मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी आयोजित


कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी आयोजित



कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी आयोजित

कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार दि. 15 अप्रेल को हिंदी प्रचार सभा परिसर में क्लब की 236 वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन संपन्न हुआ |

क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर डॉ. सीता मिश्र (अध्यक्ष), विनीता शर्मा (मुख्य अतिथि), श्री गोविन्द मिश्र (विशेष अतिथि), श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल (प्रमुख वक्ता), डॉ. अहिल्या मिश्र (क्लब संयोजिका) मंचासीन हुए | सहसंयोजिका ज्योति नारायण ने सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की | मीना मूथा ने उपस्थित सभा का स्वागत किया | डॉ. अहिल्या मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि क्लब से जुड़ा प्रत्येक सदस्य अपना बहुमूल्य समय जब देता है तो निश्चित ही उस संस्था का हौसला बढ़ता है और अपनी निरंतरता बनाए रखने में सफल होता है | प्रथम सत्र में पुस्तक संस्कृति विषय पर प्रमुख वक्ता श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह महत्वपूर्ण विषय है | मानव विकास के अंदर किताबों की भूमिका अहम् रही है | पुस्तक संस्कृति भाषा के विकास से जुडी है | इसके साथ संवेदना का विकास जुड़ा है | वास्तविक रूप से पुस्तक संस्कृति मानव सभ्यता के समानांतर है | पढ़े लिखे वर्ग को छोड़ दें तो आज हमारे पास पुस्तक संस्कृति का अभाव है | यूरोप में छोटे-छोटे विषयों पर भी रीसर्च हो रहें हैं, उनके पास भविष्य की दृष्टि है | वे हर चीज को सुरक्षित कर लेते हैं | हमारे पास पठन-पाठन की गंभीरता नहीं है |  इलेक्ट्रानिक मिडिया के खतरे से पुस्तक संस्कृति गुजर रही है, इस इलेक्ट्रानिक मिडिया का विनास हो सकता है परन्तु पुस्तकें ज्ञान को बचाकर रखती है | डॉ. अहिल्या मिश्र ने कहा कि पुस्तक संस्कृति का इतिहास भारत से शुरू हुआ | हमारी संस्कृति पुरानी है, वेद-पुराणों के सृजन में जहाँ संस्कृति पनपी है वहाँ पुस्तक संस्कृति साथ पनपी है | धर्म की अनेकानेक शाखाएँ होती हैं वैसे ही पुस्तक संस्कृति के भी अंग है | गुणात्मक दृष्टि से अच्छी चीजें दीं जाए तो खरीददार भी होंगे, पाठक भी होंगे | हम गुलामी में जिए, कुंठित रहे, प्राचीनकाल से मध्यकाल के बीच एक खाली पण है | पुस्तक संस्कृति क्या है – लोगों में पढने-जानने-मानने की प्रक्रिया का विकास है | खंडकाव्य, महाकाव्य रचे गए और आज भी पुस्तक हाथ में आ जाए तो उसकी कुछ पंक्तियाँ पढ़े बिना हम उसे नीचे नहीं रखते | ज्ञान का भण्डार हमारे पास होने पर भी उसका साधानीकरण नहीं हो पाया और यही बात पुस्तक संस्कृति के विकास में अवरोध बनी | ज्योति नारायण ने प्रपत्र में कहा कि पुस्तक संस्कृति का सीधा अर्थ है सभ्य मानव की संपूर्ण बौद्धिकता का प्रमाण | वह हमारा अतीत हमारा संस्कार है | आज ज्ञान-विज्ञान भौगोलिक समीकरण आदि पुस्तकों में ही लिखे जाते हैं | इलेक्ट्रानिक प्रिंट मिडिया के इस युग में पुस्तक संस्कृति पर कुछ प्रभाव छोड़ा है परन्तु वह पुस्तक संस्कृति को पूरी तरह हटा नहीं सकता क्योंकि इलेक्ट्रानिक मिडिया मनुष्य के मस्तिष्क की भाषा बोलता है और पुस्तक संस्कृति में मनुष्य की आत्मा की भाषा होती है | पुस्तक संस्कृति व्यक्तिगत रुची, विषय के अनुरूप चलती है – सुरक्षित ज्ञान संपदा है वह | अध्यक्षीय बात रखते हुए डॉ. सीता मिश्र ने कहा कि हमारे पास इतनी गरीबी रही है कि विद्यार्थी चाहकर भी किताब खरीद नहीं पाता | हमें पहले रोटी चाहिए | पेट भरने की आपाधापी में कौन सोचता है कि किताब खरीदें और पढ़ें | रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों को आज टी. वी. पर दिखाया जा रहा है तो मालुम हुआ कि कौन से पात्र का क्या नाम-रिश्ता है | ग्रामीण संस्कृति में एक पढता था बाकी सुनते थे | पारतंत्र्य में भी हमारे पास लेखन हुआ पर उसे नष्ट करने वाले भी हमारे अपने ही थे यह दुर्भाग्य की बात है | अजित गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारी पुस्तक संस्कृति आदि कालीन परंपरा से चलती आ रही है |

तत्पश्चात ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के तत्वावधान में गोवा में आयोजित सम्मेलन में भाग लेने वाले डॉ. सीता मिश्र, संपत देवी मुरारका, डॉ. अहिल्या मिश्र, नीरज त्रिपाठी, डॉ. सुनीला सूद, ज्योति नारायण को एजीआई सर्टिफिकेट प्रदान किये गए | इसी श्रृंखला में निश्चल एवं नि:स्वार्थ समाज एवं मानव सेवा के लिए श्री जैन सेवा संघ हैदराबाद द्वारा सम्मानित मीना मूथा का क्लब की ओर से पुष्पगुच्छ एवं बधाई के साथ सम्मान किया गया | ज्योति नारायण ने क्लब सदस्यों को उनके जन्म-विवाह की शुभकामनाएँ दीं |

दूसरे चरण में डॉ. ऋषभदेव की अध्यक्षता एवं डॉ. पूर्णिमा शर्मा के आतिथ्य में तथा लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के सुन्दर संचालन में कविगोष्ठी संपन्न हुई | इसमें अजित गुप्ता, भँवरलाल उपाध्याय, विजय विशाल, मुकुंददास डांगरा, गौतम दीवाना, सरिता सुराणा जैन, भावना पुरोहित, विनीता शर्मा, डॉ. अहिल्या मिश्र, मीना मूथा, संपत देवी मुरारका, सूरज प्रसाद सोनी, नीरज त्रिपाठी, जुगल बंग जुगल, डॉ. जी. नीरजा, ज्योति नारायण, सुषमा बैद, गोविन्द मिश्र, गुरुदयाल अग्रवाल ने काव्यपाठ किया | डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने सस्वर अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए काव्यपाठ सत्र को सफलता के शीर्ष पर पहुँचा दिया | वी. वरलक्ष्मी, नरहरिदयाल दादू, दिनेशचंद्र अग्रवाल, राकेश कुमार अग्रवाल, डॉ. पी. श्रीनिवास राव, सी.एम.वेयानंद, यू.कृष्णा राव की भी उपस्थिति रही | सरिता सुराणा जैन के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ |

संपत देवी मुरारका
मीडिया प्रभारी 
हैदराबाद  






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