शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

"कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी आयोजित"

"कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी आयोजित" 
     कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में १७ जुलाई २०११ को हिन्दी प्रचार सभा
परिसर में क्लब की २२७वीं मासिक गोष्ठी का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ|
     आज यहाँ क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र ने जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि
अवसर पर प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की एवं दयानाथ  झा (मुख्य अतिथि),
डॉ. जी नीरजा (प्रपत्र-प्रस्तुतकर्ता), डॉ. अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए| कार्यक्रम का आरम्भ डॉ. रमा
द्विवेदी द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुति  से हुआ| कार्यकारी संयोजिका मीना मुथा ने उपस्थित सभा
का स्वागत किया| डॉ. अहिल्या मिश्र ने क्लब का परिचय देते हुए कहा कि क्लब ने अपनी निरं-
तरता के बल पर १८वें वर्ष में प्रवेश किया है| क्लब का उद्देश्य है नए रचनाकारों को प्रोत्साहित 
 करना| नई-नई प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, साहित्यकार व उनके साहित्य से परिचित कराना,
क्लब प्रकाशन 'पुष्पक' के अंतर्गत विविध प्रतिभाओं को जोड़ना|
     प्रथम सत्र में सुप्रसिद्ध कवि शमशेर बहादुर सिंह की जन्म शताब्दी के अवसर पर डॉ. जी नीरजा
ने अपने प्रपत्र प्रस्तुति में कहा कि उ. प्र. मुज्जफर नगर के एक छोटे से कस्बेमें १३ जनवरी १९११ को शमशेर जी का जन्म हुआ| प्रयाग में उनकी शिक्षा हुई| हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी में वे विद्वान थे| उन दिनों कविता के क्षेत्र में छाए हुए जकड़न से वे अलिप्त रहे| गद्य हो या पद्य उनकी भाषा बनावटी नहीं है| उनका निजी जीवन ही अनुभव का संसार था| आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण जीवन के
ताप को सहकर  वे सहज बने| अभावों के कटघरे में बीते जीवन ने  उन्हें हालात के आगे घुटने न
टेकने का साहस दिया| कविता में इनकलाबी मिजाज जैसे 'सरकारें पलटती है जहाँ हम  दर्द से करवटें
बदलतें हैं' में झलकता है|
     भारत-चीन युद्ध के समय उन्होंने 'सत्यमेव जयते' पर जोर दिया| शमशेर जी संवेदनशील ही नहीं,
भावुक भी थे| दोआब, कहानियाँ और स्केच, कुछ कविताएँ आदि रचना संग्रहों में उनकी आंतरिक उर्जा
और खड़ी बोली के बोलचाल का महत्त्व दृष्टिगत होता है| अध्यक्षीय बात रखते हुए प्रो. शर्मा ने
शमशेरजी की कविताओं के कुछ अंश पढ़कर सुनाए जैसे 'देखो वो काजल की तलवार डूबी पलकन
धार/जागे सुप्त ह्रदय पर केवल कोमलतम उधार' | आगे प्रो.शर्मा ने कहा कि शमशेर सिंह सबसे कठिन
कवियों में से एक है| मुक्तिबोध, अज्ञेय को कठिन कवियों में माना जाता है और इसलिए अज्ञेय जैसे
रचनाकार ने उन्हें 'कवियों का कवि' कहा है|
      श्री दयानाथ झा ने आयोजन की सराहना की और कहा कि डॉ. अहिल्या मिश्र वह  स्तंभ है जो क्लब
की निरंतरता बनाए रखने में प्रमुख है| दूसरे सत्र में लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के सफल संचालन में
कवि गोष्ठी हुई, जिसमें कुंजबिहारी गुप्ता, सत्यनारायण काकड़ा, गौतम दीवाना, सूरजप्रसाद सोनी, उमा
सोनी, डॉ. रमा द्विवेदी, आज्ञा खंडेलवाल, डॉ. अहिल्या मिश्र, मीना मूथा, भंवरलाल उपाध्याय, नीरज
त्रिपाठी, डॉ. देवेन्द्र शर्मा, विनीता शर्मा, मीना खोंड, जयश्री कुलकर्णी, मुकुंददास डांगरा, जुगल बंग
'जुगल', डॉ. सीता मिश्र, सरिता सुराणा जैन, पवित्रा अग्रवाल, संपत देवी मुरारका, दत्तभारती गोस्वामी,
भावना पुरोहित आदि ने विविध विषयों को केन्द्रित करते हुए काव्यपाठ किया| प्रो. ऋषभदेव शर्मा
ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया| वी. वरलक्ष्मी,संजय कुमार शर्मा ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई|
सरिता सुराणा जैन के धन्यवाद के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ|

1 टिप्पणी:

  1. कादम्बिनी क्लब की गोष्ठी की विस्तृत जानकारी के लिए आभार। इस संस्था ने हिंदी के लिए बहुत काम किया है और अब तो पुष्पक पत्रिका भी निकाल रही है जिसमें स्थानीय लेखकों के साथ देश भर के लेखकों को प्रस्तुत किया जा रहा है। इस रिपोर्ट के लिए आभार॥

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