बुधवार, 24 सितंबर 2014

‘नया मीडिया’ और हिंदी के बढ़ते चरण





नया मीडियाऔर हिंदी के बढ़ते चरण
-    संपतदेवी मुरारका
सभी प्राणी आपस में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए किसी माध्यम का प्रयोग करते हैं. ये माध्यम इशारेआवाज या कोई दूसरे संकेत व साधन भी हो सकते हैं |  मनुष्य जाति ने आपसी सूचनाएँ प्रेषित करने के लिए कई माध्यमों को समय व जरूरत के अनुसार समय समय पर विकास किया |  इस दिशा में सभ्यता के विकास की एक बड़ी घटना - भाषा के अविष्कार के रूप में सामने आई |  भाषा के अविष्कार के बाद मानव एक दूसरे से बातचीत करके व अपनी बात कहकर आपस में सूचनाओं और विचारों का आदान-प्रदान करने लगा | आगे चलकर मानव ने दूर दूर तक सूचनाएँ प्रेषित करने के लिए लिपि का अविष्कार किया | लिपि के माध्यम से पत्र लिखकर उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजकर अपने से दूर रहने वालों तक सूचनाएँ भेजना संभव हुआ | सूचना प्रश्न की इस प्रणाली का विकास व्यक्तिगत के साथ सार्वजनिक सूचना प्रेषित करने के माध्यम के रूप में भी हुआ | बाद में कागज पर लिखने के लिए मशीनों का अविष्कार हुआ जो प्रिंटिंग प्रेस के नाम से जानी जाने लगी |  इन मशीनों पर मानव ने सूचनाएँ भेजने के लिए थोक में एक जैसे पत्र छापकर घर घर पहुँचाने शुरू किए | इससे समाचार पत्र अथवा अखबार सामने आए जिन्हें मुद्रित माध्यम अथवा प्रिंट मीडिया कहा जाता है |

अख़बारों के बाद मानव ने सूचनाएँ त्वरित गति से जन-जन तक पहुँचाने हेतु पहले रेडियो व बाद में टेलीविजन का अविष्कार कर उसे माध्यम बनाया फिल्मों का भी  इसके लिए उपयोग किया गया | इन्हें मिलाकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खा गया | सूचना-संप्रेषण के माध्यम की विकास यात्रा में नया मोड आया - इंटरनेट के अविष्कार के साथ | इंटरनेट के माध्यम से अपने घर बैठे अपने कंप्यूटर पर अपना संदेश टंकण कर सुदूर बैठे अपने रिश्तेदार व संबंधित व्यक्ति को त्वरित गति से कुछ ही क्षणों में भेजना शुरू किया | शुरू में इस माध्यम में भी सूचनाएँ सिर्फ आपस में ही भेजी जाने लगी पर धीरे धीरे इंटरनेट पर कुछ ऐसी वेब साइट्स का प्रयोग शुरू हुआ जहाँ व्यक्तियों के समूह बनने लगे और समूह के लोग आपसी सूचनाओं व संदेशों का आदान-प्रदान करने लगे |  इस सूचनाओं ने परंपरागत मीडिया की गति को तो पीछे छोड़ दिया साथ ही इसकी सीमाएँ भी असीमित हो गई |  इस तरह नया मीडिया सामने आया | ज्ञानदर्पणके अनुसार लोगों द्वारा अपना सामाजिक दायरा बढ़ाने हेतु समूह बना कर आपसी सूचनाओं का आदान-प्रदान करने की सुविधाएँ उपलब्ध कराने वाली ऐसी वेब साइट्स को लोगों ने सोशल मीडिया का नाम दिया |  उतरोतर ये सोशल वेब साइट्स काफी लोकप्रिय हुईं और इनके उपयोगकर्ता बढ़ते गए और यह संख्या आज भी बढ़ती ही जा रही है | विश्व में पिछले कुछ वर्षों में हुए कई देशों के आंदोलनों में इस सोशल मीडिया का प्रभाव व उपयोगिता स्पष्ट देखी गई है |  मिस्र, लीबिया,सीरियाभारत में अन्ना आंदोलन व अभी हाल ही में दिल्ली बलात्कार कांड के खिलाफ छिड़े आंदोलन में आंदोलनकारियों द्वारा सोशल मीडिया सूचनाएँ संप्रेषित करने का मुख्य माध्यम बना |”  समझा जा रहा है कि 2014 के भारतीय आम चुनाव में नव माध्यम अथवा सोशल मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही थी | इसका एक स्वरूप इंटरनेट पर उसका ब्लॉग” या वेब साइट का है |  ब्लॉग या वेब साइट पर कोई भी व्यक्ति सूचनाएँ लिखकर एक क्लिक में लोगों की असीमित संख्या और विश्व के किसी भी कोने में पहुँचा सकता है | ये सूचनाएँ असीमित समय तक इंटरनेट पर मौजूद रहती है जो समय समय पर लोगों के सामने आती रहती है | एन्साइक्लोपीडिया के अनुसार – (1) न्यू मीडिया द फॉर्मस ऑफ कम्यूनिकेटिंग इन द डिगिटल वर्ल्ड, विच इन्क्लूड्स पब्लिशिंग ऑन सीडीज़, डीवीडीज एंड मोस्ट सिग्निफिकेंट्ली ओवर द इंटरनेट | आईटी इम्पलाईज दट द यूसर ऑबटैंस द मेटेरियल वया डेस्कटॉप एंड लैपटॉप कम्प्यूटर्स, स्मार्टफोनस एंड टेबलेटस | एवरी कंपनी इन द डेवेलोपड वर्ल्ड इस इन्वोल्वड वित न्यू मीडिया | कंट्रास्ट वित ओल्ड मीडिया | (2) द कंसेप्ट दट न्यू मेथोड्स ऑफ कम्युनिकेटिंग इन द डिजिटल वर्ल्ड अल्लौ स्मालर ग्रुप्स ऑफ पीपुल टू कांग्रेगेट ऑनलाइन एंड शेर, सेल एंड स्वैप गूड्स एंड इन्फोर्मेशन | आईटी अल्लौस मोर पीपुल तो हैव अ वोइस इन थेयर कम्युनिटी एंड इन द वर्ल्ड इन गेनेरल |  इसी प्रकार वेबोपीडिया ने न्यू मीडिया को ओल्ड मीडिया से अलगाते हुए इसमें निम्नलिखित सिद्धांत को शामिल किया है न्यू मीडिया इंक्लूडस वेबसाइटस, स्ट्रीमिंग ऑडियो एंड वीडियो, चैट रूमस, ईमेल, ऑनलाइन कम्युनिटीज, वेब एडवरटाइजिंग, डीवीडी एंड सीडी रॉम मीडिया, विर्तुअल रियलीटी एन्विरोंमेंट्स, इंटीग्रेशन ऑफ दिगितल डाटा वित द टेलीफोन सच एस इंटरनेट टेलीफोनी, डिजिटल कैमरास और मोबाइल कंप्यूटिंग |
इसमें शक नहीं कि अभी न्यू मीडिया” पारंपरिक मीडिया की तरह संगठित नहीं है | लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका हर उपयोगकर्ता स्वयं एक पत्रकार हैस्वयं संपादक हैस्वयं प्रकाशक है |  इसमें दी गई सूचना एक क्लिक में ही पुरे विश्व में पहुँच जाती है | न्यू मीडिया या सोशल मीडिया में यह बात आश्चर्यचकित करती है कि उससे जुड़े तरह तरह के लोग अपने मुद्दों को समाज के समक्ष असरदार रूप से रखते हैं | ये लोग अपने आप में एक असंगठित फौज की तरह हैं | वे स्वयं ही फौज के सैनिक हैं और स्वयं ही जनरल भी | जैसा कि नरेंद्र मोदी ने कहा है, अपने निजी स्वार्थ को दरकिनार कर किसी सामाजिक या राष्ट्रीय समस्या के निराकरण के लिए वेब पर इतना ज्यादा समय और ऊर्जा निरंतर देते रहना कोई मामूली बात नहीं | इसके लिए व्यक्ति को संबद्ध समस्या को लेकर फिक्र होनी चाहिएऔर वह व्यक्ति जागृत और सृजनात्मक भी होना चाहिए | व्यावसायिक कैरियर और कामकाज की व्यस्तता के बावजूद इस मीडिया से जुड़े लोग मानवीय और वैश्विक मुद्दों के लिए समय निकालते हैं | ये लोग सिर्फ एकाध आयुवर्ग या प्रदेश के साथ जुड़े हुए नहीं हैं. प्रत्येक आयु और प्रदेश के लोग इस माध्यम द्वारा सामाजिक चेतना के प्रसार के लिए अपना योगदान दे रहे हैं | अप्रवासी भारतीय भी अपनी मातृभूमि की खबर जानने के लिए सोशल मीडिया का अधिकतम उपयोग कर रहे हैंक्योंकि यह माध्यम दिन-प्रतिदिन तेज और मजेदार बन रहा है | सोशल मीडिया के कारण अब आम आदमी के लिए भी लोगों के समक्ष अपनी बात रखना पहले की तरह अति कठिन नहीं रहा है | लोग अब आसानी से अपने अभिप्राय अन्य लोगों के समक्ष रख सकते हैं | ऐसे भी लोग हैं जो अद्भुत कार्य कर रहे हैं और अन्य लोगों के जीवन को अर्थपूर्ण बनाने में सहायक बन रहे हैं | समाज में परिवर्तन लाने के लिए इन लोगों ने आधुनिक टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का जो बखूबी उपयोग कर दिखाया है वह प्रभावित करने वाला है | अभिप्राय यह है कि सोशल मीडिया का प्रभाव क्षेत्र अनंत है अतः उसकी संभावनाएँ भी असीम हैं | इसका सबसे सकारात्मक प्रयोग जन जागरण और सामाजिक परिवर्तन के लिए किया जा सकता है |

यहाँ मैं रवीश कुमार के ब्लॉग की इस स्थापना को उद्धृत करना चाहूँगी कि “हिंदी में ब्लॉग लेखन अब ब्लॉग तक सीमित नहीं है | फेसबुक ने जब से अपने 140 कैरेक्टर की बंदिश हटाई हैफेसबुक नया ब्लॉग हो गया है | शुरूआती ब्लॉगरों ने ग़जब तरीके से साथी ब्लॉगरों की तकनीकी मदद की | हिंदी के फॉन्ट की समस्या को सुलझायाजानकारी दी और लिंक की साझेदारी से एक ऐसा समाज बनाया जो विचारों से एक दूसरे से स्पर्धा कर रहा थामगर तकनीकी मामले में एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चल रहा था | हिन्दी की दुनिया में ऐसी साझीदारी अगर पहले रही भी होगी तो इस तरह से तो बिल्कुल नहीं रही होगी | ज्यादतर लेखक नए थे | हिंदी के स्थापित लेखक संसार ब्लॉग रचना संसार से आरंभ से लेकर बीच के सफर तक दूर ही रहा | इसलिए भाषा की ऊर्जा बिल्कुल अलग थी | हिंदी में बात कहने का लहजा उपसंपादक और व्याकरण नियंत्रकों से आजाद हो गया | कुछ बहसें इतनी तीखीं रहीं कि उसने साहित्य की दुनिया के मुद्दों को भी झकझोर दिया |

इसी प्रकार रविशंकर श्रीवास्तव के इन विचारों का भी मैं समर्थन करना चाहूँगी कि – निजी ब्लॉगों पर संपादकप्रकाशक और मालिक स्वयं रचनाकार होता है | अतः यहाँ प्रयोग अंतहीन हो सकते हैंप्रयोगों की कोई सीमा नहीं हो सकती | यही कारण है कि जहाँ आलोक पुराणिक नित्य प्रति अपनी व्यंग्य रचनाओं को अपने ब्लॉग में प्रकाशित करते हैं तो दूसरी ओर भारतीय प्रसाशनिक सेवा की लीना महेंदले सामाजिक सरोकारों से संबंधित अपने अनुभवों को लिखती हैं। वे आगे यह भी बताते हैं कि आज हिंदी ब्लॉग जगत विषयों की प्रचुरता से संपन्न हो चुका हैऔर इसमें दिन प्रतिदिन इज़ाफ़ा होता जा रहा है | इरफान का ब्लॉग सस्ता शेर प्रारंभ होते ही लोकप्रियता की ऊँचाइयाँ छूने लगा | इसमें उन आम प्रचलित शेरोंदोहों और तुकबंदियों को प्रकाशित किया जाता हैजो हम आप दोस्त आपस में मिल बैठकर एक दूसरे को सुनाते और मज़े लेते हैं | ऐसे शेर किसी स्थापित प्रिंट मीडिया की पत्रिका में कभी प्रकाशित हो जाएँये अकल्पनीय है | सस्ता शेर में शामिल शेर फूहड़ व अश्लील कतई नहीं हैंबसवे अलग तरह कीअलग मिज़ाज मेंअल्हड़पन और लड़कपन में लिखे, बोले बताए और परिवर्धित किए गए शेर होते हैंजो आपको बरबस ठहाका लगाने को मजबूर करते हैं |  इतना ही नहीं, हिंदी ब्लॉगिंग का विस्तार करेंट अफेयर्स, साहित्य और मनोरंजन में भी आगे बढ़ रहा है | तकनालाजी पर भी हिंदी ब्लॉग लिखे जा रहे हैं | ई-पंडित, सेल गुरु और दस्तक नाम के चिट्ठों में तकनालाजी व कंप्यूटरों में हिंदी में काम करने के बारे में चित्रमय आलेख होते हैं. *** कुछ हिंदी ब्लॉग सामग्री की दृष्टि से अत्यंत उन्नतपरिष्कृत और उपयोगी भी हैं | जैसेअजित वडनेकर का शब्दों का सफर | अपने इस ब्लॉग में अजित हिंदी शब्दों की व्युत्पत्ति के बारे में शोधपरकचित्रमयरोचक जानकारियाँ देते हैं जिसकी हर ब्लॉग प्रविष्टि गुणवत्ता और प्रस्तुतिकरण में लाजवाब होती हैं | इस ब्लॉग की हर प्रविष्टि हिंदी जगत के लिए एक धरोहर के रूप में होती हैं | मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर के पत्रकार रमाशंकर अपने ब्लॉग सेक्स क्या में यौन जीवन के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियाँ देते हैं | बाल उद्यान में बाल रचनाएँ होती हैं तो रचनाकार में हिंदी साहित्य की हर विधा की रचनाएँ | अर्थ शास्त्रशेयर बाजार संबंधी गूढ़ जानकारियाँ अपने अत्यंत प्रसिद्ध चिट्ठे वाह मनी में कमल शर्मा नियमित प्रदान करते हैं | वे अपने ब्लॉग में निवेशकों के लाभ के लिए समय समय पर टिप्स भी देते हैं कि कौन से शेयर ख़रीदने चाहिए और कौन से निकालने | शेयर मार्केट में उतार चढ़ाव की उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ अब तक पूरी खरी उतरी हैं |

एक खास यह है कि हिंदी ब्लॉगिंग ने लेखन और पत्रकारिता की हिंदी को आभिजात्य की जड़ता से मुक्त करके गली-मुहल्ले की भाषा से जोड़ा है | भड़ास, कबाड़खानाअखाड़े का उदास मुदगरनुक्ताचीनीनौ-दौ-ग्यारहविस्फोटआरंभउधेड़-बुनबतंगड़चवन्नी चैपजैसे ब्लॉगों के नाम और उनकी सामग्री की भाषा इसका प्रमाण है | हिंदी के पहले ब्लॉग का नाम ही है – नौ दो ग्यारह, जो इस माध्यम की हिंदी के जन भाषा के समीप होने का द्योतक है | यहाँ तकनीकी ब्लॉग लेखन की भाषा पर भी विचार करना अपेक्षित है | टेकसमीक्षा के अनुसार  यह अपेक्षा की जाती है कि विज्ञान तथ्यों की भाषा बोले और यह भाषा अगर बेरहम भी हो तो मान्य होगी | इस परंपरागत सोच में बदलाव के बीज बोए जा रहे हैं और इसका श्रेय आज के सम्मुन्नत माध्यमों को मिलना चाहिए जिसने लेखक और पाठक दोनों को बड़ी तेजी से आपस में जोड़ने का काम किया है | अंग्रेजी भाषा में लिखे गए आज के तकनीकी या समालोचनात्मक लेखों ने एक नई सरस विधा को जन्म देने का संकेत दिया है जिसके बड़े सार्थक परिणाम सामने आए हैं | फ्रेंचस्पेनिश और अन्य पाश्चात्य भाषाएँ बड़ी तेजी से इसका अनुकरण कर रही हैं और लोगों का रुझान इस बात का संकेत देता है कि विज्ञान और कला का अगर सही मिश्रण किया जाए तो तकनीकी लेखन में अपार संभावनाएँ हैं |” अभिप्राय यह है कि नव मीडिया द्वारा विज्ञान की हिंदी का नया जनप्रिय रूप उभरने की आवश्यकता है | वस्तुतः विश्वजाल पर हिंदी लेखन का विकास अब शुरू हो रहा है और जरूरत इस बात की है कि विज्ञान और कला क्रियात्मक रूप से एक दूसरे के पूरक बने | विज्ञान की हिंदी को सहज संप्रेषणीय बनाने में सोशल मीडिया का बड़ा योगदान अपेक्षित है | स्मरणीय है कि फ़ोर-जी तकनीक से भविष्य में जीवन का कोई पक्ष अछूता नहीं रहेगा - चाहे शिक्षा का माध्यम हो या सरकार की नीतियाँचाहे टेलिकॉम सेक्टर हो या सामाजिक ढाँचा | आवश्यकता इस बात की है कि लोगों के पास पहुँच रही त्वरित सूचनाएँ उनकी भाषा में पहुँचे ताकि सूचनाओं का आदान प्रदान भी त्वरित हो | इस आवश्यकता की पूर्ति का प्रयास करेंगे तो स्वतः ही हिंदी के और भी नए नए संप्रेषणपरक स्वरूप सामने आएँगे | विकीपीडिया के अनुसार दुनिया में लगभग 60 करोड़ लोग हिंदी जानते समझते हैं जिसमें 50 करोड़ से ज्यादा भारत में है तथा हिंदी विश्व भाषा बनने की तरफ अग्रसर है | आने वाले समय में विश्वस्तर पर अंतरराष्ट्रीय महत्व की कतिपय भाषाओं में हिंदी भी प्रमुख होगी | इसके लिए इंटरनेट पर हिंदी में तकनीकी संबंधी लेखन को बढ़ाना बेहद जरूरी है |
अंततः मैं यही कहना चाहूँगी कि नया मीडिया जन-जन का मीडिया है अतः इसकी भाषा भी जन-जन की भाषा ही होकर रहेगी | इसलिए हिंदी के लिए यह अत्यंत व्यापक और संभावनापूर्ण क्षेत्र है |   
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

कादम्बिनी क्लब की गोष्ठी आयोजित



प्रस्तुत कर्ता-संपत देवी मुरारका

संपतदेवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी

हैदराबाद

कादम्बिनी क्लब की गोष्ठी आयोजित



कादम्बिनी क्लब की गोष्ठी आयोजित

कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्त्वावधान में रविवार दि.21 सितम्बर को हिंदी प्रचार सभा परिसर में डॉ. देवेन्द्र शर्मा की अध्यक्षता में क्लब की 265वीं मासिक गोष्ठी आयोजित हुई |

क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र व कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में आगे बताया की इस अवसर पर मधुमती पोकरणा  (मुख्य अतिथि, परली वैजनाथ), देवीदास घोडके (विशेष अतिथि हिंदी साहित्यकार) एवं डॉ. अहिल्या मिश्र (क्लब संयोजिका) मंचासीन हुए | डॉ.रमा द्विवेदी ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी | डॉ. मिश्र ने क्लब परिचय में कहा कि क्लब की विविध गतिविधियाँ एवं निरंतरता में साहित्यकारों की नियमित उपस्थिति का योगदान महत्त्वपूर्ण है | प्रथम सत्र में साहित्य परिक्रमा त्रैमासिक जो कि ग्वालियर से क्रान्ति कनाटे के संपादकत्त्व में छपा है, इस पर सरिता सुराणा जैन ने समीक्षा करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय अधिवेशन विशेषांक राष्ट्रीय अस्मिता और वर्त्तमान भारतीय साहित्य से संबंधित है | साहित्यकार का यह कर्तव्य है कि वह समसामयिक विषयों पर, देश की वर्त्तमान सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक दशा पर अपनी कलम चलायें | अंक में शामिल सभी आलेख अधिवेशन के केंद्रीय विषय पर आधारित हैं | आलेख पत्रिका के स्तर एवं गरिमानुकूल है | प्रस्तुत अधिवेशन में 18 प्रान्तों के 14 भाषाओं के 353 प्रतिनिधियों की उपस्थिति अधिवेशन के सफलता को दर्शाता है | समीक्षक ने पत्रिका को उच्चकोटि की साहित्यिक पत्रिकाओं की श्रेणी में रखते हुए अपनी बात को विराम दिया |

ततपश्चात हिंदी दिवस की आवश्यकता क्यों विषय पर प्रो. सरिता गर्ग ने कहा कि नदी का उद्गम जिस स्थान से होता है और वह जिस-जिस प्रदेश से गुजरती है, जलवायु प्रांत-प्रांत के हिसाब से बदलता है, उसी प्रकार हिंदी ने भी प्रांत-प्रांत में अलग-अलग बोलियों में अपना स्थान बनाया | देश को स्वातंत्र्य दिलाने के संघर्ष में हमारे नेताओं ने जब भी नारे लगाए, हिंदी में ही वे नारे थे, जिसने जनता में जोश का संचार किया | आज प्रचार-प्रसार माध्यम में विज्ञापन की दुनिया को देखें तो हिंदी ने अपना वर्चस्व रखा है | निज उन्नति निज भाषा के मूल में समाहित है, इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक परिवार से ही विकास की पहल होनी चाहिए | डॉ. कृष्णा सिंग ने कहा कि मैंने राजभाषा अधिकारी के रूप में 24 वर्ष कार्य किया तथा हिंदी की दशा-दिशा को करीब से देखा | कई बार सुझाव प्रेषित किये गए परन्तु सुधार की दिशा में कदम उठाने में गंभीरता नहीं होती है | लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने कहा कि अस्मिता, भाषा, संस्कृति तीनों एक दूसरे से जुड़े हैं | भाषा आगे बढ़ रही है पर संस्कृति वापस नहीं आ रही है | अपनी अस्मिता को जानने के लिए हमें अपने अंदर झांकना होगा | हिंदी की उर्जा को रीजनरेट करना होगा | बढ़ते पश्चिमीकरण से भाषा-संस्कृति प्रमाणित हो रही है | विनय कुमार झा ने कहा कि जब इतिहास कोई लिखता है तो वह सामने वाले पर बोझ डालता है | पुराणों में जो भी  कथाएं हैं वहां से एक वितंडा शुरू हो गया | इतिहास लिखे गए वहां कहीं भी किसी तारीख का जिक्र नहीं है | लॉर्ड मेकाले ने जो भी किया अपने देश के लिए किया | हिंदी के विकास को झटका तो स्वतंत्रता के बाद लगा | डॉ. मिश्र ने कहा कि मंथन करने के बाद इस नतीजे पर आते हैं कि हम अपने-अपने परिवार में अपनी भाषा को बचाने में अक्षम हैं | हमारी पीढ़ी हमें पोंगा पंडित कहती है, भाषा न मरी है न मरेगी, उस पर जमे मैल को हटाना होगा | देवीदास एवं मधुमती ने भी अपनी बात रखीं | डॉ. देवेन्द्र शर्मा ने अध्यक्षीय बात में कहा कि पत्रिका पर भी सरिता सुराणा ने संक्षिप्त समय में विस्तृत जानकारी दी है | सरिता गर्ग एवं अन्य वक्ताओं ने भी हिंदी पर अपनी बात रखी | हम आज भी विगत में ही जी रहे हैं | कोई भी समाज सुधारक आज की बात नहीं करता | हम ऋग्वेद, रामायण-महाभारत की कहानियों में ही अटके हैं | समय-समय पर परिस्थितियाँ बदली तो विचारों को भी बदलना पड़ा |हिंदी के शब्द भंडार में अन्य भाषा के शब्दों ने अनजाने ही प्रवेश कर लिया और आज हम भी उन शब्दों के आदि हो गए हैं |

ततपश्चात नगर की विख्यात कहानीकार पवित्रा अग्रवाल को हाल ही में प्राप्त भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार (बालकथा संग्रह ‘फूलों से प्यार’) से सम्मानित होने पर क्लब की ओर से उनका बहुमान किया गया | देविदास धोड़के को भारत परिषद् प्रयाग की ओर से सारस्वत सम्मान प्राप्त करने पर क्लब ने तालियों की गूंज में उनकी सराहना की |

गोष्ठी के द्वितीय सत्र में लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के संचालन में तथा गुरुदयाल अग्रवाल एवं वी. वरलक्ष्मी के आतिथ्य में कविगोष्ठी आयोजित हुई | उसमें भावना पुरोहित, संपतदेवी मुरारका, विनीता शर्मा, देवाप्रसाद मयाला, विनयकुमार झा, दर्शन सिंह, पवित्रा अग्रवाल, डॉ. अनिता मिश्र, डॉ. सीता मिश्र, डॉ. कृष्णा सिंग, सरिता सुराणा जैन, सरिता गर्ग, उमा सोनी, सविता सोनी, सूरजप्रसाद सोनी, लीला बजाज, संतोष रजा, भूपेन्द्र, पुरुषोत्तम कडेल, डॉ. अहिल्या मिश्र, मीना मूथा ने काव्य पाठ किया | गुरुदयाल अग्रवाल ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया | डॉ. मदनदेवी पोकरणा ने धन्यवाद ज्ञापित किया | उसके साथ ही गोष्ठी का समापन हुआ |


प्रस्तुत कर्ता-संपत देवी मुरारका 
संपतदेवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

वैश्विक हिंदी सम्मेलन-2014


















मुंबई से अग्रेषित समाचार पत्रों की कतरने
प्रस्तुति-एम.एल.गुप्ता
प्रस्तुत कर्त्ता-संपतदेवी मुरारका
संपतदेवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

सोमवार, 15 सितंबर 2014

मुंबई में वैश्विक हिंदी सम्मेलन संपन्न


प्रस्तुति-संपत देवी मुरारका
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

मुंबई में वैश्विक हिंदी सम्मेलन आयोजित


 






मुंबई में वैश्विक हिंदी सम्मेलन आयोजित

वैश्विक हिंदी सम्मेलन संस्था, हिन्दुस्तानी प्रचार सभा तथा सेंट्रल बैंक ऑफ इण्डिया के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार 10 सितम्बर को मुंबई के बिले पार्ले स्थित सर सोराबजी पोचखानावाला बैंकर प्रशिक्षण महाविद्यालय में वैश्विक हिंदी सम्मेलन-2014 का आयोजन डॉ.एम.एल. गुप्ता की अध्यक्षता में संपन्न हुआ | इस अवसर पर कवि अतुल अग्रवाल की पुस्तक ‘बैल का दूध’ तथा मानव निर्माण नामक मासिक पत्रिका का विमोचन भी संपन्न हुआ | यह आयोजन कई मायने में भिन्न था | यह कार्यक्रम विदेश के लोगों को भाषा के सेतु से जोड़ने की कोशिश थी, साथ ही एक सार्थक पहल भी थी कि हिंदी भाषा को कैसे आगे बढ़ाया जाए ?

संस्था की समन्वयक संपत देवी मुरारका ने प्रेस विज्ञप्ति में आगे बताया कि इस अवसर पर डॉ.एम.एल.गुप्ता ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की | मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार व गोवा की नवनियुक्त राज्यपाल मृदुला सिन्हा, गणमान्य अतिथि के रूप में फिरोज पैछ, हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के सचिव, सुश्री लीना मेहेंदले, मुख्य सूचना आयुक्त-गोवा, एस.पी. गुप्ता, अपर पुलिस महानिदेशक, महाराष्ट्र शासन, एम.के. जैन, मुख्य महाप्रबंधक, भारत संचार निगम लि.महाराष्ट्र एवं गोवा तथा श्रीमती मालती रामबली, अध्यक्ष-हिंदी शिक्षा संघ, दक्षिण अफ्रीका मंचासीन हुए |

अतिथियों के कर-कमलों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित से उद्घाटन समारोह का शुभारंभ हुआ |  महिलाओंने सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की सम्मेलन का प्रमुख उद्बोधन हिंदी की जानीमानी साहित्यकार श्रीमती मृदुला सिन्हा ने किया | उन्होंने कहा कि अपनी भाशादिलों को जोड़ती है इसके उन्होंने अपने विदेश प्रवास के कई वाकये सूनाये, जब केवल अपनी भाषा बोलने मात्र से अजनबी लोग अपने जैसे हो गए | उन्होंने यह भी कहा कि अगर सब लोग मिलकर प्रयास करें तो भाषा को वो सम्मान मिल सकेगा जिसकी वह अधिकारी है | उन्होंने आगे कहा कि हिंदी भाषा माँ के दूध की तरह है जो पालन पोषण करने के साथ-साथ संस्कार भी डालती है | उन्होंने कहा कि इस समय हिंदी को ह्रदय और पेट की भाषा बनाने की जरुरत है और यही हिंदी के बहुआयामी विकास की कुंजी है | इस अवसर पर उन्होंने वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई की वेबसाइट का भी विमोचन किया |

गोवा की मुख्य सूचना आयुक्त लीना मेहेंदले ने कहा कि अंग्रेजी, हिंदी, चीनी, अरबी व स्पेनिश दुनिया की 5 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाएँ हैं | जब हिंदी 5 भाषाओं में शामिल है तो उसे संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनवाना समय की माँग है | उन्होंने कहा कि हिंदी का किसी अन्य भाषा से कोई कटुता, कोई विरोध नहीं है क्योंकि सभी भारतीय भाषाएँ हाथ में हाथ डालकर चलने वाली सहेलियों की तरह हैं |
उन्होंने आगे भी कई पते की बातें कहीं | उनका कहना था कि जब तक हम ‘राम’ को लिखने से पहले अंग्रेजी के आरएएम की जगह मन में ‘र आ म’ नहीं सोचेंगे तब तक हिंदी के माध्यम से सोचने की प्रवृति नहीं विकसित हो सकेगी | उनका यह भी कहना था कि राजभाषा विभाग एवं इसके कामकाज से जुड़े लोग गैर हिंदी भाषी प्रदेशों में स्थानीय भाषाओं के साथ पुल का काम नहीं करेंगे तब तक हिंदी को वह स्वीकार्यता नहीं मिलेगी, जिसकी वह अधिकारिणी है | उन्होंने कहा कि संगणक पर हिंदी टंकण हेतु   इन्स्क्रिप्ट प्रणाली सिखना वर्त्तमान समय में अपरिहार्य हो गया, इसके लिए व्यापक जन अभियान चलाया जाना चाहिए |

सम्मेलन में सबसे भावनात्मक और प्रभावशाली वक्तव्य सुश्री मालती रामबली का रहा जो हिंदी शिक्षक की मशाल दक्षिण अफ्रीका में जलाये हुए हैं | मालती और उनका दक्षिण अफ्रीका से आया हुआ दल सम्मेलन के सहभागियों के लिए प्रेरणास्रोत रहा |

इंदौर से पधारी ब्र. विजयलक्ष्मी जैन ने भारतीय भाषाओं की पुनर्स्थापना के लिए राष्ट्र-राज्य एवं जिला स्तर पर ठोस कार्य योजना का खाका रखा ताकि हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के नाम पर पिछले 67 सालों जारी जुबानी-जमाखर्च बंद हो और सच्चे अर्थों में देश में भारतीय भाषाओं की स्थापना हो सके | शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अतुल कोठारी ने भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार को रोकने हेतु चल रहे कुत्सित षडयंत्र के प्रति सभी को आगाह किया और कहा कि सभी भाषाएँ सहेलियों जैसी है और हिंदी के दक्षिण में होने वाले राजनैतिक विरोध को रेखांकित किया | उन्होंने ऐसे झूठे विरोध का जमकर खंडन किया और शिक्षा-न्याय एवं शासन प्रशासन में भारतीय भाषाओं के लिए राष्ट्रव्यापी वैचारिक आन्दोलन पर बल दिया |

सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. एम. एल. गुप्ता ने अपने उद्बोधन में हिंदी व भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार के लिए शिक्षा, साहित्य, मीडिया व मनोरंजन के साथ-साथ व्यापार-व्यवसाय तथा उद्योग जगत के लोगों को परस्पर मिलकर सूचना-प्रौद्योगिकी को अपनाते हुए कार्य करने का आह्वान किया | उन्होंने हिंदी भाषा को ऊँचाई पर ले जाने का भी आह्वान किया |

सम्मेलन के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) के कुलपति बृजकिशोर कुठियाला, हर्षद शाह, कुलपति-बाल विश्वविद्यालय (राजकोट), प्रेम शुक्ल, संपादक ‘दोपहर का सामना’, हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव, माधुरी छेड़ा, पूर्व निदेशक-एसएनडीटी विश्वविद्यालय, एसपी गुप्ता, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, रमाकांत गुप्ता, महाप्रबंधक-भारतीय रिजर्व बैंक, डॉ. एस. पी. दुबे, मुंबई विश्वविद्यालय, जयंती बेन मेहता, पूर्व केंद्रीय मंत्री, बी.सी. गुप्ता, महामना मदन मोहन मालवीय मिशन, शंकर केजरीवाल, अध्यक्ष-परोपकार, अतुल कोठारी, राष्ट्रीय सचिव-शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एवं शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति, ब्र. विजयलक्ष्मी जैन, भूतपूर्व डिप्टी कलेक्टर, प्रवीण जैन, कंपनी सचिव एवं युवा हिंदी सेवी, राजू
ठक्कर, पीआईएल कार्यकर्ता, बालेन्दु दाधीच, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ, प्रदीप गुप्ता, सोशल मीडिया विशेषज्ञ, विनोद टीबड़ेवाल, शिक्षा एक्टिविस्ट, सुश्री शक्ति मुंशी, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र मो. आफताब आलम, पत्रकारिता कोष, कृष्णमोहन मिश्र, चन्द्रकान्त जोशी, जीटीवी, संजीव निगम, हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, नन्दकिशोर नौटियाल, वरिष्ठ पत्रकार, संजय वर्मा, संगीत विशेषज्ञ, बी.एन. श्रीवास्तव, सकाल मीडिया, संगीता कारिया, टेरो रीडर जैसे हिंदी अनुरागी इस सम्मेलन में उपस्थित थे | सुबह 10 बजे से सायं 6 बजे तक चले इस सम्मेलन में तकनीक, प्रचार, प्रसार, वैश्वीकरण आदि से जुड़े मुद्दों पर जैम कर संवाद-परिसंवाद हुआ जिसने श्रोताओं को पूरे समय बांधे रखा |

सम्मेलन में राज्यपाल महोदया श्रीमती मृदुला सिन्हा ने श्रीमती मालती रामबली (दक्षिण अफ्रीका) को वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान, बालेन्दु शर्मा दाधीच को भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी सम्मान, सीएस प्रवीण जैन को भारतीय भाषा सक्रीय सेवा सम्मान एवं डॉ. सुधाकर मिश्र को आजीवन हिंदी साहित्य सेवा सम्मान से विभूषित किया गया | सभी पुरस्कार प्राप्तकर्त्ताओं को शाल-श्रीफल, प्रशस्ति-पत्र, शील्ड एवं नगद राशि प्रदान की गई |

इस अवसर पर कवि अतुल अग्रवाल, जो नई मुंबई के जाने माने भवन निर्माता हैं, की पुस्तक ‘बैल का दूध’ का विमोचन हुआ, साथ ही ‘मानव निर्माण’ नामक मासिक पत्रिका का भी विमोचन हुआ | अवसर पर संपत देवी मुरारका, कमलेश केडिया, श्रीकांता सरावगी एवं बड़ी संख्या में दर्शन दीर्घा में शहर के तथा देश-विदेश से आये गणमान्य लोग उपस्थित थे | सम्मेलन चार सत्रों में चला | संचालन आनंद सिन्हा ने किया | सुस्मिता भट्टाचार्य ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया |
पस्तुति-संपत देवी मुरारका                                                
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद 

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

ज्योति नारायण की काव्यकृति ‘शब्द ज्योति’ लोकार्पित




ज्योति नारायण की काव्यकृति ‘शब्द ज्योति’ लोकार्पित

ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया, हैदराबाद चैप्टर, कादम्बिनी क्लब, सांझ के साथी एवं साहित्य मंथन, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार 30 अगस्त 2014 को दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद स्थित सभागार में प्रतिष्ठित कवयित्री ज्योति नारायण के पांचवें काव्य संग्रह ‘शब्द ज्योति’ का लोकार्पण संपन्न हुआ |

इस अवसर पर गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. एम. वेंकटेश्वर ने की | उपेन्द्र कुमार जी, दिल्ली से पधारे कवि-समीक्षक, मुख्य अतिथि, डॉ.अहिल्या मिश्र, डॉ. टी. मोहन सिंह, विशेष अतिथि, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, विभागाध्यक्ष उच्च शिक्षा शोध संस्थान, द.भा.हि.प्र.सभा, खैरताबाद एवं ज्योति नारायण मंचासीन हुए | कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ |

आरम्भ में प्रो. बाल कृष्ण शर्मा रोहिताश्व ने मुख्य अतिथि का परिचय दिया और आयोजकों ने आगंतुकों का स्वागत-सत्कार किया | नगरद्वय के साहित्यिकों की ओर से कवयित्री ज्योति नारायण का सारस्वत सम्मान भी किया गया |

श्री उपेन्द्र कुमार जी के करकमलों द्वारा प्रतिष्ठित कवयित्री ज्योति नारायण के पांचवें काव्यसंग्रह ''शब्द ज्योति'' का लोकार्पण संपन्न हुआ | उन्होंने कहा कि इस संग्रह की कविताओं में मुख्य अर्थ के स्थान पर विस्थापित अर्थ के अधिक महत्वपूर्ण होने के कारण ये रचनाएँ विशेष रूप से ध्यान खींचती हैं | उन्होंने आगे कहा कि ज्योति नारायण की ये कविताएँ उनकी रचनायात्रा की प्रगति की सूचक हैं | ज्योति नारायण समकालीन हिन्दी कविता की एक सुपरिचित हस्ताक्षर हैं |

विमोचित कृति की समीक्षा करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में मुख्य रूप से प्रकृति के माध्यम से स्त्री विमर्श को उभारा गया है तथा समकालीन सामाजिक-राजनैतिक सरोकारों पर भी मार्मिक व्यंग्य किया गया है जो कवयित्री की गीति-रचनाओं से नितांत भिन्न प्रतीत होता है | साथ ही डॉ. अहिल्या मिश्र और प्रो. टी. मोहन सिंह ने रचनाकार को शुभकामनाएं दीं तथा भविष्य में श्रेष्ठतर रचनाधर्मिता की अपेक्षा जताई |

समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रो. एम.वेंकटेश्वर ने विस्तार से कवयित्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए अपने संबोधन में यह बताया कि 'शब्द ज्योति' में संग्रहीत कविताएँ संवेदना और शिल्प दोनों के स्तर पर प्रौढ़ तथा परिपक्व रचनाएँ हैं | उन्होंने मातृत्व, कन्या भ्रूण ह्त्या और साम्प्रदायिक संबंधों पर केंद्रित कविताओं का विवेचन करते हुए कहा कि कवयित्री का रचना-संसार उनकी पिछली कृतियों की तुलना में प्रशस्त और विस्तृत हुआ है | कवयित्री ज्योति नारायण ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया |

इस अवसर पर संपत देवी मुरारका, मदनदेवी पोकरणा, विनीता शर्मा, आशीष नैथानी, नरेंद्र राय, वेणुगोपाल भट्टड़, भंवरलाल उपाध्याय, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, पवित्रा अग्रवाल एवं नगरद्वय के कई साहित्यकार उपस्थित थे | प्रेम शंकर नारायण तथा डॉ. गोरख नाथ तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया |

संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद