खराब अंग्रेजी के मजाक से मोदी के ही वोट बढ़ेंगे
शनिवार १७ जुलाई २०२१निकुपा:उपरोक्त लेख के लेखक, एडिटर-इन-चीफ़, ‘द प्रिंट’ है। मेरी समझ से ये मूल रूप से अंग्रेज़ी में लिखते हैं। अनुवादित होकर प्रकाशित होता है।-इनका लेखन हमेशा मोदी सरकार के विरुद्ध होता है।-प्रकाशन दैनिक भास्कर और बिज़नेस स्टैंडर्ड हिंदी संस्करण में होता रहता है।- इनके इस लेख में हर संभव अंग्रेज़ी भाषा का समर्थन हुआ है।-हमें विचार करना होगा कि भारतीय व्यक्ति भारत, भारतीयता की उपेक्षा क्यों करता है ?-भाषाई अख़बार इन जैसे अंग्रेज़ी में लिखनेवालों के लेख प्रकाशित क्यों करते हैं ?-भारतीय भाषाओं के अख़बारों को अपनी भाषाओं में लिखनेवालों को ही महत्व देना चाहिए। यह स्थिति कब और कैसे बदलेगी ?
निर्मल कुमार पाटौदी
लगता है कुछ लोगों की चिंता भाषा नहीं, उऩ्हें भाषा से ज्यादा सरोकार राजनीति से है और चिंता यह कि अंग्रेजी-परस्तों के अहंकार से मोदी जी के वोट न बढ़ जाएँ...। यह चिंता का नहीं सोच चिंताजनक होने का मामला है।हम तो यह कहते हैं कि न तो हम अंग्रेज हैं न अंग्रेजी हमारी मातृभाषा, वहाँ कुछ गलती हो सकती है । हमें ज्यादा चिंता तब होती है जब हम अपनी ही भाषा न जानने की बात करते हैं या अपनी भाषा के बजाए अनावश्यक अंग्रेजी में बोलकर अपने बड़प्पन को दर्शाते हैं । सबसे शर्मनाक यह कि कोई कहे कि उसे अपनी भाषा या देश की भाषा नहीं होती। ऐसे घमंडी और बेवकूफ नमूने सबसे ज्यादा हमारे ही देश में पाए जाते हैं। इस पर लिखे जाने की आवश्यकता है।
डॉ. एम.एल. गुप्ता आदित्य
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प्रस्तुत
कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
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लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
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