दिल्ली कार्पोरेशन के अंतर्गत आने वाले स्कूलों को आगामी मार्च से अंग्रेजी माध्यम में बदल देने का फैसला ।
डॉ. अमरनाथ शर्मा का प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नाम खुला पत्र तथा
इस विषय पर प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी का लेख व संबिधित विचारों पर
प्रतिक्रियाएँ- 2
1- मुझे ऐसा लगता है कि समस्या की जड़ है दोहरी शिक्षा नीति जो वर्ग विशेष को लाभ पहुंचाती है। एक और हैं मातृभाषा माध्यम के सरकारी स्कूल और दूसरी तरफ अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूल। उच्च शिक्षा और प्रतिष्ठित रोजगार आदि के क्षेत्र लगभग पूरी तरह अंग्रेजी में हैं । जिसके कारण हर व्यक्ति, भले ही कितना निर्धन हो, भारतीय भाषा प्रेमी या मातृभाषा को शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ माध्यम माननेवाला विद्वान, हर कोई अंग्रेजी माध्यम की ओर जाने को विवश है। मेरी यह राय है कि सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही तरह के विद्यालयों में मातृभाषा माध्यम और राष्ट्रभाषा का समावेश समान रूप से आवश्यक है । समाज को दो धाराओं में बांटनेवाली नीति ही गलत है। फिर देश की भाषाओं के माध्यम से शिक्षा व रोजगार के उचित अवसर देना भी आवश्यक है।जैसा कि प्रधानमंत्री जी कहते हैं किसी मामले को टुकड़ों में नहीं समग्रता में विचार कर उचित निर्णय लिए जाने चाहिए, उसीकी आवश्यकता यहाँ है। माध्यम परिवर्तन की आवश्यकता सरकारी स्कूलों में नहीं निजी स्कूलों में है । और यह चिंतन और इस पर उचित निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए। जानेमाने वैज्ञानिक तथा इसरो के पुर्व अध्यक्ष तथा नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करनेवाली समिति के अध्यक्ष पद्म विभूषण मा. कस्तूरीरंगन जी अगर सुन रहे हों तो इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार करें ताकि देश के बच्चों की प्रतिभा व स्वभाविक विकास विदेशी भाषा माध्यम के तले कुचला न जाता रहे। जब पूरी दुनिया में ( विशेषकर विकसित देशों में) लोग स्वभाषा में पढ़ कर आगे बढ़ सकते हैं तो हम क्यों नहीं ?डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य' निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन, vaishwikhindisammelan@gmail.com,----------------------------------------------------2- सरकारें नौकरशाही की सलाह से चलती हैं। नौकरशाही आज भी उसी मानसिकता के साथ कार्य करती है जिसे उसने अंग्रेजी शासन-काल में आत्मसात् कर लिया था। और तब नौकरशाही को किस रूप में ढाल दी गई थी यह नीचे के उद्धरण से स्पष्ट है:"We must do our best to form a class who may be interpreters between us and the millions whom we govern; a class of persons Indian in blood and colour, but English in taste, in opinions, words, and intellect." (हमारे तथा जिन पर हमारा शासन है ऐसे करोड़ों जनों के बीच दुभाषिए का कार्य करने में समर्थ एक वर्ग तैयार करने के लिए हमें भरपूर कोशिश करनी है; उन लोगों का वर्ग जो खून एवं रंग में भारतीय हों, लेकिन रुचियों, धारणाओं, शब्दों एवं बुद्धि से अंग्रेज हों।)- T.B. Macaulay,in support of his Education Policy as presented in 1835 to the then Governor-General,Willium Bentick.योगेन्द्र जोशी yogendrapjoshi@gmail.com----------------------------------------------------3 - आदरणीय योगेन्द्र जोशी जी की टिप्पणी बहुत ध्यान की मांग करती है| भारतीय भाषाओं को प्रेम करने वालों को इस सरकार से कुछ आशाएं थी| पर अब तो भाषाओं के मामले में संघ भी मौन-व्रत धारे हुए है| ये लोग अंग्रेजी ठीक से सीखने का तरीका भी जान लें तो भी भारतीय भाषाओं का कल्याण हो जाये| इस संदर्भ में यूनेस्को की २००८ में छपी पुस्तक (इम्प्रूवमेंट इन द कुआलटी आफ़ मदर टंग - बेस्ड लिटरेसी ऐंड लर्निंग, पन्ना १२, जो दुनिया भर में खोज करने के बाद लिखी गई थी) से यह टूक बहुत महत्वपूर्ण है: “हमारे रास्ते में बड़ी रुकावट भाषा एवं शिक्षा के बारे में कुछ अंधविश्वास हैं और लोगों की आँखें खोलने के लिए इन अंधविश्वासों का भंडा फोड़ना चाहिए। ऐसा ही एक अन्धविश्वाश यह है कि विदेशी भाषा सीखने का अच्छा तरीका इसका शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रयोग है (दरअसल, अन्य भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ना ज्यादा कारगर होता है)। दूसरा अंधविश्वास यह है कि विदेशी भाषा सीखना जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना बेहतर है (जल्दी शुरू करने से लहजा तो बेहतर हो सकता है पर लाभ की स्थिति में वह सीखने वाला होता है जो मातृ-भाषा में अच्छी मुहारत हासिल कर चूका हो)। तीसरा अंधविश्वास यह है कि मातृ-भाषा विदेशी भाषा सीखने के राह में रुकावट है (मातृ-भाषा में मजबूत नींव से विदेशी भाषा बेहतर सीखी जा सकती है)। स्पष्ट है कि ये अंधविश्वास हैं और सत्य नहीं। लेकिन फिर भी यह नीतिकारों की इस प्रश्न पर अगुवाई करते हैं कि प्रभुत्वशाली (हमारे संदर्भ में अंग्रेज़ी – ज.स.) भाषा कैसे सीखी जाए।" भाषा के मामलों के बारे में दुनिया भर की खोज, विषेशज्ञों की राय और दुनिया की भाषागत स्थिति के बारे मे विस्तार में जानने के लिए 'भाषा नीति के बारे में अंतरराष्ट्रीय खोज: मातृ-भाषा खोलती है शिक्षा, ज्ञान और अंग्रेज़ी सीखने के दरवाज़े' दस्तावेज़ हिंदी, पंजाबी, तामिल, तेलुगू, कन्नड़, डोगरी, मैथिली, ऊर्दू, नेपाली, कोसली और अंग्रेजी में http://punjabiuniversity. academia.edu/JogaSingh/papers पते से पढ़ा जा सकता है। एक वाकचित्र हिंदी में https://www.youtube.com/watch? v=tHUfdRS2MWE&feature=youtu.be से देखा जा सकता है। पुरज़ोर विनती है कि यहां और सम्बन्धित दस्तावेज़ में वर्णित तथ्य जैसे भी संभव हो और भारतीयों के सामने लाकर भारतीय भाषाओं के लिए संघर्ष में अपना योगदान दें| कुछ दस्तावेज संलगित हैं । मातृ-भाषाओं की जय! सादर,----------------------------------------------------4 - 1. मोदी जी को अमरनाथ जी का पत्र सामयिक है, सही है । हमारा समर्थन है ।2. अंग्रेजी की अनिवार्यता नौकरी में चयन के लिए हटायी जाए ।3. सभी राजकाज राजभाषा में अनिवार्यत: किए जाएं । यह राजभाषा सरल, समावेशी हो । राजभाषा प्रयोग की हर कोशिश सराहनीय होगी । वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में इसका भी एक कॉलम हो ।3. प्राथमिक शिक्षा में माध्यम लोकभाषा हो, तकनीकी शिक्षा समावेशी हिन्दी में हो जिससे देश भर में कहीं भी नौकरी मिल सके । ऐसी तकनीकी शिक्षा से ग्रेज्युएट सामान्य लोगों से नजदीकी बनाएंगे, विकसित ग्राम विकसित राष्ट्र की संकल्पना सिद्धि में योगदान करेंगे ।4. प्रधान मंत्री पत्रों को संबधित मंत्री को भेजते हैं, और मंत्री प्रशासनिक अधिकारी को । यथा प्रशानिक अधिकारी तथा जनता ढले, इसलिए समस्या ज्यों की त्यों ।5. क्या करें ? सभी समान विचार वाले लोग एक मंच से प्रस्ताव बनाएं जो करणीय हो । लाभ-हानि विश्लेषण,कारण, कार्यान्वयन विधि, समयावधि, अनुमानित बजट, कर्ता एजेंट, समग्र विकास के सुनिश्चयन का उल्लेख हो । शिक्षा संबंधी सुझाव जल्दी से जल्दी कस्तूरीरंगन शिक्षा आयोग को भेजे जाएं । रिपोर्ट पेश होने वाली है ।6. संघे शक्ति कलियुगे !! शुभकामनाओं के साथ .....डॉ. ओम विकास dr.omvikas@gmail.com----------------------------------------------------5- महोदय, बहुत ही अच्छे विचार l आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ l आपका शुभेच्छुडॉ कृष्ण कुमार झा ,मारीशस kkjha1026@gmail.com----------------------------------------------------6- आदरणीय गोस्वामी जी, आपकी बात शतप्रतिशत सही है. अनेक मनोवैज्ञानिक शोध इस बात की पुष्टी करते हैं कि मातृभाषा में प्रारभिक शिक्षा संज्ञानात्मक विकास के लिए उपयुक्त होती है बाद में आप अन्य भाषाएँ सिखा सकते हैं।प्रोफ. उदय जैन - jainuday1941@gmail.com----------------------------------------------------7- यह एक बेहतरीन फैसला है. इसका स्वागत किया जाना चाहिए. जो इसका विरोध कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों से निकाल कर सरकारी स्कूलों में दाखिल कराने की हिम्मत कर सकते हैं. भाषा इस देश में यथास्थति बनाए रखने का पुख्ता औजार रही है. वर्तमान दिल्ली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत सराहनीय कार्य किया है. इससे निजी और सरकारी स्कूलों के परिणाम में सुधार आया है. नया फैसला चाहे दिल्ली सरकार का हो या नगर निगम के अधिकारियों का, पर उचित फैसला है. और इसे पूरे देश के सरकारी स्कूलों में लागू किया जाना चाहिए.निगम स्कूलों में वे बच्चे जाते हैं जो आर्थिक कारणों से निजी स्कूलों में नहीं जा पाते, जहां पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी है. और इस तरह वे जीवन में पिछड़ जाते हैं. आत्मविश्वास में कहीं न कहीं कमी रह जाती है. इससे उनका आत्मविश्वास लौटेगा.ओमप्रकाश कश्यप - opkaashyap@gmail.com----------------------------------------------------8- साधुवाद ! आपका हर शब्द एक कीमती मोती है। मुझे नहीं लगता आपसे बेहतर ढंग से कोई हिंदी सेवी इस बात को रख पाता। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।----------------------------------------------------शानदार सटीक अभिव्यक्ति। हार्दिक अभिनंदनचेतना उपाध्याय, अजमेर chetnaupadhyay14@gmail.com----------------------------------------------------प्रो. जी सादर नमस्कार,आपने जिस प्रश्न को उठाया है अत्यंत ही विचारात्मक है | मैं कैनेडा से एक हिंदी की पत्रिका पिछले २० वर्षों से हिंदी को बचाने लिए प्रकाशित कर रहा हूँ | विदेशों में काम करने वाले भारत के काउंसिलर आदि कहते तो हिंदी की बातें लेकिन किसी की सहायता नहीं करते | उनका सारा काम अंग्रेज़ी में ही होता है | और यदि हिंदी के विषय में उनसे कोइ बात कही जाय तो उसे ताल दिया जाता | मैं आप इस विचार से सहमत हूँ और अप्पे इस प्रस्ताव का पूरी तरह समर्थक हूँ |----------------------------------------------------फेसबुक पर प्रधान मंत्री को भेजे गए पत्र पर प्राप्त कुछ टिप्पणियां संलग्न हैं।वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी
मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
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