नीदरलैंड की हिंदी साहित्प्रोयकार प्रो. पुष्पिता अवस्थी को 'वैश्विक हिंदी साहित्य-सारथी सम्मान' प्रदान करते हुए
बाएँ डॉ. सुधा व्यास, माणिक मुंडे दाएँ डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य', प्रो. माधुरी छेड़ा तथा सूरीनाम के भारतवंशी भगवान प्रसाद।
प्रो. माधुरी छेड़ा का अभिनंदन सभागार का दृश्य मंच से संबोधन और वक्तव्य
प्रकाशनार्थ
नीदरलैंड की साहित्यकार प्रो. पुष्पिता अवस्थी ‘वैश्विक हिंदी साहित्य-सारथी सम्मान' से विभूषित
(हिंदी की वैश्विकता पर संगोष्ठी)
‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’, मुंबई संस्था तथा के. जे. सोमैया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में
दिनांक 19-9-2015 शनिवार को मुंबई में महाविद्यालय परिसर में ‘हिंदी की वैश्विकता’ पर वैश्विक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में नीदरलैंडवासी और सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. पुष्पिता अवस्थी को हिंदी भाषा के प्रसार व हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान के लिए ‘वैश्विक हिंदी साहित्य-सारथी सम्मान’ से विभूषित किया गया। इस अवसर पर प्रो. माधुरी छेड़ा का 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में ‘विश्व हिंदी सम्मान’ दिए जाने के उपलक्ष्य में अभिनंदन भी किया गया। इस अवसर पर प्रो. पुष्पिता अवस्थी रचित कविता-संग्रह ‘भोजपत्र’ का लोकार्पण भी किया गया।
‘हिंदी की वैश्विकता’ पर बोलते हुए मुख्य अतिथि प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप भाषा के प्रयोग के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग आवश्यक है लेकिन जब तक हिंदी संस्कारों की भाषा नहीं बनेगी कोई प्रौद्योगिकी भी कुछ नहीं कर पाएगी । उन्होंने कहा कि भारतवंशी देशों में आज भी हिंदी आस्था और संस्कार की भाषा है । वहाँ लोग बिना कोई पैसा लिए एक स्वयंसेवक के रूप में बच्चों को हिंदी सिखाते हैं। माँ अपने छोटे ही नहीं वयस्क बच्चे को भी हिंदी पढ़वाने के लिए लाती है जबकि भारत में स्थिति इसके विपरीत बनती जा रही है।
विशेष अतिथि सूरीनाम के भारतवंशी और हिंदी-प्रेमी भगवान प्रसाद ने कई अन्य देशों का उदाहरण देते हुए कहा, ‘भारत में भी ऐसे लोगों को विभिन्न सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए जो अपने देश की भाषा नहीं सीखते। उन्होंने कहा कि दुनिया में भारत का महत्व तभी बढ़ेगा जब भारत का शासन अपनी भाषा में होगा। हिंदी, मराठी व अंग्रेजी में लिखने वाले मराठी-भाषी लेखक व महाराष्ट्र के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी माणिक मुंडे ने कहा कि जिस प्रकार भारत में लोग अपने दादा-दादी या माता-पिता की भाषा भूल रहे हैं और अपनी मातृभाषा न राष्ट्रभाषा की उपेक्षा हो रही है कहीं आने वाले समय में हमारी भाषाएँ ही लुप्त न हो जाएँ।
संगोष्ठी में बैंक ऑफ बड़ौदा के सहायक महाप्रबंधक जवाहर कर्णावट ने हिंदी की वैश्विकता पर बोलते हुए हिंदी के वैश्विक परिवेश की जानकारी दी और कहा कि पहने भारत में हिंदी की जड़ों को मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के निदेशक डॉ. एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने विश्व हिंदी सम्मेलनों की जानकारी देते हुए कहा कि भोपाल में आयोजित दसवें हिंदी सम्मेलन में जिस प्रकार भारत के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, विदेशमंत्री सहित सहित अनेक मंत्रियों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों ने सक्रिय भागीदारी करते हुए हिंदी के प्रयोग व प्रसार का संकल्प व्यक्त किया और गृहमंत्री ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में और संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाषा बनाने का संकल्प व्यक्त किया है, इससे आशा बंधी है कि हिंदी व्यापार, व्यवहार, शिक्षा व रोजगार में प्रतिष्ठा पा सकेगी ।
अध्यक्षीय भाषण में प्रो, माधुरी छेड़ा ने कहा कि सभी माताएँ यदि अपने बच्चों को हिंदी सिखाएँ तो निश्चय ही यही राष्ट्रभाषा के में प्रतिष्ठित हो कर विश्वभाषा के रूप में अपना स्थान बनाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी-भाषियों को भी अन्य भारतीय भाषाएं सीखनी चाहिए ।कार्यक्रम में स्वागत-संबोधन प्राचार्या डॉ. सुधा व्यास ने प्रस्तुत किया तथा कार्यक्रम का संचालन उपप्राचार्य व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सतीश पांडेय ने किया।
डॉ. एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य’निदेशक, ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा, विश्व वात्सल्य
मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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