एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी का सवालहम किस राष्ट्रचेतना की बात करते हैं?
श्रीमती लीना मेहंदले
( सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी )
राष्ट्रचेतना का उदय राष्ट्र के चिंतन से होता है ! राष्ट्र चिंतन होता है राष्ट्रके दर्शन या तत्वज्ञान से ! लेकिन भारत के विद्वान शिक्षाविद पंडित लोग यह सोचते हैं कि भारत देश के पास अपना कहने लायक कोई तत्वदर्शन नहीं है ! जिसे मेरी बात पर विश्वास ना हो वह संघ लोक सेवा आयोग (upsc)से पूछे ! आयोग कहता है कि हमारा नीति शा्स्त्र हम प्लेटो और अरस्तु और पश्चिमी दार्शनिकों से सीखेंगे ना की भर्तृहरि या चाणक्य या महाभारत में वर्णित सुशासन की कल्पना से या रामराज्य की कल्पना से सीखेंगे! इसी कारण यूपीएससी जो परीक्षा आयोजित करती है और जिसके माध्यम से प्रतिवर्ष देश के लिए सर्वोच्च ब्यूरोक्रेटिक अधिकारी के तौर पर करीब 1000 से 1500 के बीच अफसरों का चुनाव करती है। वह संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी अपने अनिवार्य पेपर में जो एथिक्स नामक विषय रखती है वह पूरा का पूरा पश्चिमी एथिक्स हमारे अफसर बनने की इच्छा रखने वाले छात्रों को पढ़ना पड़ता है! इसके लिए ली जाने वाली परीक्षा में एक पेपर होता है एथिक्स, जिसके लिए पूरी तरह से पश्चिमी विद्वानों की पुस्तकें पढ़ने का रिवाज है क्योंकि पश्चिमी विद्वानों के सिद्धांतों के विषय में ही प्रश्न पूछे जाते हैं।
मित्रों याद रखिए कि यद्यपि केवल 1200 अधिकारी हर वर्ष चुने जाते हैं लेकिन इस अफसरी की परीक्षा की पढ़ाई करने के लिए हर वर्ष नए 1200000 विद्यार्थी दौड़ में उतरते हैं और इतने सारे विद्यार्थी केवल पश्चिमी नीतिशास्त्र ही पढ़ते हैं। उनके दिमाग में यह बिल्कुल फिट बैठाया जाता है कि भारत के पास न कोई नीति थी, न भारत के लोगों कभी नीतिवान थे। और इस प्रकार एक आत्मग्लानि से उन्हें भर दिया जाता है। हर वर्ष करीब बारह लाख बच्चों को।
इन प्रश्नों के लिए संघ लोक सेवा आयोग का उत्तर है कि हमारे देश में नीतिशास्त्र न कभी पढ़ा गया और न कभी हमारे देश के लोग नीति वहां थी इसलिए नीति वालों अफसर चुनने की गरज से वे उन्हें पश्चिमी नीतिशास्त्र पढ़ाने के लिए बाध्य करते हैं । हमारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) कहता है कि हम तो अपने विश्वविद्यालयों में फिलॉसफी का पाठ्यक्रम पश्चिमी पंडितों के बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए बनाएंगे और इसमें भारतीय दर्शन केवल 10% रहेगा! क्योंकि वास्तविकता में भारत के पास फिलॉसफी जैसा कोई ज्ञान है ही नहीं जिसे हम 10% फिलॉसफी के लायक भी कहते हैं, वह भी मायथोलॉजी है मिथ्या है, फिलाॉसफी नहीं है !
इसलिए मुझे तो यही दिखता है कि यूजीसी और यूपीएससी ने पहले ही घोषणा कर दी है कि भारत के पास न तो अपनी कोई फिलॉसफी है न अपना कोई एथिक्स! हमारे जो भी ब्यूरोक्रेटिक अफसर चुने जाएंगे या जिन्हें फिलॉसफी में एम.ए. की डिग्री मिलेगी वे सारे पढ़ाकू और नौकरशाह पश्चिमी चिंतन के मार्ग से चलेंगे! तो फिर हम किस राष्ट्रचेतना की बात करते हैं? भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षा देने वाले भारतीय परिवेश में पले-बढ़े विद्यार्थी तो भारतीय चिंतन परंपरा और दर्शन से परिचित होते हैं लेकिन उन्हें भारतीय दर्शन और चिंतन के बजाए अरस्तू और प्लेटो के ज्ञान की परीक्षा ली जाती है। न तो यह न्याय संगत और न व्यवहार संगत। यह राष्ट्र चेतना के भी अनुकूल नहीं है।
क्या हमारे देश में कोई अपना नीतिशास्त्र नहीं है? क्या हमारे देश में कभी नीति से चलना ही नहीं सीखा? क्या हमारा देश इतना अनीति पूर्ण था कि हम अपने जीवन की नीतियों को पश्चिमी विद्वानों से ही पढ़ना चाहिए?
भारतीय राष्ट्रचेतना, भारतीय दर्शन, भारतीय भाषा-संस्कृति तथा भारत की वर्तमान शिक्षाव्यवस्था और लोकसेवाओं आदि से जुड़ेऐसे तमाम बिंदुओं पर मैंने माननीय लीना जी से एक विस्तृत लेख लिखने का अनुरोध किया है। आशा है हमें जल्द ही उनका लेख मिलेगा।
डॉ. एम.एल, गुप्ता आदित्य,निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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प्रस्तुत
कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
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