"क्रूज में सिंगापुर यात्रा"
"क्रूज में सिंगापुर यात्रा"
एक नितांत घरेलू महिला होने के बावजुद पर्यटन और तीर्थयात्रा अब मेरी आदत और दिनचर्या में शुमार हो गई थी | हालांकि अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियों को में पूरे मनोयोग के साथ निभाती रही हूँ, लेकिन जब भी कोई ऐसा अवसर सामने आया, जब मैं देश-विदेश का परिभ्रमण कर सकती थी तब मैंने इस अवसर को आगे बढ़कर लपकने में कोई कोताही नहीं बरती है | वृद्धावस्था की दहलीज पर पहुँचने और शारीरिक क्षमता में होती निरंतर छीजन के बावजूद मैंने इस दिशा में अपने आत्मबल को कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया |
इसी क्रम में मुझे हैदराबाद से प्रकाशित 'डेली हिन्दी मिलाप' में एक विज्ञापन पढ़ने को मिला | विज्ञापन में 'सुपर स्टार जेमिनी क्रूज' पर भागवत कथा के साथ ही तीन दक्षिण-पूर्व के एशियाई देशों के पाँच महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों की यात्रा का आमंत्रण था |मुझे यह एक अनूठा संयोग प्रतीत हुआ | धार्मिक अभिरुचि की महिला होने के नाते इस तरह के आयोजनों में मैं हमेशा से रूचि लेती रही हूँ, लेकिन पर्यटन के साथ यह दुर्लभ संयोग मेरे लिए प्रसन्नतादायक भी था और आकर्षक भी | विज्ञापन पढ़ने के साथ ही मेरा मन कल्पना- जगत की वीथिका में अनायास ही भटकने लगा | प्रसन्नता के अतिरेक में मेरा मन-मयूर अपनी चित्ताकर्षक रंगीन पंखों को फैलाए नृत्य करने लगा | भागवत-कथा की भक्ति-धारा में नहाये मन को ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों, गहरी घाटियों और वन-प्रांतों की अनंत सुषमा के साथ ही अथाह सागर की उताल तरंगें एक दूरागत पुकार बनकर आमंत्रण देने लगीं |
हालांकि यह मेरी पाँचवीं विदेश-यात्रा होती, लेकिन क्रूज (जलयान) पर पहली | जहाज के डेक पर खड़े होकर अंतहीन समुद्र के विस्तार को अपनी खुली आँखों से विस्मय-विमुग्ध होकर नापना एक अप्रतिम अनुभव ही कहा जा सकता है| अत: मैंने इस यात्रा के लिए आवेदन करने और पंजीकरण कराने में विलंब भी नहीं किया | यह एक सुखद संयोग ही कहा जाएगा कि इसके लिए मुझे इस यात्रा में श्रीमती विजयलक्ष्मी काबरा, सीताराम जी काबरा और पुष्प दरक का साथ भी मिल गया | इनके अतिरिक्त ७१ लोगों का एक दल इस यात्रा के लिए वायुयान से श्रीलंका के लिए २१ जून २००८ को रवाना हुआ | कोलंबो से हमें वायुयान के जरिये ही सिंगापुर के लिए रवाना होना था | वहाँ से आगे की तीन देशों के पाँच महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों की यात्रा क्रूज से होनी थी | अजीब संयोग यह कि जब मैं हैदराबाद से यात्रा के लिए चली तो मुझे वर्षा की रिमझिम फुहारों ने विदा किया था और उन्हीं फुहारों ने सिंगापुर पहुँचने के बाद मेरा और मेरे यात्रीदल का स्वागत भी किया | यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते मौसम अजीब हो गया था | पल में धूप और पल में साया और साया भी ऐसा कि बादलों के घटाटोप के साथ वातावरण में रात के उतर आने का आभास होने लगता |
ऐसे में क्रूज पर हमारी यात्रा की शुरूआत सिंगापुर से ही होनी थी | सिंगापुर दक्षिण-पूर्व एशिया का एक बहुजातीय और बहुभाषी नगर है | अपने प्राकृतिक सौन्दर्य में सिमटा यह नगर दुनिया भर के सैलानियों को सदैव आकर्षित करता रहता है | नगर को इस तरह विन्यास दिया गया है कि यह हरीतिमा की गोद में लेटा किसी नन्हें शिशु सा प्रतीत होता है | समतल भूमि होने के कारण यहाँ गर्मी भी बहुत पड़ती है और वातावरण में उमस भी बहुत होती है | इस द्वीप का विस्तार सिंगापुर नदी के दक्षिण तट से प्रारंभ होता है | यह भूमध्य रेखा से १३७ कि.मी. की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है | इसके दक्षिण मलेशिया का नगर जोहोर है और उत्तर में इंडोनेशिया का रैव-द्वीप है | वैसे सिंगापुर कुल ६३ द्वीपों का एक समूह है जिसमें सिंगापुर शहर को अतिविशिष्ट माना जाता है | इस श्रंखला में कई बड़े द्वीप हैं जिनमें जोरांग, पुलाव टेकांग, पुलाव डबीन और सेंट्रशा को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है | जिन प्रमुख द्वीपों में पानी का श्रोत है उनमें से सिंगापुर, जोरांग, क्लंग, क्रेंजी, सेलेटर और सेरांगुन की गणना की जाती है |
वैसे सिंगापुर स्ट्रेट्स ऑफ मलक्का और साऊथ चायना समुद्री तटों के संगम पर स्थित है | शहर का कुल क्षेत्रफल २७० वर्गमील है | जनसंख्या ४५ लाख के ऊपर है | जनसंख्या में सिंगापुर के मूल निवासी ३.५७ मिलियन और बाक़ी चीनी, मलय और भारतीय है | अंग्रेजी, मंदारिन (चीनी), मलय और तमिल भाषायें बहुतायत बोली जाती हैं | वैसे यहाँ की राज्य भाषा मलय है | राष्ट्रगीत 'मजुला सिंगापुर' की रचना भी मलय भाषा में ही हुई है | सिंगापुर विश्व के उन तीन नगरों में है जो आधिकारिक तौर पर राज्य होने का गौरव रखते हैं | बहुत पहले यहाँ अफीम का कारोबार बहुतायत होता था | रिक्शों की सवारी आम बात थी | वैसे सिंगापुर बृहसांस्कृतिक नगर है जिस पर चीनी, मलय और भारतीय सस्कृति का गहरा प्रभाव है | यहाँ फेंगसुई से पूर्वजों की प्रार्थना होती है जिस कारण नगर हमेशा गुंजान और रंगीन बना रहता है | यहाँ के सांस्कृतिक-उत्सव, लोक परम्परायें, स्थापत्य और कला तथा रीति रिवाज और खान-पान पूरब और पश्चिम की सभ्यता के सम्मिश्रण प्रतीत होते हैं | नगर एक शक्तिमान अलौकिकता से हमेशा जागृत रहता है | पर्यटन यहाँ का मुख्य व्यवसाय है, अत: सिंगापुर के लोग पर्यटकों का स्वागत-सत्कार अतिथि के रूप में करते हैं | कहा जाता है कि बहुत पहले यह नगर सिंगापुर नदी के तट पर मछुआरों का एक छोटा सा गाँव था | १८१९ ई. में ब्रिटिश साम्राज्य ने यहाँ अपनी सेना का एक मुख्यालय स्थापित किया और यहाँ व्यापार भी शुरू किया |द्वितीय विश्व के दौरान १९४५ में इसे जापानियों ने अपने अधीन कर लिया, लेकिन जापान की पराजय के बाद फिर यह ब्रिटिश कॉलोनी हो गया जो आगे चल कर १९६३ में आजाद हुआ, लेकिन उसके बाद यहाँ मलेशिया का कब्ज़ा हुआ जो ९ अगस्त, १९६५ तक बना रहा | उसके बाद यह नगर एक स्वतन्त्र गणराज्य के रूप में स्थापित हो गया |
यहाँ का मौसम पूरे साल लगभग एक सा रहता है और साधारण वर्षा होती है | उत्तर-पूर्वी मानसून के समय यहाँ तूफानी हवायें चलती है | इन हवाओं को 'सुमत्रास' कहा जाता है | यहाँ के त्योंहार इतने आकर्षक और रंगीन होते हैं कि इस अवसर का अवलोकन करने दुनिया भर से पर्यटक भागे चले आते हैं | 'थाईपूजन' यहाँ के हिन्दुओं का एक दर्शनीय त्योंहार है | अप्रेल महीने में यहाँ 'सिंगापुर फूड फेस्टिबल' और जून में 'ग्रेट सिंगापुर सेल' की धूम रहती है | सितम्बर में यहाँ 'मेरलाइन' का स्थापना-त्योंहार मनाया जाता है | सिंगापुर के बारे में इतनी सारी जानकारियाँ हमें यात्रा के गाइड अनूप कुमार अग्रवाल से मिली | वैसे तो एयर पोर्ट पर उतरने के साथ ही वर्षा शुरू हो गई थी, लेकिन हम जिस उद्देश्य के साथ यहाँ आये थे उसे तो हर हाल में पूरा करना ही था |
हमारी यात्रा की शुरुआत मुरुगन मंदिर से हुई | इस मंदिर को यहाँ चेट्टियार मंदिर भी कहते हैं और यह १५० वर्ष पुराना एक भव्य और प्राचीन मंदिर है | अपनी कलात्मकता और स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध यह हिन्दू मंदिर भगवान मुरुगन (स्वामी कार्तिकेय) को समर्पित है | सिंगापुर के टेंक रोड पर स्थित इस मंदिर का निर्माण १८५८ ई. में नत्तकोत्ताई चेट्टियार ने कराया था | स्थानीय लोग इसे 'थेड़ायुथपानी' जिसका अर्थ, थेंडम+आयुधम+पानी संधिविच्छेद के साथ वह देवता जिसके हाथ में भाला हो, होता है | मान्यता है कि मुरुगन अपने इस भाले से पापियों का संहार कर भक्तों की रक्षा करते हैं | पुराणों के अनुसार इन्हें शिव-पार्वती का पुत्र माना जाता है | ये स्वामी गणेश के भ्राता हैं |
चेट्टियार जाति के लोगों ने, जब यहाँ मंदिर नहीं बना था, एक पीपल-वृक्ष के नीचे एक भाला जो मुरुगन स्वामी का प्रतीक चिह्न है गाड़ कर पूजा-उपासना प्रारम्भ की थी और बाद में यह एक भव्य मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित हुआ | हमारा यात्री दल इस भव्य मंदिर की शोभा से चमत्कृत था | प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर गणेश और बायीं ओर इडम्वन जी के सुन्दर विग्रह प्रतिष्ठित है | मंदिर के गर्भगृह में स्वामी मुरुगन की एक अत्यंत सुन्दर मूर्ति दाहिने हाथ में लकड़ी का भाला लिए प्रतिष्ठित है | इनका रूप संन्यासी का है | इस मूर्ति के अवलोकन के बाद मुझे अपनी दक्षिण भारत की यात्रा याद आ गई | दक्षिण भारत के मंदिरों में स्थापित मुरुगन से यह विग्रह किसी अर्थ में भिन्न नहीं है | यह भारत के सांस्कृतिक अवदान का भी परिचायक है | मुरुगन के इस श्री विग्रह के समक्ष मैं भाव-विभोर हो गई और मेरी आँखों से आनंदाश्रु का प्रवाह शुरू हो गया | चेट्टियार मंदिर के इस प्रांगण में 1878 ई. में दो अन्य शिव एवं पार्वती के मंदिरों की स्थापन हुई | इन्हें यहाँ सुन्दरेश्वर और मीनाक्षी अम्मा भी कहा जाता है | इनका दर्शन कर मुझे मदुरै का मीनाक्षी मंदिर का स्मरण हो आया | मुझे यह भी आश्चर्य हुआ कि हिन्दू धर्म-दर्शन का प्रसार विश्व-स्तर पर कितना व्यापक है | वैसे इस मंदिर के विशाल प्रांगण में भैरव, दुर्गा, दक्षिण-मूर्ति, अन्तभल्लायर, नटराज, शिवगामी अम्मा, मानिकेश्वर, चंडीकेश्वर और नवग्रहों के स्थापत्य भी दर्शनीय हैं | इन दर्शनों के बाद हमारा यात्री दल बस में बैठ कर आगे की यात्रा की ओर निकला | बस से ही मैंने यहाँ के सबसे ऊँचे पहाड़ 'बुकिट टीम' का दर्शन किया | गाइड ने बताया कि इसकी ऊँचाई 166 मीटर है | बस में बैठे-बैठे ही हमने यहाँ के सुन्दर बागों, गगन चुंबी इमारतों, चीनी मंदिरों, मुसलमानों के मकबरों और ईसाइयों के भव्य गिरजाघरों के साथ ही कई हिन्दू मंदिरों को बाहर-बाहर से देखा | इन सबके बारे में आवश्यक जानकारी देते हुए गाइड ने हमें मेरलॉयन के बारे में बताना शुरू किया |
मेरलॉयन वास्तव में सिंगापुर बोर्ड का एक प्रतीक-चिह्न है | सन 1964 में इसका प्रारूप फ्रेजर ब्रूनर ने तैयार किया था | इस प्रतीक का एक पौराणिक इतिहास 'मलय अन्ताल्स' में दर्ज है | पहले सिंगापुर तैमासिक के रूप में, जिसका अर्थ जवानिस भाषा में समुद्र है, के नाम से जाना जाता था | यह मछुआरों का एक गाँव था | इसी कारण प्रतीक-चिह्न का अधोभाग मछली का बनाया गया है | कहा जाता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में श्री विजय राज्य के राजकुमार संग नीला उत्तमा ने इस द्वीप की पुर्नखोज की थी | इस जंगल में उसे बहुतायत सिंहों के दर्शन हुए जिस आधार पर उसने इस द्वीप का नाम सिंगापुर रख दिया | यही कारण है कि प्रतीक-चिह्न का शीर्षभाग सिंह की आकृति का है | प्रतिक-चिह्न मेरलॉयन समुद्री लहरों के शिखर पर प्रतिष्ठित है | 15 सितम्बर 1972 में सिंगापुर के तत्कालीन प्रधान मंत्री ली क्वान यू थे ने इस प्रतीक-चिह्न का स्थापना दिवस समारोह पूर्वक मनाया था | मेरलॉयन प्रतिमा की ऊँचाई 8.6 मीटर तथा वजन 70 टन है | प्रतिमा सीमेंट निर्मित है किन्तु इसका ऊपरी आवरण चीनी मिट्टी का बना है | बगल में एक छोटी आकृति भी इसकी प्रतिष्ठित है, जिसकी ऊँचाई लगभग 2 मीटर और वजन ३ टन है | दोनों का निर्माण एक ही कारीगर लिम नेंग सेंग ने किया है | इसी स्थान पर एक भव्य पार्क का भी निर्माण किया गया है जो पर्यटकों के लिए अपने सौन्दर्य के चलते आकर्षण का केंद्र है | पार्क में जाने के लिए काफी सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं |
मैं पार्क की विशालता, उसकी सुषमा और भव्यता से चमत्कृत थी | दूर से बड़े मेरलॉयन का पृष्ठ भाग ही दृष्टिगोचर हो रहा था | बहुत दूर चलकर मेरलॉयन की प्रतिमा तक पहुँचना हुआ | प्रतीक-चिह्न का निकट से अवलोकन और उसकी पृष्ठभूमि ने मुझे काफी प्रभावित किया | प्रतिमा, जो शीर्ष पर सिंह के आकर की है, के मुख से निरंतर फौव्वारे के रूप में जलधारा निकलकर नदी में गिर रही थी| एक कांसे की प्लेट पर वहाँ पर्यटकों के लिए स्वागत लिखा हुआ भी मिला | प्रतीक-चिह्न के अवलोकन और पार्क के भ्रमण में काफी समय निकल गया | इस बीच गाइड ने वापस चलने का संकेत किया और हमारा यात्री दल वापस आकर बस में बैठ गया | क्रूज पर वापस आने के बाद हमारे दल ने शुद्ध शाकाहारी भोजन किया और उसके बाद कुछ देर तक विश्राम | शाम ढलने के बाद हम डेक पर इकट्ठा हुए और भागवत कथा का रसामृत पान करने लगे | समूचा वातावरण भक्तिमय हो गया | हमारा क्रूज वहाँ के समयानुसार 7 बजे लंकावी के लिए प्रस्थान करने वाला था |
संपत देवी मुरारका
हैदराबाद .