शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

“नवजागरण के परिप्रेक्ष्य में रवीन्द्र साहित्य” विषय पर व्याख्यान संपन्न


नवजागरण के परिप्रेक्ष्य में रवीन्द्र साहित्य विषय पर व्याख्यान संपन्न

आंध्र-प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद के तत्वावधान में मंगलवार दि. 7 मई को नोबल पुरस्कार ग्रहीता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की 152 वीं जयंती के उपलक्ष्य में ‘नवजागरण के परिप्रेक्ष्य में रवीन्द्र-साहित्य’ विषय पर व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन आंध्र-प्रदेश हिंदी अकादमी, 8वीं मंजिल, गगन विहार, एम.जे.रोड, नामपल्ली में किया गया |
 यहाँ जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने भाग लिया | उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य में गुरुदेव का स्थान अतुलनीय रहा है | उन्होंने कहा कि भारतीय नवजागरण में राजा राममोहन राय ने नवजागरण का जो नींव रखी उसे आगे जाकर रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, देवेन्द्रनाथ ठाकुर, रवीन्द्रनाथ ठाकुर आदि महानुभावों ने सुस्थिर किया | उन्होंने रवीन्द्र के ‘गोरा’ उपन्यास में तत्कालीन समस्याओं, धार्मिक विश्वासों के साथ-साथ धर्म की कट्टरता आदि का वृत्तांत प्रस्तुत किया | अकादमी के निदेशक डॉ. के. दिवाकरा चारी ने कहा की रवीन्द्र गीतांजलि को 1913 में नोबल पुरस्कार मिला | ऐसी महान हस्ती की जयंती के अवसर पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है | उन्होंने कहा कि आज के नीतिहीन समाज के लिए उनका साहित्य अत्यंत उपयोगी है |
  अकादमी के अनुसंधान अधिकारी डॉ. बी. सत्यनारायण ने व्याख्यान का संचालन किया | इस अवसर पर ऋषभदेव शर्मा, संपत देवी मुरारका, राजकुमारी, एलिजाबैथ कुरियन, डॉ. कोकिला, आदि उपस्थित थे | अनुवादक एन.अप्पल नायडू के धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम का समापन हुआ |
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण 
(अध्यक्षा), इण्डिया काइंडनेश मूवमेंट 
मीडिया प्रभारी

हैदराबाद  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें