मंगलवार, 23 अगस्त 2016

​शिक्षा नीति के संबंध में सुझाव - भाग - 6


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शिक्षा नीति के संबंध में सुझाव - भाग - 6
प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नी ति पर सुझाव/आपत्ति भेजने के लि ए -मेल: nep.edu@gov.in

क्या आप भी भारतीय भाषा - संस्कृति  के पक्षधर हैं ? यदि हाँ तो कृपया सुझाव आदि उपर्युक्त ई मेल पते पर शीघ्र भेजें। 
सुझाव भेजने की अंतिम तिथि 15- अगस्त 2016



प्रकाश जावड़ेकर,
माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री,
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
नई दिल्ली – 110001 
विषय: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2016
आदरणीय मंत्री महोदय,
भारत के भविष्य को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले मंत्रालय की जिम्मेदारी आप को सौंपे जाने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें| 
आदरणीय, नई शिक्षा नीति के मसौदे में भाषा सम्बन्धी सिफारशें पढ़ कर अति निराशा हुई है| सम्बंधित मसौदे में भाषा के बारे में निम्न मुख्य बातें हैं:
१. प्राथमिक स्तर पर शिक्षा मात्री भाषा में देने की बात कही तो गई है पर इस स्तर पर भी शिक्षा में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते दखल के कारण भयावह शैक्षिक, सांस्कृतिक, विकासपरक और भाषागत आदि नुकसानों पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है;
२. उच्च स्तर की शिक्षा भारतीय भाषाओं में प्रदान करने के बारे में मसौदा बिलकुल चुप्प है;
३. अंग्रेजी भाषा के महत्त्व को रेखांकित किया गया है जिसका कोई शोधपरक आधार प्राप्त नहीं हैं|
४. शिक्षा में भारतीय भाषाओं की अनदेखी से भारतीय भाषाओं, संस्कृतियों, और विकास को जो भयावह नुकसान हो रहे हैं उनका जिक्र तक नहीं किया गया है|
भाषा सम्बन्धी इस दृष्टिकोण का अर्थ यह है कि वर्तमान भाषा व्यवस्था जैसे की तैसे बनी रहेगी और इस व्यवस्था से जो ऐतिहासिक नुक्सान हो रहे हैं वो होते रहेंगे और भारत मुकाबलतन एक अशिक्षित और अविकसित देश तो बना ही रहेगा, इस के साथ-साथ भारतीय भाषाओं और परिमाणपूर्वक भारतीय संस्कृतियों की दशा ऐसे ही बदतर होती रहेगी जैसे हो रही है और संभवतः दोनों पूर्ण विनाश की अवस्था में जल्दी पहुँच जायेंगी|
आदरणीय, मेरी इन टिप्पणियों के प्रमाणस्वरूप मैं निम्न तथ्य आप के विचाराधीन करना चाहता हूँ:
शिक्षा और मातृ भाषा बनाम अंग्रेजी माध्यम: १. २०१२ में विज्ञा नों की स्कूल स्तर की शिक्षा में  पहले ५० स्थान हासिल करने वाले  देशों में अंग्रेजी में शिक्षा  देने वाले देशों के स्थान ती सरा (सिंगापुर), दसवां (कनाडा),  चौहदवां (आयरलैंड) सोहलवां (आस् ट्रेलिया), अठाहरवां (न्यूजीलैं ड) और अठाईसवां (अमेरिका) थे|  इन अंग्रेजी भाषी देशों में भी  शिक्षा अंग्रेजी के साथ-साथ दू सरी मातृ भाषाओं में भी दी जाती  है| २००३, २००६ और २००९ में भी  यही रुझान थे| २. एशिया के प् रथम पचास सर्वोतम विशवविद्यालयों  में एकाध ही ऐसा है जहां शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में दी जाती  है और भारत का एक भी विशवविद् यालय इन पचास में नहीं आता३. दुनिया भर के भाषा और शिक्षा वि शेषज्ञों की राय और तज़ुर्बा भी  यही दर्शाता है कि शिक्षा सफलता पूर्वक केवल और केवल मातृ-भाषा  में ही दी जा सकती है४. भारती य संविधान व शिक्षा पर अभी तक  बने सभी आयोगों व समितियों के  भी यही आदेश हैं|
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार/कारोबार  और मातृ भाषा बनाम अंग्रेजी मा ध्यम: १. सत्तरवीं सदी में (जब  एकाध भारतीय ही अंग्रेजी जानता  होगा) दुनिया के सकल उत्पाद में  भारत का हिस्सा २२ (बाईस) प्तिशत था जो अब मात्र २.५० प्रति शत है २. अंग्रेजी भाषा के दिन-प्रति-दिन बढ़ते दखल के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत का हिस्सा लगातार कम हो रहा है; प्रति  व्यक्ति निर्यात में दुनिया में भारत का स्थान १५०वां है| . पि छले दिनों इंग्लैंड में रिपोर् ट छपी है कि यूरोपीय बैंक इंग् लैंड वालों को इस लिए नौकरी नहीं  दे रहे क्योंकि उन्हें अंग्रे जी के इलावा कोई भाषा नहीं आती  और कोई और भाषा न आने के कारण  इंग्लैंड को व्यापर में चार ला ख करोड़ रूपए का घाटा पड़ रहा है|
भारतीय भाषाओं का विज्ञान आदि के  शिक्षण के लिए सामर्थ्य:  चिकित्सा विज्ञान के कुछ अंग् रेजी शब्द और इनके हिंदी समतुल् य यह स्पष्ट कर देंगे कि ज्ञान- विज्ञान के किसी भी क्षेत्र के  लिए हमारी भाषाओं में शब्द हासल हैँ या आसानी से प्राप्त हो स कते हैं: Haem - रक्त; Haemacyt e - रक्त-कोशिका; Haemagogue -  रक्त-प्रेरक; Haemal - रक्तीय;  Haemalopia - रक्तीय-नेत्र;  Haemngiectasis - रक्तवाहिनी-पा सार; Haemangioma - रक्त-मस्सा;  Haemarthrosis - रक्तजोड़-विकार ; Haematemesis - रक्त-वामन; Ha ematin - लौहरकतीय; Haematinic  - रक्तवर्धक; Haematinuria – रक् तमूत्र; Haematocele - रक्त-ग् रन्थि/सूजन; Haematocolpos - रक् त-मासधर्मरोध; Haematogenesis - रक्त-उत्पादन; Haematoid - रक् तरूप; Haematology - रक्त-विज् ञान; Haematolysis - रक्त-ह्रास; Haematoma - रक्त-ग्रन्थि। 
मातृ भाषा माध्यम में शिक्षा और  विदेशी भाषा सीखना: यह सही है  कि वर्तमान समय में विदेशी भाषा ओं का ज्ञान महत्वपूर्ण है वि देशी भाषा सीखने के संदर्भ में  यूनेस्को की २००८ में छपी पुस्तक (इम्प्रूवमेंट इन द कुआलटी  आफ़ मदर टंग - बेस्ड लिटरेसी ऐं ड लर्निंगपन्ना १२) से यह टू क बहुत महत्वपूर्ण है: हमारे रास्ते में बड़ी रुकावट भाषा एवं शिक्षा के बारे में कुछ अंधविश्वास हैं और लोगों की आँखें खो लने के लिए इन अंधविश्वासों का  भंडा फोड़ना चाहिए। ऐसा ही एक  अन्धविश्वास  यह है कि विदेशी भाषा सीखने का  अच्छा तरीका इसका शिक्षा के मा ध्यम के रूप में प्रयोग है (  दरअसल, अन्य भाषा को एक विषय के  रूप में पढ़ना ज्यादा कारगर हो ता है)। दूसरा अंधविश्वास यह है  कि विदेशी भाषा सीखना जितनी  जल्दी शुरू किया जाए उतना बे हतर है (जल्दी शुरू करने से  लहजा तो बेहतर हो सकता है पर ला भ की स्थिति में वह सीखने वाला  होता है जो मातृ-भाषा में अच्छी  मुहारत हासिल कर चूका हो)। ती सरा अंधविश्वास यह है कि मातृ-भा षा विदेशी भाषा सीखने के राह में  रुकावट है (मातृ-भाषा में मजबू त नींव से विदेशी भाषा बेहतर सी खी जा सकती है)। स्पष्ट है कि  ये अंधविश्वास हैं और सत्य नहीं । लेकिन फिर भी यह नीतिकारों की  इस प्रश्न पर अगुवाई करते हैं  कि प्रभुत्वशाली (हमारे संदर्भ में अंग्रेज़ी  ज.स.) भाषा कैसे  सीखी जाए।" यह कथन दुनिया भर  में हुए अध्ययन का नतीजा था| लग भग हर देश में विदेशी भाषा बच् चे की १० साल की उम्र के बाद  पढ़ाई जाती है और इन बच्चों कि  विदेशी भाषा कि मुहारत भारतीय  बच्चों से कम नहीं है| इन देशों को अंग्रेजी की जरूरत भारत जि तनी है और ये देश शिक्षा के मा मले में भारत से समझदार हैं और  विकास में आगे हैं|
भाषा कब मरती है: आज के युग में  किसी भाषा के ज़िंदा रहने और वि कास के लिए उस भाषा का शिक्षा के  माध्यम के रूप मे प्रयोग आवश् यक है वही भाषा जिंदा रह सकती  है जिसका जीवन के विभिन्न क्षे त्रों में प्रयोग होता रहे | 
अंग्रेजी माध्यम  के कुछ और बड़े  नुकसान: अंग्रेजी माध्यम की व जह से एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही  है जिसका न अपनी भाषा और न अं ग्रेज़ी में कोई अच्छा सामर्थ्य  है और न ही यह अपनी संस्कृतिप रम्परा इतिहास और अपने लोगों  के साथ कोई गहन आत्मीयता बना सक ती है और न ही प्राप्त ज्ञान को  ९५ प्रतिशत भारतीयों के साथ सा झा कर सकती है|
निष्कर्ष: भारतीय शिक्षा संस्था ओं का दयनीय दर्जाविश्व व्यापा र में भारत का लगातार कम हो रहा  हिस्साभाषा के मामलों में वि शेषज्ञों की राय और वर्तमान अन् तरराष्ट्रीय भाषा व्यवहार और स् थिति इस बात के पक्के सबूत हैं  कि मातृ-भाषाओं के क्षेत्र अंग् रेजी के हवाले कर देने से अभी  तक हमें बहुत भारी नुक्सान हुए  हैं और इससे न तो हमें अभी तक  कोई लाभ हुआ है और न ही होने वा ला है भारत का दक्षिण कोरिया जापानचीन जैसे देशों से पीछे  रह जाने का एक बङा कारण भारतीय  शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में  अंग्रेजी भाषा का दखल है
विनती: उपरोक्त्त तथ्यों की रोश नी में मेरी  विनती है कि भारतीय लोग वर्तमा न भाषागत स्थिति के बारे में गह न सोच-विचार करें ताकि सही भाषा  नीति व्यवहार में लाई जा सके  इसमें पहले ही बहुत देर हो चुकी  है और भारी नुकसान हो चुके हैं । यदि वर्तमान व्यवहार ऐसे ही च लता रहा तो भारत की और भी बड़ी शैक्षिक, सांस्कृतिक, और विकासपरक  तबाही निष्चित है 
आदरणीय, मैं कुछ दस्तावेज (हिंदी में) इस पत्र के साथ संलगित कर रहा हूँ जो भाषा नीति के प्रश्न पर और विस्तार से वैश्विक जानकारी देते हैं| यहाँ संलगित एक दस्तावेज 'भाषा नीति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय खोज: मात्री भाषा खोलती है शिक्षा, ज्ञान और अंग्रेजी सीखने के दरवाजे' हिंदी, पंजाबी, तमिल, तेलूगु, कन्नड़, मराठी, मैथिलि, नेपाली, डोगरी, उर्दू और अंग्रेजी में http://punjabiuniversity.a cademia.edu/JogaSingh/papers प र उपलब्ध है|
पूर्ण आशा है कि  नई शिक्षा नीति का निर्धारण करते समय उपरोक्त तथ्यों को अवश्य ध्यान में रखेंगे| कोई शब्द अनुचित लगे तो क्षमा कीजिएगा|     सादर, 
भवदीय,
जोगा सिंह 
ਜੋਗਾ ਸਿੰਘ, ਐਮ.ਏ., ਐਮ.ਫਿਲ., ਪੀ-ਐਚ.ਡੀ. (ਯੌਰਕ, ਯੂ.ਕੇ.) Joga Singh, M.A., M.Phil., Ph.D. (York, U.K.)
ਕਾਮਨਵੈਲਥ ਵਜੀਫਾ ਪ੍ਰਾਪਤ (1990-93)  Commonwealth Scholarship Awardee (1990-93)
ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਅਤੇ ਸਾਬਕਾ ਮੁਖੀ (2001-11), ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਗਿਆਨ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬੀ ਕੋਸ਼ਕਾਰੀ ਵਿਭਾਗ Professor & Former Head, Department of Linguistics & Punjabi Lexicography
ਸਾਬਕਾ ਡਾਇਰੈਕਟਰ, ਸੈਂਟਰ ਫਾਰ ਡਾਇਸਪੋਰਾ ਸਟੱਡੀਜ਼  
Former Director, Centre for Diaspora Studies
ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ, ਪਟਿਆਲਾ - 147 002 (ਪੰਜਾਬ) - ਭਾਰਤ। Punjabi University, Patiala - 147 002 (Punjab) - INDIA.
ਜੇਬੀ:Mobile +91-9915709582,ਬਿਜ-ਡਾਕ:E-mail: virkjoga5@ gmail.comjogasinghvirk@ yahoo.co.in, ਮੱਕੜਜਾਲ-ਤੰਦ:Web h ttp://punjabiuniversity.academ ia.edu/JogaSingh/papers
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विषय : शिक्षा नीति के सम्बन्ध में प्रवासी भारतीय साहित्यकार के विचार

       विनम्रतापूर्वक निवेदन करना चाहूँगी कि विश्व का कोई भी राष्ट्र स्वभाषा बिना गूँगा है. राष्ट्र की अस्मिता हेतु उत्तरोत्तर उसका प्रचार-प्रसार, विकास, उसका सर्वोपरि होना आवश्यक है. भारत जैसे महान् देश के लिए जो पुरातन काल में विश्व गुरु रहा है और जिसकी भाषा 'संस्कृत' ने उच्चस्तरीय संस्कृति में अपना योगदान दे विश्व में अपना लोहा मनवाया है और आधुनिक काल में उसी की आत्मजा 'हिन्दी' ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्र को एकता-सूत्र में बाँध स्वराज दिलवाया था, तदोपरांत 'हिन्दी' ही वह भाषा है जो सम्पूर्ण राष्ट्र को एकता-सूत्र में बाँधे रखने की सामर्थ्य रखती है. तभी तो हमारे भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा विदेशों में हिन्दी में दिया गया भाषण वातावरण को तालियों की मधुर ध्वनि से गुंजायमान कर देता है.
       आज, विषेशरूप से जब भारत 'हिन्दी' को यू.एन. की आधिकारिक भाषा बनाने हेतु प्रयत्नशील है जिसका आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में कैनेडा से विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था,जहाँ यू.एन. के मुख्य सभागार में श्री बान की मून ने हिन्दी से अपना सम्बोधन आरम्भ किया था और सैकड़ों भारतीय और प्रवासी भारतीयों की ग्रीवा गर्वोन्नत हुई थी; तथा दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में 'विश्व हिन्दी सम्मान' से सम्मानित होने पर इस दिशा में हिन्दी की प्रगति की भी मैं ईश्वर कृपा से साक्षी रही; साथ ही इस साल १९ अप्रैल को भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति माननीय प्रणब मुखर्जी द्वारा 'हिन्दी सेवी सम्मान' प्राप्त कर जहाँ व्यक्तिगत रूप से गौरवान्वित हुई हूँ वहीं इस आस की धरती पर आशान्वित भी कि हिन्दी के सुदिन आ रहे हैं.
       क्षेत्रीय भाषाएँ उपयोगी हैं, वंदनीय हैं, हिन्दी की सहोदरा के रूप मे. हिन्दी को अपने स्थान से हटाकर, उसके स्थान पर बैठकर नहीं, वरन् उसे अपनी बड़ी बहन मान कर उसके साथ कदम-दर-कदम आगे बढ़कर ही उनकी सार्थकता है. अँग्रेजी की उपयोगिता, उपादेयता है. वैसे देखा जाए तो ज्ञान कभी न भरने वाला एक अंधा कुआँ है. ज्ञान तो असीमित है, इसकी कोई सीमा नहीं. भाषाएँ जितनी ज़्यादा आएँ उतना ही अच्छा है. यह तो मस्तिष्क के लिए आवश्यक उपयोगी भोज्य-सामग्री है, मस्तिष्क की जुगाली है. जितना अधिक से अधिक आप मस्तिष्क का प्रयोग करेंगे यह उतना ही तीक्ष्ण होगा.
       मातृभाषा मानव व उसके राष्ट्र को सम्मानित करती है. क्या प्रवासी भारतीय विदेशों में यह गर्व से कह सकता है कि उसे तो केवल अँगेजी आती है, अपनी मातृभाषा नहीं? हाँ! अपनी मातृभाषा को सर्वोपरि मानते हुए उसके साथ-साथ यदि प्रवासी भारतीयों को अँग्रेजी या किसी अन्य देशों की भाषा का भी ज्ञान है तो सोने पे सुहागा क्योंकि वह उसे कुछ सहूलियत प्रदान कर सकती है, यहाँ तक कि उसकी काबलियत में चार-चाँद लगा सकती है. जो स्वयं की भाषा का सम्मान करना नहीं जानते, दूसरे भी उनका सम्मान नहीं करते.
       लगभग पचास वर्षों से स्वदेश बने विदेश कैनेडा में अपनी जन्मदात्री भारत माँ व अब पोषण करने वाली कैनेडा की धरती माँ के बीच 'माँ' और 'माँ-सी' का सम्बन्ध बनाये रह रही हूँ. दोनों के प्रति गर्वान्वित हूँ.
       विदेशों में अधिकांश प्रवासी भारतीय अपनी मातृभाषा से जुड़े रहने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं. पर यदि भारत में ही 'हिन्दी' का उद्गम स्त्रोत सूख जाएगा तो विदेशों में हिन्दी का स्त्रोत कब तक अनवरत बहता रहेगा? 'हिन्दी'के उन्नयन में संलग्न २००४ से 'वसुधा' हिन्दी साहित्यिक पत्रिका का अनवरत संपादन-प्रकाशन कर रही हूँ. भारतीय संस्कृति की धरोहर गाँठ बाँध जहाँ माँ सरस्वती को अर्घ्य-स्वरूप विभिन्न विषय संदर्भित कई पुस्तकें लिखीं वहीं पिछले कुछ वर्षों में 'कैकेयी चेतना-शिखा' उपन्यास, जो साहित्य अकादमी म.प्र. द्वारा अखिल भारतीय वीरसिंह देव पुरस्कार द्वारा सम्मानित हो गौरवान्वित हुआ, 'चिंतन के धागों में कैकेयी - संदर्भ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण'शोधग्रंथ, 'कैकेयी चिंतन के नव आयाम - संदर्भ : तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस' शोध-ग्रंथ, 'कैकेयी चिंतन के नव परिदृश्य - संदर्भ : अध्यात्मरामायण' शोध-ग्रंथ एवं उपन्यास 'लोक-नायक राम' भी लिखा. इसी श्रृँखला में आगामी उपन्यास है 'जनकनंदिनी सीता'.
         आपने त्रिभाषा और भारतीय संस्कृति का समन्वय करते हुये शिक्षा-नीति के निर्माण का जो निर्णय लिया है, उसे सराहते हुए, धन्यवाद देते हुए साधुवाद देती हूँ.
       सविनय निवेदन है कि भारत की शिक्षा नीति में 'हिन्दी' की महानता को दृष्टिगत रखते हुए यथासम्भव उसकी गरिमा को बनाए रखा जाए. 'हिन्दी' को उसके गौरवशाली सर्वोच्च पद पर पदासीन कर महिमामण्डित करने के पश्चात् अन्य उपयोगी तथ्यों को ध्यान में रख शिक्षा नीति का अनुमोदन एवं प्रतिपादन ही सर्व-मांगल्य की भावना प्रतिपादित करेगी; हिन्दी के प्रति समर्पित प्रवासी भारतीय के रूप में ऐसी मेरी मान्यता है.   
       सादर, सस्नेह,
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  श्रीमती स्नेह ठाकुर Sneh Thakore (Mrs.) 
Editor, Publisher & Author ,
Awarded by The President of India "Hindi Sevi Samman"Limca Book Record Holder, Fellow: Research Foundation Int., Affd. to UNO
Director: Int. R.C. University, Belgrade (Canada Chapter), Patron Hindi Center, N. Delhi
16 Revlis Crescent ,Toronto, Ontario M1V-1E9 Canada ,Tel. 416-291-9534 ,E-mail: sneh.t...@rogers.com ,Website: http://www.Vasudha1.webs.com

राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति का प्रस्‍ताव-प्रारूप हिन्‍दी में भी उपलब्‍ध 
पीडीएफ प्रति संलग्न है।



वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद


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