गुरुवार, 8 नवंबर 2012

‘भास्वर भारत’ लोकार्पित

‘भास्वर भारत’ लोकार्पित




‘भास्वर भारत’ लोकार्पित
नगर से प्रकाशित नयी हिंदी मासिक पत्रिका ‘भास्वर भारत’ का लोकार्पण आज हिंदी महाविद्यालय में संपन्न हुआ | विख्यात साहित्यकार पद्मश्री प्रो.रमेशचंद्र शाह एवं कला समीक्षक जगदीश मित्तल ने पत्रिका का लोकार्पण किया |

इस अवसर पर हिंदी महाविद्यालय के सभागार में प्रो.पद्मश्री रमेशचंद्र शाह (लोकार्पण कर्त्ता मुख्य अतिथि), पद्मश्री जगदीश मित्तल (अध्यक्ष), वरिष्ठ तेलुगु कवि प्रो.एन.गोपि, रामगोपाल गोयनका, डॉ.जे.पी.वैद्य, मधुसूदन सौन्थालिया, अमृत कुमार जैन, रमेश कुमार बंग, डॉ.बी.सत्यनारायण, सुरेंद्रमल लुनिया, डॉ.जगदीश प्रसाद डिमरी (विशिष्ट अतिथि), डॉ. रामकुमार तिवारी, परसराम डालमिया, प्रसन्न भंडारी, रमेश अग्रवाल, डॉ.अहिल्या मिश्र, रत्नकला मिश्र, निर्मल सिंघल, डॉ.जी. नीरजा, अंशुल शुक्ल, विजयलक्ष्मी काबरा, रितेह सिंह और विकास कुमार (समारोह आयोजन समिति), राधेश्याम शुक्ल (सम्पादक) मंचासीन हुए |

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और शुभ्रा महंतो के ‘वंदे मातरम’ गायन से हुआ | अतिथियों का परिचय प्रो.एम.वेंकटेश्वर ने कराया | इस अवसर पर पत्रिका के संपादक राधेश्याम शुक्ल ने साहित्य, संस्कृति और भाषा के क्षेत्र में कार्यरत हैदराबाद के विशिष्ट अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान भी किया |

डॉ.राधेश्याम शुक्ल द्वारा संपादित मासिक पत्रिका ‘भास्वर भारत’ के लोकार्पण के अवसर पर हिंदी, तेलुगु और उर्दू के साहित्यकारों और पत्रकारों ने शुभाशंसशाएँ प्रकट की |

प्रसन्न भंडारी के संचालन में हिंदी महाविद्यालय के सभागार में आयोजित भारतीय भाषा, संस्कृति एवं विचारों की अंतर्राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ‘भास्वर भारत’ के प्रवेशांक का लोकार्पण करते हुए विख्यात साहित्यकार पद्मश्री रमेशचंद्र शाह ने कहा कि हिंदी के विकास में दक्षिण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है | आधुनिक हिंदी के इतिहास को देखने से यह स्पष्ट होता है कि इसके विकास में साहित्यकारों और पत्रकारों की विस्मयकारी जुगलबंदी का बड़ा योगदान रहा है, जब-जब कोई संकट उपस्थित हुआ तब-तब इन दोनों ने समाज को नया प्रकाश दिया है | आज भी हम एक ऐसे संकट काल से गुजर रहें हैं जहाँ विभिन्न क्षेत्रों में मानवीय मूल्यों का चरम अद्य:पतन हो चूका है | साहित्य और पत्रकारिता को आज फिर प्रकाश पुंज की भूमिका निभानी होगी |उनहोंने आगे कहा कि भास्वर भारत से यह अपेक्षा है कि वह पत्रकारिता के क्षेत्र में नए मानदंड स्थापित करें और वर्त्तमान घोर यथार्थ वाद से टकराते हुए व्यवहारिक आदर्शों की स्थापना करें | उनहोंने हिंदी के सर्जक पत्रकारों की परंपरा का उल्लेख करते हुए याद दिलाया कि हिंदी आम जन की तथा भारतीय अस्मिता की भाषा है और सदा सत्ता के संरक्षण के बिना अपनी लोकशक्ति के आधार पर सुदृढ़ हुई है | उनहोंने जोर देकर कहा कि हर प्रकार के आलोक तांत्रिक व्यवहार के विरुद्ध सात्विक कठोरता ही हिंदी की पूंजी है तथा भास्वर भारत के प्रवेशांक में यह सात्विक कठोरता को आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त है |

वरिष्ठ तेलुगु विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति कवि प्रो.एन.गोपि ने पत्रिका की विशिष्ट भाषा दृष्टि से सहमति जताते हुए कहा कि कोई भाषा बड़ी और छोटी नहीं है बल्कि सभी भारतीय भाषाएँ हमारी संस्कृति की विशेषताओं को प्रकट करती है इसलिए भारत की भाषा को एक सामुहिक नाम ‘भारती’ देना उचित होगा | उनहोंने आगे कहा कि अखंड भारत के भाव को हिंदी और भारतीय भाषाओं द्वारा ही जागरुक किया जा सकता है | समारोह में मंचासीन एवं अन्य अनेक महानुभावों ने इस अवसर पर शुभकामनाएं देते हुए ‘भास्वर भारत’ के सतत सहयोग का आश्वासन दिया |

विख्यात कला समीक्षक जगदीश मित्तल ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि ‘भास्वर भारत’ ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ध्यान रखते हुए अच्छी शरुआत की है | उनहोंने याद दिलाया कि हैदराबाद को ‘कल्पना’ पत्रिका के लिए जाना जाता रहा है जो अपने समय की सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका थी | उनहोंने आगे कहा कि ‘कल्पना’ ने जिस प्रकार साहित्य का नेतृत्व किया था उसी भांति ‘भास्वर भारत’ भी भारतीय भाषाओं, संस्कृति और विचारों के आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करेगी |

संपादक डॉ.राधेश्याम शुक्ल ने स्पष्ट किया कि ‘भास्वर भारत’ अपनी तरह की हिंदी की पहली अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका है जिसका लक्ष्य प्राचीन भारत की विस्मृत है चुकी वैज्ञानिक विचार धारा और देश-दुनिया की आधुनिक प्रगति के बीच सेतु निर्माण करने का है |

इस अवसर पर रामगोपाल गोयनका, सुरेंद्रमल लुनिया, रमेश कुमार बंग, डॉ.ऋषभदेव शर्मा, वृजगोपाल बंसल, मिसेस शुक्ल, पूनम शर्मा, संपत देवी मुरारका, डॉ.अहिल्या, नरेंद्र राय, अलका चौधरी, विजयलक्ष्मी काबरा एवं अन्य गणमान्य उपस्थित थे |
संपत देवी मुरारका
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद 

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