रविवार, 1 जुलाई 2018

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] भारत पर ढाई लाख की हुकूमत : डॉ. वेदप्रताप वैदिक, झिलमिल में - आचार्य येशी फुंत्सोक को "नागरी संगम"भेंट, कबीर को समर्पित यह अंतरजाल पृष्ठ, संलग्न 'वसुधा' का अंक - 59


भारत पर ढाई लाख की हुकूमत



डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारत भी कितना विचित्र देश है। देश के लगभग सवा सौ करोड़ लोगों पर सिर्फ ढाई लाख लोगों की हुकूमत चल रही है बल्कि यह कहें तो बेहतर होगा कि सवा सौ करोड़ की छाती पर ढाई लाख लोग सवार है। यदि ऐसा है तो यह तो लोकतंत्र का भुर्त्ता बन गया। जी हां, अंग्रेजी के गुलाम भारत की दशा ऐसी ही है। ताजा जन-गणना के मुताबिक देश में अंग्रेजी को अपनी ‘प्रथम भाषा’ बतानेवालों की संख्या सिर्फ 2 लाख 60 हजार है। अंग्रेजी इन लोगों की मातृभाषा नहीं है, प्रथम भाषा है। जाहिर है कि इनमें से बहुत कम लोग एंग्लो-इंडियन हैं और अंग्रेजों और अमेरिकियों की औलादें तो और भी कम होगी। इन भारतीय नागरिकों ने अंग्रेजी को अपनी मुख्य भाषा कई कारणों से लिखवाया होगा। 

अभी हम उनमें नहीं जाते। अभी तो हम यह देखें कि भारत के जिन नागालैंड जैसे सीमांत राज्यों ने अंग्रेजी को अपनी राजभाषा बनाया है, उनके नागरिकों ने भी अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा नहीं लिखवाया है। यदि वे भी लिखवा देते तो अंग्रेजी-मातृभाषावालों की संख्या कई लाखों तक पहुंच जाती लेकिन मैं बहुत खुश हूं कि लोगों ने सत्य का पालन किया। लेकिन हमारे सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से मैं पूछता हूं कि देश को आजाद हुए 70 साल हो गए लेकिन उन्होंने इस भाषायी गुलामी को दूर करने के लिए क्या किया ? 

आज भी देश में सारे कानून अंग्रेजी में बनते हैं, न्याय भी अंग्रेजी में होता है, सरकार की लगभग हर नौकरी में अंग्रेजी अनिवार्य है, शिक्षा में सर्वत्र अंग्रेजी का बोलबाला है। क्या अंग्रेजी का कोई विकल्प नहीं है ? अंग्रेजी के वर्चस्व के कारण भारत आज भी दुनिया के फिसड्डी और पिछलग्गू देशों में गिना जाता है। अपनी भाषा के जरिए दुनिया के कई छोटे-छोटे राष्ट्र-- इस्राइल, कोरिया, जापान जैसे-- भारत से आगे निकल गए हैं। हमारे अधपढ़ और कमअक्ल नेताओं को देश में सच्चा लोकतंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया कब समझ में आएगी ?

आज भी कण भर लोग मन भर लोगों पर अपना राज चला रहे हैं। आज हिंदी को अपनी मातृभाषा कहनेवालों की संख्या 60 करोड़ के आस-पास होगी। यदि उसमें उर्दूभाषी और पड़ौसी देशों में हिंदी समझनेवालों की संख्या जोड़ लें तो हिंदी आज विश्व की सबसे ज्यादा बोली और समझी जानेवाली भाषा बन जाती है। ऐसी भाषा को यदि हम सच्ची राजभाषा, सच्ची राष्ट्रभाषा और सच्ची संपर्क भाषा बना सकें और देश की सभी भाषाओं और बोलियों को उचित सम्मान दे सकें तो अगले 10 वर्षों में भारत दुनिया का सबसे अधिक स्वस्थ, मालदार और ताकतवर देश बन सकता है।
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संलग्न 
'वसुधा'  का अंक - 59 
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रोहित कुमार 'हैप्पी'
संपादक, भारत-दर्शन हिंदी पत्रिका
न्यूज़ीलैंड।

Rohit Kumar 'Happy'
Editor, Bharat-Darshan
2/156, Universal Drive, Henderson, Waitakere - 0610 , Auckland (New Zealand)
Ph: (0064) 9 837 7052, Mobile: 021 171 3934
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निरवासित तिब्बत संसद के उपसभापति आचार्य येशी फुंत्सोक को
"नागरी संगम"भेंट करते हुए नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ.पाल ।
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वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई 

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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
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