गुरुवार, 5 मई 2022

विश्व वात्सल्य मंच ने छात्र-छात्राओं के शिक्षा हेतु भेंट की सहायता राशि

















विश्व वात्सल्य मंच ने छात्र-छात्राओं के शिक्षा हेतु भेंट की सहायता राशि

 

विश्व वात्सल्य मंच हैदराबाद के तत्वावधान में ऋषि यूरो किड्स, 8/66/2/1, द्वारकानगर, बोद उप्पल, हैदराबाद, मैं छात्राओं के शिक्षा हेतु रु.29000/- की सहायता राशि का चेक भेंट किया । इसी क्रम में तपस्या एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन्स, नारायणगुड़ा, हैदराबाद, मैं छात्र के शिक्षा हेतु रु.22000/- की सहायता राशि का चेक भेंट किया ।

         विश्व वात्सल्य मंच की संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती संपत देवी मुरारका एवं प्रधान सचिव राजेश मुरारका द्वारा आज यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति में उक्ताशय जानकारी दी गई । संस्था ने ऋषि यूरो किड्स में पहली और चौथी कक्षा में पढ़ाई करने वाली के. रक्षिता एवं के. हर्षिता की मदद के लिए रु. 29000 की सहायता राशि दी है, जो शिक्षण शुल्क वहन करने में सक्षम नहीं है । इसी क्रम में तपस्या एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस में पढ़ाई करने वाले एम. मधु तेजा की परीक्षा फीस हेतु रु. 22000 की सहायता राशि दी है, जो शिक्षण शुल्क वहन करने में सक्षम नहीं है । परीक्षा लिखने के लिए अनिवार्य रूप से फीस जमा करानी थी । 

          संस्था ने कहा कि प्रतिभावान छात्र एवं छात्राओं को शिक्षा जारी रखने के लिए सहायता दी गई है इसमें काम्या, मोना देसाई, जयालक्ष्मी बोज्जा, स्निग्धा योतिकर, सीता अग्रवाल, अर्चना दीवान एवं सरस्वती राव का सहयोग रहा, एवं लक्ष्मी येदवल्ली का विशेष सहयोग रहा । ऋषि यूरो किड्स के एन. श्रीनिवास रेड्डी को कोषाध्यक्ष सीता अग्रवाल, उपाध्यक्ष एम. दीपिका, स्निग्धा योतिकर एवं फनी बाला ने संयुक्त रुप से सहायता राशि का चेक एन.के. राज्यलक्ष्मी की उपस्थिति मे भेंट किया । फनी वाला ने धन्यवाद ज्ञापित किया । 

प्रस्तुति : संपत देवी मुरारका (विश्व वात्सल्य मंच)

email: murarkasampatdevii@gmail.com

 लेखिका यात्रा विवरण,

 मीडिया प्रभारी,

 हैदराबाद.

मो.नं.09703982136. 

बुधवार, 27 अप्रैल 2022

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] ​हिंदी विश्व-भाषा और भारत विश्व-गुरु कैसे बने? - डॉ. वेदप्रताप वैदिक। झिलमिल में - 'अंतिम क्षितिज का प्रदेश' - डॉ. सुलभा कोरे

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हिंदी विश्व-भाषा और भारत विश्व-गुरु कैसे बने?

-  डॉ. वेदप्रताप वैदिक

दैनिक भास्कर : 

विश्व हिंदी दिवस और प्रवासी भारतीय दिवस, ये दोनों इतने महत्वपूर्ण दिवस हैं कि इन्हें भारत की जनता और सरकारें यदि पूरे मनोयोग से मनाएं तो अगले कुछ ही वर्षों में भारत सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से विश्व की महाशक्ति बन सकता है। जो लोग भारत को विश्व गुरु बना हुआ देखना चाहते हैं, उनकी जिम्मेदारी तो और भी ज्यादा है। विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को था और प्रवासी भारतीय दिवस 9 जनवरी को। ये दोनों दिवस साथ-साथ आते हैं लेकिन इस वर्ष इन दिवसों पर भारत में धूम मचना तो दूर, पत्ता भी नहीं खड़का। कोरोना की महामारी में सावधानी जरुरी है लेकिन इसी दौरान ‘झूम’ पर झूम-झूमकर रैलियां हुईं, संगोष्ठियां हुईं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुए लेकिन इन दोनों महत्वपूर्ण दिवसों को हमारे प्रचारतंत्र, नेताओं और समाजसेवियों ने याद तक नहीं किया।

विश्व हिंदी-दिवस पहली बार 1975 की 10 जनवरी को नागपुर में आयोजित हुआ था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था। कई देशों के हिंदीप्रेमी उसमें शामिल हुए थे। अब तक लगभग दर्जन भर विभिन्न देशों में ये सम्मेलन हो चुके हैं लेकिन इसकी ठोस उपलब्धियां क्या हैं? हिंदी के बैलगांड़ी आज भी वहीं खड़ी है, जहां वह अब से 46 साल पहले खड़ी थी। क्या हिंदी किसी विश्व-मंच पर आज तक प्रतिष्ठित हुई? क्या संयुक्तराष्ट्र संघ की छह आधिकारिक भाषाओं में वह आज तक शामिल हो पाई? भारत तो 54 देशों के राष्ट्रकुल का सबसे बड़ा देश है। क्या कभी राष्ट्रकुल में हिंदी की प्रतिष्ठा हुई? जिन राष्ट्रों में हमारे भारतीय लोग बहुसंख्यक हैं, क्या वहां हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला? क्या वहां छात्रों को अनिवार्य रुप से हिंदी पढ़ाई जाती है? क्या कोई भी विषय की पढ़ाई का माध्यम वहां हिंदी है?

मान लें कि मैंने ऊपर जो काम बताए हैं, वे काम सरकारों के हैं लेकिन क्या जनता ने भी हिंदी को विश्व-भाषा का दर्जा दिलाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए? हम भारतीय लोग और खास तौर से हम हिंदीभाषी लोग ही अपने महत्वपूर्ण अधिकारिक काम हिंदी में नहीं करते तो विदेशों में रहनेवाले भारतीयों को दोष क्यों दें? हिंदीभाषी लोग अपने हस्ताक्षर तक हिंदी में नहीं करते। वे अपने खातों और कानूनी दस्तावेजों पर अंग्रेजी में दस्तखत करते हैं जबकि स्वभाषा में हस्ताक्षर करने को कोई ताकत नहीं रोक सकती। विदेशों में रहनेवाले भारतीय नागरिक यदि अपने हस्ताक्षर हिंदी में करने लगे तो उनकी अलग पहचान बनेगी और वे जानेंगे कि भारत की भाषा हिंदी है, जो विश्व-भाषा बनने के योग्य है। पिछले 50-55 साल में मैं लगभग 80 देशों में गया हूं। मेरे किसी भी पारपत्र (पासपोर्ट) पर दस्तखत अंग्रेजी में नहीं हैं। किसी भी विदेशी बैंक ने मेरे हिंदी हस्ताक्षरवाले चेक को अस्वीकार नहीं किया है।

यह संतोष का विषय हो सकता है कि आजकल दुनिया के दर्जनों विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाने लगी है लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर विदेशी लोगों को उनकी सरकारों द्वारा हिंदी इसलिए पढ़ाई जाती है कि उन्हें या तो भारत के साथ कूटनीति या जासूसी के काम में लगाना होता है। हमारे कुछ भारतीय हिंदीप्रेमी मित्रों के प्रयत्नों से कुछ देशों में हिंदी पाठशालाएं खोली गई हैं, यह सराहनीय कदम है।

यदि हिंदी को विश्व-भाषा बनना है तो उसे अभी कई सीढ़ियां चढ़नी होंगी लेकिन सबसे पहले उसे संयुक्तराष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा बनना होगा। इस समय छह आधिकारिक भाषाएं हैं- अंग्रेजी, फ्रांसीसी, चीनी, रूसी, हिस्पानी और अरबी ! इनमें से एक भी भाषा ऐसी नहीं है, जिसके बोलनेवालों की संख्या दुनिया के हिंदीभाषियों से ज्यादा है। अंग्रेजी दुनिया के बस चार-पांच देशों की ही भाषा है। इसे अंग्रेजों के पूर्व गुलाम देशों के दो से पांच प्रतिशत लोग इस्तेमाल करते हैं। जहां तक चीनी भाषा का सवाल है, उसके आधिकारिक मंडारिन भाषाभाषियों की संख्या भी हिंदीभाषियों से कम है। यह तथ्य मुझे चीन के शहरों और गांवों में दर्जनों बार घूमने से मालूम पड़ा है। हिंदी को इन सभी भाषाओं के पहले संयुक्तराष्ट्र की भाषा होना चाहिए था लेकिन जिस भाषा को हमने भारत में ही नौकरानी बना रखा है, वह विश्व मंच पर महारानियों के साथ कैसे बैठ सकती है? बस, यहां संतोष की बात यही है कि अटलजी और मोदीजी, दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्होंने अपने भाषण वहां हिंदी में दिए। 1999 में भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर मैंने संयुक्तराष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देना चाहा तो मालूम पड़ा कि उस समय उसके अनुवाद की ही कोई व्यवस्था नहीं थी।

संस्कृत की पुत्री होने और दर्जनों एशियाई भाषाओं का संगम होने के कारण हिंदी का शब्द भंडार दुनिया की किसी भी भाषा से बहुत बड़ा है। यदि वह संयुक्तराष्ट्र की भाषा बन जाए तो वह विश्व की सभी भाषाओं को कृतार्थ कर सकती है। इससे भारत में चल रही अंग्रेजी की गुलामी भी घटेगी और हमारी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और व्यापार में भी चार चांद लग जाएंगे।

इस समय विदेशों में प्रवासी भारतीयों की संख्या लगभग सवा तीन करोड़ है। दुनिया के ज्यादातर देशों की आबादी भी इतनी नहीं है। अब से 50-55 साल पहले मैं जब न्यूयार्क में पढ़ता था तो किसी से हिंदी में बात करने के लिए मैं तरस जाता था लेकिन अब हाल यह है कि जब भी मैं दुबई जाता हूं तो लगता है कि छोटे-मोटे भारत में ही आ गया हूं। आज दुनिया के सभी प्रमुख देशों में प्रवासी भारतीय प्रभावशाली पदों पर हैं और कुछ देशों में तो वे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री और सांसद हैं। उनमें जातीय, धार्मिक और भाषिक कट्टरता भी बहुत कम है। वे औसतन विदेशियों से अधिक संपन्न भी हैं। उन्होंने इस साल भारत को साढ़े छह लाख करोड़ रु. भेजे हैं। अपनी मातृभूमि को दुनिया में सबसे ज्यादा पैसा भेजनेवाले भारतीय ही हैं। उनके चारित्रिक और पारिवारिक आचरण का उन देशों में गहरा प्रभाव है। यदि इन प्रवासियों को प्रेरित किया जाए तो वे न केवल हिंदी को विश्व भाषा बनाने में जबरदस्त योगदान करेंगे बल्कि भारतीय संस्कृति को वे विश्व-संस्कृति के तौर पर स्वीकृत भी करवा सकते हैं। जो लोग भारत को विश्व-गुरु बना देखना चाहते हैं, इस मामले में उनकी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा है।
(लेखक, भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष हैं)

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'अंतिम  क्षितिज का प्रदेशइस किताब के बारे में सिक्किम के तत्कालीन गवर्नर श्री श्रीनिवास पाटील कहते हैं कि हिंदी में सिक्किम पर इस तरह से  साहित्यिक रूप से लिखी गई यह पहली किताब होगी जोकि सिक्किम की जीवनदायिनी नदीतीस्ता की तरह अपने भाषाई प्रवाह के साथ पाठकों को अपने साथ लेकर चलती हैयह दस्तावेजीकरण हैसिक्किम की स्थितिइतिहासभूगोलधार्मिकता तथा सिक्किम के जीवन संस्कृति  परंपरा का.

 

प्रकृति के बेहद करीब सिक्किम हर बार नए क्षितिज के साथ यहां प्रस्तुत हुआ हैअपनी भाषायी सुंदरता तथा अनुभव में सिक्किम को लपेटकर 'अंतिम क्षितिज का प्रदेशआपको भी अपनी खूबसूरत वादियों में विचरण करने के लिए आमंत्रित करेगा तथा एक नई आत्मानुभूति से आपका साक्षरता करवाएगा इसका मुझे विश्वास हैश्री पाटील द्वारा कही गई इस बात को आप इस किताब को पढ़ने के बाद अनुभव करेंगेयह यात्रा आपको निश्चित रूप से पसंद आएगी


सुलभा कोरे

लेखिका



         वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

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वैश्विक हिंदी सम्मेलन की वैबसाइट -www.vhindi.in
'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' फेसबुक समूह का पता-https://www.facebook.com/groups/mumbaihindisammelan/
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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारकाविश्व वात्सल्य मंच

murarkasampatdevii@gmail.com  

लेखिका यात्रा विवरण

मीडिया प्रभारी

हैदराबाद

मो.: 09703982136

[वैश्विक हिंदी सम्मेलन ] जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग लड़ रहा एक भारत भाषा सेनानी : हरपाल सिंह राणा। होली के रंग – फ़िल्मों के संग - 'हिंदी से प्यार है' समूह। 18 खंडों में प्रकाशित इंद्रा स्वप्न रचनावली

 

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जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग लड़ रहा 

एक भारत भाषा सेनानी : हरपाल सिंह राणा।

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श्री हरपाल सिंह राणा 
हर साल 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस तो मनाते हैं लेकिन बिना स्वभाषा के स्व तंत्र कैसे हो सकता है और बिना स्व तंत्र के देश सही अर्थों में स्वतंत्र कैसे हो सकता है ? भारत की भाषा हिंदी, जिसे सभी स्वतंत्रता सेनानियों ने राष्ट्रभाषा कहा, जो भारत संघ की राजभाषा बनी, उस हिंदी को उसका सही स्थान तो उभी तक नहीं मिल सका। हिंदी को उसका सही स्थान दिलवाने की लड़ाई बहुत कम व्यक्तियों ने लड़ी है। उन्हीं चंद सिपाहियों में एक नाम है है कादीपुर, दिल्ली के हरपाल सिंह राणा,  जो पिछले 30 वर्षों से देश में  हिंदी को उसका कानूनी दर्जा और सही स्थान दिलवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जो जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग लड़ रहे हैं।

 

 हरपाल सिंह राणा बताते हैं कि बहुत कम व्यक्तियों को ही मालूम है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में सिर्फ जिला न्यायालय में ही नहीं बल्कि उच्चतम न्यायालय में भी अब हिंदी में न केवल मुकदमा दायर किया जा सकता है, बहस की जा सकती है बल्कि उसका आदेश भी हिंदी में ही प्राप्त किया जा सकता है। हिंदी में मुकदमा दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय में न्यायालय की हिंदी समिति वादी की मदद भी करती है। यह सब मुमकिन हो पाया है हरपाल सिंह राणा के अथक परिश्रम की वजह से दरअसल सविधान के अनुच्छेद 348 के तहत उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की भाषा अंग्रेजी है । उच्चतम न्यायालय की नियमावली 2013 भी अंग्रेजी में बनी हुई है और उसके तहत उच्चतम न्यायालय के सभी प्रकार के कार्य अंग्रेजी में ही किए जाते हैं । लेकिन सविधान की 350, 351 धाराओं सहित ऐसे अनेकों प्रावधान है जिनके तहत हिंदी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और देश का नागरिक अपनी  मातृभाषा में प्रतिवेदन दे सकता है और आवेदन कर सकता है और उसका जवाब उसी भाषा में देना अनिवार्य है।

 

 वर्ष  में 2017 में हरपाल सिंह राणा ने उच्चतम न्यायालय की अंग्रेजी में बनी नियमावली को हिंदी में  बनवाने के लिए बिना वकील के स्वयं मुकदमा दाखिल किया और  स्वयं उच्चतम न्यायालय में हिंदी में वार्तालाप (बहस) कीइसमें हरपाल सिंह राणा की मुख्य मांग को तो नहीं माना गया लेकिन कुछ ऐतिहासिक फैसले हुएउच्चतम न्यायालय ने भी संविधान और हिंदी भाषा का सम्मान करते हुए स्वतंत्रता के  बाद ऐतिहासिक पहल करते हुए इसी मुकदमे मैं पहली बार उच्चतम न्यायालय ने अपना आदेश हिंदी में जारी किया और कहा कि उच्चतम न्यायालय में हिंदी में मुकदमे दाखिल किए जा सकते हैंमुकदमा दाखिल करने वाले व्यक्तियों की मदद उच्चतम न्यायालय की हिंदी समिति करेगी। 

 

हरपाल सिंह राणा बताते हैं कि इससे पहले वर्ष 2016 में ने आजादी के बाद पहली बार उन्होंने  जिला न्यायालय रोहिणी, दिल्ली में हिंदी में मुकदमा दाखिल किया  था। ये उन्हीं के भागीरथ प्रयासों का परिणाम है कि आज  दिल्ली के सभी जिला न्यायालयों में हिंदी न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई और सभी जिला न्यायालय में हिंदी विभाग स्थापित किए गए । उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में भी 1972 से विचाराधीन हिंदी भाषा को लागू कराने के लिए हिंदी में मुकदमे में हिस्सा लियाहिंदी में बहस की और उच्च न्यायालय, पटना ने 30 अप्रैल 2019 को हिंदी लागू करने के लिए बिहार सरकार से अधिसूचना जारी करने के लिए कहा।

 

हरपाल सिंह राणा पिछले लगभग 30 वर्षों से हिंदी को उसका सम्मान और न्यायोचित स्थान दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके लिए भारतीय भाषा आंदोलन  द्वारा संघ लोक सेवा आयोग पर भी लगातार 14 वर्षों तक विश्व कs सबसे लंबे धरने में सहभागी रहे हैं, जिसमें देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयीपूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह सहित अनेकों महत्वपूर्ण व्यक्ति हिस्सा ले चुके हैं। इसके अलावा भारत सरकार और राज्य सरकारों मैं भी हिंदी भाषा लागू करवाने के लिए अनेकों महत्वपूर्ण आदेश पारित करवाए।  राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालयों सहित अनेकों विभागोंमंत्रालयों द्वारा कार्यालयों में अंग्रेजी में कार्य करने और अंग्रेजी में पत्र भेजने के खिलाफ की गई कार्रवाई में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय सहित अनेकों कार्यालय खेद  जता चुके हैं और आगे से हिंदी में लिखे पत्रों का जवाब हिंदी में देने का लिखित में आश्वासन दे चुके हैं। 

 

वे कहते हैं कि आज अंग्रेजी का विरोध करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हिंदी को और राज्यों में राज्यों की भाषाओं और मातृभाषा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है क्योंकि मातृभाषा के बगैर व्यक्ति गूंगा है और बगैर भाषा के स्वतंत्रता के आजादी अधूरी है। नई शिक्षा नीति में भी  मातृ भाषाओं  पर जोर दिया गया है लेकिन इसके लिए भी भी जनजागरण, एक लंबे संघर्ष और जन-आंदोलन की आवश्यकता है।  उनके प्रयास अभी भी जारी हैं। संघ की राजभाषा तथा जन-भाषाओं के लिए किसी भी हद तक तन, मन और धन से जिस प्रकार वे लगे हैं, ऐसा दूसरा उदाहरण कम ही दिखता है।

 

भारतीय भाषाओं के ऐसे सजग प्रहरी, भारत-भाषा प्रहरी ही नही भारत –भाषा सेनानी श्री हरपाल सिंह राणा को वैश्विक हिंदी सम्मेलन की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। आने वाले समय में जब भारत-भाषा सेनानियों का इतिहास लिखा जाएगा तो उनमें हरपाल सिंह राणा का नाम भी प्रमुखता से लिखा जाएगा।


                                          - डॉ. मोतीलाल गुप्ता 'आदित्य'

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होली के रंग – फ़िल्मों के संग   'हिंदी से प्यार हैसमूह की प्रस्तुति

होली के रंगों से सजा – फ़िल्मों पर केंद्रित कार्यक्रम, कुछ बातें – कुछ गीत – कुछ हल्का फ़ुल्का मनोरंजन
रविवार, 20 मार्च 2022    
शाम   7.00 बजे  (भारतीय समय)   दोपहर 1.30 बजे लंदन  सुबह   9.30 बजे न्यूयॉर्क  

डॉक्टर हरीश नवल (दिल्ली) – वरिष्ठ साहित्यकार, तेजेंद्र शर्मा (लंदन) – वरिष्ठ साहित्यकार, अविनाश त्रिपाठी (जयपुर-मुंबई) –
फ़िल्म गीतकार, लेखक डॉक्टर सागर (दिल्ली) - फ़िल्म गीतकार, साहिर लुधियानवी पर Phd की उपाधि प्राप्त
डॉक्टर इंद्रजीत सिंह (मॉस्को-रूस) – गीतकार शैलेंद्र पर ३ पुस्तकों के लेखक, प्रीति गोविन्दराज - अमेरिका - होली के गीत
रचना राठौर पंजाबी - भारत - होली पर माहिया
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साहित्य का खजाना छोड़ कर अनंत में विलीन हो गई थीं -  स्व. डॉ. श्रीमती इन्द्रा स्वप्न।
18 खंडों में प्रकाशित इंद्रा स्वप्न रचनावली का भाग - 1

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        वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

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प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारकाविश्व वात्सल्य मंच

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