बुधवार, 24 मार्च 2021

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] .'देवनागरी लिपि और वर्तनी: मानकीकरण की ओर' विषय पर राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी दिनांक - 20-03-2021 दोपहर 2.30 बजे। समाज में हिंदी - विवेक गुप्ता । झिलमिल में 'जय विजय' पत्रिका का मार्च 2021 अंक

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पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय द्वारा विश्वनागरी विज्ञान संस्थान के सहयोग से 

.'देवनागरी लिपि और वर्तनी: मानकीकरण की ओर' 
विषय पर राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी दिनांक - 20-03-2021 दोपहर 2.30 बजे से आयोजित की जा रही है।

गूगल मीट लिंक :  Meet.google.com/art-tauu-pmo

 उद्घाटन एवं उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गुरुमीत सिंह जी करेंगे।

 मुख्य अतिथि :  बलदेवराज कामराह जी, अध्यक्ष, विश्व नागरी विज्ञान संस्थान ।
 आशीर्वचन    : आचार्य पी.के. सुब्रमणियम, अधिष्ठाता, मानविकी संकाय।
 बीज वक्तव्य  : विश्व नागरी विज्ञान संस्थान के महासचिव प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी जी ।

 वक्तागण
 1. प्रो. वी.रा. जगन्नाथन, पूर्व निदेशक एवं  प्रोफ़ेसर, इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय,
 2. डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य', उपनिदेशक, हिंदी शिक्षण योजना एवं निदेशक वैश्विक हिंदी सम्मेलन।  
 3. डॉ. ओम प्रकाश प्रजापति, हिंदी विभाग, हिमाचल, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश।
 4. डॉ. श्याम सुंदर अग्रवाल,  उपाध्यक्ष, विश्व नागरी विज्ञान संस्थान तथा निदेशक, केआईआईआईटी वर्ल़्ड ऑफ कॉलेजेज़ होंगे। 

सभी विद्वान व भाषा-प्रेमी सादर आमंत्रित हैं।
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समाज में हिंदी
  - विवेक गुप्ता   

पीढ़ियों का अंतर तो हर दौर में रहा है, बुज़ुर्ग और युवा पीढ़ी के बीच संवाद की कमी हमेशा ही रही है, फिर आज के वृद्ध ख़ुद को अधिक उपेक्षित क्यों महसूस करते हैं?

कारण है, उनका भावी पीढ़ी से संवाद भी कम या लगभग ख़त्म हो गया है। महज़ तीन-चार दशक पहले तक बच्चों और बुज़ुर्गों के बीच जीवंत रिश्ता हुआ करता था। उनके बीच हँसी-ठिठोली होती, ज्ञान का आदान-प्रदान भी होता, वृद्ध अपने नाती-पोतों को दुलार और संस्कार देते, और इस तरह उन्हें सार्थकता का एहसास होता। लेकिन अब इस सबमें एक बड़ा अवरोध है, भाषा!
 
क्षमा, दया, स्वाभिमान, कृपा, संयम, त्याग, निष्ठा जैसे शब्द शहरी बच्चों के लिए नितांत अजनबी बन चुके हैं। उन्हें इनके अँग्रेज़ी शब्द चाहिए, इन नैतिक मूल्यों को समझना और आत्मसात करना तो दूर की बात है! बच्चों को काऊ और स्पैरो समझ आते हैं।

दादा-दादी और पौत्र-पौत्री की भाषा में बहुत अंतर आ चुका है। बहुत से बुज़ुर्गों के लिए इस अंतर को पाट पाना मुश्किल है। भाषा के कृत्रिम हो जाने का ख़तरा भी है, ऐसी भाषा जिसे वे बोल तो लें, परंतु शायद उनका दिल न बोलना चाहे।
 
घरेलू स्तर पर इस स्थिति को बदलने के प्रयास होने चाहिए। समाज के स्तर पर भी कोशिश की जा सकती है। समाज के आयोजनों में हिंदी संभाषण, लेखन इत्यादि से संबंधित प्रतियोगिताएँ हों, वृद्धजन बच्चों का मार्गदर्शन करें। हर घर के बच्चों की सहभागिता अनिवार्य बनाई जाए।

अमेरिका में जैसे दूसरी-तीसरी पीढ़ी के भारतीय बच्चों को हिंदी सिखाने के लिए मंदिरों में कक्षाएँ लगती हैं, भारत में भी वैसा हो तो अच्छा ही है।

हिंदी के लिए निष्ठापूर्वक कार्य करने के मामले में जैन समाज का अनुसरण भी किया जा सकता है। इस समाज के बड़े-बड़े साधु-संत हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए जागरूक रहते हैं।

कर्नाटक में जन्मे आचार्य विद्यासागर जी महाराज तो न केवल अनुयायियों को, बल्कि राजनेताओं को भी इसके लिए निर्देशित करते हैं। उन्होंने ‘मूक माटी' नामक महाकाव्य सहित हिंदी और संस्कृत में कई पुस्तकें रची हैं।

इन्हीं सब प्रयासों का सुफल है कि जैन समाज से नाता रखने वाले प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, अभियंता, सनदी लेखाकार (सीए) भी हिंदी से प्रेम करते हैं, कई तो अभियान भी चला रहे हैं।

भारत में जातिगत समाजों और संगठनों के पास विशिष्ट शक्ति है। वे उस शक्ति का प्रयोग हिंदी भाषा के लिए कर सकते हैं। इस तरह वे बच्चों को सिर्फ़ भाषा से नहीं जोड़ेंगे, बल्कि उन्हें उनके वास्तविक परिवेश, संस्कार और रिश्तों से भी जोड़ेंगे। यही तो समाज का कर्तव्य है!

- विवेक गुप्ता (मधुरिमा, दैनिक भास्कर)


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पत्रिका 'जय विजय' के मार्च 2021 अंक का लिंक प्रेषित है. आप इस लिंक को क्लिक करके पत्रिका को डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं.
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वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारकाविश्व वात्सल्य मंच

murarkasampatdevii@gmail.com  

लेखिका यात्रा विवरण

मीडिया प्रभारी

हैदराबाद

मो.: 09703982136

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