कादम्बिनी क्लब की गोष्ठी आयोजित
कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्त्वावधान
में रविवार दि.21 सितम्बर को हिंदी प्रचार सभा परिसर में
डॉ. देवेन्द्र शर्मा की अध्यक्षता में क्लब की 265वीं
मासिक गोष्ठी आयोजित हुई |
क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र व
कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में आगे बताया की इस
अवसर पर मधुमती पोकरणा (मुख्य अतिथि, परली
वैजनाथ), देवीदास घोडके (विशेष अतिथि हिंदी साहित्यकार) एवं डॉ. अहिल्या मिश्र
(क्लब संयोजिका) मंचासीन हुए | डॉ.रमा द्विवेदी ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी
| डॉ. मिश्र ने क्लब परिचय में कहा कि क्लब की विविध गतिविधियाँ एवं निरंतरता में
साहित्यकारों की नियमित उपस्थिति का योगदान महत्त्वपूर्ण है | प्रथम सत्र में “साहित्य
परिक्रमा” त्रैमासिक जो कि ग्वालियर से क्रान्ति कनाटे के संपादकत्त्व में छपा
है, इस पर सरिता सुराणा जैन ने समीक्षा करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय अधिवेशन
विशेषांक राष्ट्रीय अस्मिता और वर्त्तमान भारतीय साहित्य से संबंधित है |
साहित्यकार का यह कर्तव्य है कि वह समसामयिक विषयों पर, देश की वर्त्तमान सामाजिक,
राजनैतिक और सांस्कृतिक दशा पर अपनी कलम चलायें | अंक में शामिल सभी आलेख अधिवेशन
के केंद्रीय विषय पर आधारित हैं | आलेख पत्रिका के स्तर एवं गरिमानुकूल है |
प्रस्तुत अधिवेशन में 18 प्रान्तों के 14
भाषाओं के 353 प्रतिनिधियों की
उपस्थिति अधिवेशन के सफलता को दर्शाता है | समीक्षक ने पत्रिका को उच्चकोटि की
साहित्यिक पत्रिकाओं की श्रेणी में रखते हुए अपनी बात को विराम दिया |
ततपश्चात “हिंदी
दिवस की आवश्यकता क्यों” विषय पर प्रो. सरिता गर्ग ने कहा कि नदी का उद्गम जिस स्थान से होता
है और वह जिस-जिस प्रदेश से गुजरती है, जलवायु प्रांत-प्रांत के हिसाब से बदलता है,
उसी प्रकार हिंदी ने भी प्रांत-प्रांत में अलग-अलग बोलियों में अपना स्थान बनाया |
देश को स्वातंत्र्य दिलाने के संघर्ष में हमारे नेताओं ने जब भी नारे लगाए, हिंदी
में ही वे नारे थे, जिसने जनता में जोश का संचार किया | आज प्रचार-प्रसार माध्यम
में विज्ञापन की दुनिया को देखें तो हिंदी ने अपना वर्चस्व रखा है | निज उन्नति
निज भाषा के मूल में समाहित है, इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक परिवार से
ही विकास की पहल होनी चाहिए | डॉ. कृष्णा सिंग ने कहा कि मैंने राजभाषा अधिकारी के
रूप में 24 वर्ष कार्य किया तथा हिंदी की दशा-दिशा को
करीब से देखा | कई बार सुझाव प्रेषित किये गए परन्तु सुधार की दिशा में कदम उठाने
में गंभीरता नहीं होती है | लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने कहा कि अस्मिता, भाषा,
संस्कृति तीनों एक दूसरे से जुड़े हैं | भाषा आगे बढ़ रही है पर संस्कृति वापस नहीं
आ रही है | अपनी अस्मिता को जानने के लिए हमें अपने अंदर झांकना होगा | हिंदी की
उर्जा को रीजनरेट करना होगा | बढ़ते पश्चिमीकरण से भाषा-संस्कृति प्रमाणित हो रही
है | विनय कुमार झा ने कहा कि जब इतिहास कोई लिखता है तो वह सामने वाले पर बोझ डालता
है | पुराणों में जो भी कथाएं हैं वहां से एक वितंडा शुरू हो गया | इतिहास लिखे गए वहां कहीं
भी किसी तारीख का जिक्र नहीं है | लॉर्ड मेकाले ने जो भी किया अपने देश के लिए
किया | हिंदी के विकास को झटका तो स्वतंत्रता के बाद लगा | डॉ. मिश्र ने कहा कि
मंथन करने के बाद इस नतीजे पर आते हैं कि हम अपने-अपने परिवार में अपनी भाषा को
बचाने में अक्षम हैं | हमारी पीढ़ी हमें “पोंगा पंडित”
कहती है, भाषा न मरी है न मरेगी, उस पर जमे मैल को हटाना होगा | देवीदास एवं
मधुमती ने भी अपनी बात रखीं | डॉ. देवेन्द्र शर्मा ने अध्यक्षीय बात में कहा कि
पत्रिका पर भी सरिता सुराणा ने संक्षिप्त समय में विस्तृत जानकारी दी है | सरिता
गर्ग एवं अन्य वक्ताओं ने भी हिंदी पर अपनी बात रखी | हम आज भी विगत में ही जी रहे
हैं | कोई भी समाज सुधारक आज की
बात नहीं करता | हम ऋग्वेद, रामायण-महाभारत की कहानियों में ही अटके हैं | समय-समय
पर परिस्थितियाँ बदली तो विचारों को भी बदलना पड़ा |हिंदी के शब्द भंडार में अन्य
भाषा के शब्दों ने अनजाने ही प्रवेश कर लिया और आज हम भी उन शब्दों के आदि हो गए
हैं |
ततपश्चात नगर की विख्यात कहानीकार पवित्रा
अग्रवाल को हाल ही में प्राप्त भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार (बालकथा संग्रह
‘फूलों से प्यार’) से सम्मानित होने पर क्लब की ओर से उनका बहुमान किया गया |
देविदास धोड़के को भारत परिषद् प्रयाग की ओर से सारस्वत सम्मान प्राप्त करने पर
क्लब ने तालियों की गूंज में उनकी सराहना की |
गोष्ठी के द्वितीय सत्र में लक्ष्मीनारायण
अग्रवाल के संचालन में तथा गुरुदयाल अग्रवाल एवं वी. वरलक्ष्मी के आतिथ्य में
कविगोष्ठी आयोजित हुई | उसमें भावना पुरोहित, संपतदेवी मुरारका, विनीता शर्मा,
देवाप्रसाद मयाला, विनयकुमार झा, दर्शन सिंह, पवित्रा अग्रवाल, डॉ. अनिता मिश्र,
डॉ. सीता मिश्र, डॉ. कृष्णा सिंग, सरिता सुराणा जैन, सरिता गर्ग, उमा सोनी, सविता
सोनी, सूरजप्रसाद सोनी, लीला बजाज, संतोष रजा, भूपेन्द्र, पुरुषोत्तम कडेल, डॉ.
अहिल्या मिश्र, मीना मूथा ने काव्य पाठ किया | गुरुदयाल अग्रवाल ने अध्यक्षीय
काव्यपाठ किया | डॉ. मदनदेवी पोकरणा ने धन्यवाद ज्ञापित किया | उसके साथ ही गोष्ठी
का समापन हुआ |
प्रस्तुत
कर्ता-संपत देवी मुरारका
संपतदेवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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