गणेश एन. देवी का भाषा सर्वेक्षण और भोजपुरी की राजनीति
डॉ. अमरनाथ शर्मा
प्रो. गणेश एन. देवी ने एन.डी.टी.वी. के एक कार्यक्रम में रवीश कुमार के साथ बातचीत करते हुए जबसे कहा है कि “भोजपुरी, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई भाषा है.“ तब से भोजपुरी को संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने की मांग करने वालों के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं. सोशल मीडिया पर प्रो. देवी का उक्त उद्धरण बार बार उछाला जा रहा है. जबकि प्रो. गणेश एन.देवी ने आठवीं अनुसूची का जिक्र तक नहीं किया. भोजपुरी के संबंध में उनकी उक्त अवधारणा का आधार क्या है ? क्यों अंग्रेजी सबसे तेजी से बढ़ती हुई भाषा नहीं है जबकि भारत जैसे देश में यह विदेशी भाषा प्राथमिक कक्षाओं से ही अनिवार्य हो चुकी है ? इस अंग्रेजी के बगैर इस देश में आज कोई नौकरी नहीं मिल सकती. इस बारे में गणेश एन. देवी मौन हैं. मुझे लगता है कि एक भोजपुरी भाषी रवीश कुमार से संवाद करते हुए सहज ही उनकी जबान से यह वाक्य निकल गया, वर्ना दुनिया में बहुत सी भाषाएं हैं जो भोजपुरी की तुलना में अधिक तेजी से विकास कर रही हैं. खुद खड़ी बोली हिन्दी जिस रफ्तार से विकसित और प्रतिष्ठित हुई है, वह एक मिशाल है. जबकि भोजपुरी और खड़ी बोली हिन्दी की उम्र लगभग समान ही है.
बहरहाल, गणेश एन. देवी के नेतृत्व में किया गया भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण ( पीपल्स लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया )आजाद भारत की एक बड़ी उपलब्धि है. इसके पहले ब्रिटिश काल में एक अंग्रेज आई.सी.एस. जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने भारतीय भाषाओं का सर्वेक्षण किया था. 30 वर्ष तक लगातार सर्वेक्षण करने के बाद सन् 1928 में उनका कार्य ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ नाम से 11खण्डों में प्रकाशित हुआ था. भाषा के अध्येताओं के लिए स्रोत के रूप में आज तक ग्रियर्सन का ही शोध-कार्य उपलब्ध था. आज फिर से प्रो. गणेश एन. देवी ने प्रमाणित कर दिया कि शोध के क्षेत्र में सांस्थानिक प्रयासों की तुलना में वैयक्तिक प्रयास कहीं अधिक सफल और प्रामाणिक सिद्ध हुए हैं. 90 खंडों में प्रकाशित होने वाले अपने सर्वेक्षण में गणेश एन. देवी और उनकी टीम ने 780 भाषाओं का सर्वेक्षण किया है और उनके इस कार्य में 10 वर्ष का समय लगा है.
रवीश कुमार ने विगत 3 अगस्त को अपने कार्यक्रम का आरंभ करते हुए कहा, “ जब भी हम सुनते हैं कि भाषाएं मर रही हैं तो आम समाज में इन खबरों को लेकर किसी को अफसोस करते हुए नहीं देखा गया. लोगों को लड़ते हुए जरूर देखा कि हमारी भाषा आठवीं अनुसूची मे नहीं आई और उनकी भाषा क्यों आ गई.”
रवीश कुमार से बातचीत करने के दौरान भी और अपने सर्वेक्षण में भी गणेश एन. देवी की मुख्य चिन्ता यह है कि “भारत भाषाओं का कब्रिस्तान बनता जा रहा है.” पिछले 50 वर्षों में भारत की 250 भाषाएं मर चुकी हैं और अगले 50 वर्षों में भारत की लगभग 400 भाषाओं के विलुप्त हो जाने का खतरा है. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक भाषा के मर जाने का मतलब होता है एक पूरी जाति का मर जाना.
भोजपुरी को संविधान का आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करने वालों को गणेश एन. देवी की मुख्य चिन्ता से कोई लेना देना नहीं है. आखिर जो भाषाएं मरने के कगार पर खड़ी हैं उन्हें कैसे बचाया जाए ? किन्तु भोजपुरी की राजनीति करने वालों को तो हर हाल में अपना ही स्वार्थ दिखाई देता है. गणेश एन. देवी ने भोजपुरी को तेजी से विकसित होने वाली भाषा कहा, मानो उसेआठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रस्तावित कर दिया. आठवीं अनुसूची में शामिल होना तो आरक्षण की तरह है. जो जातियां आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सबसे ज्यादा पिछड़ी हैं उन्हें आरक्षण का लाभ देकर उन्हें मुख्य धारा में लाना सरकार का उद्देशय होता है. इस तरह जो भाषाएं मरने के कगार पर खड़ी हैं, आरक्षण का लाभ तो उन्हें मिलनी चाहिए. ‘सबसे तेजी से विकसित होने वाली भाषा’ को आरक्षण की क्या जरूरत ?
भोजपुरी की राजनीति करके अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने वाले लोग किस तरह देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं इसका उदाहरण ‘जन भोजपुरी मंच’ नामक संगठन का निम्न आह्वान है, “ भोजपुरी के लड़ाई खाली भोजपुरी के लड़ाई ना हवे. इ सगरी भारतीय भसवन के सम्मान के लड़ाई ह. “. “ जय भोजपुरी बोली ले जा- जय भोजपुरी के मतलब ह सगरी भारतीय भासन के जय.”
वास्तव में भोजपुरी को संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने की मांग अर्थ है हिन्दी परिवार से बँटवारा करके अपना अलग घर बसा लेने की मांग. यह भला सभी भारतीय भाषाओं के सम्मान की लड़ाई कैसे है ? इतना ही नहीं, एक ओर भोजपुरी की लड़ाई को सारी भारतीय भाषाओं का सम्मान कहना तो वहीं दूसरी ओर यह कहना, कि “ भोजपुरी दुनिया की सबसे मीठी भाषा है. जिसका विकल्प कोई भाषा नहीं हो सकती.” इस तरह का कथन दूसरी भाषाओं की उपेक्षा और उनका अपमान है. हर व्यक्ति को अपनी भाषा सबसे अधिक प्रिय, मीठी और सरल लगती है. मुझे खुद बांग्ला का माधुर्य मुग्ध कर देता है.
डॉ. अमरनाथसंयोजक, ‘हिन्दी बचाओ मंच’ एवं पूर्व प्रोफेसर, कलकत्ता विश्वविद्यालय
विश्व हिंदी समाचार से साभार
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी
मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
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