिरिक्त संस्था के अन्तर्गत चित्रकला प्रदर्शिनियों द्वारा भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया जाता है।
स्नेह ठाकुर के हिंदी के प्रसार का एक महत्वपूर्ण जरिया है हिन्दी साहित्यिक पत्रिका 'वसुधा'। इसके माध्यम से वे भारत व विश्व के साहित्यकारों एवं पाठकों को परस्पर जोड़ने और एक मंच पर लाने के कार्य में लगी हैं। स्नेह ठाकुर के संपादन में –प्रकाशित "वसुधा" विभिन्न विषयों पर आधारित लेख, कहानी, कविता, ग़ज़ल, संस्मरण आदि साहित्य की अनेक विधाओं से परिपूर्ण हिन्दी साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका है जो अपने इस कलेवर में सभी सद्भावी लेखकों और पाठकों की शुभेच्छा से जनवरी २००४ से कैनेडा से अनवरत प्रकाशित हो रही है। श्रीमती स्नेह ठाकुर के अनुसार, ‘"वसुधा" का उद्देश्य सभी हिन्दी-प्रेमियों को एक जुट कर हिन्दी को उसके सर्वोच्च स्थान पर पहुँचाना है. अब यह आशा अनपेक्षित भी नहीं प्रतीत हो रही है कि हिन्दी भारत व विदेश में भी अपने गरिमामय स्थान पर प्रतिस्थापित होने की ओर अग्रसर है. यू.एन.ओ. के मुख्य सभागार में, आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में सम्पन्न हुए समारोह में, जिसमें कैनेड़ा से विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित होने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था, जिन सपनों को हमने अपनी पलकों पर सँजोया था वे सच होते प्रतीत हो रहे हैं।"वसुधा" हिन्दी साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका द्वारा मेरा प्रयास है कि भारतीय साहित्यकार एवं आप्रवासी भारतीय साहित्यकारों से, अधिकाधिक भारतीय व भारतवंशियों को अवगत कराया जाये. हिन्दी साहित्य और भारतीय संस्कृति संसार के कोने-कोने में फले-फूले. "वसुधा" हिन्दी के प्रति माँ सरस्वती के लिए अंजुरी-भर अर्घ्य है, जिसमें सभी साहित्यकारों की रचना-धाराएँ मिश्रित हो प्रवाहित हो रही हैं और पाठकगण हृदय से उनका स्वागत कर रहे हैं. "वसुधा" हिन्दी के उत्थान के लिये लेखकों, पाठकों व हिन्दी-प्रेमियों इन सभी का मिला-जुला प्रयास है और परिश्रम है,यह माँ की वंदना है।
‘ वे कहती है- ‘यह सर्वविदित है कि जो अपनी मान-मर्यादा की रक्षा स्वयं नहीं करते दूसरे भी उन्हें मान-मर्यादा नहीं देते. यदि हम अपनी मातृभाषा, राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं करेंगे तो दूसरे भी उसकी उपेक्षा करेंगे. अपनी मातृभाषा, राष्ट्रभाषा के प्रति हमारा सम्मान न केवल हममें स्वाभिमान जगाता है वरन् उस स्थिति में दूसरे देश भी न केवल हमारी भाषा का सम्मान करेंगे बल्कि इस भाव के प्रति वे हमें भी अच्छी नज़र से आँकेंगे।‘ अपनी भाषा-संस्कृति के प्रति अपनी इसी अगाध श्रद्धा के चलते ही उन्हे देश और विदेश में सभी स्तरों पर सम्मान व स्थान मिला है। वे इंटरनेशनल आर. सी. यूनिवर्सिटी (कैनेडा चैप्टर) की निदेशक हैं, रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल - यूएनओ से संबद्ध हैं और हिन्दी सेंटर - नई दिल्ली की संरक्षक हैं। वर्ल्ड फोरम ऑफ डायलॉग (विश्व संवाद) कनाडा की अध्यक्ष हैं। वीकनेक्ट, कम्यूनिटी सर्विसेस, टोराण्टो की निदेशक हैं। ‘विश्व हिन्दी साहित्य का इतिहास‘ की सहयोगी सम्पादक एवं संयोजक हैं। डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी 'दिग्दर्शन ग्रंथ समिति' की सदस्य, 'प्रवासी टुडे' विदेश सम्पर्क - कैनेडा, संस्थापक/अध्यक्ष सद्भावना हिन्दी साहित्यिक संस्था, सदस्य स्कारबरो सीनियर्स राइट कार्यकारिणी समिति, परामर्श सदस्य कैनेडा : 'शोध संचार बुलेटिन', परामर्श सदस्य, कैनेडा : 'अक्षर-वार्ता', सदस्य स्कारबरो आर्ट्स काउन्सिल, लाइसम क्लब, वीमेन्स आर्ट्स एसोसिएशन ऑफ कैनेडा, लाइवली पोएट्स सोसायटी, कार्यकारिणी सदस्य विश्व हिन्दू परिषद्, विशिष्ट सदस्य इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ पोएट्स, डायरेक्टेर कैनेडियन काउन्सिल ऑफ हिंदूज, इंडियंस इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेशन मारखम की उपाध्यक्ष हैं। स्नेह ठाकुर नाटक, काव्य, कहानी, निबंध, गीत, भजन, गजल, रिपोरताज, उपन्यास, शोध-ग्रंथ आदि में महत्वपूर्ण योगदान है वे साहित्य की अनेक विधाओं में हिंदी के साथ-साथ अँग्रेजी में भी लिखती हैं। इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं:- अनमोल हास्य क्षण (नाटक संग्रह) ,जीवन के रंग (काव्य संग्रह), दर्दे-जुबाँ (उर्दू कविताओं का संग्रह), आज का पुरुष (कहानी संग्रह), जीवन निधि (काव्य संग्रह), आत्म गुंजन (दार्शनिक और भक्ति की कविताओं का संग्रह)। हास-परिहास (हास्य कविताओं का संग्रह),जज़्बातों का सिलसिला (काव्य संग्रह), अनुभूतियाँ (काव्य संग्रह), काव्य-वृष्टि (संकलन, संपादन एवं सहभागिता), पूरब-पश्चिम (आप्रवासी सम्बंधित आलेख संग्रह), बौछार (संकलन, संपादन एवं सहभागिता), काव्य हीरक (संकलन, संपादन एवं सहभागिता),संजीवनी (स्वास्थ्य सम्बन्धी निबंध संग्रह), उपनिषद् दर्शन (ईशोपनिषद्, दार्शनिक और आध्यात्मिक),काव्य-धारा (संकलन, संपादन एवं सहभागिता), काव्याञ्जलि (काव्य संग्रह),अनोखा साथी (कहानी संग्रह) ।
ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निबंध, कहानी, कविता, रिपोरताज आदि ‘सरिता’, ‘गृह शोभा’, ‘सुषमा’, ‘मुक्ता’, ‘कादंबिनी’, ‘भाषा सेतु’, ‘समरलोक’, ‘ ऋचा’, ‘पहचान ‘, ‘गुर्जर राष्ट्र वीणा’, ‘दीप ज्योति’, ‘आधुनिक एवं हिन्दी कथा साहित्य में नारी का बदलता स्वरूप’, ‘नौतरणी’, ‘प्रतिनिधि आप्रवासी हिंदी कहानियाँ’, ‘गगनाञ्चल’, ‘लेखनी’, ‘बाल सखा’, ‘राष्ट्र भाषा’, ‘पुरवाई,’ ‘विचार दृष्टि’ ‘नया सूरज’ आदि में प्रकाशित अमेरिका में, ‘शैडोज़ एण्ड लाइट’, ‘पोट्रेट्स ऑफ़ लाइफ़’, ‘दि एबिंग टाइड’, ‘ बेस्ट पोएम्स ऑफ़ दि नाइंटीज़’, ‘दि नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ पोएट्री’, ‘दि पोएट्स कॉर्नर’, ‘दि सैण्ड्स ऑफ़ टाइम’, ‘विश्व विवेक’, ‘विश्वा’ एवं ‘सौरभ’ में प्रकाशित। राष्ट्रीय व स्थानीय रूप से रचनाएँ, ‘हिन्दू धरमा रिव्यू’, ‘काव्य किंजल्क’, ‘अंतर्राष्ट्रीय हिंदी स्मारिका’, ‘प्रवासी काव्य’, ‘हिन्दू चेतना’, ‘संगम’, ‘सेवा भारती’, ‘नमस्ते कैनेडा’, ‘मेधावनी’, ‘हेलो कैनेडा’, ‘काव्य-वृष्टि’, ‘बौछार’, ‘काव्य-हीरक’, ‘काव्य-धारा’, आदि में प्रकाशित । अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के लिये यॉर्क विश्वविद्यालय के बर्टन सभागार में अभिनीत नाटक ‘कविवर की दुर्दशा’ का लेखन, प्रस्तुतिकरण, मंचन, निर्देशन एवं अभिनय।जैसी पत्रिकाओं में भी नियमपत रूप से लिखती रही हैं।इनके साहित्य पर विश्वविद्यालयों स्तर पर एम.फिल एवं पी.एच.डी शोध का कार्य हुआ है ओर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के एम.ए. पाठ्यक्रम में चयनित है।
स्नेह ठाकुर को केंद्रीय हिन्दी संस्थान आगरा द्वारा वर्ष 2013 के 'पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार’ - हिन्दी सेवी सम्मान देने की घोषणा की गई है। पुरस्कार राष्ट्रपति भवन में माननीय राष्ट्रपति के कर-कमलों द्वारा प्रदान किया जाएगा । इसके अतिरिक्त भी इनकी उपलब्धियों की लंबी सूची है जो निम्नानुसार है:- 1 . 'अवध रत्न अवार्ड 2015' सम्मान 2. 'लिम्का बुक रिकॉर्ड होल्डर' प्रवासी साहित्यकार एवं पत्रकार, दोनों ही रूपों में 3. 'कैकेयी चेतना-शिखा' उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी म.प्र. द्वारा अखिल भारतीय 'वीरसिंह देव' पुरस्कार सम्मान। 4. 'इंटरनेशनल वीमेन एक्सलेन्स अवार्ड 2014' यूनाइटेड नेशन्स से सम्बद्ध संस्थाओं द्वारा सम्मानित। 5. कैनेडा की फेडरल गवर्नमेंट के मल्टीकल्चरिज़्म एण्ड हेरिटेज़ डिपार्टमेंट द्वारा 'अनमोल हास्य क्षण' 6. पुस्तक हेतु अधिकतम अनुदान से सम्मानित । 7. यू.एन. संबद्ध रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल द्वारा ' इंटरनेशनल वीमेन सम्मान'। 8. 'एडिटर्स च्वाइस एवार्ड्स' से 'दि नेशनल लाइब्रेरी ऑफ पोएट्री' द्वारा चार बार सम्मानित। 9. 'साहित्य भारती सम्मान', दिल्ली से सम्मानित। 10. मानद फ़ेलोशिप :यूएनओ से संबद्ध रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल, दिल्ली । 11. 8वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 2007, न्यूयार्क में विशिष्ट अतिथि सम्मान। 12. अक्षरम् प्रवासी साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान। 13. विश्व हिन्दी सेवा सम्मान । 14. नारी अस्मिता समिति सम्मान। 15. प्रवासी हिन्दी सेवी सम्मान । 16. लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित। 17. मोहन शोध संस्थान लखनऊ द्वारा सम्मानित। 18. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र द्वारा सम्मानित।19. चेतना साहित्य परिषद, लखनऊ से सम्मानित हुई हैं।इसके अतरिक्त भी देश-विदेश में अनेक मंचों पर इन्हें सम्मानित किया गया है। इसके अतिरिक्त स्नेह ठाकुर 'द संडे इंडियन्स' द्वारा 'हिन्दी विश्व की 25 श्रेष्ठ प्रवासी महिला लेखिकाएँ' में चयन किया गया और प्रवासी भारतीय दिवस, 2008, दिल्ली, भारत में आमंत्रित अतिथि थीं। साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित एवं श्री हिमांशु जोशी द्वारा सम्पादित आप्रवासी कहानीकारों के कहानी संकलन 'प्रतिनिधि आप्रवासी हिंदी कहानियाँ' में एकमात्र कनेडियन लेखिका रहीं। 'द संडे इंडियन्स' द्वारा '21वीं सदी की श्रेष्ठ 111 हिन्दी लेखिकाएँ' में भी इनका चयन हुआ है।
हिन्दी अकादमी के विश्व के 23 प्रवासी हिन्दी कहानीकारों के प्रतिनिधि संकलन 'देशांतर' में एकमात्र कनेडियन लेखिका हैं। विदेशों में रहकर अपनी भाषा- संस्कृति की अलख जगाए रखले के संबंध में स्नेह ठाकुर कहती हैं-‘चार दशकों से ऊपर इस स्वदेश बने विदेश में अपनी मातृभूमि की स्मृति में, अपनी संस्कृति और अपनी मातृभाषा की अलख जगाये रखने की उत्कट आकांक्षा हेतु साहित्य की अनेक विधाओं में लिखी अपनी पुस्तकें व "वसुधा", मेरा एक छोटा-सा विनम्र योगदान है। इन वर्षों के आवास में जहाँ बहुत कुछ भारतीय संस्कृति मुझसे छिनी, वहीं यह आवास मुझे अपनी भारतीय संस्कृति और अपनी मातृभाषा हिन्दी के अत्यधिक निकट भी लाया है. इस प्रवास ने ही अपनी संस्कृति और अपनी भाषा को जिलाए रखने की एक अदम्य इच्छा मुझमें जाग्रत की है।‘ जिस प्रकार स्नेह ठाकुर हिंदू विश्वदूत बनकर विश्व स्तर पर हिंदी भाषा के प्रसार में लगी हैं वह निश्चय ही तमाम भारतवासियों, भारतवंशियों और प्रवासी भारतीयों और उनकी पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।
- डॉ.एम.एल. गुप्ता 'आदित्य',
निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई ।
पता – स्नेह ठाकुर
16 रेवालीस क्रेसेंट, टोरंटो, ओनटारीयो एम 1 वी 1 इ 9 कनाडा
ई मेल: sneh.thakore@rogers.com वेबसाइट: http://www.Vasudha1.webs.com
दूरभाष 416-291-9534
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य
मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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