मंगलवार, 4 नवंबर 2014

सनातनी विचार





सनातनी विचार !

हमारे एक मित्र है जो पिछले एक साल से हर महीने गोवर्धन की परिक्रमा में लगातार जा रहे है। अब तक उनके 12 यात्रा हो चुकी है जिसे वे अपने मित्रो के साथ गाज़ियाबाद से गोवर्धन तक की यात्रा कार से करते है। साल भर की गोवर्धन यात्रा में उनका लगभग 20 से 24 हजार का यात्रा खर्चा आया ही होगा ।
गोवर्धन का मतलब है ! गायों का संवर्धन करना या सरल भाषा में गाय के गोबर का पहाड़ बनाना । अब गाय के गोबर का पहाड़ तो तभी बनेगा ना जब गाय पालोगे ! गोवर्धन ''गोबर + धन'' यानि गोबर से धन कमा ,खेतो में डाल सोना उगा। कंडे बना, धुप बना,कैचुवा खाद बना ,गैस तैयार कर जलावन में ला रोटी पका आदि कई सारे उपयोग है।  गोबर के तो जो लिखने बैठंगें तो कई पन्ने भर जायेंगे । आधिक उपयोग जानने के लिए ''नयाल सनातनी'' के पुराने लेखो से ढूड लें इंटर-नेट से। पर कुछ लोग नासमझी में गोवर्धन पहाड़ की नंगे पाँव परिक्रमा करते है। वे भगवान श्री कृष्ण की सांकेति शब्दावली का मतलब आज तक नहीं निकाल पाए ना ही उनकी गूढ़ बातों अर्थ ही नहीं समझ पाये। पण्डे-पुजारियों के जाल में फ़सं कर मन -धन- जन शक्ति का ह्रास किये है। वह भी येसे पंडो की बातो में आके जिन्होंने गलत ईतिहास पढाया जिन्होंने कहाँ की भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था। जो परशुराम क्षत्रिय कुल में जन्मे श्री राम को नमन करते थे। गहराई से सोचिए एक ही बार क्षत्रियों से विहीन धरती पर दूसरी बार कैसे क्षत्रियों का जन्म हुआ ?कभी ब्राह्मण - क्षत्रिय के नाम पर कभी छोटे बड़े के नाम पर हमें सिर्फ बाटा गया।  क्या आप बाटने वाला अगर अपना खास सगा भी हो तो उसको पुजोगे ? या जोड़ने वाले को ! आपस में लड़ा कर कुछ लोगो ने अपना उल्लू सीधा किया आज भी कर रहे है पहाड़ पुजा कर। पत्थर पूजा कर। क्या गोवर्धन में जो लाखों लीटर दूध चडाया जाता है उससे हजारो लोगो को बलवान नहीं बनाया जा सकता ? क्या अब जो कैमिकल वाला दूध गोवर्धन पर्वत पर डाला जा रहा है उससे पर्वत नष्ट नहीं हो रहा इस ओर किसी गोवर्धन में रहने वाले का ध्यान है ? या गोवर्धन में भी लोगो के भरोशे गौशालाएँ खोलकर सिर्फ कमाई का साधन बना दिया गया है। 
 कास आज भी लोग सही मार्ग का दर्शन कर उस पर चलते तो भारत फिर सोना उगलता,लोगो को समझ आ जाता गोवर्धन का सही अर्थ तो आज तक लाखो गौवंश की जान बच गई होती ! मानव गाय को सिर्फ कुछ रुपियों का हरा चारा ही खिला दे और भारतीय गौवंश की सेवा कर अपने घर पर ही गाय की सात परिक्रमा कर ले तो हजारो-लाखों रुपये खर्च कर जो यात्रायें की जाती है उससे होने वाले पुण्य से कई गुणा अधिक पुण्य उनको गौमाता की कृपा प्रसाद से प्राप्त होता है ! बोनस में कई गौवंश को बचाने का पुण्य अलग से प्राप्त होता जो देवताओं को भी दुर्लभ है। अथर्ववेद में गाय को 'धेनु: सदनम् रमीणाम' कहा गया है और इसे धन-संपत्ति का भंडार कहा गया है। 
कबीर दास कहते रहे लोग समझे नहीं। पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार । ताते यह चाकी भली पीस खाय संसार।। 
संत कवि रविदास जो कबीर दास के गुरुभाई थे। गुरु भाई अर्थात दोनों के गुरु ब्रह्म तत्व को जानने वाले स्वामी रामानंद थे। उन्होंने भी सांकेतिक भाषा में यही समझाने की कोशिश की -- मन चंगा तो कठौती में गंगा। येसे ही अनेक संतो ने जो किसी भी कक्षा तक नहीं पड़ें जिनको नीच जाती का कह कर दुत्कार मिली उन्होंने बहुत कुछ संसार को दिया जैसे छातिसीगढ़ के संत घासीदास, काशी के चंडाल जिन्होंने शंकराचार्य को सत्य का दर्शन कराया। नवधा भक्ति से परिपूर्ण शबरी,पशु योनी में जन्मा गिद्ध राज आदि।  समझो तो काम का, बरना हराम का।  मेरा क्या ?  
''नयाल सनातनी'' गौ-चरणों का दास ''सर्वदलीय गौरक्षा मंच परिवार''

प्रस्तुति: नयाल सनातनी 
प्रस्तुत कर्त्ता: संपत देवी मुरारका 
संपत देवी मुरारका
अध्यक्षा-विश्व वात्सल्य मंच
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

2 टिप्‍पणियां:

  1. विचार क्रांति की आवस्यकता ऐसे ही जागरण से पूरी होगी

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  2. बहुत बहुत साधुवाद देवी मुरारका जी हमारे इस विचार को अधिक विद्द्वानो तक पहुचाने के लिए .. ''नयाल सनातनी'' आपका अपना मित्र

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