मंगलवार, 23 अगस्त 2016

​शिक्षा नीति के संबंध में सुझाव - भाग - 5, डा. विनोद बब्बर, विजय कुमार मल्होत्रा, वानखेड़े गजानन सुरेश




शिक्षा नीति के संबंध में सुझाव - भाग - 5
प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सुझाव/आपत्ति भेजने के लिए -मेल: nep.edu@gov.in

क्या आप भी भारतीय भाषा - संस्कृति  के पक्षधर हैं ? यदि हाँ तो कृपया सुझाव आदि उपर्युक्त ई मेल पते पर शीघ्र भेजें।

 श्री प्रकाश जावेड़कर,
माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री,
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
नई दिल्ली – 110001 
विषय: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2016
29 जून 2016 को मानव संसाधन मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप जारी किया। उस प्रारूप को केवल अंग्रेज़ी में सार्वजनिक किया जाना इसे बनाने तथा जारी करने वाले अफसरशाहों और तथाकथित शिक्षाविदों की मंशा का संकेत है। वर्तमान में राष्ट्रवादी सरकार में है अतः शिक्षा नीति को ‘मैकाले प्रभाव’ से मुक्त करने की जिम्मेवारी निभाकर ही वे अपनी विश्वसनीयता को बरकरार रख सकते हैं। यदि वे इस मामले में अफसरशाहों और तथाकथित शिक्षाविदों के चक्राव्यूह में केवल ‘हां में हां’ मिलाने को मजबूर हो जाते हैं तो यह इस देश का दुर्भाग्य होगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति  के संबंध में हमारे सुझाव-
1- शिक्षा का माध्यम हिंदी सहित भारतीय भाषाएं ही होनी चाहिए। विदेशी भाषा को अत्याधिक महत्व देना आत्मघाती है। त्रिभाषा फार्मूले में स्थानीय भाषा के बाद हिन्दी एवं संस्कृत का स्थान हो तथा सभी विदेशी भाषाओं को एक श्रेणी में रखते हुए स्नातक स्तर तक उनमें से केवल एक भाषा लेने की छूट होनी चाहिए। यदि कोई अतिरिक्त भाषाएं सीखना चाहता है तो वह व्यक्तिगत स्तर पर इसकी व्यवस्था कर सकता है।
2- स्कूल स्तर तक निजी अथवा राजकीय विद्यालयों में पाठ्यक्रम समान होना चाहिए। जिससे कमाई के लिए अनावश्यक पुस्तकों का वजन बढ़ाने की प्रवृत्ति पर अकुंश लगाया जा सकें। निजी स्कूलों द्वारा  पुस्तकेंवर्दीस्टेशनरी बेचना दंडनीय अपराध घोषित होना चाहिए।
3- शिक्षा में देशप्रेमसंस्कृति और नैतिक मूल्यों का स्थान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ताकि जापान की तरह हर भारतीय बच्चे में ‘सबसे पहले देश’ के संस्कार प्रबल हों। लम्बी छुट्टियों में सांस्कृतिक आदान- प्रदान के लिए उत्तर के छात्रों को कम से कम एक पखवाड़े का क्रमानुसार पूर्वपश्चिमदक्षिण का प्रवास करना चाहिए। शेष क्षेत्रों में भी इसी प्रकार के प्रयास होने चाहिए। इस अध्ययन प्रवास के दौरान प्राप्त अनुभवों को लिखने तथा श्रेष्ठ गुणों को अपने जीवन व्यवहार में उतारने के लिए प्रेरित किया जाये। अंतिम परिणाम में इस मूल्यांकन भी होना चाहिए। संस्कृत तथा नैतिक मूल्यों का लगातार अध्ययन उन्हें पथभ्रष्ट होने से बचाने में मदद करेगा।
4- प्र्राथमिक स्तर तक पुस्तकों के साथ- साथ प्रकृति तथा व्यवहारिकता  के माध्यम से भी बच्चे को मानसिक विकास होऐसा प्रयास होना चाहिए। यातायात अनुशासनआपदा प्रबंधनतल संरक्षण जैसे विषयों पर बच्चों को जागरूक करने के किताबी नहीं बल्कि प्रयोगात्मक उपाय एवं प्रशिक्षण होने चाहिए।
5- स्नातक स्तर तक साहित्य का पठन- पाठन अनिवार्य हो। एकता को बढ़ावा देने के लिए साहित्य का भारतीय भाषाओं में अनुवाद कर उन्हें प्रकाशित तथ पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये। प्राथमिक स्तर पर बच्चों को देश-प्रेम के गीतों व कविताओं के गायन की प्रतियोगिाएं हो। स्वतंत्रता दिवस. गणतंत्र दिवस  आदि राष्ट्रीय त्यौहारों पर एकता को बढ़ावा देने वाले गीतों कविताओं के गायन,कहानियों और नाटकों के मंचन को बढ़ावा दिया जाए।   ऐसा करते हुए हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जाये।
अंग्रेजी माध्यम वाले निजी स्कूलों को भी इसके पालन के स्थाई निर्देंश होने चाहिए। उल्लंघन/कोताही को दंडनीय बनाया जाये।
6- शिक्षा नीति बनाने और उसे लागू करने से पूर्व यह सुनिश्चित किया जाये कि केवल राजकीय स्कूलों में अध्ययन करने वाले ही राजकीय नौकरियों के पात्र होंगे। जो सामर्थ्यशाली हैं और ज्ञान प्राप्ति के बेहतर संसाधनों से लैस हैं उनसे सामान्यजन की प्रतियोगिता प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध है।
7- उच्च स्तर पर वैज्ञानिक ,तकनीकी विषयों की शिक्षा का माध्यम भी भारतीय भाषाएं होनी चाहिए। अलग-अलग धाराओं में जाने के लिए पाठ्यक्रम को कुछ इस तरह से निर्धारित किया जाये कि अनावश्यक बोझ न बढ़े। जैसे वर्तमान में छात्र वाणिज्य का हो या विज्ञान का अथवा कला का गणित समान है। स्पष्ट है कि पाठ्यक्रम बनाने वालों ने कोमर्स और साइंस के अंतर और उनकी भावी आवश्यकताओं को समझने की जहमत नहीं उठाई।
8- शिक्षा का माध्यम किसी भाषा में होना तथा उस भाषा को एक विषय के रूप पढ़ाने के अंतर को रेखांकित किया जाना आवश्यक है। विषय के रूप में पढ़ाते हुए भी उस भाषा के इतिहासभूगोल संग उसके साहित्य का अध्ययन होना चाहिए न कि तकनीकी शब्दावली को अन्य विषयों में जबरदस्ती घुसेड़ने का जरिया।
9- शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान तक सीमित न करते हुए उसे तकनीकी एवं व्यवहारिक ज्ञान का ऐसा माध्यम बनाया जाये जो स्कूली स्तर पर (बारहवीं कक्षा तक) ही छात्र को केवल बाबू बनने की प्रवृत्ति से मुक्त करते हुए उसे किसी न किसी तकनीकी में प्रवीण बनाकर उसे  रोजगार प्रदान कर सके।
10- सभी स्कूलों में सामूहिक व्यायाम एवं योग को अनिवार्य बनाते हुए खेलो तथा एनसीसी के लिए प्रेरित भी किया जाये। किसी की स्कूल को मान्यता प्रदान करने से पूर्व वहां खेल एवं चिकित्सा की पर्याप्त सुविधा का होना सुनिश्चित किया जाये।
11- सभी स्कूलों में कम्प्यूटर सहित आधुनिक संसाधन हो। विज्ञान की प्रयोगशालाएं वर्तमान की तरह सजावटी न हो। वेदों के श्रेष्ठ ज्ञान को भी आधुनिक संसाधनों के माध्यम से और सरल सहज बनाकर सबके लिए उपलब्ध कराया जाये।
12- उच्च शिक्षा में प्रवेश की कसौटी तय की जाये क्योंकि वर्तमान में अनेक अपात्र लोग भी कालेजों में प्रवेश पाकर वहां समस्याएं उत्पन्न करते हैं। जिनकी स्कूली शिक्षा का स्तर ही औसत से कम रहा हो उन्हें कालेजो की बजाय तकनीकी संस्थानों की ओर मोड़ने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
डा. विनोद बब्बर संपर्क-   09868211911
संपादक -- राष्ट्र किंकर
निवास- ए-2/9हस्तसाल  रोडउत्तम नगर नई दिल्ली-110059  
rashtrakinkar@gmail.com
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 बंधुवर,
यह निश्चय ही हर्ष का विषय है कि भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संदर्भ में प्राथमिक विद्यालयों में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने की बात को हिंदी प्रेमियों ने लगभग सर्वसम्मति से स्वीकार किया हैक्योंकि छात्रों की रचनात्मक प्रतिभा के विकास के लिए मातृभाषा से अधिक बेहतर कोई विकल्प नहीं है.
लेकिन आज की कड़ी प्रतियोगिता के युग में आरंभ से ही मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को यदि हम अपने भावनात्मक आवेग में आकर भारत में आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के सशक्त माध्यम के रूप में विद्यमान अंग्रेज़ी के ज्ञान से वंचित करने का प्रयास करते हैं तो मातृभाषा के माध्यम से शिक्षित बच्चे कड़ी प्रतियोगिता में अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षित बच्चों के आगे ठहर नहीं पाएँगे. बैंक ऑफ़ बड़ौदा के उप महा प्रबंधक डॉ. जवाहर कर्नावट ने महाराष्ट्र में किये गये प्रयोग का उल्लेख किया है कि किस प्रकार मराठी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चे मात्र विषय के रूप में अंग्रेज़ी पढ़कर अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षित बच्चों को मात दे रहे हैं.
 
वस्तुतः शिक्षा नीति का आधार सिर्फ़ भावनात्मक या सैद्धांतिक नहीं हो सकता. इसे वास्तविकता से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए. हिंदी के प्रबल समर्थक आर्यसमाज के प्रवर्तक ऋषि दयानंद नेभी अपनी शिक्षा-नीति में अंग्रेज़ी को पढ़ाने की बात स्वीकार की थी. यही कारण है कि उनकी प्रेरणा से आरंभ किये गये डीएवी कॉलेज की शिक्षा आज भी वर्तमान चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है.
 
आज की नई पीढ़ी पिछली पीढ़ी से बहुत आगे है. आज पाँच साल का बच्चा भी सहजता से स्मार्ट फ़ोन जैसे उपकरणों का उपयोग करता है. आज भारत में 40 करोड़ से अधिक इंटरनैट के उपभोक्ता हैंजबकि एक वर्ष पूर्व यह संख्या मात्र 10.8 करोड़ थी और 65 प्रतिशत युवा आबादी वाले देश में स्मार्ट फ़ोन के अधिकांश प्रयोक्ता बहुत कम आयु के बच्चे हैं. स्मार्ट फ़ोन के साथ उपलब्ध विभिन्न प्रकार के ऐप का उपयोग करने के लिए अंग्रेज़ी का बुनियादी ज्ञान बहुत आवश्यक है. अगर हम अपने बच्चों को आरंभ से ही अंग्रेज़ी का ज्ञान नहीं करवाएँगे तो ये बच्चे आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की दौड़ में पिछड़ जाएँगे. निश्चय ही आज सभी कंपनियाँ अपने बाज़ार का विस्तार करने के लिए भारतीय भाषाओं में सभी साधन-सामग्री उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैंलेकिन वास्तविकता तो यह है कि बिना अंग्रेज़ी के इन उपकरणों का उपयोग भी संभव नहीं है. मैं सात वर्षों तक माइक्रोसॉफ्ट में भाषा सलाहकार के रूप में काम करता रहा और वैबदुनिया आदि संस्थाओं के सहयोग से विंडोज़ और ऑफ़िस हिंदी के इंटरफेस और मेनू आदि को हिंदी में विकसित करने में हम कामयाब भी हो गएलेकिन आज भी स्थिति यह है कि बहुत कम लोग इस सुविधा से परिचित हैं. इसी तरह हिंदी के प्रूफ़िंग टूल्स की भी यही स्थिति है. हम स्वयं तो भ्रम के शिकार हैं हीअपने बच्चों को भी इसी भ्रम में रखना चाहते हैं. कदाचित् हमारे मज़दूर और किसान इस तथ्य से भलीभाँति परिचित हैं और यही कारण है कि वे यह माँग कर रहे हैं कि उनके बच्चों को अनिवार्यतः अंग्रेज़ी सिखाई जाए. क्या वंचित वर्ग की माँग की कोई भी सरकार अनदेखी कर सकती है.
 
जहाँ तक रोज़गार के क्षेत्र में अंग्रेज़ी के वर्चस्व का प्रश्न हैहिंदी से जुड़ी सभी नौकरियों और व्यवसायों के लिए   भी अंग्रेज़ी का ज्ञान आवश्यक है. असल बात तो यह है कि संघ की प्रमुख राजभाषा होते हुए भी हिंदी अनुवाद की अनुगामिनी भाषा ही बनकर रह गई है. नौकरशाही में अंग्रेज़ी आज भी मूल भाषा है. हर सरकारी दस्तावेज़ पहले अंग्रेज़ी में ही तैयार होता है और उसके बाद राजभाषा कानून के कारण बहुत विवश होकर उसका हिंदी में अनुवाद कराया जाता है और अगर समय पर हिंदी पाठ जारी नहीं होता तो Hindi version will follow लिख कर मूल अंग्रेज़ी पाठ को जारी कर दिया जाता है. अब तो अदालतें भी विवाद होने पर मूल अंग्रेज़ी पाठ को अंतिम मानकर उस पर अपना निर्णय देने लगी हैं. कभी-कभी तो हिंदी पाठ को समझने के लिए भीमूल अंग्रेज़ी पाठ की मदद लेनी पड़ती है.
 
भारत में यह गलती कई बार दोहराई गई है. बिहार में कर्पूरी ठाकुर में जमाने में और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के ज़माने में अंग्रेज़ी विषय को ही पाठ्यक्रम से निकाल दिया गया था. उसके बाद समय की माँग को देखते हुए लालू जी को बिहार में अंग्रेज़ी की पढ़ाई शुरू करानी पड़ी. आज उनके बच्चे अंग्रेज़ी पढ़-लिख कर बिहार में शासन चला रहे हैं और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंहजी के अमरीका रिटर्न होनहार सुपुत्र राज्य की बागडोर सँभाले हुए हैं. उ.प्र. के युवा मुख्य मंत्री ने अपने युवा छात्रों को मुफ्त में इंटरनैट बाँटकर आधुनिक शिक्षा का परचम लहराने की कोशिश कीलेकिन सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि उत्तर प्रदेश की अपनी सरकारी वैबसाइट को पढ़ने के लिए भी अंग्रेज़ी का ज्ञान आवश्यक है. कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के निमंत्रण पर मैं लखनऊ गया था और जब मैंने वहाँ की सरकार का ध्यान इस कमी की ओर दिलाया तो वे भी हैरान रह गए. ऐसी स्थिति में अंग्रेज़ी ज्ञान के अभाव में उत्तर प्रदेश के बच्चे किस तरह से इंटरनैट के माध्यम से आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को हासिल कर पाएँगे.
विदेशियों को हिंदी पढ़ाते समय एक विचित्र तथ्य मेरे सामने आया. अपने देश में हिंदी की आरंभिक पढ़ाई करके विदेशी छात्र इस उम्मीद से भारत आते हैं कि यह यहाँ आकर हिंदी बोलने का अभ्यास कर सकेंगेलेकिन यहाँ आकर उनका सामना होता है Hinglish से. हिंदी में अंग्रेज़ी शब्दों की भरमार के कारण जो छात्र अंग्रेज़ी जानते हैंवे तो Hinglish समझ लेते हैंलेकिन जो छात्र अंग्रेज़ी नहीं जानतेवे पशोपेश में पड़ जाते हैं कि अब कहाँ जाएँ. हालाँकि इस कठिनाई से निपटने के लिए ऐसे छात्रों को महानगरों के बजाय हिंदीभाषी क्षेत्रों के कस्बों में भेजने की सलाह दी जाती हैलेकिन अब Hinglish का प्रयोग छोटे कस्बों में भी होने लगा है. इतना ही नहींहिंदी के बड़े अख़बार भी इस भाषा को प्रश्रय देने लगे हैं. इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि हिंदी समझने के लिए भी अंग्रेज़ी आवश्यक है.
 
कदाचित् इन तमाम तथ्यों के आलोक में ही संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula)  पारित किया थाजिसमें हिंदी के साथ-साथ अंग्रेज़ी की अनिवार्यता की बात भी की गई है. 
विचारार्थ
विजय कुमार मल्होत्रा
malhotravk1946@outlook.com
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 महोदय,
          जिस प्रकार अग्रेजी भाषा में सामान्यत:एक ही फाँट (Times New Roman) का उपयोग किया जाता है। उसी प्रकार यदि हिंदी में भी एक फाँट (यूनिकोड) का उपयोग किया जाए तो अन्य भाषाओं की तुलना में हिंदी का प्रचार तेज गति से होने में मद्दत हो सकती है। इसके उपयोग से फायदे कौन से उस पर मैंने प्रकाश डाला है। 
1.भारत में विश्वविद्यालयों में हो रहे अनुसंधान (प्रबंध) जो हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि ) में है। सभी में एक ही फाँट यूनीकोड हो जिससे वह फाँट भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के किसी भी संगणक पर खुल सकता है।
2.सब प्रबंध अर्त जाल ( internet ) अपलोड करना होगा। 
3.(plagiarism) वाड्.मय चौर्य पर रोक लग सकती है। 
4.भारत सरकार जो अनुसंधान पर खर्च कर रही है उन अनुसंधान की पुर्नवृत्ति नहीं होगी।
5.internet पर हिंदी साहित्य या अनुसंधान प्रबंधों से भरमार होगी। 
6.वर्धा विश्वविद्यालय,महाराष्ट्र ने यूनीकोड में काफी सामग्री internet पर अपलोड की है। ऐसे आेर प्रयासों की आवश्यकता है। 
7.विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रमों में यूनिकोड का अध्ययन अनिवार्य करे।
8.सभी सरकारी कार्यालयों में हिंदी के लिए एक ही फाँट अनिवार्य करें।
9.इससे जानकारी जाँच में मदद होगी।
10.अगर नियोजन के साथ हिंदी को आगे बढ़ाना है तो ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता है। 
11.हिंदी को लेकर एक वाक्यता के लिए विचार करने की जरुरत है। 
12.दूरदृष्टि रखकर इस संदर्भ योजना बनाएँ।
        
          आशा करता हूँ कि मेरे विचारों से हिंदी के प्रचार-प्रसार कुछ सार्थक या सकारात्मक विचार हो सकता है ।
धन्यवाद की कामना सह........ 
वानखेड़े गजानन सुरेश -अनुसंधानकर्ता 
प्लांट नंबर 142 गट नंबर 60 ,शिव कालनी,जलगांव ।
wankhede222@gmail.com
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शिक्षा नीति पर  ई संगोष्ठी /  परिचर्चा  अभी  आगे जारी रहेगी  ।
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**झिलमिल**
जहाँ से देश-दुनिया में होता है विविध भारती के सदाबहार हिंदी गीतों की तरंगो का प्रेषण- उच्च शक्ति प्रेषित केंद्र, मुंबई
 तरंगों की कहानी बतातीं श्रीमती सुषमा तैलंग ​और नई व पुरानी तकनीक के दौर को समझाते श्री जे एम सिंह
 
हिंदी अनुभाग प्रभारी  श्रीमती विद्या देशमुख , राजभाषा प्रभारी  श्री जे.एम सिंह व तकनीकी कार्मिक​
मलाड, मुंबई  में समुद्र के निकट 250 एकड़ में फैला आकाशवाणी का उच्च शक्ति प्रेषित केंद्र, 


वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत /  www.vhindi.in



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वैश्विक हिंदी सम्मेलन की वैबसाइट -www.vhindi.in
'वैश्विक हिंदी सम्मेलन' फेसबुक समूह का पता-https://www.facebook.com/groups/mumbaihindisammelan/
संपर्क - vaishwikhindisammelan@gmail.com

प्रस्तुत कर्ता : संपत देवी मुरारका, विश्व वात्सल्य मंच
murarkasampatdevii@gmail.com  
लेखिका यात्रा विवरण
मीडिया प्रभारी
हैदराबाद

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