रविवार, 11 सितंबर 2016

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई.




निर्मलकुमार पाटोदी,
विद्या -निलय, ४५, शांति निकेतन ,(बाॅम्बे हाॅस्पीटल के पीछे), 
इन्दौर-४५२०१० मध्य प्रदेश
सम्पर्क :०७८६९९१७०७० ।  मेल: nirmal.patodi@gmail.com
    
               पत्र में प्रस्तुत विचारों का जवाब चाहिए। परिणाम चाहिए। सवाल लाखों ग़रीब, पिछड़े विद्यार्थियों के भविष्य का है। 
सेवा में,
 श्री प्रकाश जावड़ेकर जी
 मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार
 सी विंग, शास्त्री भवन, नई दिल्ली-110001

विषय:- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के छात्रों के केरियर में अंग्रेजी की बाधा दूर का जाय 

महोदय,
     आपका ध्यान दिनांक 5.8.2016 की ‘‘हिन्दी पत्रिका’’, भोपाल तथा दिनांक 5.8.2016 के अंग्रेजी दैनिक-पत्र ‘हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित समाचार की ओर ध्यान दिलाते हुए निवेदन कि विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से छात्रों को निकाला जा रहा है। अंग्रेजी में कमजोर होने के कारण भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से 30, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से 12, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर, से 06 भारतीय प्रौद्याोगिकी संस्थान, गुवाहाटी से 5 और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की से 10 छात्रों को निष्कासित किया गया है।
           सोचनीय सवाल यह है कि दुनिया के सभी राष्ट्रों में शिक्षा देश की भाषाओं में ही दी जा रही है। देश अपना है, तो शिक्षा में विदेशी भाषा का माध्यम या अनिवार्यता क्यों है ? बिना अंग्रेजी के क्या देश का भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने की नीति क्यों नहीं   अपनाई जा रही ? स्वाधीन राष्ट्र में पराधीनता की भाषा को लादे हुए सत्तर साल हो गए हैं। आप शिक्षा मंत्रालय के मंत्री हैं। आप खुले दिमाग़ से विचार करें कि हमारे देश की भाषाएँ सक्षम हैं, समृद्ध हैं, उनको अपनाया जाय तो उनके माध्यम से सभी विषयों की शिक्षा प्रदान करना संभव है। अपना भाषा से अपना ज्ञान और संस्कृति जीवंत होगी ? मोदी जी ने दुनिया के देशों में देश की संविधान सम्मत प्रथम राजभाषा में अपना भाषण देकर देश और भाषा का मान और गौरव बढ़ाया है। आप भी मोदी जी की तरह क़दम क्यों नहीं उठाते हैं ? आपको कौन क़दम उठाने से रोक सकता है ? शिक्षा का आधार ज्ञान होता है। भाषा तो माध्यम होती है। स्वभाषाओं से शिक्षार्थी सहजता से ज्ञान को आत्मसात कर लेता है। विदेशी भाषा ज्ञान अर्जित करने में बाधक होती है। दुनिया की भाषाओं का ज्ञान जो चाहे प्राप्त करें। अँग्रेजी से ही दुनिया का बासी ज्ञान आवेगा। अंग्रेजी की अनिवार्यता से राष्ट्र के विकास की गति अवरुद्ध हो रही है। 
भारत जैसे देश में जहां की राजभाषा, जन भाषा, सम्पर्क भाषा हिंदी है, किन्तु स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी हम छात्रों को उनकी मातृभाषा, संघ की राजभाषा हिन्दी मे अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) की शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। स्वतंत्र देश के लिए इससे बढ़कर लज्जा की बात क्या हो सकती है ? हम इंजीनियरी, कृषि और चिकित्सा आदि की शिक्षा हिन्दी में देने सम्बन्धी संसदीय राजभाषा समिति की रिपोर्ट, खंड-8, भेजी गई सिफारिश सं. 33 पर पारित  राष्ट्रपति के आदेशों की अवहेलना कर रहे है। (प्रतिलिपि संलग्न है)

     यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल की स्थापना, मध्यप्रदेश शासन ने विभिन्न विधाओं के  समस्त ज्ञान को हिंदी माध्यम से देने के उद्देश्य से की है। विश्वविद्यालय में चिकित्सा शिक्षा को छोड़कर, अभियांत्रिकी, विधि, प्रबंधन एवं  कृषि आदि की शिक्षा हिंदी माध्यम से दिया जाना प्रारंभ हो गया है। भारतीय चिकित्सा परिषद से मंजूरी मिलने के बाद चिकित्सा शिक्षा (एम.बी.बी.एस.) हिंदी में दिया जाना शुरू कर दिया जायेगा। आपको स्वीकृति तत्काल दिलाने की पहल करना चाहिए। 

     यह सर्वविदित है कि जो छात्र अभियांत्रिकी के अध्ययन के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में प्रवेश लेते हैं, उन्हें प्रवेश परीक्षा (जेईई), में दोनों भाषाओं (हिंदी/अंग्रेजी) के साथ-साथ प्रादेशिक भाषाओं जैसे गुजराती, मराठी आदि में परीक्षा देने की छूट होती है। अतः प्रवेश परीक्षा में तो वे हिन्दी अथवा मातृभाषा के माध्यम के द्वारा उत्तीर्ण होकर आते  हैं, परन्तु बाद में अध्ययन, अंग्रेजी में करना पड़ता है। अतः ग्रामीण परिवेश, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, वंचित वर्ग आदि के छात्रों को अंग्रेजी का ज्ञान कम होने के कारण इन प्रौद्योगिकी संस्थानों से बीच में ही निकाल दिया जाता है, जैसाकि उपरोक्त संस्थानों द्वारा किया गया है। यह उनके साथ घोर अन्याय है।

     अतः मेरा आपसे आग्रह है कि पूरे देश में प्रवेश प्रक्रिया के समय जो हिन्दी या मातृभाषा के  माध्यम का विकल्प दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार, अध्ययन के बाद सत्र के अन्त में जो परीक्षा ली जाती है, उसमें भी छात्र को प्रादेशिक भाषा या हिंदी माध्यम का विकल्प दिया जाए और उक्त छात्रों के निष्कासन के आदेश को निरस्त कर उन्हें वापिस लिया जाए। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में शिक्षा का माध्यम (हिंदी और राज्यों की भाषाओं को  बनाने की दिशा में आवश्यक कदम उठाया जाए। आपके इस सकारात्मक निर्णय से ग्रामीण परिवेश, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ग़रीब वर्ग आदि के छात्र अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अभियंता बनने का स्वप्न साकार कर सकेंगे।






  
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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

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