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हिंदी में वेबिनार की क्या दरकार
विभिन्न विद्वानों के विचार।
प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी - वरिष्ठ भाषाविद, सदस्य - केंद्रीय हिंदी समिति - कुछ लोग वेब-संगोष्ठी की वकालत कर रहे हैं। लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि वेब भी एलेक्ट्रोनिक के अंतर्गत आता है। हमें अंशी को अपनाना चाहिए न कि अंश को, ताकि भविष्य में कोई कठिनाई या उलझन न आ पाए। इस प्रकार आज के तकनीकी युग में इलेक्ट्रोनिक और कंप्यूटर का बहुत बड़ा योगदान है। इसी के परिप्रेक्ष्य में भविष्य में और भी कई तकनीकी उपकरणों का विकास होगा। 'इलेक्ट्रोनिक' के लिए कुछ लोगों ने हिन्दी में 'वैद्योतिकी' शब्द रखा है, जो जटिल और कठिन होने के कारण अभी तक प्रचलित नहीं हो पाया। वास्तव में तकनीकी शब्दों के निर्माण में सरलता, सहजता, सुगमता, स्वाभाविकता और संक्षिप्तता पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है। इस लिए "ई-संगोष्ठी" शब्द वेबिनार के लिए उचित और उपयुक्त लगता है। इसके उच्चारण में सरलता और सहजता है तथा प्रयोग में संक्षिप्तता एवं सुगमता है। 'ई-संगोष्ठी' शब्द का प्रचलन पहले था, किंतु बहुत कम था। इस करोना वायरस केकारण तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा वेबिनार शब्द का प्रयोग होने लगा और हिन्दी के विद्वानों ने भी इसे अपना लिया। पता नहीं हिन्दी विशेषज्ञों ने इस शब्द का प्रयोग क्यों नहीं किया। वस्तुत: शब्दों का प्रचलन उनके प्रयोग से ही होता है। इस लिए मेरे विचार में 'ई-संगोष्ठी' शब्द का प्रयोग करना असमीचीन नहीं होगा।श्रीमती लीना मेहंदले सेवानिवृत्त भा.प्र.से. अधिकारी, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त, गोवा तथा सक्रिय भारतीय भाषा सेवी - ई-संगोष्ठी सहमत ।प्रो. रंजना अरगडे , पूर्व निदेशक, स्कुल ऑफ लैंग्वेजिज़ तथा पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, गुजरात विद्यापीठ - ई संगोष्ठी से पूर्णत: सहमत
डॉ. एस.पी. दुबे, पूर्व अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी तथा पूर्व अध्यक्ष मुंबई विश्वविद्यालय, बोर्ड ऑफ स्टडीज - आजकल वर्चुअल संगोष्ठियों का आयोजन बहुत जोर पर है,जिसे वेबिनार का नाम दिया जा रहा है। यह नाम प्रचलन में बड़ी तेजी से उभरा और इसकी स्वीकार्यता भी उतनी ही तीव्र गति से हुई। लेकिन अंग्रेजी के दो शब्दों से मिल कर बने इस शब्द के बजाय हिंदी में इसे 'ई संगोष्ठी' कहा जाना अधिक उपयुक्त और तर्कसंगत लगता है। मेरे विचार से इलेक्ट्रानिक और आभासी साधनों से आयोजित संगोष्ठियों के लिए हिंदी में 'ई संगोष्ठी 'का प्रचलन ही उचित है।प्रो. अमरनाथ, वरिष्ठ भारतीय भाषा सेवी तथा पूर्व विभागाध्यक्ष, कोलकाता विश्ववि्यालय - 'ई-संगोष्ठी' सही शब्द है। अवश्य चलेगा।प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, आचार्य एवं अध्यक्ष , हिंदी विभाग , विक्रम विश्वविद्यालय,उज्जैन - 'वेबिनार' शब्द 'वेब' और 'सेमिनार' का मिश्रण है। वस्तुतः वेबिनार इंटरनेट पर आयोजित एक कार्यक्रम है, जहाँ विशेष रूप से ऑनलाइन दर्शकों द्वारा भाग लिया जाता है। यह इसे एक वेबकास्ट से अलग करता है, जिसमें भौतिक दर्शकों की उपस्थिति भी शामिल है। अंग्रेजी में वेबिनार के विकल्प के रूप में उपयोग किए जाने वाले अन्य शब्द वेब इवेंट, ऑनलाइन सेमिनार, वेब लेक्चर और वर्चुअल इवेंट हैं। हिंदी में वेबिनार के पर्याय के रूप में वेब संगोष्ठी, ऑनलाइन संगोष्ठी, वेब व्याख्यान आदि प्रचलित हैं। अतः मेरा निष्कर्ष है कि वेबिनार को वेब संगोष्ठी कहना उचित है।प्रो.मंगला रानी,प्रोफेसर, हिंदी विभाग, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना- वेबिनार के लिये ई-संगोष्ठी उत्तम विकल्प है। वर्चुअल क्लास को गूगल आभासी वर्ग कहता है किंतु वह आभासी कतई नहीं है, बिल्कुल समक्ष है। मुझे इसे गृह - कक्षा अथवा घरेलू - वर्ग कहना ज्यादा उचित लगता है। ई-मैगजिन को ई-पत्रिका कहना सुविधाजनक एवं स्पष्ट है।प्रोफेसर विष्णु सरवदे, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद - वेबिनार की जगह ई-संगोष्ठी यह शब्द उपयुक्त है। यह शब्द ठीक लगता है। यह हिन्दी का अपना शब्द होगा। इस शब्द का प्रयोग हम कर रहै हैं।
अनिल गोरे, गणित शिक्षक एवं विख्यात मराठी-सेवी- ई उधार का भी क्यों लेना ? वी-संगोष्ठी संबोधन से क्या आपत्ति है ? उधार ज्यादा हो या थोडा ! उधार तो उधार होता है !प्रो. सतीश पांडेय, डॉ सतीश पांडेय, पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, के. जे. सोमैया कला व वाणिज्य स्वायत्त महाविद्यालय मुंबई।संपादक समीचीन - 'वेबिनार' के हिन्दी विकल्प के संदर्भ में विगत कई दिनों से चल रही चर्चा और विमर्श मैं बड़े गौर से देख रहा था। मुझे लगता है कि हिंदी में पहले ही हमने 'ईमेल' शब्द को स्वीकार कर लिया है। थोड़ा आसान लगने वाले विकल्प जल्दी प्रचलन में आ जाते हैं। यह सर्व विदित है कि वे ही शब्द आगे स्वीकृत होते हैं जो लोगों द्वारा व्यवहार में लाए जाते हैं अन्यथा वे मात्र शब्दकोशों तक सीमित रह जाते हैं। इस दृष्टि से ई-मेल की तर्ज पर ई-संगोष्ठी अधिक व्यापकता लिए हुए उचित विकल्प लगता है जो ग्राह्य हो सकता है।
विनोद संदलेश, संयुक्त निदेशक, केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार - बात कहने और सुनने की नहीं है। जब आवश्यकता होने पर आगत यानि उधार के शब्द एक भाषिक समाज में किसी विशेष कार्यसिद्धि के लिए प्रवेश करते हैं तो प्रयोक्ता उनके कई रूप प्रयोग में लाने का प्रयास करते हैं। यह उस भाषिक समाज अथवा प्रयोक्ता वर्ग की आवश्यकता भी है। अस्तु वेबिनार भी चलेगा, ई संगोष्ठी भी चलेगा और ऑनलाइन भी प्रयोग में आएगा। अब प्रश्न है कोई शब्द कितनी देर तक चलेगा और कोई शब्द उस भाषा में कब पक्का स्थान बनाएगा। मेरे अनुभव कहता है जिस एक विचार से उस भाषा में एक ही प्रकार के शब्द युग्म बनेगें या ऐसे शब्द युग्म बनने की उर्वरता होगी वही शब्द स्थायित्व ग्रहण कर लेगा जैसे ई गोष्ठी, ई संगोष्ठी, ई सरल वाक्यकोश, ई महाशब्द कोश, ई शिक्षण, ई प्रशिक्षण आदि आदि।।। अस्तु ई संगोष्ठी शब्द को निरंतर प्रयोग में लाये जाने की आवश्यकता है।।। सभी इस प्रयास में लगे रहीं बाकी भाषिक समाज पर छोड़ दें । यदि दम होगा तो स्थायी हो जाएगा।
रुद्रनाथ मिश्र, उप महाप्रबंधक (राजभाषा) - एनएमडीसी लिमिटेड - महोदय, मैं समझता हूं कि अभी उपयुक्त समय है जब वेबिनार का हिंदी पर्याय प्रचलित कर दिया जाए वरना "प्रचलित श्ब्द अपनाओ “ का चोला ओढकर वास्तव में अंग्रेजी शब्द अपनाओ का कार्य करने वाले तथाकथित सरलतावादी वेबिनार को इतना प्रचलित कर देंगे कि इसका हिंदी समतुल्य ढूंढने का उपक्रम कोई नहीं करेगा। चूंकि संगोष्ठी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से की जा जाती है अत: इसे ई-संगोष्ठी जैसा सटीक शब्द दिया जाना उचित रहेगा।
प्रदीप शर्मा, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा,चेन्नई - हम दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा,चेन्नई भी 'ई-संगोष्ठी' शब्द के लिए पूरी तरह सहमत हैं और भविष्य में इसी शब्द का ही प्रयोग करेंगे|
डॉ. आर.वी. सिंह, उप महाप्रबंधक राजभाषा, सिडबी - आपका प्रयास स्तुत्य है। अ कॉम्प्रीहेन्सिव इङ्गलिश-हिन्दी डिक्शनरी में डॉ. रघुवीर ने कितने नये-नये शब्द सुझाए। भूमिका में उन शब्दों का औचित्य भी प्रतिपादित किया। नियोजित भाषा-विकास की प्रक्रिया में नये शब्द बनाकर प्रस्तुत तो किए जा सकते हैं, किन्तु उन्हें चलाने न चलाने का काम प्रयोक्ता करेंगे। ई-संगोष्ठी शब्द बड़ा टकसाली है। इसे चलना चाहिए। हमारे भोजपुरी-अवधी क्षेत्रों में तो ई-संगोष्ठी (या इसंगोष्ठी) को बिलकुल धड़ल्ले से चलना चाहिए। आप इसे बार-बार लोगों के सामने लाइए। इतनी बार कि यह लोगों की जबान पर चढ़ जाए। भाषा तो चलती का नाम गाड़ी है। एक बार चल जाए तो कोई नहीं पूछता कि यह शब्द आया कहाँ से। व्युत्पत्ति तो शोध की विषयवस्तु बन जाती है।
इसंगोष्ठी बड़ा और उच्चारण में कठिन लगे तो इगोष्ठी कहिए। प्रयोग करने से डरना नहीं चाहिए। कोई क्या कहेगा, यह सोचने की भी ज़रूरत नहीं। आपको जो कहना है कहिए। शायद उसी में आपकी महारत हो। हम तो अपना काम करेंगे। आज अंग्रेजी पूरी दुनिया पर छा गयी है, तो उसका सबसे बड़ा कारण है उसमें अनुसंधान और विकास के लिए उत्कंठा और हर भाषित तत्व को सहज ही आत्मसात करने की उसकी ललक। हिन्दी में भी अनुसंधान व विकास निरन्तर चलते रहना चाहिए।
डॉ जवाहर कर्नावट, निदेशक, हिंदी भवन, भोपाल - ई-संगोष्ठी संकुचित अर्थ प्रदान करता है जब कि वेब संगोष्ठी व्यापकता लिए हुए है. ' ई ' इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया का सूचक है. हम ई-रिक्शा, ई-पुस्तक, ई-पास आदि का प्र्योग करते रहे है किंतु इनमेें कहीं भी ऑनलाइन प्रक्रिया नहीं है, अत: मुझे वेब संगोष्ठी अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है.।डॉ राजेश कुमार वर्मा, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास इंदौर संभाग प्रमुख - सादर नमस्कार, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास इंदौर महानगर इकाई ने यह तय किया है कि अब हमारी जितनी भी ऑनलाइन संगोष्ठियाँ या कार्यशाला हो रही हैं, उनमें हम केवल ई- संगोष्ठी या ई-कार्यशाला शब्द का ही प्रयोग कर रहे हैं और मैं चाहूँगा कि पूरे देश में यह अभियान आगे बढ़े और इस अभियान के तहत हर व्यक्ति, हर संस्था, हर संगठन, जो इस तरह के कार्य में लगा हुआ है, वह अपने हर कार्य को ई- संगोष्ठी को ई-कार्यशाला, ई-राष्ट्रीय संगोष्ठी, ई - अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी इन नामों से ही जाने एवं अपने प्रपत्र पर अथवा सूचना पत्र पर इन नामों का ही उल्लेख करें। इस प्रकार बहुत जल्दी हम विभिन्न शब्दों से बाहर निकल चुके होंगे और ई- संगोष्ठी, ई-कार्यशाला, ई-व्याख्यान इन चीजों पर ध्यान केंद्रित होगा। इस अभियान के प्रति हमारी शुभकामनाएँ!प्रोफेसर डॉ (मा) अरविन्द कुमार गुप्ता, भाषा संकाय, कृपनिधि ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, बैंगलोर - मेरे विचार में भी ई-गोष्ठी होना चाहिए क्योंकि हम आमतौर पर सामूहिक परिचर्चा के लिए गोष्ठी शब्द का ही प्रयोग करते हैं और ई का प्रयोग उपसर्ग के रूप में हम एक लंबे समय से तकनीक के प्रयोग के लिए करते आ रहे हैं जैसे डिजिटल पुस्तक के लिए ई- पुस्तक, डिजिटल लाइब्रेरी के लिए ई- ग्रन्थालय शब्दों का प्रयोग होता रहा है, थोड़ा और संशोधन चाहें तो ई - संगोष्ठी प्रयोग किया जा सकता है।मधुसूदन नायडू, सहायक निदेशक, हिशियो ( सेवानिवृत्त) नागपुर - वेबिनार केवल सेमिनार के लिए नहीं होता इसके अलावा मार्केटिंग के काम में आता है. उसके लिए ई संगोष्ठि से काम नहीं चलेगा।राहुल खटे, प्रबंधक राजभाषा, भारतीय स्टेट बैंक,नाशिक - "ई-संगोष्ठी" ही योग्य शब्द है। क्योंकि यह न केवल वर्तमान के लिए बल्कि भविष्य में भी चलने योग्य है। 'ई-ऑफिस', 'ई-कार्यशाला', 'ई-संगोष्ठी', 'ई-बैठक', 'ई-गोष्ठी' से ई-संगोष्ठी समीचीन लगता है।
मोहन के गौतम - E भी तो अंग्रेज़ी का ही शब्द है। शब्दों को अपनाने से भाषा की उन्नति हाई होती है। हमारी हिंदी में भारतीय भाषाओं के साथ पुर्तगाली, फ़्रांसीसी , डच, फ़ारसी, तुर्की , अरबी से भी बहुत से शब्द अपना लिए हैं। आप इन शब्दों को निकाल कर बोलें तो आपका सम्प्रेषण नहीं होगा। इन संकुचित विचारों से शायद आप तो ख़ुश होंगे पर अन्य लोग नहीं। यदि भारत से कोई नाम निकल होता तो अन्य देशों में वह भी अपनाया जाता।
मोहनलाल मीणा - हिंदी के भाषाविदों ने इसके लिए "वेबसंगोष्टी" शब्द सुझाया है जो अंगरेजी के Webinar का सर्वमान्य और शाब्दिक एवं भावार्थ के अनुरूप है। मेरे विचार से इस पर ज्यादा सोच-विचार की कोई गुंजाइश नहीं है। यह काफी समय से प्रचलन में भी है।
वाई.सी पांडेय - अंतर्जाल-संगोष्ठी या अंतर्संगोष्ठी ।
कमलकांत त्रिपाठी - ई संगोष्ठी से जी सहमत हूं। वैसे ई का पुछल्ला इसमें भी लगा ही हुआ है। हम वेबीनार को हिंदी का एक नया शब्द भी तो मान सकते हैं। संज्ञाएं संपर्क में आनेवाली भाषाओं में उछल कूद मचाती रहती हैं और एक दूसरी से संज्ञाएं ग्रहण करती रहती हैं। हिंदी में हजारों शब्द अरबी, फारसी, तुर्की से लेकर आत्मसात कर लिए गए हैं। इसलिए जो चल पड़ा सो चल पड़ा। लोगों पर जबरन कोई चीज न थोपी जा सकती है, न निषेध लागू किया जा सकता है।
प्रमोद दुबे - भाई शब्द ऐसा हो कि सभी समझ सके। इसलिए ई-संगोष्ठी ज्यादा उचित प्रतीत होता है।
राहुल मिश्र - हमने विगत २२ जून को अंतरराष्ट्रीय अंतर्जालिक परिसंवाद का संयोजन किया था।
अंजनि कुमार ओझा - सही है सर जी। हम यही ( ई-संगोष्ठी) कहते है।
रामराज्य शर्मा - सही कहा । यही ( ई-संगोष्ठी) होना चाहिए ।आज से हम आप इसी शब्द का प्रयोग शुरू कर दें ।मृणालिका ओझा - हम ई संगोष्ठी के पक्षधर हैं।
अनुश्री प्रिया - ई संगोष्ठी उचित रहेगा।तुषार कांति - जो प्रचलित है, अपनाने से भाषा समृद्ध ही होगी। घोंघा बसंत हो कर तुलसी भी राम चरित मानस न रच पाते।
शकुंतला चौहान - सही कहा आपने। ई संगोष्ठी ही कहना चाहिए।
अंजना चौधरी - मेरे विचार से ई संगोष्ठी एक सटीक शब्द है।
सोशल मीडिया के विभिन्न समूहों पर सैंकड़ों हिंदी व भारतीय भाषा प्रमियों, साहित्यकारों व भाषा-प्रेमियों ने अपनी सहमति जताई है और निम्नलिखित विद्वानों ने भी ई-संगोष्ठी शब्द पर अपनी सहमति प्रेषित की है।
श्रीमती संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच, हैदराबाद, सुश्री अंजना चौधरी, प्रसाद कोचरेकर, डॉ जगदीशचंद्र, पी.के. अग्रवाल प्रदीप्त, अनिल आर्य, डॉ. सतविर सिंह, इरा गुप्ता, बालमुकुंद पुरोहित, शेख वहाब, शरद यादव, डॉ. सतवीर सिंह, जगजीत कुमार गुप्ता, मनोज शुक्ला, सतपाल कौर आदि।
संयोजक मंतव्यअगर केवल अनुवाद के माध्यम से तत्काल वेबिनार के लिए शब्द बनाना है तो सेमिनार के पर्याय के रूप में वेब में संगोष्ठी जोड़ते हुए शब्द बना लेना एक आसान काम है। मुझे भी पहले यही सूझा था पर और अधिक विचार किया तो लगा कि व्यापकता का शब्द लेना उचित होगा। हमें भविष्य को ध्यान में रखते हुए और विभिन्न वर्तमान और भावी विभिन्न माध्यमों और अन्य संबंधित शब्दों को ध्यान में रखते हुए यदि सोचना है तो वेब शब्द के बजाए ई संगोष्ठी शब्द को अपनाना बेहतर लगता है। इससे भविष्य में भी आवश्यकतानुसार 'ई' उपसर्ग के साथ अन्य शब्दों के साथ जोड़ कर नए शब्द बनाए जा सकेंगे। वेब का प्रयोग सब जगह नहीं किया जा सकता। हो सकता है भविष्य में ऐसे माध्यम भी आएँ जो वेब आधारित न हों। वर्तमान में भी विभिन्न अर्थछायाओं के साथ वर्तमान में प्रयुक्त हो रहे वेब, वर्च्युअल, वीडियो, तथा ऑनलाइन आदि से बनने वाले ऐसे सभी शब्दों को 'ई' उपसर्ग के साथ हिंदी शब्द जोड़कर प्रयोग किया जा सकता है।वेबिनार का पर्याय ई-संगोष्ठी होने के साथ-साथ, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग - ई-बैठक , ऑनलाइन मीटिंग - ई-बैठक, वर्चुअल क्लास - ई कक्षा, व्हाट्सएप पर होने वाली चर्चा- ई चर्चा, फेसबुक आदि पर प्रस्तुत ऑनलाइन संगोष्ठी - ई-संगोष्ठी, ई-चर्चा आदि। इसी प्रकार ई-कार्यशाला, ई-व्याख्यान, ई-कवि-सम्मेलन, ई-काव्य गोष्ठी, ई-परिचर्चा, ई-संवाद आदि अनेक शब्द बन सकेंगे। वर्तमान के विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए उपसर्ग के रूप में 'ई' शब्द का प्रयोग किया जा सकता है और भविष्य में भी किया जा सकेगा इसलिए मुझे लगता है कि 'ई' संगोष्ठी' को स्वीकार करना इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के विभिन्न मंचों और इससे संबंधित बनने वाले विभिन्न शब्दों आदि के लिए प्रयुक्त करना सरल, सहज और स्पष्ट होगा। ध्यान रहे कि सूचना-प्रौद्योगिकि नए-नए माध्यमों और प्रौद्योगिकी के साथ बहुत तेजी से बदल रही है। साल-दो साल बाद क्या नया आएगा और क्या दुनिया पर छाएगा, कोई नहीं जानता। ध्यान रहे 'ई' में 'वेब' है, 'वेब' में 'ई' नहीं। यदि हम सीमित से जुड़ गए तो हमें हर बार अंग्रेजी में प्रयुक्त शब्दों का अनुवाद करते हुए अलग-अलग शब्द बनाने पड़ेंगे। आखिरकार, चलेगा तो वही जो जन-जन को होगा स्वीकार, हम भी उसे ही करेंगे स्वीकार। नमस्कार।
धन्यवाद ज्ञापन:
वैश्विक हिंदी सम्मेलन की इस संगोष्ठी में विभिन्न विद्वानों ने गहनता से विचार-मंथन किया और अधिकांश लोग एक बात पर सहमत हैं कि हमें वेबिनार के लिए हिंदी व भारतीय भाषाओं में अपना कोई शब्द प्रयोग करना चाहिए। यह भविष्य के लिए भी अच्छा संकेत है कि जब कोई नई अवधारणा आए हम इसी प्रकार विचार-विमर्श कर किसी एक शब्द को अपनाएँ। वैचारिक भिन्नताएँ तो होंगी ही। यह भी क्यों सोचा जाए कि जो मैंने कह दिया पत्थर की लकीर हो गया। विचार-मंथन या जनस्वीकृति के अनुसार उसमें परिवर्तन भी हो सकता है। इसमें न किसी का लाभ है न हानि। यदि एक शब्द पर सर्वसम्मति न भी हो तो भी अंग्रेजी के शब्द को ज्यों का त्यों लेने के बजाए आवश्यकतानुसार एक से अधिक शब्द भी चलें तो भी विशेष कठिनाई नहीं। चर्चा में भाग लेने वाले तथा सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों के माध्यम से अपनी सहमति- असहमति, अपने विचार तथा सुझाव देने वाले सभी विद्वानों और भारतीय-भाषा प्रमियों का सादर, सप्रेम आभार व धन्यवाद।
डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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वैश्विक हिंदी सम्मेलन की वैबसाइट -www.vhindi.in
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संपर्क - vaishwikhindisammelan@gmail.
प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी
मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
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