'महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी', '
वैश्विक हिंदी सम्मेलन ' व
'सत्याग्रह' के
संयुक्त तत्वावधान में
श्री माणिक मुंडे की पुस्तक 'आधी रात जगाने आया हूँ ' तथा 'गाईन ओवी गाईन नाम' के विमोचन कार्यक्रम में ' आप सादर आमंत्रित हैं।
आशीर्वचन- परमपूज्य शंकराचार्यजी महाराज, मुख्य अतिथि - कें
द्रीय परिवहन मंत्री मा. नितिन गडकरी व मुख्यमंत्री (महाराष्ट्र) मा. देवेंद्र फणनवीस
3 अक्तूबर को
रवींद्रनाट्य मंदिर, प्रभादेवी, मुंबई में पूर्वाह्न 11.30 बजे सेसहभागिता के लिए संपर्क - डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य' - 09869374603
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(गांँधी जयंती पर विशेष)
महात्मा गाँधी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे ।
( वैबदुनिया से साभार)
कोई साढ़े नौ दशक पहले सार्वजनिक मंच से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कहे गए ऐतिहासिक शब्द मानो आज भी इंदौर की फिजा में तैर रहे हैं। यहां बापू ने हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा बनाए जाने का मार्मिक आह्वान किया था। उस वक्त इसकी प्रतिध्वनि आजादी पाने के लिए अंग्रेजों से लोहा ले रहे देश में दूर-दूर तक सुनाई दी थी।
इससे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आग और भभक उठी थी। मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति के प्रचार मंत्री अरविंद ओझा ने बताया, ‘महात्मा गांधी ने 29 मार्च 1918 को यहां आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। इस दौरान उन्होंने अपने उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए। जब बापू ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की अपील की, तब देश गुलामी के बंधनों से आजाद होने के लिये संघर्ष कर रहा था। उस दौर में इस मार्मिक अपील ने देशवासियों के दिल को छू लिया था और उनके भीतर मातृभूमि की स्वतंत्रता की साझी भावना बलवती हो गई थी।’
उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी ने आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान इंदौर से पांच ‘हिन्दी दूतों’ को देश के उन राज्यों में भेजा था, जहां उस वक्त इस भाषा का ज्यादा प्रचलन नहीं था। ‘हिन्दी दूतों’ में बापू के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी शामिल थे। हिन्दी के प्रचार-प्रसार की इस अनोखी और ऐतिहासिक मुहिम के तहत ‘हिन्दी दूतों’ को सबसे पहले तत्कालीन मद्रास प्रांत के लिए रवाना किया गया था।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में बापू ठेठ काठियावाड़ी पगड़ी, कुरते और धोती में लकदक होकर मंच पर थे। इस सम्मेलन का आयोजन मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति ने किया था। उन्होंने कहा था, ‘जैसे अंग्रेज अपनी मादरी जुबान यानी अंग्रेजी में ही बोलते हैं और सर्वथा उसे ही व्यवहार में लाते हैं, वैसे ही मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का गौरव प्रदान करें। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर हमें अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए।’
राष्ट्रपिता ने अदालती कामकाज में भी हिन्दी के इस्तेमाल की पुरजोर पैरवी की थी।
उन्होंने कहा था, ‘हमारी कानूनी सभाओं में भी राष्ट्रीय भाषा द्वारा कार्य चलना चाहिए। हमारी अदालतों में राष्ट्रीय भाषा और प्रांतीय भाषाओं का जरूर प्रचार होना चाहिए।’
यही थे बापू के अध्यक्षीय उद्बोधन के आखिरी शब्द, जिनसे उनके दिल में बसी हिन्दी जैसे खुद बोल उठी थी, ‘मेरा नम्र, लेकिन दृढ़ अभिप्राय है कि जब तक हम हिन्दी को राष्ट्रीय दर्जा और अपनी-अपनी प्रांतीय भाषाओं को उनका योग्य स्थान नहीं देंगे, तब तक स्वराज की सब बातें निरर्थक हैं।’
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वैश्विक हिंदी सम्मेलन की ओर से सभी को नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत / www.vhindi.in
विश्व वात्सल्य मंच की ओर से सभी को नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी
मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
मो.: 09703982136
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