‘भारत-भाषा प्रहरी’- डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा
राजभाषा के संवैधानिक व वैधानिक उपबंधों के अनुपालन के लिए संघ व राज्यों में बड़ी संख्या में कार्मिक कार्यरत हैं लेकिन जिन्होंने सरकारी सेवा में रहकर और उसके दायरे से बाहर रहकर भी पूरी शक्ति और भक्ति के साथ हिंदी के प्रयोग व प्रसार के लिए कार्य किया है ऐसे लोगों को उंगलियों पर गिना जा सकता है. इनमें एक प्रमुख नाम है- डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा. राजभाषा हिंदी की सेवाएँ उनके लिए केवल जीवनयापन का जरिया नहीं, बल्कि शिक्षा व परिवेश से प्राप्त संस्कारों के जीने का जरिया थीं, जिसके चलते उन्हें अपने देश की भाषाओं से एक स्वाभाविक लगाव था. इसलिए वे उन संस्कारों को जीवन का लक्ष्य बनाकर निरंतर हिंदी की सेवा के साथ आगे बढ़ते गए. हिंदी की सेवा में कुछ ऐसे लोग भी दिखते हैं जो सेवाकाल में ही सवेतन सेवानिवृत्ति का सा जीवन जीते हैं. लेकिन इसके ठीक विपरीत डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा सेवानिवृत्ति के 13 वर्ष बाद भी ‘भारत भाषा प्रहरी’ बनकर पूरी सक्रियता से और पूरी शक्ति से हिंदी की सेवा में लगे हुए हैं.
डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा से मेरी पहली मुलाकात 1997-98 के आसपास मध्य रेलवे की एक कंप्यूटर संगोष्ठी में हुई जिसमें वे हैदराबाद से मुख्य वक्ता के रूप में आए थे . संगोष्ठी में मैं राजभाषा विभाग के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित था. उस समय तक राजभाषा विभाग में कंप्यूटरों का उपस्थिति नगण्य सी थी और कंप्यूटर संबंधी मेरा ज्ञान भी काफ़ी सतही सा था. उनके व्याख्यान और कंप्यूटर ज्ञान ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया. फिर उसके बाद रेलवे की कई बैठकों में भी मुलाकात हुई जिसमें वे निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय के रूप में और मैं राजभाषा विभाग के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित होता था. राजभाषा संबंधी नियमों और आदेशों के अनुपालन के मामले आम तौर पर दिखनेवाले ढुलमुल रवैये के विपरीत राजभाषा नीति के कार्यान्वयन में उनका दृढ़ रुख प्रभावित करता था. यही वजह थी कि जब मैंने ‘राजभाषा के संवैधानिक प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में हिंदी के प्रचार-प्रसार’ विषय पर शोध कार्य किया तो दिल्ली जाकर उनसे रेलवे में हिंदी की प्रगति सहित और कई अन्य बिंदुओं पर मार्गदर्शन प्राप्त किया.
डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने सन् 1966 में गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से हिंदी,संस्कृत और अंग्रेज़ी के साथ विद्यालंकार (बी.ए.) की परीक्षा उत्तीर्ण की. फिर सन् 1968 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी की डिग्री ली और फिर मुंबई से अपनी सेवा-यात्रा प्रारंभ की . वे 1968 में मुंबई से प्रकाशित सुप्रसिद्ध हिंदी पत्रिका ‘नवनीत हिंदी डाइजेस्ट’ में हिंदी पत्रकार के रूप में जुड़ गए साथ ही मुंबई में शिक्षा के क्षेत्र का गौरव माने जाने वाले ऐल्फ़िन्स्टन कॉलेज, में अंशकालीन प्राध्यापक के रूप में कार्य करने लगे. लेकिन आगे चलकर उन्हें हिंदी के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में अलग तरह की भूमिका निभानी थी. इसलिए शिक्षा से राजभाषा के क्षेत्र में आगमन हुआ. 1970-1978 के बीच डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने भारतीय रिज़र्व बैंक और यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया,मुंबई में हिंदी अधिकारी के रुप में अपनी नई पारी की शुरूआत की. वह दौर बैंकों में हिंदी की शुरूआत का दौर था इसलिए बैंकों में हिंदी की आधारशिला रखने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रसार के लिए तेज पहियों की आवश्यकता थी, इसलिए सन् 1978 में उन्होंने बैंक के बही–खाते छोड़ हिंदी का इंजिन बनने के लिए रेल का दामन थाम लिया जो राजभाषा के क्षेत्र में पहले से ही सबसे तेज़ से दौड़ रही थी. भाषा के क्षेत्र में तेज़ कदमों से आगे बढ़ते हुए उन्होंने सन् 1988 में उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया. उस दौर में कंप्यूटर आया ही था और बैंकों और कुछ महत्वपूर्ण संस्थानों को छोड़ दें तो ज्यादातर सरकारी दफ्तरों में उसके दर्शन कुछ ऐसे ही होते थे जैसे कि किसी नई-नवेली दुल्हन के. जहाँ कहीं कंप्यूटर आ भी गए थे कर्मचारी इस तिलिस्मी डिब्बे से खौफ़ खाते थे. हिंदी विभाग को तो ऐसी चीज़ें वैसे भी बाद में ही नसीब होती हैं. लेकिन देश कंप्यूटर युग में प्रवेश कर चुका था और रेल सहित पूरे देश को अपने आगोश में लेने जा रहा था.
डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा से मेरी पहली मुलाकात 1997-98 के आसपास मध्य रेलवे की एक कंप्यूटर संगोष्ठी में हुई जिसमें वे हैदराबाद से मुख्य वक्ता के रूप में आए थे . संगोष्ठी में मैं राजभाषा विभाग के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित था. उस समय तक राजभाषा विभाग में कंप्यूटरों का उपस्थिति नगण्य सी थी और कंप्यूटर संबंधी मेरा ज्ञान भी काफ़ी सतही सा था. उनके व्याख्यान और कंप्यूटर ज्ञान ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया. फिर उसके बाद रेलवे की कई बैठकों में भी मुलाकात हुई जिसमें वे निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय के रूप में और मैं राजभाषा विभाग के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित होता था. राजभाषा संबंधी नियमों और आदेशों के अनुपालन के मामले आम तौर पर दिखनेवाले ढुलमुल रवैये के विपरीत राजभाषा नीति के कार्यान्वयन में उनका दृढ़ रुख प्रभावित करता था. यही वजह थी कि जब मैंने ‘राजभाषा के संवैधानिक प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में हिंदी के प्रचार-प्रसार’ विषय पर शोध कार्य किया तो दिल्ली जाकर उनसे रेलवे में हिंदी की प्रगति सहित और कई अन्य बिंदुओं पर मार्गदर्शन प्राप्त किया.
डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने सन् 1966 में गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से हिंदी,संस्कृत और अंग्रेज़ी के साथ विद्यालंकार (बी.ए.) की परीक्षा उत्तीर्ण की. फिर सन् 1968 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी की डिग्री ली और फिर मुंबई से अपनी सेवा-यात्रा प्रारंभ की . वे 1968 में मुंबई से प्रकाशित सुप्रसिद्ध हिंदी पत्रिका ‘नवनीत हिंदी डाइजेस्ट’ में हिंदी पत्रकार के रूप में जुड़ गए साथ ही मुंबई में शिक्षा के क्षेत्र का गौरव माने जाने वाले ऐल्फ़िन्स्टन कॉलेज, में अंशकालीन प्राध्यापक के रूप में कार्य करने लगे. लेकिन आगे चलकर उन्हें हिंदी के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में अलग तरह की भूमिका निभानी थी. इसलिए शिक्षा से राजभाषा के क्षेत्र में आगमन हुआ. 1970-1978 के बीच डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने भारतीय रिज़र्व बैंक और यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया,मुंबई में हिंदी अधिकारी के रुप में अपनी नई पारी की शुरूआत की. वह दौर बैंकों में हिंदी की शुरूआत का दौर था इसलिए बैंकों में हिंदी की आधारशिला रखने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रसार के लिए तेज पहियों की आवश्यकता थी, इसलिए सन् 1978 में उन्होंने बैंक के बही–खाते छोड़ हिंदी का इंजिन बनने के लिए रेल का दामन थाम लिया जो राजभाषा के क्षेत्र में पहले से ही सबसे तेज़ से दौड़ रही थी. भाषा के क्षेत्र में तेज़ कदमों से आगे बढ़ते हुए उन्होंने सन् 1988 में उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया. उस दौर में कंप्यूटर आया ही था और बैंकों और कुछ महत्वपूर्ण संस्थानों को छोड़ दें तो ज्यादातर सरकारी दफ्तरों में उसके दर्शन कुछ ऐसे ही होते थे जैसे कि किसी नई-नवेली दुल्हन के. जहाँ कहीं कंप्यूटर आ भी गए थे कर्मचारी इस तिलिस्मी डिब्बे से खौफ़ खाते थे. हिंदी विभाग को तो ऐसी चीज़ें वैसे भी बाद में ही नसीब होती हैं. लेकिन देश कंप्यूटर युग में प्रवेश कर चुका था और रेल सहित पूरे देश को अपने आगोश में लेने जा रहा था.
दूरदर्शी डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने वक्त की नब्ज़ को पहचाना और कंप्यूटर के तिलिस्म की चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गए. इस चुनौती का सामना करने के लिए उन्होंने 1996 में गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से कंप्यूटर-साधित अंग्रेज़ी-हिंदी अनुवाद पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और रेल में हिंदी को सूचना-प्रौद्योगिकी से मेल करवाने का बीड़ा उठा लिया. एक हिंदी वाला सूचना-प्रौद्योगिकी की बात करे यह बात ज़्यादातर लोगों को सुहाती नहीं थी. लेकिन कंप्यूटर के डॉक्टर और हिंदी के सेवक डॉ. मल्होत्रा कमर कस चुके थे. वे कहते हैं-‘जब मैं रेलवे के आरक्षण चार्ट अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी करवाने की बात करता तो कुछ को यह बड़ा बेतुका लगता और कुछ को अखऱता . लेकिन एक दिन ऐसा आया कि क्षेत्रीय स्तर पर हैदराबाद में मैने यह कर दिखाया. कंप्यूटरीकृत चार्ट हिंदी में भी निकलने लगे. तो यह सबको हैरत में डालने जैसा था.
अपने हिंदी व भारतीय भाषाओँ के प्रति अगाध प्रेम के चलते उन्होंने चौतरफ़ा प्रयास किए. उन्होंने नागपुर, लंदन, सुरीनाम और न्यूयॉर्क में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलनों में और मस्कट, मास्को और टोक्यो में आयोजित क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलनों में भारत सरकार के निमंत्रण पर सक्रिय रूप में भाग लिया . अभी भी वे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से विश्व हिंदी सम्मेलनों से जुड़े हुए हैं. ये सम्मेलन केवल कोई साहित्य-मेला बनकर न रह जाएँ बल्कि हिंदी के प्रसार में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सके इसके लिए वे सितंबर 2015 में भोपाल में होने वाले ‘दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन’ को उचित दिशा देने की दृष्टि से प्रयासरत हैं.
मेरा स्पष्ट मत रहा है कि वर्तमान समय में भाषा-प्रौद्योगिकी को साथ लिये बिना हिंदी व भारतीय –भाषाओं को समय के साथ आगे बढ़ना संभव नहीं दिखता. दूसरी ओर स्थिति यह है कि ज़्यादातर हिंदी-प्रेमियों का कंप्यूटर से ही 36 का आँकड़ा है. जो इससे जुड़े भी हैं उन्हें यह पता नहीं कि कि इसमें हिंदी में काम कैसे किया जा सकता है? इस काम को अंजाम देने के लिए भी डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने एक महत्वपूर्ण कार्य किया और लगभग सात वर्षों तक माइक्रोसॉफ्ट इंडिया में भाषा सलाहकार (हिंदी) के रूप में कार्य करते हुए हिंदी के लिए नवीनतम भाषा-प्रौद्योगिकी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया.
मेरा स्पष्ट मत रहा है कि वर्तमान समय में भाषा-प्रौद्योगिकी को साथ लिये बिना हिंदी व भारतीय –भाषाओं को समय के साथ आगे बढ़ना संभव नहीं दिखता. दूसरी ओर स्थिति यह है कि ज़्यादातर हिंदी-प्रेमियों का कंप्यूटर से ही 36 का आँकड़ा है. जो इससे जुड़े भी हैं उन्हें यह पता नहीं कि कि इसमें हिंदी में काम कैसे किया जा सकता है? इस काम को अंजाम देने के लिए भी डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने एक महत्वपूर्ण कार्य किया और लगभग सात वर्षों तक माइक्रोसॉफ्ट इंडिया में भाषा सलाहकार (हिंदी) के रूप में कार्य करते हुए हिंदी के लिए नवीनतम भाषा-प्रौद्योगिकी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया.
इसके अतिरिक्त डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने विश्व स्तर पर हिंदी शिक्षण व अनुवाद और तकनीकी विषयों पर लेखन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया. उन्होंने 1984 में यॉर्क विश्वविद्यालय, यू.के. में हिंदी अध्यापन का कार्य किया और सन् 1996 में पेन्सिल्वानिया विश्वविद्यालय,अमरीका में हिंदी पार्सर के विकास में भी महत्वपूर्ण सहयोग दिया.सन् 1979 में डॉ. एस. राधाकृष्णन् द्वारा लिखित ‘हमारी विरासत’ और ‘रचनात्मक जीवन’ का हिंदी में अनुवाद किया. सन् 1982 में ‘राजभाषा के नये आयाम’ और सन् 1996 में ‘हिंदी में कंप्यूटर के भाषिक आयाम’ नामक पुस्तक की रचना की. अंतत: उनकी प्रतिभा व परिश्रम को पहचाना गया और उन्हें 5 वर्षों तक लगातार माइक्रोसॉफ़्ट का सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार MVP (Microsoft Valuable Professional). सम्मान मिला. और फिर उसके बाद महामहिम राष्ट्रपति द्वारा भी उत्कृष्ट वैज्ञानिक और तकनीकी लेखन के लिए आत्माराम पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
हिंदी की सेवा के अथक राही डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा का हिंदी की सेवा का यह सफ़र निरंतर जारी है और भारतीय भाषाओं के सजग प्रहरी के रूप में वे कर्तव्य-पथ पर निरंतर आगे बढ़ रहे हैं. ‘भारत-भाषा प्रहरी’ डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा के कार्य और उनके सरोकार न केवल प्रेरणारूपी ऊर्जा प्रदान करते हैं बल्कि हिंदी सहित भारतीय भाषाओँ के प्रयोग व प्रसार को कार्य को आगे बढ़ाने के लिए राह भी दिखाते हैं.
हिंदी की सेवा के अथक राही डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा का हिंदी की सेवा का यह सफ़र निरंतर जारी है और भारतीय भाषाओं के सजग प्रहरी के रूप में वे कर्तव्य-पथ पर निरंतर आगे बढ़ रहे हैं. ‘भारत-भाषा प्रहरी’ डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा के कार्य और उनके सरोकार न केवल प्रेरणारूपी ऊर्जा प्रदान करते हैं बल्कि हिंदी सहित भारतीय भाषाओँ के प्रयोग व प्रसार को कार्य को आगे बढ़ाने के लिए राह भी दिखाते हैं.
- डॉ. एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य’
संपर्क -
डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा
द्वारा सौरभ मल्होत्रा, 71/8, प्रिमरोज़, वाटिका सिटी, सोहना रोड,
गुड़गाँव- 122018
मोबाइलः 9910029919 ईमेल ID: malhotravk@gmail.com
प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका
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डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा
द्वारा सौरभ मल्होत्रा, 71/8, प्रिमरोज़, वाटिका सिटी, सोहना रोड,
गुड़गाँव- 122018
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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका
संपत देवी
मुरारका
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हैदराबाद
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