प्रकाश जावड़ेकर,
माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री,
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
नई दिल्ली – 110001
विषय: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2016
आदरणीय मंत्री महोदय,
भारत के भविष्य को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले मंत्रालय की जिम्मेदारी आप को सौंपे जाने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय, नई शिक्षा नीति के मसौदे में भाषा सम्बन्धी सिफारशें पढ़ कर अति निराशा हुई है| सम्बंधित मसौदे में भाषा के बारे में निम्न मुख्य बातें हैं:
१. प्राथमिक स्तर पर शिक्षा मात्री भाषा में देने की बात कही तो गई है पर इस स्तर पर भी शिक्षा में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते दखल के कारण भयावह शैक्षिक, सांस्कृतिक, विकासपरक और भाषागत आदि नुकसानों पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है;
२. उच्च स्तर की शिक्षा भारतीय भाषाओं में प्रदान करने के बारे में मसौदा बिलकुल चुप्प है;
३. अंग्रेजी भाषा के महत्त्व को रेखांकित किया गया है जिसका कोई शोधपरक आधार प्राप्त नहीं हैं|
४. शिक्षा में भारतीय भाषाओं की अनदेखी से भारतीय भाषाओं, संस्कृतियों, और विकास को जो भयावह नुकसान हो रहे हैं उनका जिक्र तक नहीं किया गया है|
भाषा सम्बन्धी इस दृष्टिकोण का अर्थ यह है कि वर्तमान भाषा व्यवस्था जैसे की तैसे बनी रहेगी और इस व्यवस्था से जो ऐतिहासिक नुक्सान हो रहे हैं वो होते रहेंगे और भारत मुकाबलतन एक अशिक्षित और अविकसित देश तो बना ही रहेगा, इस के साथ-साथ भारतीय भाषाओं और परिमाणपूर्वक भारतीय संस्कृतियों की दशा ऐसे ही बदतर होती रहेगी जैसे हो रही है और संभवतः दोनों पूर्ण विनाश की अवस्था में जल्दी पहुँच जायेंगी|
आदरणीय, मेरी इन टिप्पणियों के प्रमाणस्वरूप मैं निम्न तथ्य आप के विचाराधीन करना चाहता हूँ:
शिक्षा और मातृ भाषा बनाम अंग्रेजी माध्यम: १. २०१२ में विज्ञा नों की स्कूल स्तर की शिक्षा में पहले ५० स्थान हासिल करने वाले देशों में अंग्रेजी में शिक्षा देने वाले देशों के स्थान ती सरा (सिंगापुर), दसवां (कनाडा), चौहदवां (आयरलैंड) सोहलवां (आस् ट्रेलिया), अठाहरवां (न्यूजीलैं ड) और अठाईसवां (अमेरिका) थे| इन अंग्रेजी भाषी देशों में भी शिक्षा अंग्रेजी के साथ-साथ दू सरी मातृ भाषाओं में भी दी जाती है| २००३, २००६ और २००९ में भी यही रुझान थे| २. एशिया के प् रथम पचास सर्वोतम विशवविद्यालयों में एकाध ही ऐसा है जहां शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में दी जाती है और भारत का एक भी विशवविद् यालय इन पचास में नहीं आता; ३. दुनिया भर के भाषा और शिक्षा वि शेषज्ञों की राय और तज़ुर्बा भी यही दर्शाता है कि शिक्षा सफलता पूर्वक केवल और केवल मातृ-भाषा में ही दी जा सकती है; ४. भारती य संविधान व शिक्षा पर अभी तक बने सभी आयोगों व समितियों के भी यही आदेश हैं|
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार/कारोबार और मातृ भाषा बनाम अंग्रेजी मा ध्यम: १. सत्तरवीं सदी में (जब एकाध भारतीय ही अंग्रेजी जानता होगा) दुनिया के सकल उत्पाद में भारत का हिस्सा २२ (बाईस) प्तिशत था जो अब मात्र २.५० प्रति शत है। २. अंग्रेजी भाषा के दिन-प्रति-दिन बढ़ते दखल के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत का हिस्सा लगातार कम हो रहा है; प्रति व्यक्ति निर्यात में दुनिया में भारत का स्थान १५०वां है| ३. पि छले दिनों इंग्लैंड में रिपोर् ट छपी है कि यूरोपीय बैंक इंग् लैंड वालों को इस लिए नौकरी नहीं दे रहे क्योंकि उन्हें अंग्रे जी के इलावा कोई भाषा नहीं आती और कोई और भाषा न आने के कारण इंग्लैंड को व्यापर में चार ला ख करोड़ रूपए का घाटा पड़ रहा है|
भारतीय भाषाओं का विज्ञान आदि के शिक्षण के लिए सामर्थ्य: चिकित्सा विज्ञान के कुछ अंग् रेजी शब्द और इनके हिंदी समतुल् य यह स्पष्ट कर देंगे कि ज्ञान- विज्ञान के किसी भी क्षेत्र के लिए हमारी भाषाओं में शब्द हासल हैँ या आसानी से प्राप्त हो स कते हैं: Haem - रक्त; Haemacyt e - रक्त-कोशिका; Haemagogue - रक्त-प्रेरक; Haemal - रक्तीय; Haemalopia - रक्तीय-नेत्र; Haemngiectasis - रक्तवाहिनी-पा सार; Haemangioma - रक्त-मस्सा; Haemarthrosis - रक्तजोड़-विकार ; Haematemesis - रक्त-वामन; Ha ematin - लौहरकतीय; Haematinic - रक्तवर्धक; Haematinuria – रक् तमूत्र; Haematocele - रक्त-ग् रन्थि/सूजन; Haematocolpos - रक् त-मासधर्मरोध; Haematogenesis - रक्त-उत्पादन; Haematoid - रक् तरूप; Haematology - रक्त-विज् ञान; Haematolysis - रक्त-ह्रास; Haematoma - रक्त-ग्रन्थि।
मातृ भाषा माध्यम में शिक्षा और विदेशी भाषा सीखना: यह सही है कि वर्तमान समय में विदेशी भाषा ओं का ज्ञान महत्वपूर्ण है। वि देशी भाषा सीखने के संदर्भ में यूनेस्को की २००८ में छपी पुस्तक (इम्प्रूवमेंट इन द कुआलटी आफ़ मदर टंग - बेस्ड लिटरेसी ऐं ड लर्निंग, पन्ना १२) से यह टू क बहुत महत्वपूर्ण है: “हमारे रास्ते में बड़ी रुकावट भाषा एवं शिक्षा के बारे में कुछ अंधविश्वास हैं और लोगों की आँखें खो लने के लिए इन अंधविश्वासों का भंडा फोड़ना चाहिए। ऐसा ही एक अन्धविश्वास यह है कि विदेशी भाषा सीखने का अच्छा तरीका इसका शिक्षा के मा ध्यम के रूप में प्रयोग है ( दरअसल, अन्य भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ना ज्यादा कारगर हो ता है)। दूसरा अंधविश्वास यह है कि विदेशी भाषा सीखना जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना बे हतर है (जल्दी शुरू करने से लहजा तो बेहतर हो सकता है पर ला भ की स्थिति में वह सीखने वाला होता है जो मातृ-भाषा में अच्छी मुहारत हासिल कर चूका हो)। ती सरा अंधविश्वास यह है कि मातृ-भा षा विदेशी भाषा सीखने के राह में रुकावट है (मातृ-भाषा में मजबू त नींव से विदेशी भाषा बेहतर सी खी जा सकती है)। स्पष्ट है कि ये अंधविश्वास हैं और सत्य नहीं । लेकिन फिर भी यह नीतिकारों की इस प्रश्न पर अगुवाई करते हैं कि प्रभुत्वशाली (हमारे संदर्भ में अंग्रेज़ी – ज.स.) भाषा कैसे सीखी जाए।" यह कथन दुनिया भर में हुए अध्ययन का नतीजा था| लग भग हर देश में विदेशी भाषा बच् चे की १० साल की उम्र के बाद पढ़ाई जाती है और इन बच्चों कि विदेशी भाषा कि मुहारत भारतीय बच्चों से कम नहीं है| इन देशों को अंग्रेजी की जरूरत भारत जि तनी है और ये देश शिक्षा के मा मले में भारत से समझदार हैं और विकास में आगे हैं|
भाषा कब मरती है: आज के युग में किसी भाषा के ज़िंदा रहने और वि कास के लिए उस भाषा का शिक्षा के माध्यम के रूप मे प्रयोग आवश् यक है। वही भाषा जिंदा रह सकती है जिसका जीवन के विभिन्न क्षे त्रों में प्रयोग होता रहे |
अंग्रेजी माध्यम के कुछ और बड़े नुकसान: अंग्रेजी माध्यम की व जह से एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है जिसका न अपनी भाषा और न अं ग्रेज़ी में कोई अच्छा सामर्थ्य है और न ही यह अपनी संस्कृति, प रम्परा , इतिहास और अपने लोगों के साथ कोई गहन आत्मीयता बना सक ती है और न ही प्राप्त ज्ञान को ९५ प्रतिशत भारतीयों के साथ सा झा कर सकती है|
निष्कर्ष: भारतीय शिक्षा संस्था ओं का दयनीय दर्जा, विश्व व्यापा र में भारत का लगातार कम हो रहा हिस्सा, भाषा के मामलों में वि शेषज्ञों की राय और वर्तमान अन् तरराष्ट्रीय भाषा व्यवहार और स् थिति इस बात के पक्के सबूत हैं कि मातृ-भाषाओं के क्षेत्र अंग् रेजी के हवाले कर देने से अभी तक हमें बहुत भारी नुक्सान हुए हैं और इससे न तो हमें अभी तक कोई लाभ हुआ है और न ही होने वा ला है। भारत का दक्षिण कोरिया, जापान, चीन जैसे देशों से पीछे रह जाने का एक बङा कारण भारतीय शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में अंग्रेजी भाषा का दखल है।
विनती: उपरोक्त्त तथ्यों की रोश नी में मेरी विनती है कि भारतीय लोग वर्तमा न भाषागत स्थिति के बारे में गह न सोच-विचार करें ताकि सही भाषा नीति व्यवहार में लाई जा सके। इसमें पहले ही बहुत देर हो चुकी है और भारी नुकसान हो चुके हैं । यदि वर्तमान व्यवहार ऐसे ही च लता रहा तो भारत की और भी बड़ी शैक्षिक, सांस्कृतिक, और विकासपरक तबाही निष्चित है।
आदरणीय, मैं कुछ दस्तावेज (हिंदी में) इस पत्र के साथ संलगित कर रहा हूँ जो भाषा नीति के प्रश्न पर और विस्तार से वैश्विक जानकारी देते हैं| यहाँ संलगित एक दस्तावेज 'भाषा नीति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय खोज: मात्री भाषा खोलती है शिक्षा, ज्ञान और अंग्रेजी सीखने के दरवाजे' हिंदी, पंजाबी, तमिल, तेलूगु, कन्नड़, मराठी, मैथिलि, नेपाली, डोगरी, उर्दू और अंग्रेजी में http://punjabiuniversity.a cademia.edu/JogaSingh/papers प र उपलब्ध है|
पूर्ण आशा है कि नई शिक्षा नीति का निर्धारण करते समय उपरोक्त तथ्यों को अवश्य ध्यान में रखेंगे| कोई शब्द अनुचित लगे तो क्षमा कीजिएगा| सादर,
भवदीय,
जोगा सिंह