शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

प्रो. शुभदा वांजपे 'विद्यासागर' उपाधि से सम्मानित

प्रो. शुभदा वांजपे 'विद्यासागर' उपाधि से सम्मानित 
प्रोफेसर शुभदा वांजपे ''विद्यासागर' उपाधि से सम्मानित 

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, गांधीनगर, बिहार द्वारा उज्जैन (म.प्र) में गत 13 दिसंबर को आयोजित 16वें महाअधिवेशन में डॉ. शुभदा वांजपे प्रोफेसर एवं चेयरपर्सन बोर्ड ऑफ स्टडीज, हिदी विभाग, उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद को 'विद्यासागर' की उपाधि से सम्मानित किया गया |

आज यहाँ जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, प्रो. शुभदा ने 6 पुस्तकें, पचास शोधपरक लेख तथा पचास से अधिक राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रपत्र प्रस्तुत किये हैं | वे 'संकल्य' तथा 'विवरण पत्रिका' की संपादिका है |उनके निर्देशन में 5 पीएचडी तथा 10 एमफिल शोध छात्रों को उपाधियाँ प्राप्त हुई है | उनकी सुधीर्घ हिन्दी सेवा के लिए उन्हें विद्यासागर उपाधि के साथ 'स्वर्णपदक' प्रदान किया गया | 

संपत देवी मुरारका 
हैदराबाद 






बुधवार, 21 दिसंबर 2011

"कादम्बिनी क्लब की 232 वीं मासिक गोष्ठी आयोजित"

"कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी आयोजित"






"कादम्बिनी क्लब की 232वीं मासिक गोष्ठी आयोजित"


कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में आगामी रविवार, 18 दिसंबर को हिन्दी प्रचार सभा परिसर में क्लब की 232 वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया |

क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस अवसर पर भगवानदास जोपट ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की | देवेन्द्र शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन हुए | कार्यक्रम का आरंभ ज्योति नारायण द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुती से हुआ | प्रथम सत्र में कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, बेंगलूर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'हिन्दी प्रचार वाणी' पर समीक्षात्मक चर्चा रखी गई | डॉ. मदन देवी पोकरणा ने इस पत्रिका पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नि:संदेह शिल्पगत सौष्ठव भाव प्रवण हिन्दी प्रचार वाणी पत्रिका दक्षिण का गौरव है | पत्रिका गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ करती है | 'निरालाजी एक महाकवि', 'भारतीय साहित्य की अवधारणा', 'भारत स्वतंत्रता के असली हकदार कौन' आदि आलेख निश्चित ही पठनीय है |डॉ. विभा वाजपेयी और प्रो. वीणा त्रिवेदी ने क्रमश: भारतेंदु और वृन्दावनलाल वर्मा की रचनाओं में संवेदनात्मक पक्ष, जीवन चेतना, समाज सुधार, राष्ट्र प्रेम, सुगठित कथानक एवं सशक्त चित्रांकन जैसे सशक्त तत्वों से परिपूर्ण होने की बात कही | 32 पृष्ठ की यह पत्रिका हिन्दी सेवा क्षेत्र में निश्चित स्वागताई है | कहीं-कहीं कन्नड़ भाषा का प्रभाव दिखाई देता है |प्रधान सम्पादक सुश्री बी. ए. शांताबाई एवं सम्पादक मंडल का प्रयास प्रशंसनीय है | लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने चर्चा को आगे बढाते हुएअपने वक्तव्य में कहा कि विचार और समाचार दोनों इसमें है | डॉ. राधा कृष्णमूर्ति का संपादकीय विशेष बन पड़ा है | डॉ. डी.एम. मुल्ला का निरालाजी पर आधृत लेख हिन्दी के विद्यार्थियों के लिए निश्चित ही उपयोगी है | श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद भारतीय साहित्य जैसे विस्तृत विषय पर अपनी बात रखने में सफल हुए हैं |सुरजीत सिंह साहनी ने 'भारत स्वतंत्रता के असली हकदार कौन में 1857 के बाद के इतिहास पर प्रकाश डाला है | विनोबा भावे से जुड़ा आलेख भी अभ्यासपूर्ण है | बालकथा 'देखते रहना' पंचतंत्र की कहानियों से मेल खाती है | कुल मिलाकर प्रत्येक लेख में कुछ न कुछ है, पत्रिका पढ़ने योग्य है |

डॉ. देवेन्द्र शर्मा ने विनोबाजी के सन्दर्भ में एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि चाहे संत, नेता, विचारक हो उसका बड़प्पन उसके साथ के लोग बनाते हैं | आन्दोलन होते तो हैं, पर आंदोलक के चले जाने के बाद आन्दोलन सफलता के बजाय असफलता की ओर मुड़ने लगता है | लोग स्वार्थ साधना के लिए जुड़ जाते हैं, जबकि जमीनी स्तर तक उस विचार को कार्यान्वित करना होता है | ज्योति नारायण ने भी इसी संदर्भ में संस्मरण सुनायीं | भगवानदास जोपट ने अध्यक्षीय बात में कहा कि पत्रिकाएँ न होती तो मनुष्य स्वेच्छाचारी होता | शांताबाई दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार में कर्मठता से जुड़ी है | केरल ज्योति पत्रिका भी इस प्रयास में जुड़ी है | विभिन्न आलेख सारगर्भित, विषयानुकूल तथा पठनीय है | 

तत्पश्चात लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के सफल संचालन में काव्य गोष्ठी संपन्न हुई | इसमें कुंजबिहारी गुप्ता, जी. परमेश्वर, मल्लिकार्जुन, भावना पुरोहित, डॉ. सीता मिश्र, डॉ.रमा द्विवेदी, ज्योति नारायण, विनीता शर्मा, मीना मूथा, गुरुदयाल अग्रवाल, संपत देवी मुरारका, सरिता सुराणा जैन, उमा सोनी, एल.रंजना, मुकुंद दास डांगरा, नरहरि दयाल दादू, वी.वरलक्ष्मी, डॉ.देवेन्द्र शर्मा, अजीत गुप्ता, सूरज प्रसाद सोनी, पवित्र अग्रवाल, भँवरलाल उपाध्याय, ने समसामायिक विषयों पर काव्य पाठ किया | डॉ.रमा द्विवेदी ने सदस्यों को उनके जन्मदिवस व विवाह दिन की बधाई दी | मीना मूथा के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ | अंत में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित शीर्षस्थ विदुषी रचनाकार इंदिरा गोस्वामी एवं जाने-माने साहित्यकार आलोचक डॉ.कुमार विमल के दू:खद निधन पर क्लब की ओर से मौन रखकर श्रद्धांजली अर्पित की गई |

संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण 
मीडिया प्रभारी  
हैदराबाद 


मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

"कश्मीर से अमरनाथ"

"कश्मीर से अमरनाथ"








































"कश्मीर से अमरनाथ"
कश्मीरी घाटी का देखोमनभावन है दृश्य |
ऊँचे-ऊँचे पर्वत नीचेचिनार देवदार के वृक्ष ||
लिद्दरसिन्धुझेलम के तट कासुन्दर बड़ा नजारा |
श्रीनगर की झीलों में तोसैर का ढंग है न्यारा ||
हजरत बल मस्जिदपरिमहलचश्म शाही फिर आये |
शीतल जल का चश्म ये देखोकई तरह के रोग मिटाये ||
निशातशालिमार बाग़ बगीचेपुष्प कमल कुमुदिनी के |
सजे हुए थे इन पुष्पों केसुन्दर मुकुट सारी झीलों के ||
गुल्फों के मैदानों ने तोगुलमर्ग की शान बढ़ाई |
ढकी बर्फ से पर्वत चोटियाँस्कीइंग का बोध कराई ||
गंडोला कार की सैर कोमन से जाता नहीं निकाला |
कोंगडोरी तक ही ले पाईउस सैर का मजा निराला ||
विश्व में सबसे ऊँचा पर्वतदेखने का मौका न मिल पाया |
14500 फीट ऊँचा पर्वत 'अफरवट',  देश की शान बढ़ाया ||
शंकराचार्य का मंदिर देखोबना यहाँ पर विश्व प्रसिद्ध |
290 सीढ़ियाँ बनी यहाँ कीऊपर से दिखे विहंगम दृश्य ||
क्षीर भवानी मंदिरकुण्ड अनंत नागों का |
रावण ने भी करी तपस्याकिया आह्वान माता का ||
जगदम्बा 'श्यामाबन रही लंका मेंपूजा थी राक्षसी तामसी |
क्रोधित हो आ गई भवानीभारत आ कश्मीर बसी ||  
सोनमार्ग सिन्धु की घाटीनदियों की महारानी |
अभयारण्य की घाटी की शोभाना जाए बखानी ||
बालटाल में लगा था मेलायात्रा करने वालों का |
आकाशमार्ग या पैदल चलतेबाबा के मतवालों का ||
अमर गंगा में स्नान कियाफिर हिम पीठ जा पहूँची |
जहाँ विराजे अमरनाथ जीहिम नहीं वह कच्ची ||
प्राकृतिक गुफा में देखाअदभुत शिव परिवार सजा सा |.
बूँद-बूँद गिरता जल जमतावृहदाकार शिवलिंग बनाता ||
बाबा पहलगाँव (बैलगाँव) मेंनंदी वर्धा को शीश नवाके |
नील गंगा में मुख धोकरचन्दन बाडी चन्द्रमा त्यागे ||     
पिस्सू घाटी त्रेशांक पर्वत परमिटाया असुरों का वर्चस्व |  
शेषनाग की महिमा न्यारीमिटे कष्ट पाप सर्वस्व ||
पंचतरनी में माँ गंगा कापञ्च तत्त्वों का त्याग किया |
अनंतनाग में बाबा भोले काभक्तों ने जयकार किया ||.  
 गुफा में बाबा ने माँ कोअमरकथा से तृप्त किया |
अमरकथा सुन शुकदेव जी नेभावमग्न अमरत्व पिया ||
छड़ी मुबारक आई देखोनमन करूँ में बारम्बार |
श्री चरणों में बाबा मेराकरो शीश नमन स्वीकार ||
बालटाल से श्रीनगरवापस लौटकर आये |
रात बिताई हाउस बोट मेंसुबह को दिल्ली आये ||
करूँ प्रार्थना में ईश्वर सेसभी को शक्ति प्रदान करें |.
प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्शनकर अपना कल्याण करें ||

संपत देवी मुरारका 
हैदराबाद 


"भारतीय भाषाओं में महिला लेखन पर संगोष्ठी संपन्न" "महामहिम उप राज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह ने किया साहित्यकारों का सम्मान"







"भारतीय भाषाओं में महिला लेखन पर संगोष्ठी संपन्न"
"महामहिम उप राज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह ने किया साहित्यकारों का सम्मान"

दि. 2-3 दिसंबर, 2011 को हिन्दी विभाग पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के सौजन्य से तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी, चेन्नै तथा तमिलनाडु बहु-भाषी हिन्दी लेखिका संघ द्वारा हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में सुसंपन्न हुआ |

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में पांडिच्चेरी के उप राज्यपाल महामहिम डॉ. इकबाल सिंह, विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद (राज्य सभा) डॉ. रत्नाकर पांडेय,पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के निदेशक (शिक्षण, शैक्षिक नवोतान ग्रामीण पुन:निर्माण) प्रति उपकुलपति प्रो. रामदास (पूर्व सांसद), विशेष अतिथि सुख्यात साहित्यकार डॉ. गंगाप्रसाद विमल, डॉ. वे. वै. वी. ललिताम्बा, डॉ. सूर्यबाला, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के उप निदेशक डॉ. प्रदीप शर्मा, संसदीय राजभाषा समिति के पूर्व सचिव कृष्ण कुमार ग्रोवर, तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में मंचासीन हुए | उपाध्यक्ष रमेश गुप्त 'नीरद', हिन्दी विभाग के आचार्यगण प्रो. विजयलक्ष्मी, डॉ.पद्मप्रिया, प्रमोद मीणा, डॉ. सी. जयशंकर बाबु उपस्थित थे |

संगोष्ठी का उद्घाटन पांडिच्चेरी के उप राज्यपाल महामहिम डॉ. इकबाल सिंह जी ने दीप प्रज्वलित कर किया | महामहिम उप राज्यपाल ने अपने उद्घाटन भाषण में नारी लेखन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए साहित्य लेखन से जुड़े तमाम महिला लेखन को बधाई दी | उन्होंने कहा कि पांडिच्चेरी जैसी आध्यात्मिक भूमि में ऐसे राष्ट्रीय महत्त्व के कार्यक्रम एक ऐतिहासिक उपलब्धि है | पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, देश की श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में एक है जहाँ महिला अध्यापकों का अनुपात देश के अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में सर्वाधिक है, ऐसे विश्वविद्यालय में महिला लेखन पर ऎसी संगोष्ठी का आयोजन बड़ा प्रासंगिक है | उप राज्यपाल ने देश के विभिन्न प्रदेशों से पधारे साहित्यकारों, साहित्य सेवियों का सम्मान किया और कई कृतियों का विमोचन किया जिसमें प्रमुख कृतियाँ हैं - आधुनिक नारी लेखन और समकालीन समाज (सं. डॉ. मधुधवन), कर्म और कलम के उपासक गुलाबचंद कोटडिया,साइबर माँ (राजस्थानी अनुवाद), औरत की बोली (गीता श्री), वल्लुवर वेमना कबीर और ओप्पय्यु आदि | 

विश्वविद्यालय के प्रति उपकुलपति प्रो. रामदास ने अपने स्वगत वचनों में देश के विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों का इस संगोष्ठी में बड़ी संख्या में पधारना विश्वविद्यालय के लिए विशिष्ट गौरव की बात है | महिला लेखन के महत्त्व के संबंध में अपने विचार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि महिला लेखन की आज बड़ी प्रासंगिता है, मगर महिलाओं को स्त्री-समस्याओं तक अपनी लेखनी को सिमित न करके तमाम सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान देने से सामाजिक सुधार और विकास में उनकी भूमिका अपने आप सुनिश्चित हो जायेगी |

विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद (राज्य सभा) डॉ. रत्नाकर पांडेय ने कहा कि नारी और पुरुष में भेद नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये समाज रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं | इन्हें अलग-अलग देखना शोषण ही है | इन दोनों के बीच के संबंधों में समरसता की जरुरत है | ऎसी समरसता के पोषण में नारी लेखन अपनी भूमिका निभाएं | नारी माँ, बहन, बेटी आदि कई रूपों में समाज में कई भूमिकाएँ निभाते हुए अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा के साथ पालन करती है, वैसे नारी लेखन में नारी एवं पुरुष का भेदभाव न करते हुए समूचे समाज के हित को ध्यान में रखने पर नारी लेखन बड़ा प्रासंगिक हो पाएगा | 

उद्घाटन सत्र में अतिथियों का स्वागत करते हुए तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन ने कहा सुदूर दक्षिण में हिन्दी के कई मौन साधक हैं, ऎसी राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से उत्तर और दक्षिण के साहित्यकार, साहित्यप्रेमी, हिन्दी सेवी एक मंच पर आकर एक दूसरे की सेवाओं से परिचित हो सकते हैं | उन्होंने कहा कि आज साहित्य में नारी लेखन का, काफी प्रगति है, नारी लेखन से साहित्य को विशिष्ट दिशा मिल रही है | ऎसी संगोष्ठियों के माध्यम से नारी लेखन के विभिन्न आयाम जैसे भाषा, विषयवस्तु और अन्य मुद्दों पर खुलकर चर्चा हो सकती है | कई पीढ़ियों से हमारे यहाँ वांग्मय का सृजन होता रहा है, श्रेष्ठ विचारों के संवहन में नारी लेखन का विशिष्ट महत्त्व है |

इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न भाषाओं के एक सौ बीस साहित्यकार उपस्थित हुए | इन सबका पुदुच्चेरी के उप राज्यपाल के करकमलों से सम्मान का आयोजन किया गया | संगोष्ठी के प्रथम एवं द्वितीय सत्र में विषय वस्तु के संदर्भ में नारी लेखन, भाषा शैली के संदर्भ में नारी लेखन पर समस्त उपस्थित विद्वतजनों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये | जिसका सफल संचालन डॉ. सी. जयशंकर बाबु एवं स्वर्णज्योति किया | तृतीय सत्र में डॉ. विभारानी द्वारा 'एक नई मेनका' नाटक प्रस्तुत किया गया |

संगोष्ठी में शामिल होने वाले प्रमुख साहित्यकारों, आचार्यों में डॉ. सूर्यबाला, सुधा अरोड़ा, गीता श्री, डॉ. बिंदु भट, प्रो. दुर्गेश नंदिनी, प्रो. सैयद मेहरून, प्रो. देवराज, संपत देवी मुरारका, विभारानी, स्वर्णज्योति, मंजु रुस्तगी, डॉ. बशीर, डॉ. पी. आर.वासुदेवन, नीर शबनम, अनिल अवस्थी, ईश्वर करुण झा, लक्ष्मी अय्यर, डॉ.के. वत्सला, डॉ. पार्वती, आभा सिंहा, मुकेश मिश्र, नील प्रभा भारद्वाज, सुनीता, श्रावणी पांडा, दीप्ति कुलश्रेष्ठ, डॉ.पी.के. बाल सुब्रमनियम, डॉ. शेषण, डॉ. सुंदरम, शैरिराजन, कुलजीत कौर, कल्याणी, प्रमुख प्रकाशक बालकृष्ण तनेजा, महेश भारद्वाज एवं अन्य गणमान्य उपस्थित थे |

दि. 3 दिसंबर 2011 को चतुर्थ सत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रम में रवीन्द्र नृत्य, श्रावणी पांडा ने प्रस्तुत किया | महादेवी गीत अभिनय की मंजु रुस्तगी ने प्रस्तुति दी | दूसरे चरण में आयोजित कवि गोष्ठी संपन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. रत्नाकर पांडेय, सुधा अरोड़ा ने की | संगोष्ठी में पधारे सभी साहित्यकारों ने काव्य पाठ एवं लघुकथा पढी | श्री ईश्वर करुण झा ने संचालन किया | समापन समारोह के पश्चात श्री रमेश गुप्त 'नीरद' ने धन्यवाद ज्ञापित किया | 

संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी  
हैदराबाद 

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

'जम्मू-वैष्णों माता' यात्रा

'जम्मू-वैष्णों माता'  यात्रा 











'जम्मू-वैष्णों माता'  यात्रा 

तीर्थाटन की मन में आई, निकल पड़े हम मस्ताने |
माँ बेटा मिल घूम के आवें, मन लगा बड़ा हर्षाने || 
भारत के सिर मोर मुकुट की, गाथा तुम्हें सुनाऊँ |
हरियाली नदी पर्वत मंदिर, क्या-क्या मैं बतलाऊँ ||
देख विहंगम दृश्य स्वर्ग का, भान हमें है कराती |
रावी, तवी, चिनाव के जल से, धरती ये हरियाती  ||
बागे बाहू किला यहाँ पर,जहां तीन देवियाँ विराजे |
काली माँ जहां 'बवे काली माँ' लक्ष्मी वैष्णों दायें बाएं साजें ||
पीर बुधन अली शाह, सबके मन पर राज किये |                   
500 वर्ष दूध पर जिये, देह यहाँ फिर त्याग दिये ||                          
बागे बाहू उद्यान का देखो, अनुपम बड़ा नजारा |
450 केनाल धरा पर, बना हुआ है सारा ||
स्वर्णिम प्रकाश से आलोकित  हो सबके मन को भाती |
किरणों जैसा तेज बिखरता एक अलौकिक  छटा दिखाती ||
 रवि-तनया तवी नदी के तट पर नन्हा सा हरिद्वार बस गया |
 देव देवियों का द्वादश ज्योतिर्लिंग सहित शिव धाम बन  गया ||
 नदी चिनाब  के तट का दृश्य मनोहारी कैसे वर्णन कर पाऊँ |
निहारते छवि कदम्ब-वृक्ष की फिर शिवधाम स्थान पर आऊँ ||
नैनाभिराम रघुनाथ मंदिर तेंतीस करोड़ देवों का सुलभ दर्शन |
 सबसे बड़ा  पारदर्शी  जग-प्रसिद्ध स्फटिक-लिंग का आकर्षण ||
रणविरेश्वर मंदिर है ऊँचा, जहं शिव शालीग्राम के मध्य |
कटरा से ही त्रिकुट शिखर तक, वादियों के सुखद दृश्य ||
बाण गंगा, चरण-पादुका  मंदिर दर्शन पुण्य अपार |
 अर्ध -क्वांरी हाथी-मत्था ,सांझी-छत हो, आई दरबार ||
गंगा की जलधार नहा कर जा पहुँची मैं माता  के द्वार |
चरण गंगा का करूँ आचमन, दर्शन करुँ मैं बारम्बार ||
नमन करूँ देवी श्री चरणों में, भक्तों का माँ करे उद्धार |
मिलता रहे बुलावा मुझको, माँ के दर्शन का हर बार ||
सलाल डेम, शिवखोरी, घाटियाँ मन मोहित कर जायेँ |
हाथी के सर मुकुट त्रिकुट का, दर्शन चित्त  चुराएँ ||
रोमांचकारी अनुभवों को शब्द नहीं दे पाई हूँ |
विस्तृत लेख लिखे, कविता में नहीं पिरो पाई हूँ ||

संपत देवी मुरारका 
हैदराबाद