गुरुवार, 8 मार्च 2012

सम्मान समारोह एवं होली काव्य संध्या आयोजित









सम्मान समारोह एवं होली काव्य संध्या आयोजित

ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया हैदराबाद चैप्टर, कादम्बिनी क्लब हैदराबाद एवं इण्डिया काइंडनेस मूवमेंट के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार दिनांक 6 मार्च 2012 को होली की पूर्व संध्या पर नगर में पधारे साहित्यकारों का सम्मान समारोह एवं विशेष काव्य पाठ संध्या का आयोजन श्रीमती संपत देवी मुरारका के निवास स्थान पर आयोजित किया गया |

ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया हैदराबाद चैप्टर की अध्यक्षा तथा कादम्बिनी क्लब की संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र एवं इण्डिया काइंडनेस मूवमेंट की अध्यक्षा श्रीमती संपत देवी मुरारका ने आज यहाँ संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में आगे बताया कि इसकी अध्यक्षता प्रो. ऋषभदेव शर्मा (विभागाध्यक्ष, उच्च शिक्षा शोध संस्थान द. भा. हि. प्र. सभा खैरताबाद) ने की | श्री हीरालाल बाछोतिया (मुख्य अतिथि), श्री रामजन्म शर्मा, प्रो. हेमराज मीणा दिवाकर, डॉ.मीता शर्मा, श्री रामगोपाल गोयन्का (विशेष अतिथि), श्रीमती संपत देवी मुरारका एवं डॉ. अहिल्या मिश्र मंचासीन हुए | गणमान्य मंचासीन अतिथियों के कर कमलों से दीप प्रज्वलित किया गया | ज्योति नारायण ने सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की | डॉ. मिश्र ने उपस्थित सभा को होली पर्व की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि शहर में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियाँ निरंतर चलती रहती है | नवांकुरों को मंच प्रदान कर उन्हें मार्गदर्शन किया जाता है | नगर में पधारे हमारे अतिथियों को भी यह बात वैविष्ट पूर्ण लगी होगी ऐसा मुझे विश्वास है | इण्डिया काइंडनेस मूवमेंट संस्था की अध्यक्षा संपत देवी मुरारका ने कहा कि होली के रंग जिस तरह एक दूसरे में मिल जाते हैं मनुष्य भी इस गुण को अपनाएँ | तत्पश्चात उपरोक्त संस्थाओं की ओर से संयुक्त रूप से अतिथियों का मोती माला, पुष्प गुच्छ एवं अंग वस्त्र से सम्मान किया गया | श्री बाछोतिया, डॉ.मीता, श्री शर्मा, श्री गोयन्का, श्री मीणा ने सभी को होली की बधाई दी |

गुलाल का टीका और रंगों के बीच विजयलक्ष्मी काबरा, तनुजा व्यास, लता व्यास, हेमलता शर्मा ने होली गीतों की सुन्दर प्रस्तुति दी | सुरेश जैन, ज्योति नारायण, विनीता शर्मा, जी. परमेश्वर, डॉ. नीरजा, पुष्पा वर्मा, भावना पुरोहित, डॉ. मदन देवी पोकरणा, शीला सौन्थालिया, मीना मूथा, दयानंद, विनोद कुमार, श्रीनिवास, संपत देवी मुरारका, डॉ. अहिल्या मिश्र, श्री बाछोतिया, डॉ. मीता, श्री शर्मा, श्री मीणा आदि ने हास्य व्यंग रचनाओं की प्रस्तुति दी | प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अध्यक्षीय बात रखते हुए कहा कि आज की इस होली पूर्व काव्य संध्या में भारतीय संस्कृति के रंगों में सराबोर लोक गीत एवं हास्य व्यंग काव्य पाठ ने एक अलग ही समां बाँध दिया | राजस्थान के लोग यहाँ भी हैं वे उस मिट्टी की गंध और त्योंहार के उल्हास को साथ ले जाते हैं | वृन्दावन और बरसाने की होली का अपना ही आनंद है जो आज मुझे यहाँ देखने को मिला | अध्यक्षीय काव्य पाठ के साथ उन्होंने अपनी बात का समापन किया |

श्री राजेश मुरारका, गीता अग्रवाल, सीता अग्रवाल ने कार्यक्रम व्यवस्था .. देखरेख एवं स्वरुचि भोज व्यवस्था की जिम्मेदारी को संभाला | मीना मूथा ने कार्यक्रम का संचालन किया | ज्योति नारायण ने उपस्थित सभा का आभार व्यक्त किया |

श्रीमती संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण 
मीडिया प्रभारी 
हैदराबाद 

रविवार, 4 मार्च 2012

फुकेट (थाईलैण्ड) की यात्रा


फुकेट (थाईलैण्ड) की यात्रा



















                                                                    
                                                                    

    फुकेट (थाईलैण्ड) की यात्रा
यात्री दल जलयान में था और जलयान मंथर गति से थाईलैण्ड के सर्वाधिक आकर्षक और प्राकृतिक सुषमा से भरपूर द्वीप फुकेट की ओर बढ़ रहा था | यहाँ यह बता देना उचित होगा कि हम जिस थाईलैण्ड को एक स्वतंत्र देश के रूप में जानते हैं वास्तव में वह कई समुद्री द्वीपों का एक समुच्चय है | इस समुच्चयी रूपी गुलदस्ते का सबसे सुन्दर फूल फुकेट को माना जा सकता है जिसकी प्राकृतिक शोभा को भर आँख निहारने के लिए पूरी दुनिया के सैलानी बेताबी में इस ओर खींचे चले आते हैं |

जलयान के अधिकांश यात्री नींद में डूबे थे लेकिन मैं नींद से बाहर आ चुकी थी | मुझे बाहर समुद्र के विस्तार को अपने आँचल में समेटे हुए अंधियारी अब धुलती सी लगने लगी थी | इससे यह अंदाजा लगाना अब मुश्किल नहीं रह गया था कि बाहर आसमान के बंद दरवाजे पर सुबह दस्तक दे रही है | सुबह की इस संवेदना के साथ ही मैंने अपने को नई स्फूर्ति से भरना शुरू कर दिया और देखते ही देखते पसरा हुआ अँधेरा तिरोहित हो गया और समुद्र की लहरों पर सूर्य-किरणें अपनी सुनहरी आभा का अभिनव संसार रचने लगी | अब जलयान पर भी पूरी तरह जागरण हो गया था और लोग जलयान को द्वीप के तट पर पहुँचने का बेसब्री के साथ इंतज़ार करने लगे थे |

25-6-2008  बुधवार का दिन हमारा जलयान लगभग 10 बजे डीप सी. बंदरगाह के तट पर पहुँचा | जलयान के पिंजरे में कैद सभी पंक्षी कपाट खुलने के इंतज़ार में थे और जब वह खुला तो इस सुन्दर बंदरगाह की शोभा ने सबके मन को विमोहित कर दिया | दिक्कत की बात यह थी कि इस द्वीप के अवलोकन के लिए समय हमारे पास बहुत कम था क्योंकि 3-4 घंटे के बाद जलयान को आगे के द्वीप के लिए रवाना हो जाना था | जलयान से बाहर आकर यात्री तट पर तैयार खड़ी बसों में बैठने लगे | पलक झपकते ही बसें भर भी गई | मैं इस अफरा-तफरी में पीछे छूट गई थी | मूलत: 8-10  सदस्यों के साथ मुझे एक वेन में जगह मिली |

हमारे साथ एक टमी नामक गाइड भी था | वेन आगे बढ़ी तो टमी ने इस सुन्दर और अकल्पनीय द्वीप की प्रसिद्धी का बखान करना शुरू कर दिया | उसने बताया कि इस फुकेट द्वीप की राजधानी भी फुकेट शहर ही है | इसे थालांग या तलांग भी कहते हैं | इसका असली नाम तुंगका है बाद में 14  नवंबर 1938  को इसका नाम बदल कर मुइंग फुकेट रख दिया गया | फुकेट थाईलैण्ड के पश्चिमी किनारे पर अंडमान समुद्र तट पर स्थित है | इसमे एक बड़ा और 39  छोटे द्वीप स्थित हैं | यहाँ के सभी द्वीपों का पूरा क्षेत्रफल 570  वर्ग कि.मी. है | फुकेट थाईलैण्ड का सबसे बड़ा द्वीप है | इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण 50  कि.मी. और चौड़ाई पूर्व-पश्चिम 20  कि.मी. है | फुकेट का विस्तार लगभग सिंगापुर जितना है | यहाँ थाई बाट प्रचलित है | इस द्वीप के निकट उत्तर की तरफ फांगनगा और क्रबी है | पूरे द्वीप में पश्चिम उत्तर और दक्षिण पर्वत श्रृंखलाओं का विस्तार है | मेरी वेन की खिड़की से हरीतिमा ओढ़े इन पर्वत श्रृंखलाओं का अटूट विस्तार स्पष्ट दिखलाई दे रहा था | पर्वत के साथ ही उनकी ढलानें और घाटियाँ भी प्रकृति की इस उत्कृष्ट रचना के लिए प्रशंसनीय समझ में आ रही थी | खिडकी से बाहर दूर-दूर तक प्रसारित इस सुषमा को निराली ही कहा जा सकता है | यह द्वीप वास्तव में मुझे प्रकृति के विलक्षण सौन्दर्य का धरोहर ही समझ में आया | पहाड़ी श्रृंखलाओं के बीच कुछ समतल मैदान भी मिलते थे जिनमें धान की लहलहाती फसल अपनी हरीतिमा के साथ आँखों को बड़ी भली महसूस होती थी | साथ ही नारियल के बागान भी मन को उसी तरह विमुग्ध करते थे |

हमारे गाइड टमी ने बताया कि द्वीप के 60%  हिस्से में रबड़ और ताड़ का घना जंगल है | द्वीप के उत्तरी इलाके में पर्यटकों की सुविधा के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है | हमारी वेन तेज रफ्तार से फुकेट की सड़कों पर दौड़ रही थी | कुछ दूर आगे बढ़ने पर यहाँ के सबसे ऊँचे पर्वत माई थाऊ सीप सोंग की श्रृंखलायें दिखाई देने लगी | गाइड ने बताया कि उसकी ऊँचाई समुद्रतल से 529  मीटर है | पर्वत श्रृंखलाओं के उत्तर दिशा में लगभग 20  कि.मी. विस्तार में फैला खाऊ प्राथीयो जंगल है जहाँ शिकार खेलना वर्जित है | जंगल के बीच से तीन पर्वत शिखर झांकते दिखाई देते हैं, इन्हें खाऊ प्रथिम (384मी.), खाऊ वेंग पे (388मी.) और (422मी.) कहा जाता है | इस द्वीप की दक्षिण-पूर्व दिशा में बहुत से द्वीप हैं | सबसे निकटतम बोन द्वीप है | दक्षिण दिशा में भी कुछ द्वीप हैं | उत्तर-पश्चिम की ओर प्रसिद्ध सीलीमन द्वीप है | दक्षिण-पूर्व में फी, फी. द्वीप है | हजारों-हजार की संख्या में पर्यटक इन द्वीपों की यात्रा गोताखोरी के लिए करते रहते हैं |

वैसे फुकेट समुद्री किनारों की नगरी है | इस नगर को प्रकृति ने मुक्त-हस्त से अपनी सुन्दरता का वरदान दिया है | अन्य द्वीपों की तरह इसकी सुन्दरता भी समुद्री तटीय ही है | सारा फुकेट शहर हर दिशा से हरीतिमा ओढ़े दिखाई देता है | इसकी वृक्षादित पहाड़ी ढलानें पर्यटकों का मन मोह लेती है | यहाँ समुद्र तट इन्हीं पहाड़ों की तलहटी में हैं | तीन समुद्र तटों को यहाँ अति विशिष्ट माना जाता है | ये हैं काटा, केरोन और काटाकोई | समुद्र तटों पर पर्यटकों के लिए कई आकर्षक रिसॉर्ट भी है | समुद्र तटों से लगी हुई ग्रामीण बस्तियाँ भी हैं | थाईलैण्ड सरकार ने एक योजना के तहत सुनहरे रेतीले समुद्र तटों को पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाने का काम शुरू किया क्योंकि पर्यटन इस देश का मुख्य व्यवसाय है | रबड़ का निर्यात और पर्यटन इस देश की अधिक संरचना में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं |

फुकेट में सीरीनात राष्ट्रीय उद्यान काफी चर्चित है | इसकी स्थापना सन् 1981 में की गई थी | इसका पूरा विस्तार 90 वर्ग कि. मी. क्षेत्र में है | इसी के साथ नाइयांग समुद्र तट पर समुद्री कछुये अंडे देते हैं इस कारण इसको सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है | 19 वीं सदी में यहाँ लोग रबड़ और टीन का घर बनाकर रहते थे लेकिन पूरी बस्ती आग में जल गई | यहाँ की जनसंख्या अभी दो लाख और तीन लाख के बीच है | थाईलैण्ड की तरह यहाँ भी बौद्ध धर्मावलंबियों की संख्या अधिक है | मुसलमान अपने को मलय मूल का बताते हैं |

यह गौर तलब है कि सिर्फ फुकेट में ही बौद्धों के 29 मंदिर है | लगभग सभी मंदिर सुन्दर और दर्शनीय है लेकिन वेट छलांग मंदिर की ख्याति सर्वाधिक है | वैसे यहाँ कम या ज्यादा मात्रा में सभी संप्रदायों के लोग रहते हैं और सबके पूजा स्थल भी है तथा सभी अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार अपने तीज-त्योंहार भी मनाते हैं | हमने अपनी यात्रा में सभी सम्प्रदाओं के प्रसिद्ध पूजा स्थलों के साथ ही पुराने स्थापत्यों का भी अवलोकन किया | इस यात्रा क्रम में हमने वेट छलांग का बौद्ध मंदिर देखा जिसे देखकर हम चमत्कृत रह गये | इस मंदिर का कहा जाता है फुकेट के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है | यहाँ की यात्रा करने वाला प्रत्येक सैलानी चाहे वह किसी धर्म को मानने वाला हो इस स्थान की यात्रा के बाद ही अपनी यात्रा को पूर्ण मानता है | ऐसा अगर है तो यह मंदिर की कलात्मक स्थापत्य कला के साथ ही इसके प्राकृतिक सौन्दर्य की भी वजह से है | इस मंदिर के निर्माण का इतिहास किसी को नहीं मालुम लेकिन कहा जाता है कि इसका निर्माण राजा रामा द्वितीय ने 1809-1842 के मध्य कराया था | हाल ही में यहाँ एक सुन्दर चेडी का निर्माण कराया गया है | इसकी ऊँचाई 61.39 मीटर है | कहा जाता है कि इसके निर्माण में 66 मिलियन बाट का खर्चा बैठा था | इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ भगवान बुद्ध की अस्थियों का अवशेष सुरक्षित है | इसे प्रोबोरोय सेरीरिकटेट कहा जाता है | 1990 में इस अवशेष को श्रीलंका से लाया गया था जिसे 2002 में राजकुमार महावजीरा लोंग कोर्न ने चेडी में प्रतिष्ठित किया था |

लगभग सौ साल पहले यहाँ के मठाधीश युद्ध में घायल चीनी सैनिकों की चिकित्सा किया करते थे | बाद में यह मंदिर दो सन्यासियों लुआंग फ़ो चेयम और लुआंग फ़ो चूयांग के नाम हो गया | सन् 1876 ई. तक ये दोनों सन्यासी जड़ी-बूटियों से आयुर्वेदिक औषधि बनाकर खानों में काम करने वाले श्रमिकों की चिकित्सा किया करते थे | मंदिर में भगवान की कई मूर्तियाँ अलग-अलग मुद्राओं में प्रतिष्ठित है | इस मंदिर का विधिवत दर्शन करने के बाद हमारा यात्री दल आगे बढ़ा | आगे हम वेंग तलांग पहुँचे | यहाँ की पर्ल गैलरी काफी प्रसिद्ध है | यहाँ हर तरह के रत्नों के आभूषणों की विक्री होती है | इन आभूषणों पर की गई कारीगरी बेजोड़ है | यहाँ पहली मंजिल पर कई तरह के उपहार में दिये जाने वाले सामान हैं | मैंने स्वयं सजावट की कई तरह की वस्तुयें खरीदी | यहाँ की वेंत और बाँस से बनी छतरियाँ बड़ी सुन्दर होती है | पहले यहाँ काजू के वृक्ष अपने आप उगते थे लेकिन अब इनके बाग लगाये जाते हैं | थाई भोजन में काजू के बने सामानों की प्रमुखता होती है | यहाँ के लोग काजू शर्बत का उपयोग करते हैं जो बहुत स्वादिष्ट होता है | इस जायके का आनंद हमने भी लिया |

आगे हम पटांग बीच देखने गये | थाई भाषा में इसका अर्थ केले के पत्तों से भरा हुआ होता है | यह शहर अपनी रंगीन रातों और सस्ते सामानों की विक्री के लिए विश्व-प्रसिद्ध है | जबकि 1970 में पटांग मछुआरों की एक साधारण बस्ती थी | यहाँ के बाहरी हिस्से में गोकार्ट खेल का स्थान काफी भव्य है | यहाँ मिनी गोल्फ कोर्स भी दर्शनीय है | पटांग शहर का अवलोकन करते हुए और इस शहर की खुबियों को सराहते हुए इस समुद्र तट पर पहुँचे | समुद्र तट के दूसरे किनारे पर कई भव्य होटल और रिसॉर्ट हैं | यहाँ सुपरमार्केट, वेस्टर्न और एशियन रेस्तराँ के साथ ही बहुत सारे मनोरंजन के साधन तथा अनगिनत दूकानें हैं | यहाँ के सामानों में नकली और असली की पहचान करना कठिन है | यहाँ के रेस्तराँ में थाई का समुद्री भोजन विशेष माना जाता है | चावल और चावल से बने सामान यहाँ के मुख्य आहार है | यहाँ का सबसे प्रिय भोजन केकड़े का शोरबा होता है, लेकिन इन रेस्तरांओं के सामने से दुर्गन्ध के कारण मुझ जैसी शाकाहारी महिला के लिए काफी कष्टकर सिद्ध हुआ | इस दुर्गन्ध से मेरा सिर चकराने लगा था |

कुछ ही देर बाद मुझे सुखद अनुभूति तब हुई जब मुझे सुनहरी रेती से युक्त लगभग 3 कि. मी. विस्तार वाले समुद्र तट पर चहल-कदमी करने का मौका मिला | यहाँ टहलने वालों और समुद्र स्नान करने वालों की भीड़ हमेशा लगी रहती है | नीले सुविस्तृत समुद्र की उत्ताल तरंगों का नर्तन और तट से टकराने वाली लहरों का अभिनव संगीत सारी थकावट को हर लेता है | सायंकाल अस्त होते सूर्य का रक्ताभ बिम्ब जब समुद्र के जल में आलोड़ित होने लगता है तब उस दृश्य की छटा ही कुछ और होती है | हमारा यात्री दल यहाँ ठेलों पर बिकने वाले भोज्य पदार्थों का आनंद उठाता बहुत देर तक अभिराम शोभा का अवलोकन करता रहा | तट के किनारे-किनारे जो नारियल और ताड़ वृक्षों की घनी पंक्तियाँ है वे इस बीच को और भी भव्य बनाती है | समुद्र के किनारे छतरी लगे बेंच भी हैं जहाँ बैठकर कुछ देर आराम किया जा सकता है | मनोरंजन के लिए यहाँ कई तरह के पानी के खेलों का भी आयोजन होता है | हमने भी यहाँ काफी देर तक सेलिंग का आनंद लिया | यहाँ नवंबर से अप्रेल तक उत्तर-पूर्व मानसून के कारण तट शांत रहता है, लेकिन मई से अक्टूबर तक काफी बड़ी लहरें उठती हैं, फिर भी तैरने के लिए इसे काफी अनुकूल माना जाता है | अधिकार-पत्र लेकर यहाँ गोताखोरी भी की जा सकती है | उत्तरी पटांग जहाँ नोबाटेल फुकेटे रिसॉर्ट है वहाँ कई सुन्दर-सुन्दर छोटी-छोटी रेती की खाड़ियाँ बनाई गई है जिसका जल पारदर्शी शीशे की तरह चमकता है |

अब तक मौसम बहुत खुला हुआ और खुशगवार था, लेकिन देखते ही देखते मौसम का रुख बदला और घने बादलों की वजह से दिन में ही अँधेरा छा गया | हम किसी तरह होने वाली बरसात से बचने के लिए वेन में बैठकर जलयान की ओर रवाना हो गये | यहाँ शुद्ध शाकाहारी भोजन किया औए डेक 8 पर आयोजित भागवत कथा का श्रवण किया | कथा-वाचक कृष्ण जन्म की कथा सुना रहे थे और बाहर इंद्र देवता उसी तरह धाराधार बरस रहे थे, जैसे उनके जन्म के समय बरसे थे | बरसात धीरे-धीरे थमने लगी और अब बूंदाबूंदी तक सीमित रह गई | हमें अपने समय का उपयोग करना था इसलिए रात की रंगीनियों का नजारा देखने हम बस में बैठकर करीब 11 बजे बीच के लिए रवाना हो गये | वैसे भारी वर्षा होने के कारण बीच पर सन्नाटा पसरा था | मेरे मन में मुंबई के जूहूँ बीच का रात में जगमगाता चेहरा बसा हुआ था और सोच रही थी कि यह बीच भी रात में गुंजान रहता होगा, लेकिन मुझे निराश होना पड़ा | इसी निराशा और गुस्से में हमें बस में बैठकर जलयान आना पड़ा | यहाँ एक खुशी इस बात की मिली कि जलयान हीरे की तरह जगमगाता मिला | थकान तो थी ही इसलिए केबिन के अपने बिस्तर पर आते ही मेरी पलकों पर निद्रा देवी का बसेरा भी हो गया |

26-06-2008 को प्रात:काल नित्यक्रिया से निवृत होने तथा नाश्ते-चाय के बाद हमारे यात्री दल ने फुकेट के प्रसिद्ध खाऊ सोक उद्यान देखने का मन बनाया | वर्षा पर आधारित इस उद्यान की यात्रा फुकेट से कार या बस द्वारा करीब डेढ़ घंटे की है | इसे दुनिया का सबसे पुराना उद्यान माना जाता है और यह सोक नदी के किनारे है | इस उद्यान में सुन्दर छायादार रबड़ के वृक्ष पर्वतों की उपत्यका में अंडमान द्वीप तक प्रसारित है | इस उद्यान की प्राकृतिक शोभा निहारते आँखें नहीं थकती है | यह उद्यान चूने के पत्थर, पहाड़ी चट्टानों, गुफाओं, नदियों और प्राकृतिक झरनों से युक्त है | यहाँ अगिनत पशु-पक्षियों, कीड़ों-मकोड़ों तथा साँपों की प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं | इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि दुनिया का सबसे बड़ा फूल जिसका फैलाव एक मीटर तक होता है यहाँ बहुतायत मात्रा में पाया जाता है | अपनी बहुत सारी विशेषताओं के साथ यह दक्षिण अमेरिका के देश ब्राजील के ‘आमेजान’ जंगल के समकक्ष समझा जाता है | वैसे यहाँ के जैविक और वानस्पतिक रहस्यों पर शोधकार्य बहुत कम हुआ है, जिस कारण इसकी विशेषता दुनिया के सामने पूरी तरह उद्घाटित नहीं हो सकी है | यहाँ हमने विशालकाय हाथियों को विशालकाय वृक्षों के तनों से अपनी पीठ खुजलाते और सूंड बढ़ाकर पत्तियाँ और शाखें तोड़ते-चबाते देखा | यह दृश्य सचमुच हमें मनोहारी लगा |

इस जंगल में घुमने के लिए वैसे हाथी की सवारी का भी उपयोग किया जाता है | वैसे तो पर्यटक इस उद्यान का अवलोकन पूरे साल करते हैं फिर भी जून से नवंबर तक का समय इसके लिए काफी अच्छा माना जाता है | यह विशाल जंगल जिसे अब उद्यान का रूप दे दिया गया है 740 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला है | इस उद्यान की हरीतिमा और इसमें खिलने वाले विविध रंगों के जंगली फूलों की सुगंध पर्यटकों के मन को विभोर कर देती है | हमारा गाइड हमें यहाँ के पालतू बंदरों का खेल दिखाने ले गया | हमने बड़े विमुग्ध भाव से इन छोटे-छोटे बंदरों को गेंद से खेलते और साइकिल चलाते देखा | इसके बाद हमने हाथी की पीठ पर सवार होकर जंगल के कुछ भाग का अवलोकन किया | जंगल के दुर्गम रास्तों पर हरीतिमा को भर नजर निहारते हुए हाथी की सवारी करना अपने आप में मेरे लिए एक रोमांचक अनुभव था | यहाँ हमने एक झरने के नीचे बैठकर शीतल जल से स्नान करने का भी आनंद लिया | पता नहीं उस पानी में कौनसी खासियत थी कि सारी थकान छू मंतर हो गई | नन्हें हाथियों के भी करतब देखे | यहाँ हाथियों द्वारा थाई मसाज भी होता है, लेकिन हमने एक अनजाने भय के कारण इस अनुभव से अपने को वंचित रखा |

यहाँ से लौटने के बाद हमने एक डिपार्टमेंटल स्टोर से बहुत सारी खरीदारियाँ की और अपने जलयान के घोंसले में वापस आ गये | आगे हमारे जलयान को एक अन्य द्वीप पेनांग की ओर प्रयाण करना था |
संपत देवी मुरारका
हैदराबाद