सोमवार, 24 जनवरी 2022

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] गांधी जी के विचारों के प्रतिकूल उनके ही नाम पर शिक्षा नीति। झिलमिल - मकर संक्रांति पर विशेष

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महात्मा गांधी के वैचारिक हनन पर एक शिक्षक का राजस्थान के मुख्यमंत्री को खुला पत्र।

श्री अशोक गहलोत जी,

माननीय मुख्यमंत्री, राजस्थान सरकार,

जयपुर, राजस्थान।


 विषय : महात्मा गांधी जी के विचार के एकदम प्रतिकूल उनके ही नाम पर शिक्षा नीति।
महोदय,
गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान की पत्रिका गाँधी मार्ग में आपकी सरकार का एक विज्ञापन देखा. इस विज्ञापन के अनुसार आप की सरकार अपने राज्य में बड़े पैमाने पर महात्मा गाँधी इंग्लिश मीडियम स्कूल खोल रही है.
महोदय,
महात्मा गाँधी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के सख्त विरोधी थे. उन्होंने यंग इंडिया में लिखा है, अगर मेरे हाथों में तानाशाही सत्ता हो तो मैं आज से ही हमारे लड़के और लड़कियों की विदेशी माध्यम के जरिये शिक्षा बंद कर दूँ और सारे शिक्षकों और प्रोफेसरों से यह माध्यम तुरन्त बदलवा दूँ या उन्हें बरखास्त कर दूँ. मैं पाठ्यपुस्तकों की तैयारी का इंतजार नहीं करूँगा. वे तो माध्यम के परिवर्तन के पीछे-पीछे चली आवेंगी. ( यंग इंडिया,7.1.1926)
गाँधी जी का विचार था कि माँ के दूध के साथ जो संस्कार और मीठे शब्द मिलते हैंउनके और पाठशाला के बीच जो मेल होना चाहिए वह विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने में टूट जाता है. हम ऐसी शिक्षा के वशीभूत होकर मातृद्रोह करते है.
गाँधी जी चाहते थे कि बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सब कुछ मातृभाषा के माध्यम से हो. दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान ही उन्होंने समझ लिया था कि अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा हमारे भीतर औपनिवेशिक मानसिकता बढ़ाने की मुख्य जड़ है. हिन्द स्वराज में ही उन्होंने लिखा कि, करोड़ों लोगों को अंग्रेजी शिक्षण देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है. मैकाले ने जिस शिक्षण की नींव डाली, वह सचमुच गुलामी की नींव थी. उसने इसी इरादे से वह योजना बनाईयह मैं नहीं कहना चाहताकिन्तु उसके कार्य का परिणाम यही हुआ है. हम स्वराज्य की बात भी पराई भाषा में करते हैंयह कैसी बड़ी दरिद्रता है? ....यह भी जानने लायक है कि जिस पद्धति को अंग्रेजों ने उतार फेंका हैवही हमारा श्रृंगार बनी हुई है. जिसे उन्होंने भुला दिया है, उसे हम मूर्खता वश चिपकाए रहते हैं. वे अपनी मातृभाषा की उन्नति करने का प्रयत्न कर रहे हैं. वेल्सइंग्लैण्ड का एक छोटा सा परगना है. उसकी भाषा धूल के समान नगण्य है. अब उसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है....... अंग्रेजी शिक्षण स्वीकार करके हमने जनता को गुलाम बनाया है. अंग्रेजी शिक्षण से दंभ- द्वेष अत्याचार आदि बढ़े हैं. अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त लोगों ने जनता को ठगने और परेशान करने में कोई कसर नहीं रखी. भारत को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने वाले लोग ही हैं. जनता की हाय अंग्रेजों को नहीं हमको लगेगी.( हिन्दी स्वराज, शिक्षा, पृष्ठ-72-73) अपने अनुभवों से गाँधी जी ने निष्कर्ष निकाला था कि, “अंग्रेजी शिक्षा के कारण शिक्षितों और अशिक्षितों के बीच कोई सहानुभूतिकोई संवाद नहीं है. शिक्षित समुदाय, अशिक्षित समुदाय के दिल की धड़कन को महसूस करने में असमर्थ है. ( शिक्षण और संस्कृतिसं. रामनाथ सुमनपृष्ठ-164)

 काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एक उद्घाटन समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा कि,  मुझे आशा है कि इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने का प्रबंध किया जाएगा.  हमारी भाषा हमारा ही प्रतिबिंब है और इसलिए यदि आप मुझसे यह कहें कि हमारी भाषाओं में उत्तम विचार अभिव्यक्त किए ही नहीं जा सकते तब तो हमारा संसार से उठ जाना ही अच्छा है. क्या कोई व्यक्ति स्वप्न में भी यह सोच सकता है कि अंग्रेजी भविष्य में किसी भी दिन भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है ? फिर राष्ट्र के पैरों में यह बेड़ी किसलिए ? यदि हमें पिछले पचास वर्षों में देशी भाषाओं द्वारा शिक्षा दी गयी होतीतो आज हम किस स्थिति में होते ! हमारे पास एक आजाद भारत होताहमारे पास अपने शिक्षित आदमी होते जो अपनी ही भूमि में विदेशी जैसे न रहे होतेबल्कि जिनका बोलना जनता के हृदय पर प्रभाव डालता. ( शिक्षण और संस्कृतिसं. रामनाथ सुमनपृष्ठ-765 )

महोदय, आप अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलें या जर्मन माध्यम के, किन्तु गाँधी का नाम उससे हटा लें वर्ना इसका बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. आने वाली पीढ़ियाँ यही समझेंगी कि महात्मा गाँधी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के पक्षधर थे. तभी तो उनके नाम पर अंग्रेजी माध्यम के स्कूल काँग्रेस पार्टी की सरकार ने खोला है- वहीं कांग्रेस पार्टी, जो अपने को गाँधी की विरासत को लेकर चलने का सबसे ज्यादा दावा करती है.
बेहतर होगा यदि आप अपने स्कूलों का नाम गवर्नमेंट इंग्लिश मीडियम स्कूल कर लें किन्तु हमारी प्रार्थना है कि गाँधी का नाम बदनाम न करें.
सधन्यवाद
डॉ. अमरनाथ

पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता
ई-मेलamarnath.cu@gmail.com मो. : 9433009898
 प्रति अवलोकनार्थ तथा आवश्यक कार्यवाही हेतु, श्री राहुल गाँधी जी, 

विश्व हिन्दी दिवस, 10 जनवरी 2022


टिप्पणी
महात्मा गांधी जी अगर महात्मा गांधी थे तो अपने विचारों और चिंतन के कारण। अगर महात्मा गांधी जी की हत्या न होती तो भी वे कब तक जीते? लेकिन उनके विचार विश्व की अनमोल धरोहर हैं। अपने विचारों के कारण वे हजारों साल तक लोगों के दिलो-दिमाग में जीवित रहेंगे। इसलिए  मुझे लगता है कि नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी जी की शारीरिक हत्या से कहीं अधिक नृशंस और गंभीर है उनकी वैचारिक हत्या। जो व्यक्ति आजीवन शिक्षा के लिए मातृभाषा माध्यम की पैरवी करता रहा, संघर्ष करता रहा, उनके नाम के साथ इंग्लिश मीडियम जोड़ना उनके विचारों पर उनकी वैश्विक छवि पर कितना बड़ा प्रहार है, नेता भले ही न समझें लेकिन विद्वान इसे भली-भाँति समझ सकते हैं।  

भाषा-संस्कृति की तो किसी को पड़ी नहीं, महात्मा गांधी के कथित समर्थक, कथित गांधीवादी और गांधी जी के नाम पर बनी संस्थाओं के पदाधिकारियों को मुखर हो कर इस निर्णय का विरोध करके महात्मा गाँधी की वैचारिक हत्या को रोकना चाहिए। खुद को जागना और दूसरों को जगाना  चाहिए। इस संबंध में आप अपने विचार भेज सकते हैं।

  डॉ, मोतीलाल गुप्ता आदित्य
निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन।
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IMG-20170114-WA0000 - Copy.jpg  मकर संक्रांति रूप अनेक - Copy - Copy.jpeg

विटामिन डी का निर्माण शरीर सूर्य के प्रकाश से करता है।  तिल (तिल) में सबसे अधिक कैल्शियम (975mg प्रति 100 ग्राम) होता है। दूध में 125mg ही होता है। शरीर एक वर्ष तक विटामिन डी का भंडारण करने में सक्षम है, और भंडार का उपयोग करता है। अंत में, शरीर अपने विटामिन डी के भंडार को पूरे 3 दिन की धूप के साथ पूरा करने में सक्षम है। सूरज की रोशनी का सबसे अच्छा गुण सर्दी का अंत और गर्मियों की शुरुआत है। अब बिन्दुओं को मिलाइए और देखिए कि प्राचीन भारत में हमारे ऋषि कितने बुद्धिमान थे। उन्होंने पतंग उड़ाने का एक उत्सव बनाया जहां हमारे बच्चे सुबह से शुरू होकर पूरे दिन खुले में, सीधे धूप में जाने के लिए उत्साहित होते हैं। और उनकी माताएं उन्हें घर के बने तिल के लड्डू खिलाती हैं। क्या हम एक शानदार संस्कृति नहीं हैं ?  
अनिर्बाण विस्वास

सम्पूर्ण भारत में सूर्य नमस्कार एवं नई फसल के पूजन के लिए मनाए जाने वाले ये त्योहार इस राष्ट्र की विविधता में एकता के उदाहरण हैं । इस दिन, सूर्य नमस्कार के पारम्परिक विधानों और अनुष्ठानों को  पूरा करते हुए अन्न पूजन, तिल-गुड-चिऊड़ा (पोहा भी जिसे कहते हैं) का जहां प्रसाद खाया जाता है वहीं उत्तर पूरब के असम प्रांत एवं ईर्द गिर्द के इलाके में इसे बेहद रंगारंग कार्यक्रम के रुप में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । दक्षिण भारत में भी यह पर्व पोंगल नाम से बेहद आकर्षक एवं विधि विधान से नव अन्न पूजन व नंदी आदि के पूजन के साथ नए कपड़े पहन कर मनाया जाता है और गुजरात लखनऊ गया आदि जगहों में तो इस दिन अजब ग़जब की पतंगबाजी होती है । वैसे पतंगबाजी का जुनूनू धीरे धीरे हर वर्ष कम से कमतर होता जा रहा किन्तु फिर भी इन क्षेत्रों में आज के दिन आसमान में रंगा रंग पतंगों की लड़ाई का सौंदर्य ही अद्भुत होता है । भकाट्टा की आवाज कई बार समूह में सुना जाता रहा है जहां लोग घरों के छतों पर खड़े रह कर सूर्य डूबने तक पतंग उड़ाते रहते हैं ।
दानपुण्य का यह पर्व बेहद उत्साह के साथ पूरे देश में मनाया जाता है किन्तु अब इन पर्वों के आयोजन व मनाए जाने में कई हार मात्र औपचारिकताएँ ही नज़र आती हैं। आवश्यकता है, इन पर्वों की परम्परागत शैलियों को फिर से सामूहिक रुप में मनाने पर जोर दिया जाए और इन पर्व त्योहारों के बारे में बच्चों को स्कूली शिक्षा प्रदान करते समय पूरा ज्ञान दिया जाए ताकि नई पीढी अपनी परम्पराओं के सौंदर्य को जान समझ सकें अन्यथा ये पर्व धीरे धीरे भुला दिए जाएंगे। जरूरत है कि सामाजिक रूप से इन पर्वों पर मेल मिलाप को बढ़ावा दिया जाए ।
उदय कुमार सिंह

वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारकाविश्व वात्सल्य मंच

murarkasampatdevii@gmail.com  

लेखिका यात्रा विवरण

मीडिया प्रभारी

हैदराबाद

मो.: 09703982136

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