“लेखक, पाठक और समकालीन समाज”
समाज की परिस्थितियों से प्रभावित होकर ही
साहित्यकार कवि या लेखक अपनी रचनाएँ करते हैं | लेखक एक भविष्य दृष्टा होता है और समाज में
ममता, करुणा, प्रेम आदि आशयों
की पूर्ति के लिए ही वह अपनी कलम थामता है और काव्य लिखता है | सन् 1900 से आज तक आधुनिक काल के लेखक, कवि अपनी रचनाओं
के माध्यम से समय की परिस्थिति के अनुरूप समाज में अपनी रचनाओं को प्रेषित करते
रहे हैं | यह पाठक पर निर्भर
करता है कि वह किस प्रकार की रचनाओं को प्रार्थमिकता देता है | सुसभ्य व
सुसंस्कृत साहित्य पढ़ने से मस्तिष्क का विकास होता है | एक अच्छा साहित्य
मस्तिष्क के लिए पौष्टिक आहार का कार्य करता है | जिस प्रकार पौष्टिक भोजन मस्तिष्क व शरीर को
सुदृढ़ और तंदुरुस्त रखता है | उसी प्रकार लेखक अपनी रचनाओं को पाठक तक
पहुंचाकर मस्तिष्क का विकार दूर कर उसे सुसभ्य बनाता है |
पाठक यदि अच्छे लेखकों द्वारा की गई रचनाओं को
पढ़ते हैं तो मन और मस्तिष्क दोनों विकसित होते हैं | आज के युग में
विज्ञान की उपलब्धियों की गणना नितांत कठिन है, टेलीफोन, सेलफोन, टेलीविजन जैसी सुविधाओं के प्राप्त होने पर कुछ
साहित्य प्रेमी साहित्यिक रचनाओं का अध्ययन खुले मन से करते हैं | आज के युग के पाठक
की रूचि अलग-अलग आयु सीमा के द्वारा विभाजित हो चुकी है | बुजुर्ग व्यक्ति
जहाँ धार्मिक प्रकरण या राजनैतिक उथल-पुथल में अपनी रूचि दर्शाते हैं, उसी तरह कुछ पाठक
हास्य-मनोरंजन की पुस्तकों को पढ़कर ही अपना समय व्यतीत करते हैं | परन्तु मनुष्य के
मस्तिष्क को विकसित करने के लिए एक अच्छे साहित्य की पढ़ने की आवश्यकता है, जिससे मस्तिष्क
संतुलित व सुदृढ़ रह सकता है | आज बाजारों में बिकने वाला अविकल साहित्य पढ़ने
से युवा वर्ग पतन की ओर अग्रसर हो रहा है |
आज के समकालीन समाज की ज्वलंत समस्या है “मादाभ्रूण” | यदि गर्भ में
मादाभ्रूण आ जाता है तो परिवार सतर्क हो उठता है, अल्ट्रासाउंड मशीनों की जांच द्वारा उस निरापद
भ्रूण को हेय दृष्टि से देखा जाता है | किसी तरह वह मादाभ्रूण धरती पर आ जाता है तो भी
वह परिवार द्वारा उपेक्षित होता है, परन्तु आज के युग में नारी धरती से आकाश पर
पहुँच गई है, परन्तु आज भी
समकालीन समाज द्वारा कहीं न कहीं उपेक्षित है | इस ज्वलंत समस्या का निवारण के लिए सरकार
द्वारा भरसक प्रयत्न करने के बावजूद मादाभ्रूण पर एक प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है |
साहित्य, लेखक समाज का आइना है, जिसे हम साहित्य
पढ़कर ही देख सकते हैं | साहित्य और समाज
का घनिष्ठ संबंध रहा है | साहित्य में वाद, सिद्धांत और उपदेश
होते हैं | पहले वे
व्यक्तियों पर प्रभाव डालते हैं | समकालीन परिस्थितियों का साहित्य पर समाज पर
प्रभाव अवश्य होता है | इस समय की धार्मिक, राजनैतिक
परिस्थितियों का प्रभाव समाज पर देखा जा सकता है | प्रभावित समाज कंप्यूटर, आधुनिक शिक्षा
प्रणाली पर आधारित है | फिर भी परिस्थिति
के साथ-साथ समकालीन समाज का प्रभाव अवश्य पड़ता है |
संपत देवी मुरारका
लेखिका यात्रा
विवरण
आजीवन सदस्य A.G.I.
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद
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