शनिवार, 13 अगस्त 2016

नयी शिक्षा नीति के सन्दर्भ में मैं अपने निम्नलिखित दो सुझाव प्रस्तुत कर रही हूँ -- प्रतिभा सक्सेना.

प्रेषिका -
डॉ. प्रतिभा सक्सेना.
pratibha_saksena@Yahoo.com
Date: 2016-07-21 10:03  
Subject: नई प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2016 पर आमंत्रित सुझाव /आपत्ति 

To: nep.edu@gov.in 


आदरणीय प्रकाश जावड़ेकर जी, 
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, 
पता ; 301 ,सी -विंग ,शास्त्री भवन , 
नयी दिल्ली - 110001 

महोदय 
जय भारत . 
नयी शिक्षा नीति के सन्दर्भ में मैं अपने निम्नलिखित दो सुझाव प्रस्तुत कर रही हूँ -
 1.
भारत के लगभग सभी राज्यों के वासी ,सांस्कृतिक ,धार्मिक, या साहित्यिक क्षेत्रों में  यहाँ की प्राचीनतम भाषा संस्कृत से  , जुड़ाव रखते हैं ,.उनकी भाषाओँ  के साहित्य और सामान्य उक्तियों में भी वे प्रभाव अनेक रूपों में मुखर होते हैं.यह  पारस्परिक जुड़ाव आगत पीढ़ियों में सक्रिय रहे और सार्थक भूमिका निभा सके इसके लिये वे संस्कृत की लिपि से परिचित रहें  और उसे इच्छानुसार व्यवहार में ला सकें, यह प्रयत्न शिक्षा प्रणाली में वांछनीय है . वह लिपि देवनागरी है ,जो हिन्दी, मराठी  अनेक भाषाओं में प्रयुक्त होती है  और संसार की  सर्वाधिक वैज्ञानिक और समर्थ लिपि मानी जा रही है . शिक्षा-प्रणाली में आरंभिक स्तरों से ही छात्रों के लिये इसकी  यह व्यवस्था हो .ज्ञान और विद्याओं  की विभिन्न शाखाओं के साथ   साहित्य ,कला ,नीति आदि  विभिन्न क्षेत्रों में  अपनी  प्राचीन धरोहर से जुड़ना,अपने मूल से  संयुक्त रहने  के साथ हमारे राष्ट्र-जीवन में एकात्मता और आत्म-गौरव का संचार करेगा . 
 2. 

शिक्षा प्रणाली में अध्ययन के साथ सामाजिक- जीवन से जुड़ाव और उससे सहानुभूति- सहभागिता की भावना जगाना का बहुत आवश्यक है. अतः वाँछित है कि कक्षाओं और कोर्स के साथ हर छात्र के लिये समाज सेवा हेतु निश्चित घंटों का कार्य आश्यक हो . जिसमें वह स्वयं चिकित्सालय ,अनाथालय आदि अन्य सेवागृहों में जाकर ज़रूरतमंद लोगों की सहायता करे . इसमें केवल शिक्षा संस्थान का नहीं छात्र के पालकों  और परिवार का भी उचित सहयोग रहे .इस प्रकार प्रारंभ से ही  बृहत्तर  समाज से जुड़ कर वे उसके प्रति संवेदनशील हों  और उनेहें अपने दायित्व का भान हो .इस प्रकार  एक उत्तरदायी नागरिक बनने की दिशा प्राप्त करें.
 मैं विश्वविद्यालयीन शिक्षा के साथ माध्यमिक एवं  प्रारंभिक शिक्षा से जुड़ी रही हूँ और भारत के अनेक राज्यों का शेक्षिक अनुभव ले चुकी हूँ ,इसलिये मुझे अपने दोनों सुझाव सामने रखना आवश्यक लग रहा है .कृपया इन पर उचित विचार करें.
कामना यही है हमारे राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल हो !
भवदीया ,
- प्रतिभा सक्सेना.
(डॉ.प्रतिभा सक्सेना).

प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
     


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