मंगलवार, 29 मार्च 2016

"शहीदी दिवस पर अमर शहीदों को शत शत नमन !"



"शहीदी दिवस पर अमर शहीदों को शत शत नमन !"

अमर शहीदों को नमन ,
रखे सजो कर याद !
उन सब के बलिदान से ,
हम सब है आज़ाद !!
                           -कवि कृष्णा नन्द तिवारी
पाश्चात्य देशों में होली
                                            - कादम्बरी मेहरा , लंदन 
 माननीय गुप्ता जी एवं हिंदी प्रेमियों , 
होली का त्यौहार आप सबको मुबारक हो।  

आप सबको यह जानकार हर्ष होगा कि होली का त्यौहार अब लंदन के स्कूलों में धार्मिक शिक्षा के अंतर्गत पाठ्यक्रम में शामिल है।  कक्षा ५ और ६ के बच्चों को अनेक स्कूलों में इसके विषय में बताया जाता है।  सुन्दर सरल भाषा में अंग्रेजी में किताबे छप गयी हैं जो बच्चे समझ सकते हैं।  इसे वसंत ऋतू के आगमन से जोड़ा जाता है और '' पानी '' के महत्व  का भी संवाहक कहा जाता है।   हमारा यह उत्सव अब विश्व में एक अन्य सन्देश के लिए प्रयुक्त हो रहा है।  यह त्यौहार मार्च के अंतिम  सप्ताह में आता है।  अतः २२ मार्च को '' विश्व  जल  दिवस '' घोषित कर दिया गया है।  एक अमेरिकी संस्थान नेस्ले जल योजना के अंतर्गत विश्व भर के स्कूलों में जल से होली खेलने का त्यौहार मनाया जाता है और इसी के साथ बच्चों को जल के बारे में शिक्षित किया जाता है।  इस योजना को WET नाम दिया गया है।  

अमेरिका के शहर सीएटल में एक संस्था '' सीएटल पार्टी कैंप '' ने एक आयोजन किया जिसे  '' विश्व का सबसे बड़ा जल युद्ध '' का नाम दिया।  सभी ने सड़कों पर पानी से होली खेली और इस के एवज में पैसा दान किया।  ५५ ००० डॉलर की रकम जमा हुई जो बालकों की जानलेवा बीमारियों के इलाज के लिए  अनुसंधान करनेवाली दवाई कंपनी '' कैंप कोरी ''  को  दे दी गयी। 
न्यू यॉर्क के शहर के बीच स्थित सेंट्रल पार्क के विशाल लॉन में भी २९ जून २०१३ में एक विशाल जल होली का आयोजन किया गया।  
 
इंगलैण्ड के ट्रफलगर स्क्वायर में जल से होली खेलने का रिवाज़ चल पड़ा है। जब मौसम बेहद गरम होता है यहां  दीवाने होली खेलते हैं।  ऐसा ही कई स्कूलों में भी रवाज चल पड़ा है पर यह छोटे बच्चों तक ही सीमित है और केवल समर में होता है।  अलबत्ता घरों में जिनके पास बड़े लॉन हैं वह होली की पार्टियां मनाने लगे हैं  मगर वह मौसम के अनुसार मनाई जाती हैं।  अतः मार्च में न होकर जून जुलाई या अगस्त की छुट्टियों में होती हैं।  

यूरोप में रहकर अनेक ऐसे रिवाज़ों से पाला पड़ा जो होली का ही प्रारूप हैं। जब कोई  पोत समुद्र यात्रा के समय विश्वत रेखा को लांघता है तो बड़ा उत्सव मनाया  जाता है। यात्री शैम्पेन पीते  हैं और  एक दूसरे को टमाटर अंडे केक पास्ता आदि से सराबोर कर देते हैं। आइस क्रीम युद्ध होता है और जब सब चुक जाता है तो एक दूसरे पर पानी की बौछार करते हैं।  बड़े जहाज़ों में स्विमिंग पूल होता है ,उसमे फेंक देते हैं। हाँ यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि आपको तैरना आता है।   

स्पेन में देखा टमाटर दिवस।  यह टमाटरों से होली खेलने का और सड़कों पर हुड़दंग मनाने का दिन होता है।  इसे '' ला टोमाटीना '' कहा जाता है।  इटली में इसी का  रूपांतर है दी बैटल ऑफ़ दी ऑरैंजेस।  यह लोग नरंगियाँ फेंकते हैं एक दूसरे पर। होली खेलने का शौक कुछ ऐसा सर चढ़  के बोलने  लगा है दुनिया भर में कि दक्षिणी कोरिया की एक सौंदर्य प्रसाधन बनानेवाली कंपनी ने बोरयांग मड फेस्टिवल  की शुरुआत कर डाली।  बोरियोंग स्थान के मिटटी के टीले प्रसिद्ध हैं। इनकी मिटटी देह पर मलने से रूप निखर आता है।  कंपनी ने इस मिटटी से उबटन बनाया और बाज़ार में उतारा।  प्रचार के लिए पैसा बचाने की खातिर उन्होंने मुफ्त इस मिटटी का लेप लगाकर शहर भर में लोगों को घुमाया ,दावत की , पटाखे चलाये। नाच गाना ,ढोल तमाशे किये फिर पानी की नालियां लगाकर सबको नहलाया। वाह वाह ! क्या आनंद आया जनता को।  लो जी शुरू हुई एक नई होली बोरियोंग  मड फेस्टिवल। अब यह दक्षिणी कोरिया का राष्र्टीय त्यौहार बन गया।  

भारत की जड़ें जिन देशों में जमी हैं सदियों से उनमे होली धूम धाम से मनाई जाती है।  ताइवान  का सोंगक्रान त्यौहार इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है।  यह  राष्ट्रिय पर्व है और इस दिन सरकार की ओर से शहर भर में पानी से होली खेली जाती है।  मनो पानी की बड़ी बड़ी नलियाँ लगाकर सड़कों पर छोड़ दी जाती हैं।  म्यांमार में भी यही रिवाज है मगर यह लोग इस दिन को थिंग यान कहते हैं।  इस दिन जरूर कोई अच्छा काम किसी दूसरे के लिए करते हैं।  थाईलैंड और मलेशिया में भी होली खेली जाती है परन्तु इतने जोश से नहीं क्योंकि इन देशों में इस्लाम धर्म राजकीय धर्म है। अतः यह केवल हिन्दू मनाते हैं।  बौद्ध धर्म के साथ  भी हिन्दू त्यौहार जुड़े रहे किसी न किसी रूप में अतः जहां जहां भी बौद्ध धर्म गया होली या जल सिंचन का रिवाज़ भी गया।  चीन का '' दाई '' त्यौहार पूरे तीन दिन चलता है।  पहले दिन मेला लगता है और लोग नयी वस्तुएं खरीदते हैं।  दूसरे दिन लैन्कांग नदी में दीये तैराते हैं और प्रार्थना करते हैं।  तीसरे दिन खूब सज बज के शहर के बौद्ध मंदिरों में जमा होते हैं और एक दूसरे  पर केवल पानी की वर्षा करते हैं।    पूर्वी देशों में बाली , जावा , सुमात्रा ,अक्षय ( अछेह ) , कम्बोडिया , श्री लंका  आदि देशों में होली जीवित है।  

एक बार लंदन में ही एक सखी ने कहा ,होली का उत्सव मनाया जा रहा है चलो। संग हो ली।  पहले भजन गाए गए। फिर बारी आई फ़िल्मी गानो की। अनेकों ने अपनी प्रतिभा अनुसार रंग जमाया।  कोई भी अंग्रेजी नहीं बोल रहा था।  भाषा पल्ले नहीं पड़ रही थी मगर गाने तो हमारे ही थे और साड़ियां भी हमारी ही थीं।  वही केश विन्यास ,वही गहने।  वही राम ,लखन।  फिर जी स्टेज पर आये करीब आठ व्यक्ति।  चौकड़ी मार कर बैठ गए।  बाजा ,मंजीरा ,ढोलक ,चिमटा ,और शुरू किया 
''  हे हां &&&&, लता कुञ्ज से प्रकट भये ,तेहि अवसर दोउ भाई। -----  ''
ठेठ बनारसी अंदाज में जो सीता स्वयम्बर का सस्वर गायन हुआ , मेरे रोंगटे खड़े हो गए।  पूरे तीस वर्ष बाद मैं यह रामायण सुन रही थी जो हमारे बगीचे में होनेवाली रामलीला में सुना करती थी बचपन में। और केक पर आइसिंग ---  अवध में होरी खेरें रघुबीरा !  क्या समा था।  नॉस्टेलजिया का असली मतलब उस दिन समझ में आया।  आँखों से झर - झर  आंसू। तभी किसी ने मुझपर पाउडर की वर्षा शुरू कर दी।  मैंने अंग्रेजी में कहा ,'' दिस म्यूजिक इस फ्रॉम बनारस ''. अगली ने प्यार से कहा , '' सो वर आवर एन्सेस्टर्स ''. यह लंदन में बसे  त्रिनिदाद के लोगों का उत्सव था।  यह लोग बिहार और उत्तर प्रदेश से ले जाए गए थे गन्ना उगाने  के लिए। इन्होंने संभाल रखी है वह अमूल्य सम्पदा जो हमारे देश में भी रंग छोड़ रही है. वह संगीत ,वह त्योहारों की आत्मा।  इन्हें हिंदी बोलनी नहीं आती मगर जो आता है वह हमारा है। ऐसे ही देश हैं ,सूरीनाम ,गयाना और मॉरीशस। दक्षिणी अफ्रीका ,यूगांडा और कीनिया आदि में भी हमारे त्यौहार रंग जमाते हैं।     
 
पानी और रंगों के इस खेल का प्रभाव अब विश्वव्यापी होता जा रहा है।  मगर भारत पानी के क्षेत्र में पिछड़े हुए देशों में से एक है जबकि यहां सबसे अधिक नदियां और सबसे अधिक वर्षा होती है।  इसका कारण केवल जनता की उदासीनता और अज्ञानता है।  हमारे साधू संत यदि अपनी वंदना करवाने के बजाय देश के गाँवों में  पानी के  महत्त्व का ज्ञान संचार करें तो  कितना अच्छा हो।  समय आ गया है कि हम अपने त्योहारों को आधुनिक जीवन से जोड़कर ज्ञान का माध्यम बनाएं।  

- कादम्बरी मेहरा , लंदन 
                ३५ ,दी एवेन्यू , चीम ,सरे , यु के   




डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच.
murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

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