सोमवार, 7 अप्रैल 2014

गोइन्का पुरस्कार समारोह एवं सम्मान समारोह संपन्न



गोइन्का पुरस्कार समारोह एवं सम्मान समारोह संपन्न

जैन ग्रप आॅफ इंस्टिट्यूशन्स के चेयरमैन डाॅ. चेनराज राॅयचंद जी की अध्यक्षता में गुलबर्गा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार कमला गोइन्का फाउण्डेशन द्वारा घोषित इक्कीस हजार राशि का "पिताश्री गोपीराम गोइन्का हिन्दी कन्नड़ अनुवाद पुरस्कार" से डाॅ. काशीनाथ अंबलगे जी को उनकी अनुसृजित कृति "सुमित्रानंदन पंत अवरा कवितेगळू" के लिए पुरस्कृत किया गया।

संग-संग "गोइन्का कन्नड़ साहित्य सम्मान" से धारवाड़ की सुप्रसिद्ध कन्नड़ साहित्यकार एवं कर्नाटक साहित्य अकादमी की नवनिर्वाचित अध्यक्ष प्रो. मालती पट्टणशेट्टी जी को नवाजा गया। कर्नाटक के वरिष्ठ हिन्दी सेवी श्री रंगनाथराव राघवेन्द्र निडगुंदि जी को "गोइन्का हिन्दी साहित्य सम्मान" से सम्मानित किया गया। इसी अवसर पर साहित्येतर क्षेत्र के सम्मान "दक्षिण ध्वजधारी सम्मान" से कर्नाटक की सिरमौर प्रतिष्ठित समाज-सेवी धर्मस्थला की श्रीमती हेमावती वी. हेगडे जी को सम्मानित किया गया।

पुरस्कार समारोह दिनांक 6 अप्रैल को 'भारतीय विद्या भवन' बेंगलुरु में आयोजित था। इस समारोह के मुख्य अतिथि कार्पोरेशन बैंक (मेंगलुरु) के सहायक महाप्रबंधक डाॅ. जयन्ती प्रसाद नौटियाल जी थे। समारोह का संचालन डाॅ. आदित्य शुक्ल जी ने किया।
पुरस्कार समारोह के अंत में एक अखिल भारतीय कवि-सम्मेलन का भी आयोजन किया गया। जिसमें कवि सम्राट श्री आशकरण अटल जी के संग-संग श्री सुभाष काबरा, श्री श्याम गोइन्का, श्री मुकेश गौतम तथा पूरण पंकज  ने अपनी कविताओं से बेंगलुरू के साहित्य-रसिकों को मंत्र-मुग्ध किया।

संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी

हैदराबाद 

शिवकुमार राजौरिया का ‘कथा कथन’ आयोजित



शिवकुमार राजौरिया का
कथा कथनआयोजित
हैदरबाद, 3 अप्रैल 2014 (प्रेस विज्ञप्ति).
साहित्य-संस्कृति मंच साहित्य मंथनके तत्वावधान में खैरताबाद स्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कक्ष में प्रो. ऋषभ देव शर्मा की अध्यक्षता में कथा कथनकार्यक्रम संपन्न हुआ. इसके अंतर्गत युवा कथाकार डॉ. शिवकुमार राजौरिया ने अपनी दो कहानियों बूढ़ी हड्डियाँऔर श्यामाका वाचन किया. विशेषज्ञों के रूप में उपस्थित समीक्षक प्रो. एम. वेंकटेश्वर, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, कहानीकार लक्ष्मी नारायण अग्रवाल तथा पवित्रा अग्रवाल ने दोनों कहानियों के कथ्य, रूप और भाषा पर समीक्षात्मक टिप्पणियाँ करते हुए लेखक के सामाजिक सरोकार और पारिवारिक संस्था के प्रति चिंता की प्रशंसा की और उन्हें मार्मिक प्रसंगों के पल्लवन पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया.
प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह-संपादक स्रवंति
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद, हैदराबाद 500 004

संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

कैलाश चंद्र भाटिया, राजेंद्र यादव, परमानंद श्रीवास्तव और ओमप्रकाश वाल्मीकि का पुण्य स्मरण



कैलाश चंद्र भाटिया, राजेंद्र यादव, परमानंद श्रीवास्तव और ओमप्रकाश वाल्मीकि का पुण्य स्मरण
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में दिवंगत साहित्यिकों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

हैदराबाद, 2 अप्रैल 2014 (प्रेस विज्ञप्ति).

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के विश्वविद्यालय विभाग उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के तत्वावधान में 29-30 मार्च 2014 को संस्थान के बेलगाम [कर्नाटक] केंद्र में द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी पुण्य-स्मरणका आयोजन किया गया. यह राष्ट्रीय संगोष्ठी गत दिनों दिवंगत हुए चार साहित्यकारों राजेंद्र यादवपरमानंद श्रीवास्तवकैलाश चंद्र भाटिया और ओमप्रकाश वाल्मीकि की पुण्य-स्मृति को समर्पित थी. इस अवसर पर आंध्र-सभा की पत्रिका स्रवंति’ का इन्हीं साहित्यकारों पर केंद्रित विशेषांक भी प्रकाशित किया गया.

बीज भाषण देते हुए प्रमुख समाजभाषावैज्ञानिक प्रो. दिलीप सिंह ने डॉ. कैलाशचंद्र भाटिया का स्मरण करते हुए उन्हें  हिंदी भाषा के गहरे अध्येता एवं चिंतक बताया तथा डॉ. परमानंद श्रीवास्तव को नए राहों के अन्वेषी आलोचकके रूप में याद करते हुए कहा कि वे जीवन पर्यंत मार-काट वाली आलोचना का विरोध करते रहे. राजेंद्र यादव के बारे में बात करते प्रो. दिलीप सिंह ने बताया कि राजेंद्र यादव की भाषा ललकार की भाषा थी. बीजभाषणकर्ता ने ओमप्रकाश वाल्मीकि को हिंदी साहित्य जगत में पहली बार दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र को लाने वाले साहित्यकार के रूप में स्मरण किया और कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि का सारा साहित्य स्वयं में दलित आंदोलन है.
मुख्य अतिथि के रूप में पधारे इफ्लू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने कहा कि साहित्य का पठन-पाठन सतही स्तर पर करना या व्याख्या भर करना काफी नहीं होता. गहन अध्ययन और विश्लेषण की आवश्यकता आज की माँग है. पाठक को चिंतन एवं भावनात्मक स्तर पर किसी भी साहित्यकार के साथ तादात्म्य करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि यह संगोष्ठी निश्चय ही चुनौती से भरी हुई है चूंकि यह ऐसे साहित्यकारों पर केंद्रित है जिन्होंने साहित्यभाषाआलोचनाअनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान जैसे क्षेत्रों के लिए दिशा निर्देशक कार्य किया है. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. हीरालाल बाछोतिया ने की तथा संचालन प्रो. अमर ज्योति ने किया.

राष्ट्रीय संगोष्ठी का प्रथम सत्र परमानंद श्रीवास्तव पर केंद्रित रहा. इसकी अध्यक्षता प्रो. रामजन्म शर्मा ने की तथा संचालन डॉ. के.एस. पाटील ने किया. डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने परमानंद श्रीवास्तव की संप्रेषणीय आलोचना के प्रतिमान, डॉ. नजीम बेगम ने संपादकीय दृष्टि, डॉ. शकीला बेगम ने काव्यभाषा का संदर्भ, डॉ. बिष्णुकुमार राय ने काव्य प्रयोजन का संदर्भ और डॉ. सी.एन. मुगूटकर ने साहित्य और मनुष्य का संबंधपर शोधपत्र प्रस्तुत किए.   

द्वितीय सत्र राजेंद्र यादव पर केंद्रित था. अध्यक्षता प्रो. अर्जुन चव्हाण ने की और संचालन डॉ. सी.एन. मुगूटकर ने किया. डॉ. पी. राधिका ने स्त्री पक्ष, डॉ. एच.आर. घरपणकर ने दलित पक्ष और डॉ. के.एस. पाटील ने सांप्रदायिकता के संदर्भ में राजेंद्र यादव के विचारों की मीमांसा प्रस्तुत की.

तृतीय सत्र ओमप्रकाश वाल्मीकि को समर्पित था जिसकी अध्यक्षता प्रो. टी.आर. भट्ट ने की. संचालन डॉ. बिष्णुकुमार राय ने किया. डॉ. मृत्युंजय सिंह ने आत्मकथा, डॉ. अमर ज्योति ने कथा साहित्य, डॉ. मंजुनाथ अम्बिग ने काव्य, डॉ. गोरखनाथ तिवारी ने सौंदर्यशास्त्र, डॉ. संजय मादार ने दलित प्रश्न, डॉ. वी.एन. हेगडे ने भाषापक्ष और मोहम्मद सैयद इस्लाम ने सामाजिक यथार्थ की दृष्टि से ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य का विवेचन-विश्लेषण किया.

चतुर्थ विचार सत्र डॉ. कैलाश चंद्र भाटिया की पुण्य स्मृति को समर्पित था. इसकी अध्यक्षता प्रो. दिलीप सिंह ने की तथा संचालन डॉ. माधवी बागी ने किया. प्रो. भाटिया के प्रयोजनमूलक हिंदी, साहित्य भाषा विमर्श, कोशकारिता, अनुवाद चिंतन और अन्यभाषा शिक्षण जैसे विविध क्षेत्रों में योगदान को रेखांकित करते हुए प्रो. रामजन्म शर्मा, प्रो. ऋषभ देव शर्मा, प्रो. एम. वेंकटेश्वर और प्रो. हीरालाल बाछोतिया ने अत्यंत जानकारीपूर्ण आलेख प्रस्तुत किए. समापन समारोह में डॉ. टी. आर. भट्ट और डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने संगोष्ठी की समीक्षा की और आशा व्यक्त की कि यह रागात्मक और भावनात्मक संबंध आगे भी बना रहेगा. बतौर मुख्य अतिथि डॉ. अर्जुन चव्हाण ने संगोष्ठी के आयोजकों को बधाई दी. अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए डॉ. जयशंकर यादव ने कहा कि बेलगाम के इस स्नातकोत्तर भवन में दो दिनों तक भाषाई सौहार्द अंतःसलिला के रूप में प्रवाहित होता रहा. यह आनंद ही साहित्य और जीवन का सरोकार है. समापन सत्र का संचालन उच्च शिक्षा और शोध संस्थानबेलगाम केंद्र के प्रभारी डॉ. वी.एन. हेगडे ने किया. प्राध्यापक डॉ. सी.एन. मुगूटकर ने धन्यवाद ज्ञापित किया. सामूहिक जन-गण-मन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. (रिपोर्ट : बेलगाम से लौटकर डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा)

चित्र विवरण
उद्घाटन दीप प्रज्वलित करते हुए मुख्य अतिथि प्रो. एम. वेंकटेश्वर. साथ में बाएँ से प्रो. ऋषभ देव शर्मा, प्रो. वी.एन. हेगडे, प्रो. हीरालाल बाछोतिया, प्रो. दिलीप सिंह व अन्य

प्रस्तुति - डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह-संपादक स्रवन्ति
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
हैदराबाद 500 004
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संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद