भास्कर अख़बार की नीति निर्धारकों से निवेदन है कि सिटी भास्कर, इन्दौर पृष्ठ-१८,परप्रकाशित शीर्षक की लिपि देव नागरी में है, जिन्हें अँग्रेजी उच्चारणों में प्रस्तुत किया जाता है। जिसे मुश्किल से ५ %पाठक समझ पाते हैं। जब कि अख़बार की भाषा हिन्दी है। मेरा सुझाव है, हिन्दी पाठकों की सुविधा के लिये शीर्षक व सम्बन्धित सामग्री हिन्दी में ही दें। अँग्रेजी पाठकों के लिये अँग्रेजी में भास्कर प्रकाशित किया जा सकता है। हिन्दी पाठकों को हिन्दी में अख़बार की सम्पूर्ण सामग्री प्रदान करना संगत है। क्या अँग्रेजी कोई अख़बार इस प्रकार से प्रकाशित हो रहा है ? हिन्दी सक्षम, सम्पन्न और देश की प्रथम राजभाषा है। अख़बार को चाहिये कि वह अख़बार के माध्यम से मानक और सर्व सुलभ-सहज हिन्दी प्रस्तुत करें। भारत का सबसे अधिक प्रसार-संख्या वाला दैनिक अन्य के लिये आदर्श, और अनुकरणीय होना चाहिये। सिटी भास्कर की अँग्रेजियत मानसिकता देख कर पाठक अपनी और राष्ट्र की प्रमुख भाषा पर गर्व करे, तो कैसे ? मैं अन्तर्मन से चाहता हूँ कि भारत का दैनिक भास्कर दुनिया में अपनी भाषा की पहचान बनाने की दिशा में आगे बढ़े। क्या विश्वास कर सकता हूँ कि यह जन-जन का लोकप्रिय दैनिक अपना देश,अपनी भाषा का सम्मान बढ़ाने की नीति पर चल कर पाठकों के साथ न्याय भी करेगा ?
अपनी सुविचारित नीति से अवगत कर अनुग्रहित करेगा। देश की भाषा के मामले में मार्गदर्शक की राष्ट्र हितैषी भूमिका का निर्वहन करेगा। सधन्यवाद ।
निर्मलकुमार पाटोदी, विद्या -निलय, ४५, शांति निकेतन ,(बाॅम्बे हाॅस्पीटल के पीछे),
हिंदी के कुछ अखबार न जाने क्यूँ हीन भावना से हो ग्रस्त होकर अपनी ही भाषा को कमतर दिखा रहे हैं। अनावश्यक रूप से जीवित शब्दों को हटा जबरन अंग्रेजी शब्दों को बैठा रहे हैं। देवनागरी के दामन में रोमन लिपि के पैबन्द लगा रहे हैं। बैठे हैं जिस पेड़ पर उसीको काटते हैं नादान, जिन पर अपनी भाषा को बढ़ाने की था जिम्मेदारी वे खुद ही इसे मिटा रहे हैं। जहाँ करते थे फरियाद हम कभी, वहीं अब हमारे शब्दों को जिंदा जला रहे हैं । दोषी तो हम भी कुछ कम नहीं, तमाशाई बनकर मुस्कुरा रहे हैं । जो हिंदी की खा रहे, पुरस्कारों का जखीरा बना रहे हैं, वे साधे हैं मौन, आप ही क्यूँ नाहक चिल्ला रहे हैं....।
- वैश्विक हिंदी सम्मेलन
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ढाकेश्वरी मंदिर (१९०४ में ; फ्रिज काप ( Fritz Kapp) द्वारा लिया गया फोटो)
ढाकेश्वरी मन्दिर ढाका नगर का सबसे महत्वपूर्ण मन्दिर है। इन्हीं ढाकेश्वरी देवी के नाम पर ही ढाका का नामकरण हुआ है। भारत के विभाजन से पहले तक ढाकेश्वरी
देवी मन्दिर सम्पूर्ण भारत के शक्तिपूजक समाज के लिए आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र था। 12वीं शताब्दी में सेन राजवंश के बल्लाल सेन ने ढाकेश्वरी देवी मन्दिर का
निर्माण करवाया था। ढाकेश्वरी पीठ की गिनती शक्तिपीठ में की जाती है क्योंकि यहां पर सती के आभूषण गिरे थे।
http://hi.wikipedia.org/s/lzh मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
विजय कुमार मल्होत्रा ,पूर्व निदेशक (राजभाषा),रेल मंत्रालय,भारत सरकार
प्रस्तुत कर्त्ता
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा,विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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सोमवार, 8 जून 2015
दैनिक भास्कर, बुधवार २७ मई २०१५, इंदौर
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